Ruby Arun

Monday 8 January 2024

मोदी जी द्वारा राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, शंकराचार्यों के विचार से घोर अधर्म

 

देश को अशिक्षित लोगों से खतरा नहीं है बल्कि पढ़े लिखे मदान्ध विचारशुन्य जाहिलो से खतरा है.
सोचिए की मूर्खता किस हद तक हावी हो चुकी है की 🍊🍊 #शंकराचार्य तक को गालियां दे रहे.
ये कैसे नाराधाम हिंदुओं का समूह है जो  #हिन्दू_धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु के पद पर बैठने वाले शंकराचार्य गुरुओं का अपमान कर रहे.
#श्रीराम_मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में चारों गुरुओं ने जाने से मना कर दिया क्योंकि उनके मुताबिक " राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार नहीं की जा रही है. गुरुओं का कहना है की पीएम मोदी द्वारा #रामलला की मूर्ति को स्पर्श करना ही मर्यादा के खिलाफ है.
ऐसे में वह मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा के उल्लंघन के साक्षी नहीं बन सकते..."
बस, मोदी जी के भक्त नाराज हो गए और गुरुओं को ही अपशब्द बोलने लगे हैं.

दरअसल, धर्म के नाम पर गला फाड़ने वाले
मूर्खों को धर्म का "क ख ग" भी नहीं मालूम.
ये इतने छिछले हैं की अपने ही धर्म का सत्यानाश कर रहे हैं.

इन गलीजों को ये मालूम ही नहीं की
हमारा #वैदिक धर्म ये कहता है की शंकराचार्य धर्मसम्राट का पद #शिव_अवतार भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित सत्य #सनातन_धर्म के आधिकारिक मुखिया की उपाधि है.

यह कोई #बौद्ध_पंथ में #दलाईलामा और #ईसाई_रिलीजन में #पोप कि तरह उक्त मानव समाज द्वारा निर्मित नहीं बल्कि स्वयं #ईश्वर_अवतार द्वारा स्थापित है.

समस्त हिन्दू धर्म इन्हीं चार मठों के दायरे में आता है –उत्तर में बद्री धाम का ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में स्थित गोवर्धन मठ और पश्चिम दिशा में द्वारका में स्थित शारदा मठ ....

भगवान कृष्ण ही चूंकि सर्वकालिक अखिल गुरू हैं.उन्होंने ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु भारत के इन चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया था.

हार युग में एक ऋषि को यह उपाधि प्राप्त हुई है. सत्ययुग में वामन, त्रेतायुग में सर्व गुरू ब्रम्हर्षि वशिष्ठ और द्वापर के सर्वगुरू वेदव्यास थे. उनसे शास्त्रार्थ में पराजित श्री मंडन मिश्र पहले शंकराचार्य थे
तभी से इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है. यह पद हिन्दू धर्म का सर्वोच्च गौरवमयी पद माना जाता है.

शंकराचार्य के दर्शन को अद्वैत वेदांत का दर्शन कहा जाता है. उन्होंने ही इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया था कि
"ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया '
आत्मा की गति मोक्ष में है..."

पर जिसके लिए"माया" ही जगत है
और "असत्य " ही उसका धर्म..
जिसकी "आत्मा" की गति "मोक्ष" की नहीं
बल्कि झूठ, दुराचार, घृणा, पाप और आडंबर है–
उसके अहंकार की राजनीति और स्वयं को ही "ब्रह्म" स्थापित करने की भूख ने आज हिंदू धर्म के इस सर्वोच्च पद की गरिमा को भी अपमानित करने का घोर #अधर्म किया  है.

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