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कांग्रेस की परेशानी ये है कि उसे चुनावों के लिए
एक बड़ी धनराशि की ज़रुरत है , और यह राशि उसे देश के बड़े उद्योगपतियों से चंदे के
रूप में ही मिल सकती है . लेकिन सरकार की व्यापार विरोधी नीतियों की वज़ह से ये सभी
फिलहाल नरेन्द्र मोदी के हिमायती बन चुके हैं , क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर
नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएँ तो देश का कारोबारी माहौल बेहतर हो
सकता है और ज्यादा पूंजी निवेश की गुंजाईश भी बन सकती है . जो अभी सरकार की गलत
नीतियों के कारण देश से दूर जा रही है .
इंट्रो
कोई भी सरकार कोर्पोरेट्स वर्ल्ड की मदद के बिना न
तो बन सकती है , न ही चल सकती है . कांग्रेस और यूपीए सरकार की कारोबारी विरोधी
नीतियों से देश के टाटा , अम्बानी , मित्तल , अडानी , रुईया , खेमका और जिंदल जैसे
शीर्ष कारोबारी नाराज़ हैं और उन्होंने कांग्रेस को चुनावी चंदा देने में कंजूसी
बरत ली है . इन औद्योगिक घरानों को ये लगता है कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री
बनने से इनके हित ज्यादा सधेंगे . लिहाज़ा इन्होने मोदी झोली भर दी है . कांग्रेस
नाराज़ है और वह हर तिकड़म अपना कर देश के औद्योगिक जगत को अपने पक्ष में करना चाहते
है . इसके लिए उसे सीबीआई का इस्तेमाल करने से भी गुरेज नहीं है .
चंदे की सियासत
कोर्पोरेट्स चलाएंगे देश
रूबी अरुण
कुछ वक़्त पहले जब कुमारमंगलम बिड़ला पर कोलगेट
मामले में सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज होने की खबर जैसे ही आई , न सिर्फ कॉरपोरेट वर्ल्ड
बल्कि सत्ता के गलियारे में भी सनसनी फ़ैल गयी . देश के नामचीन उद्योगपतियों रतन
टाटा , मुकेश अम्बानी लक्ष्मी मित्तल सहित कांग्रेस सर्कार के मंत्रियों की समझ
में भी एकबारगी कुछ नहीं आया . लेकिन जब सीबीआई ने हाल के दिनों में कुमार मंगलम
बिड़ला की कंपनी हिंडाल्को के पार्लियामेंट स्ट्रीट स्थित ऑफिस पर कोल मामले को
लेकर छापा मारा और उस छापे में मिली एक डायरी में दर्ज पैसों के हिसाब किताब के
बारे में छान-बीन करने लगी , तब जाकर यह बात समझ आई कि यह सारा मामला चुनावी चंदे
को लेकर है . असल में, इस छापे में जो डायरी सीबीआई के हाथ लगी , उसमे उन्ही पैसों
का हिसाब –किताब मौजूद है जो पैसे भारत के राजनीतिक दलों को चुनावी चंदे के तौर पर
दिए गए हैं और खास तौर पर नरेन्द्र मोदी को दिए गए हैं . सीबीआई को हिंडाल्को के
इस दफ्तर के एक सेफ से 25 करोड़ रुपये भी
मिले हैं , जो चंदा देने के नाम पर ही वहां रखे गए थे . इस बात का जिक्र भी उस
डायरी में मौजूद है .
दरअसल , कांग्रेस की परेशानी यही है . उसे चुनावों
के लिए एक बड़ी धनराशि की ज़रुरत है , और यह राशि उसे देश के बड़े उद्योगपतियों से
चंदे के रूप में ही मिल सकती है . लेकिन सरकार की व्यापार विरोधी नीतियों की वज़ह
से ये सभी फिलहाल नरेन्द्र मोदी के हिमायती बन चुके हैं , क्योंकि उन्हें लगता है
कि अगर नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएँ तो देश का कारोबारी माहौल बेहतर
हो सकता है और ज्यादा पूंजी निवेश की गुंजाईश भी बन सकती है . जो अभी सरकार की गलत
नीतियों के कारण देश से दूर जा रही है . लिहाज़ा , देश के कोर्पोरेट वर्ल्ड में
कांग्रेस और सरकार विरोधी स्वर मुखर हो गए . जिसका पहला असर चुनावी चंदे पर पडा .
मोदी की बातों और गुजरात में किये गए उनके विकास कार्यों की बिना पर कॉरपोरेट जगत ने
आनेवाले लोकसभा चुनाव के लिए अपने दोनों हाथ खोल दिए और कांग्रेस के लिए अपने तेवर
सख्त कर लिए . कांग्रेस को यह बात बेहद नागवार गुजरी. इसके अलावा भी एक और वज़ह रही
कुमारमंगलम बिड़ला से सरकार के नाराज़गी की . देश के एक बड़े और सबसे तेज़ कही
जानेवाली मिडिया कंपनी में कुमारमंगलम बिड़ला के पैंतीस फीसदी शेयर हैं . कुमारमंगलम
के बेटे ने न्यूयॉर्क से मीडिया मैनेजमेंट
की डिग्री ली है और वह मिडिया के फील्ड में हिन्दुस्तान का रुपर्ट मर्डोक बनना
चाहता है . यही वज़ह थी कि कुमारमंगलम अपने बेटे की मर्जी के मुताबिक इस मिडिया
कंपनी का इक्यावन फ़ीसदी शेयर लेने का मन बना रहे थे . पर मुश्किल ये हुयी कि यह मीडिया
समूह अपने तीन चैनल के ज़रिये और कई भाषाओँ में प्रकशित होने वाली अपनी पत्रिका की
मार्फ़त कांग्रेस व सरकार विरोधी तेवर
दिखने लगा था . चैनल के एंकर्स राहुल गांधी के लिए व्यग्यात्मक लहजे का इस्तेमाल
करने लगे थे . सुचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने इस
बाबत कुमारमंगलम से कई बार बात की और उनसे ये रवैया बदल
लेने के लिए कहा गया , पर कुमारमंगलम ने उन्हें टका सा जवाब देकर टरका दिया .
कुमार मंगलम ने कहा कि इस मीडिया समूह का नियंत्रण अभी उनके हाथों में नहीं है
इसलिए वे ऐसा कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं . कांग्रेस और यूपीए
सरकार , कुमारमंगलम के इस बर्ताव से भन्ना गयी . सरकार को यह लगने लगा कि कुमारमंगलम
बिडला का एंटी कांग्रेस और प्रो.मोदी स्टैंड है. अब कुमारमंगलम बिडला को सबक तो सिखाना ही था , साथ ही उनके
बहाने देश के दुसरे
उद्योगपतियों को भी चेतावनी देनी थी.
खासतौर पर मुकेश अम्बानी और अनिल अम्बानी जैसे उद्योगपतियों को , जिनकी बड़ी
हिस्सेदारी किसी कई मिडिया समूहों में है कि वे समय रहते नरेन्द्र मोदी का मोह
खत्म कर दें, वरना उनका हश्र भी
कुमारमंगलम बिडला जैसा ही होगा .
हालांकि इसकी बानगी पहले भी देखने को मिली है .
नरेन्द्र मोदी को चुनावी चंदा देने के लिए कोर्पोरेट्स वर्ल्ड में मारामारी मची है
. इन्ही उद्योगपतियों के बूते नरेन्द्र मोदी ने अपने प्रधानमंत्री बनने के अभियान
का कुल बज़ट लगभग साढ़े सात सौ करोड़ रखा है
. मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के पहले भाजपा के खजाने में
कुल डेढ़ सौ करोड़ की पूंजी भी नहीं थी . आज यह स्थिति है कि जीत का माद्दा रखने
वाले उम्मीदवारों को नरेन्द्र मोदी एक करोड़ से भी ज्यादा की धनराशि देने की योजना
बनाए बैठे हैं . ज़रुरत पड़ने पर रकम में इजाफा भी हो सकता है . और नरेन्द्र मोदी यह
सब इसी कोर्पोरेट वर्ल्ड के बूते ही कर रहे हैं . चूँकि नरेन्द्र मोदी के लिए भी
उनके सियासी कैरियर का यह सबसे बड़ा दांव है .जिसके लिए उन्हें अकूत पैसों की ज़रुरत
है . इसलिए नरेन्द्र मोदी ने अपने सम्बन्ध , देश के शीर्ष उद्योगपतियों से बहुत
मज़बूत बना रखे हैं . उनका रवैया भी उद्योगपतियों को लेकर बहुत लचीला है . जाहिर है
कि इसका सीधा फायदा नरेन्द्र मोदी को होता हुआ दिख भी रहा है . नरेंद्र मोदी ने
2014 के लोकसभा चुनाव के मद्देनार हर स्तर पर स्पष्ट
रणनीति बुनी है. टीम मोदी ने 250 ऐसी संसदीय
सीटों को चिन्हित किया है , जहां भाजपा की जीत की संभावनाएं दिख रही हैं . मोदी ने
इन ढाई सौ लोकसभा सीटों पर कई चरणों का गहन सर्वेक्षण भी करवाया है . एजेंडा है , यहां
से जीत सकने वाले सही उम्मीदवारों की तलाश. फिर हर सप्ताह उम्मीदवारों की समीक्षा
रिपोर्ट तैयार होगी और उन्हें किसी भी सूरत में धन की कमी नहीं होने दी जायेगी .
उद्योगपतियों के इस रुख से कांग्रेस और यूपीए सरकार
में खलबली मचनी लाजिमी है . हालांकि ऐसा नहीं है कि यूपीए सरकार ने कोर्पोरेट्स या
मल्टीनेशनल कम्पनियों के सवार्थों को पूरा करने के लिए कुछ नहीं किया . इस सरकार
ने भी कोर्पोरेट्स और मल्टीनेशनल कम्पनियों टैक्स में खूब छुट दी .पिछले पांच
सालों में राज्यसभा और लोकसभा में सांसदों ने जो सवाल उठाए , उन पर अगर एक नज़र डाल
ली जाए तो हालात साफ़ हो जाते हैं . तकरीबन सौ सांसदों द्वारा लोकसभा और राज्यसभा
में जो सवाल उठाए गए वह किसी ना किसी कोर्पोरेट घराने से जुड़े थे , उनका हित पूरा
करने वाले थे. यह बात कोई छुपी नहीं रही
है कि संसद में खासतौर पर राज्यसभा में ज़्यादातर सांसद किसी न किसी औद्योगिक घराने
के पेरोल पर काम करते हैं और उसी से से जुड़े सवाल भी उठाते हैं . फिलहाल एक सौ
बासठ सांसद ऐसे हैं जो दागी हैं . इन सभी चुनाव जीतने या राज्यसभा सदस्य चुने जाने
का खर्च रिलायंस , टाटा , मित्तल , अम्बानी , अदानी , जिंदल या बिडला जैसे
औद्योगिक घराने उठाते हैं . साफ़ है कि जब ये सांसद , संसद में बैठते हैं तो इन्ही
के लिए काम करते हैं . संसद के आर्काईव में रखे दस्तावेज बताते हैं कि मौजूदा समय में ,
यूपी , झारखण्ड , उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के ऐसे पिच्यासी
सांसद हैं , जिन्होंने अपने अस्सी फीसदी सवाल सिर्फ और सिर्फ कोर्पोरेट्स से जुड़े
हुए ही किये हैं . दिक्कत सिर्फ ये हुयी है कि सरकार ने औद्योगिक घरानों के पेरोल
पर काम कर रहे सांसदों के सवालों का जवाब तो दिया पर ठोस और समुचित कारवाई नहीं की
. यही वज़ह रही कि पिछले साल रतन टाटा ने सरकार के खिलाफ अपनी नाराज़गी खुलकर जाहिर
की थी और कहा था कि सरकार से सहयोग की कमी के चलते भारतीय
उद्योग चीन से मुकाबला नहीं कर पा रहा. फाइनेंशियल टाइम्स को दिए गए एक इंटरव्यू
में उन्होंने सरकार पर एकजुट होकर काम न करने की तोहमत भी लगाई थी और कहा था कि
उनके समूह ने विस्तार के लिए दूसरे उभरते बाजारों में संभावनाएं तलाशने की इसलिए
योजना बनाई क्योंकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नौकरशाही को लेकर उनकी शिकायते
शिकायतों को दूर करने में नाकाम रहे. सरकार की फैसले लेने में नाकामी भी उन्हें खली
. यही नहीं, मुकेश अम्बानी ने भी सरकारी एजेंसियों के काम करने के तरीके पर भी
सवाल उठाए थे . मुकेश अम्बानी ने कहा था कि अलग-अलग सरकारी एजेंसी किसी कानून का
अलग-अलग मतलब निकालती है. ऐसी सूरत में उनके समूह जैसी कंपनियां या कारोबारी समूह
देश से दूर जाकर दुनिया भर में विकास के मौके तलाशने पर मजबूर हो जाते हैं.
इतना ही नहीं , देश के सभी बड़े औद्योगिक घराने
किसी न किसी कानूनी पचड़े में फंसे हुए हैं. घोटालों में उनका नाम है . वित्तीय
अनियमितताओं में आरोपी बने बैठे हैं . उदाहरण के तौर पर , भारती एयरटेल के बॉस सुनील भारती मित्तल पर 2003 को हुए
स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितता बरतने के आरोप हैं . इसके अलावा उनकी कंपनी एयरटेल
इंटरनेशनल कॉल की कथति गैरकानूनी राउटिंग को लेकर भी कटघरे में है . स्टील कारोबार
में बड़ा नाम रखने वाले जिंदल परिवार की विरासत संभाल रहे नवीन जिंदल का नाम भी
कोलगेट से जुड़ी एफआईआर में दर्ज है. उन पर धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश रचने का
आरोप लगा है. देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक रिलायंस के प्रमुख मुकेश अंबानी
पर भी आरोप लग चुके हैं. सीबीआई ने हाल में उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच बंद की
है, जिनमें
कहा गया था कि उनकी कंपनी ने गैस फील्ड की कॉस्ट बढ़ाई. अनिल अंबानी और
उनकी पत्नी टीना अंबानी तक भी कानून के हाथ पहुंचे थे, हालांकि
जांच के बाद उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया. अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनी
रिलायंस टेलीकॉम के तीन कार्यकारी अधिकारियों पर 2जी मामले में आरोप दर्ज हैं.
यूनिटेक के बॉस संजय चंद्रा पर तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा के साथ मिलकर 2जी लाइसेंस लेने के लिए साजिश रचने और जानकारी छिपाने का इल्जाम लगा. एस्सार ग्रुप के प्रमोटर रवि और अंशुमान रुइया, उनके रिश्तेदार किरण और आई पी खैतान, एस्सार के एक एग्जिक्यूटिव और तीन कम्पनियाँ 2जी घोटाले में आपराधिक साजिश रचने की आरोपी हैं . कंपनी पर गैरकानूनी इंटरनेशनल कॉल सर्विस मुहैया कराने का इल्जाम लग चुका है.
वोडाफोन पर एनडीए सरकार के दौरान स्पेक्ट्रम आवंटन के दौरान नाजायज फायदा बनाने का आरोप लगा. इन बातों ने भी देश के शीर्ष औद्योगिक घरानों को कांग्रेस और यूपीए सरकार के खिलाफ कर दिया . नतीजतन कोर्पोरेट्स जगत ने कांग्रेस के फंड में पैसे देने में कंजूसी दिखानी शुरू कर दी . कांग्रेस के खजांची का काम करने वाले सोनिया गाँधी के राजनितिक सलाहकार अहमद पटेल जब इन बड़े उद्योगपतियों से चंदे की बात करते हैं तो ये उद्योगपतियों ने अपनी परेशानियों की फेहरिश्त सामने रख हीला –हवाला शुरू कर दिया है . कुमारमंगलम बिडला पर सरकार ने अपनी त्योरी इसी वज़ह से टेढ़ी कर दी है , ताकि इस बहाने वह दुसरे उद्योगपतियों को अपना सन्देश पहुंचा सके . पर कांग्रेस के तीखे तेवरों का कुछ खास असर होता नहीं दिख रहा . नयी संभावनाओं और एक बार नरेन्द्र मोदी को भी आजमा लेने की मंशा के तहत ये उद्योगपति अभी भी मोदी को चन्दा देने के लिए बेकरार हैं .
यूनिटेक के बॉस संजय चंद्रा पर तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा के साथ मिलकर 2जी लाइसेंस लेने के लिए साजिश रचने और जानकारी छिपाने का इल्जाम लगा. एस्सार ग्रुप के प्रमोटर रवि और अंशुमान रुइया, उनके रिश्तेदार किरण और आई पी खैतान, एस्सार के एक एग्जिक्यूटिव और तीन कम्पनियाँ 2जी घोटाले में आपराधिक साजिश रचने की आरोपी हैं . कंपनी पर गैरकानूनी इंटरनेशनल कॉल सर्विस मुहैया कराने का इल्जाम लग चुका है.
वोडाफोन पर एनडीए सरकार के दौरान स्पेक्ट्रम आवंटन के दौरान नाजायज फायदा बनाने का आरोप लगा. इन बातों ने भी देश के शीर्ष औद्योगिक घरानों को कांग्रेस और यूपीए सरकार के खिलाफ कर दिया . नतीजतन कोर्पोरेट्स जगत ने कांग्रेस के फंड में पैसे देने में कंजूसी दिखानी शुरू कर दी . कांग्रेस के खजांची का काम करने वाले सोनिया गाँधी के राजनितिक सलाहकार अहमद पटेल जब इन बड़े उद्योगपतियों से चंदे की बात करते हैं तो ये उद्योगपतियों ने अपनी परेशानियों की फेहरिश्त सामने रख हीला –हवाला शुरू कर दिया है . कुमारमंगलम बिडला पर सरकार ने अपनी त्योरी इसी वज़ह से टेढ़ी कर दी है , ताकि इस बहाने वह दुसरे उद्योगपतियों को अपना सन्देश पहुंचा सके . पर कांग्रेस के तीखे तेवरों का कुछ खास असर होता नहीं दिख रहा . नयी संभावनाओं और एक बार नरेन्द्र मोदी को भी आजमा लेने की मंशा के तहत ये उद्योगपति अभी भी मोदी को चन्दा देने के लिए बेकरार हैं .
क्योंकि , नरेन्द्र मोदी कारोबारियों को प्रोत्साहित करते
नज़र आते हैं . गुजरात में उन्होंने कोर्पोरेट्स वर्ल्ड की मदद से जो तरक्की के
आयाम कायम किये , उसे पुरे देश में लागू करने की बात कहते सुनाई देते हैं . गुजरात
वायीब्रेंट्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक उत्सवों के ज़रिये वे विदेशी पूंजी को
भारत में लाने की जुगत करते दिखाई देते हैं . यकीनन औद्योगिक जगत पर इसका
सकारात्मक प्रभाव पडा है और पूरा औद्योगिक समाज नरेन्द्र मोदी के साथ खडा हुआ
दिखाई देता है . इसकी जो सबसे बड़ी वज़ह है वह यही कि जब अगर कुछ सांसद मिल कर
कोर्पोरेट्स की राह आसान कर सकते हैं तो जब पूरी की पूरी सरकार कोर्पोरेट्स की
बनायी होगी तब उनकी राह कितनी आसान हो जायेगी . व्यापारिक नीति–नियमो की संरचना ही
औद्योगिक घरानों की सहूलियतों के मुताबिक होगी . दुसरे शब्दों में ये कहें कि अगर
नरेन्द्र मोदी इन शीर्ष उद्योगपतियों के सहारे प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो एक तरह से सरकार का संचालन ही ये उद्योगपति
करेंगे , यानि कि कोर्पोरेट्स ही देश चलाएंगे , नीति-नियंता होंगे .
behatrin
ReplyDeleteshukriya :)
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