“आतम ज्ञान जाहि घट होई,
आतम राम को चीन्है सोई ” –
–तुम आत्मज्ञान की तरफ जाओ,
राम तुम्हारे भीतर ही हैं, राम हर जगह हैं...
" निर्गुण सगुण दोऊ से न्यारा,
कहें कबीर सो राम हमारा ” –
–राम तो हर जगह हैं,हर व्यक्ति में हैं.
चूंकि तुम्हें ज्ञान नहीं है इसलिए वे तुम्हें दिखाई नहीं देते. इसलिए तुम उन्हें मंदिरों और मूर्तियों में ढूंढते हो..
मुक्तिका उपनिषद में, हनुमान जी
श्रीराम से कहते हैं कि जीवन भर आपकी सेवा में लगा रहा . मैंने आपकी देह देखी है, आपका शरीर देखा है,आपकी लीलाएं देखी हैं . लेकिन प्रभु अब आप मुझे अपना वो स्वरूप दिखाएं और बताएं,जो उच्चतम है, सत्य है,असली है और मुक्तिदायक है.
तब,श्रीराम कहते हैं कि हे हनुमान " मैं वेदांत में वास करता हूं "
जो मुझे जानना और पाना चाहते हैं वो "मूर्त और अमूर्त " के जाल में नहीं फंसेंगे.
वो वेदांत की ओर आएंगे .
चार राम हैं जगत में,तीन राम व्यवहार..
चौथे राम में सार है, ताका करो विचार...
एक राम दशरत घर डोले,एक राम घट घट से बोले..
एक राम का सकल पसारा,एक राम है सबसे न्यारा....
ज्यादातर लोग, दशरथ के घर में जो राम हैं वहीं पर ठहर जाते हैं.
लेकिन जो राम प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है.
वैयक्तिक चेतना में है, कण कण और घट घट में हैं – वहां तक लोग पहुंच ही नहीं पाते.
इसलिए ईर्ष्या , घृणा, भेद , झूठ, स्वार्थ जैसे विकारों से घिरे रह जाते हैं और मेरा नाम जपने के बाद भी उन्हें मोक्ष नहीं मिल पाता.
क्योंकि ऐसे लोगों में "भाव" तो होता है लेकिन "प्रेम" नहीं ...
और राम तो "प्रेम" के भूखे ...
–रीझत राम सनेह निसोतें…
जहां प्रेम नहीं वहां राम नहीं.....
रामचरित मानस के बालकांड में तुलसीदास जी ने लिखा है कि
‘रीझत राम सनेह निसोतें
को जग मंद मलिनमति मोतें...
यानि श्री रामजी तो विशुद्ध प्रेम से ही रीझते हैं. और जो प्रेम के इस स्वरूप को ना समझे. राम जी के बनाए जगत में नफरत का जहर घोले. जीवों के बीच भेद करे–
जगत में उन लोगों से बढ़कर मूर्ख और मलिन बुद्धि का और कोई नहीं..
फिर आप चाहे जितने मंदिर बनवा लें
जितनी भी मूर्तियां स्थापित करवा लें
– राम नाम का महात्म्य आपको नहीं मिलने वाला....
#जय_जय_सियाराम
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