Ruby Arun

Friday 4 May 2012

सुनहरी बालियों में फिर झूम उठता तुम्हारा नाम .

काश कि....मैं उगा पाती ...... तुम्हारे खतों कि फसलें ...... ताकि सुनहरी बालियों में झूम उठता तुम्हारा नाम ..... तारीखें ..खतों वाली ही रहती और साल दर साल यूँ ही गुज़र जाते ... फुर्सत वाली शामें .....यादों वाली पगडण्डी और आधा बना ..पिघलता चाँद ..... एक टुकड़ा बादल ..छटाक भर हंसी ... कुछ कतरे आंसू ....और मुठ्ठी भर ख्वाब ... और मैं...संदली शाम में घुलती हुयी ...अंजुरी में भर भर का तुम्हारा एहसास .. अपने पलकों -होंठों पर रखती ....सुनहरी बालियों में उलझती .... रेज़ा रेज़ा होती ...तुम्हे दुलराती ....बिछ जाती ...तुम्हारी ख्वाहिशों की ज़मीन बन कर ...... जहां उगती तुम्हारे खतों की फसलें ..... और सुनहरी बालियों में फिर झूम उठता तुम्हारा नाम ...........

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