Ruby Arun

Thursday 3 May 2012

सेनाध्‍यक्ष उम्र विवादः प्रधानमंत्री उनकी पत्‍नी उनकी साली By Ruby Arun


सेनाध्‍यक्ष उम्र विवादः प्रधानमंत्री उनकी पत्‍नी उनकी साली


लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच क्या रिश्ता है? लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह पर लगे तमाम आरोपों को प्रधानमंत्री कार्यालय और रक्षा मंत्रालय ने क्यों नज़रअंदाज कर दिया? इतना ही नहीं, संगीन आरोपों के बावजूद लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह को सरकार बेदाग़ साबित करने की क़वायद में लगी है. जनरल वीके सिंह के उम्र विवाद में मनमोहन सिंह के प्रमुख सचिव रहे टीकेए नायर की क्या भूमिका है? क्या वीके सिंह के उम्र विवाद को इसलिए इतना तूल दिया गया, ताकि पूर्वी कमान के कमांडर ले. जनरल बिक्रम सिंह को सेना प्रमुख बनाया जा सके? आखिरकार ऐसा क्या हुआ कि भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने किसी मसले पर फैसला सुनाने की बजाय सलाहकार की भूमिका अख्तियार कर ली? और सबसे बड़ा सवाल कि वीके सिंह के उम्र विवाद और बिक्रम सिंह के सेना प्रमुख बनने के बीच की जो पटकथा है, उसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर की क्या भूमिका है?
हम आपको बताते हैं, जनरल वीके सिंह जैसे अधिकारी को विवादित और ज़लील करने की इस कहानी का एक कड़वा सच. हैरान करने वाली सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह नज़दीकी रिश्तेदार हैं, जिसके बारे में किसी को पता नहीं है. कैसे, आपको बताते हैं. मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर और बिक्रम सिंह की पत्नी सुरजीत कौर मौसेरी बहने हैं. इस नाते बिक्रम सिंह की पत्नी सुरजीत कौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की साली हुईं. जनरल वीके सिंह से जुड़ा यह सारा प्रपंच प्रधानमंत्री की साली को खुश करने के लिए किया गया. इस खेल में आंकड़ों का घाल-मेल और काग़ज़ों के उलट-फेर का तिकड़म, प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव टीकेएस नायर ने किया, जिसकी पूरी भूमिका पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल जेजे सिंह पहले ही तैयार कर गए थे. मनमोहन सिंह और जनरल जेजे सिंह की नज़दीकियां भी जगज़ाहिर हैं. गुरुशरण कौर और जेजे सिंह दोनों ही पटियाला के रहने वाले हैं. शायद रिश्तेदार भी हैं. यही वजह है कि जनरल जेजे सिंह को मनमोहन सिंह की सरकार ने सेना से रिटायर होते ही अरुणाचल का राज्यपाल बना दिया. जनरल जेजे सिंह की पत्नी अनुपमा सिंह और गुरशरण कौर में गहरी मित्रता है. दोनों का एक-दूसरे के परिवारों में आना-जाना है. यही वजह है कि कोलकाता में मनमोहन सिंह की बहन के घर पर डिनर पर जनरल जेजे सिंह के साथ लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह भी मौजूद थे. यह स़िर्फ इत्त़ेफाक़ ही नहीं है. साज़िश की बातें लोग सच मान रहे हैं, इसलिए प्रधानमंत्री को अपनी चुप्पी तोड़नी ही चाहिए.
अगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके फरमाबरदार सलाहकारों को लगता है कि चौथी दुनिया की इस रिपोर्ट में अतिश्योक्तियां हैं तो वे इसका खंडन करें. देश को बताएं कि सच क्या है? प्रधानमंत्री स्पष्ट करें कि जनरल बिक्रम सिंह से उनका क्या पारिवारिक रिश्ता है? उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि प्रधानमंत्री रहते हुए वह कितनी बार ग़ैर सरकारी कारणों से देश के भावी सेना अध्यक्ष से मिले हैं. प्रधानमंत्री को यह भी सा़फ करना चाहिए कि क्या जनरल बिक्रम सिंह को ही सेनाध्यक्ष बनाने के लिए जनरल वीके  सिंह को समय से पहले रिटायर करने की साज़िश हुई और जिसमें उनकी पूरी मदद पूर्व सेना प्रमुख जेजे सिंह और प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव रहे टीकेए नायर ने की. हम इन सवालों को इसलिए उठा रहे हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं. देश की जनता उन्हें एक ईमानदार प्रधानमंत्री मानती है. उनकी खतरनाक चुप्पी देश के लोगों के भरोसे को चकनाचूर कर रही है. सेना से जुड़े घोटाले सामने आ रहे हैं, जो न स़िर्फ सीमा पर तैनात हमारे जवानों के हौसले को पस्त कर रहे हैं, बल्कि देश के लोगों की भी चिंता बढ़ गई है. हम देशहित में यह जानना चाह रहे हैं कि वह बताएं कि इस रिपोर्ट में जो लिखा है, वह सच है या नहीं? अगर वह कहेंगे कि यह ग़लत है तो हम सार्वजनिक क्षमा याचना करेंगे.
लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह के पीछे पूर्व सैन्य अधिकारियों और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और ब्यूरोक्रेट की लॉबी है. कहने को देश के रक्षा मंत्री एके एंटोनी ज़रूर वीके सिंह के साथ खड़े हैं, पर वे भी पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल और मनमोहन की तिकड़ी के सामने बेबस और लाचार हैं. एके एंटोनी को इस बात का बेहद मलाल है कि जनरल वीके सिंह के साथ ग़लत हो रहा है. लिहाज़ा वह अकसर अपने बेहद क़रीबी अधिकारियों और मित्रों से यह कहते पाए जा रहे हैं कि जनरल वीके सिंह की उम्र विवाद का मामला तो ओपन एंड शट का केस है, पर वह कुछ कर नहीं पा रहे हैं, क्योंकि उनके हाथ बंधे हुए हैं.
बहरहाल, यहां हम बात प्रधानमंत्री की रिश्ते में साली, सुरजीत कौर की कर रहे हैं. मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर का जन्म जालंधर में हुआ था. उनके पिता आज़ादी से पहले पाकिस्तान के नवशेहरा ज़िले में काम करते थे. फिर उनके पिता का ट्रांसफर अमृतसर हो गया. गुरशरण कौर की पढ़ाई-लिखाई अमृतसर के गुरुनानक कन्या पाठशाला में शुरू हुई. बाद में उन्होंने गवर्नमेंट इंटर कॉलेज पटियाला में पढ़ाई की. परिवार में गुरशरण कौर के अलावा उनकी चार बहनें और एक भाई है. लेकिन वह बचपन से अपनी मौसेरी बहन सुरजीत कौर के नज़दीक रहीं और उनके साथ ही ज़्यादा व़क्त बिताती थीं. इसलिए मनमोहन सिंह और गुरशरण कौर की शादी के बाद सुरजीत कौर का उनके घर आना-जाना गुरशरण कौर की सगी बहनों की अपेक्षा ज़्यादा ही रहा. लिहाज़ा सुरजीत कौर, मनमोहन सिंह की भी लाडली बनी रहीं, जिसका पूरा फायदा उनके पति लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह को समय-समय पर मिलता रहा. बिक्रम सिंह को, मनमोहन सिंह के रिश्तेदार होने के नाते क्या-क्या मिला, इसकी चर्चा हम आगे करेंगे. पहले तो आपको बिक्रम सिंह के सैन्य प्रमुख बनने की कहानी बताते हैं.
सुरजीत कौर की तमाम ख्वाहिशों में जो सबसे बड़ी ख्वाहिश थी, वह यह कि उनके पति अपनी सेवानिवृत्ति से पहले भारत के थल सेना प्रमुख बनें. सुरजीत कौर ने अपनी बड़ी बहन गुरशरण कौर को अपनी यह हसरत बताई. गुरशरण कौर ने प्रधानमंत्री पति को अपनी बहन की इच्छा बताई, पर यह मुमकिन हो तो कैसे? पेंच यह था कि बिक्रम सिंह अक्टूबर में रिटायर होने वाले थे और तब तक सेना प्रमुख की कुर्सी खाली नहीं होने वाली थी, क्योंकि उस पर जनरल वीके सिंह विद्यमान थे. जनरल वीके सिंह की ईमानदारी और देशभक्ति से जनरल जेजे सिंह, तेजिंदर सिंह, वीआरएस नटराजन, रवि ऋषि, नंदा, कार्तिक चिदंबरम जैसे लोगों की लॉबी तो नाराज़ थी ही, गृहमंत्री पी चिदंबरम सबसे ज़्यादा खार खाए बैठे थे. बेटे के अलावा चिदंबरम के वीके सिंह से चिढ़ने की जो सबसे बड़ी वजहें थीं, वे हैं दो साल पहले सेनाध्यक्ष वीके सिंह द्वारा चिदंबरम की नक्सलवादियों पर गोली चलाने की मंशा को नाकाम कर देना. वीके सिंह के इस इनकार से चिदंबरम के उन कॉर्पोरेट दोस्तों का बड़ा नुक़सान हुआ था, जो हिंदुस्तान के जंगलों में माइनिंग का अपना साम्राज्य खड़ा करना चाहते थे. वेदांता और स्टरलाईट जैसी ये कंपनियां हमारे देश की ज़मीनों और जंगलों का दोहन करने के बदले चिदंबरम को मालामाल करने वाली थीं. वैसे भी पी चिदंबरम विदेशी पूंजी निवेश वाली इन कंपनियों के वकील रह चुके हैं और उनकी पत्नी नलिनी चिदंबरम और पुत्र कार्तिक चिदंबरम का नाम भी इस सूची में आता है. लिहाज़ा जनरल सिंह द्वारा अपने ही देश के लोगों पर गोली चलाने से इनकार ने पी चिदंबरम को तिलमिला दिया था. चिदंबरम भी जनरल को नीचा दिखने के लिए मौ़के की ताक में थे.
पिछले दिनों लगातार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की जो मुहिम चल रही थी तथा इस क़िस्म की पुख्ता खबरों की वजह से यह कहा जा रहा था कि मनमोहन सिंह अपना पद स्वेच्छा से छोड़ देंगे. गुरशरण कौर भी इन खबरों से क्षुब्ध बैठी थीं. दस जनपथ और सात रेसकोर्स के बीच दूरियां बढ़ चुकी थीं. इसी दरम्यान जब सुरजीत कौर ने अपनी इच्छा गुरशरण कौर से ज़ाहिर की, तब उन्हें भी लगा कि अगर देश का सेना प्रमुख भी उनका अपना आदमी हो तो उनके पति को एक मज़बूत सपोर्ट सिस्टम मिल जाएगा और उन्हें कमज़ोर और कठपुतली प्रधानमंत्री के विशेष तमग़ों से भी मुक्ति मिल जाएगी.
पर सवाल फिर वही कि जनरल वीके सिंह के रहते बिक्रम सिंह को सैन्य प्रमुख बनाया जाए तो कैसे? तब मनमोहन सिंह के प्रमुख सचिव रहे टीकेए नायर ने जनरल वीके सिंह को फंसाने और हटाने की एक योजना बनाई. जनरल वीके सिंह द्वारा यूपीएससी एप्लीकेशन और मैट्रिकुलेशन में दर्ज जन्म की तारी़खों में फर्क़ का मसला उठाया गया, जिसे जनरल जेजे सिंह की साज़िशों के तहत मिलिट्री सेक्रेट्री ब्रांच की फाइलों में सुरक्षित तथा ऐसे ही अवसर पर ब्राह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल करने के लिए रखा गया था. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व सेना प्रमुख जनरल जेजे सिंह के बेहद क़रीबी रिश्ते हैं. इसलिए इस साज़िश का सबसे पहला दांव भी जनरल जेजे सिंह ने खेला. जनरल वीके सिंह से ज़बरदस्ती चिट्ठी लिखवाई, जिसे अब सरकार सबूत बनाकर पेश कर रही है.
इस साज़िश के एक और प्रमुख किरदार पंजाब कैडर के आईएसएस अधिकारी टीकेए नायर हैं. वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रमुख सलाहकार रहे हैं. नायर ने पूर्व प्रधानमंत्री आईके गुजराल और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के वक़्त भी प्रधानमंत्री कार्यालय में अहम ज़िम्मेदारियां निभाई हैं. पीएमओ में एक लंबा अरसा गुज़ारने की वजह से नायर कई ऐसी ग़ैर ज़रूरी बातों से भी वाक़ि़फ थे, जिनमें एक बात यह भी थी कि मिलिट्री सेक्रेट्रीएट में पड़ा यूपीएससी का एप्लीकेशन फॉर्म, जिसमें जनरल वीके सिंह ने अपना डेट ऑफ बर्थ पेन से ग़लती से 10 मई, 1950 लिख दिया था.
इमरजेंसी के वक़्त चंडीगढ़ के डिप्टी कलक्टर रहे और मनमोहन सिंह के भी बेहद क़रीबी रहे देवाशायम बताते हैं कि चूंकि जनरल जेजे सिंह सिख थे और इसलिए वह चाहते थे कि आने वाले दिनों में भी भारतीय सेना के प्रमुख के तौर पर सिख सैन्य अधिकारियों का ही बोलबाला रहे. उस वक़्त जनरल जेजे सिंह आर्मी चीफ थे, जिनके पास 2006 में ही वीके सिंह की उम्र सही करने का अधिकार और अवसर था. लेकिन जनरल जेजे सिंह ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने इस मुद्दे को दबा दिया. जनरल जेजे सिंह ने उत्तराधिकार श्रृंखला बना दी, क्योंकि जनरल जेजे चाहते थे कि उनके बाद जनरल दीपक कपूर को आर्मी चीफ की कुर्सी मिले और फिर इसके बाद वीके सिंह की उम्र 10 मई, 1950 ही रखकर अपने खास लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह को आर्मी चीफ के पद पर बैठाया जाए. मक़सद को कामयाब बनाने के लिए ज़रूरी था कि जनरल वीके सिंह की उम्र 10 मई, 1950 ही रखी जाए. अगर जनरल वीके सिंह अपनी जन्म तिथि के मुताबिक़ रिटायर होते हैं तो अगला चीफ वेस्टर्न कमांड के हेड लेफ्टिनेंट जनरल केटी परनायक बन जाते और इस दौरान ले. जनरल बिक्रम सिंह रिटायर हो जाते.
इतना ही नहीं, बिक्रम सिंह को आर्मी चीफ बनाने के लिए एक और खेल खेला गया. रक्षा मंत्रालय के बेहद वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि जनरल वीके सिंह के बाद आर्मी चीफ की दौ़ड में शामिल होने वाले संभावितों में मेजर जनरल आरके अरो़डा, जो जनरल वीके सिंह के बैचमेट हैं और बेहतरीन आर्मी अ़फसर माने जाते हैं. ले. जनरल एचएस पनाग और जनरल आरके करवाल को पहले ही ब़डे शातिराना तरीक़े से इस रेस से बाहर कर दिया गया. मनमोहन सिंह 2004 से प्रधानमंत्री हैं और टीकेए नायर भी तभी से मनमोहन सिंह के साथ साये की तरह लगे हैं. आईबी के एक अधिकारी बताते हैं कि 2006 से चल रहे इस शातिराना खेल के एक-एक पल की खबर प्रधानमंत्री कार्यालय को थी. चूंकि इस खेल का नतीजा मनमोहन सिंह के हक़ में आना था, इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने न स़िर्फ चुप्पी साधे रखी, बल्कि इस साज़िश को संरक्षण भी देता रहा. वैसे सत्ता के गलियारों में भी जनरल जेजे सिंह, लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह की दोस्ती के क़िस्सों की खूब चर्चाएं होती हैं.
एक तो मनमोहन सिंह का रिश्तेदार होना, ऊपर से हथियार लॉबी का ज़बरदस्त बैकअप. नतीजा यह कि लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह पर संगीन आरोप लगते रहे, पर कार्रवाई कभी नहीं हुई. नमूना देखिये- 2008 में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियान के दौरान बिक्रम सिंह पर आरोप लगे. लेकिन किसी को कोई सज़ा नहीं हुई. मामला अभी तक लंबित है. बिक्रम सिंह मार्च 2001 में जम्मू-कश्मीर में हुए फर्ज़ी मुठभेड़ मामले में शामिल थे और इस मामले में भी उन्हें आरोपी बनाया गया. इससे संबंधित याचिका जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में अभी भी लंबित पड़ी थी. लेकिन बिक्रम सिंह के नाम की घोषणा अगले सैन्य प्रमुख के तौर पर करते ही सरकार ने उन्हें इस मामले में क्लीन चीट दे दी.
तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद अंबिका बनर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर यह जवाब मांगा कि जनरल बिक्रम सिंह की एक बहु पाकिस्तान की हैं. इसका जवाब अंबिका बनर्जी को आज तक नहीं मिला है. ऐसे में जनरल को सेना प्रमुख कैसे बनाया जा सकता है, जबकि सेना के तीनों अंगों, ख़ुफ़िया एजेंसियों और विदेश विभाग में काम करने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए एक बड़ा ही सख्त नियम है कि अगर उनके परिवार का कोई सदस्य दूसरे देश में शादी करता है तो उसे अपने विभाग में इस बात की जानकारी त़फसील के साथ देनी होगी और इजाज़त मिलने पर ही शादी हो पाएगी. लेकिन बिक्रम सिंह पर यह नियम लागू नहीं होता. उन्होंने न तो पहले इस बात की जानकारी देकर इजाज़त मांगी, न ही शादी के बाद ही उन्होंने इसकी कोई सूचना दी. कुछ खुफिया अधिकारी यह भी बताते हैं कि सरकार ने पाकिस्तानी बहु के बारे में जो जांच करवाई वह भी संदेह के घेरे में है. बताया यह जाता है कि लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह के दो बेटे हैं. जिस बेटे की पत्नी पाकिस्तानी मूल की है, उसकी तो जांच हुई ही नहीं है. यह सचमुच हैरानी की बात है कि इतने ऊंचे स्तर पर दिन के उजाले में इतनी बड़ी साज़िश को अंजाम दिया जा रहा है और कोई कुछ नहीं बोल रहा है. चूंकि इस साज़िश में प्रधानमंत्री और उनके परिवार का नाम आ रहा है, तो ऐसे में सबसे बेहतर तो यही होता कि प्रधानमंत्री स्वयं इन सवालों का जवाब दे दें. हमें इस बात का विश्वास है कि अगर वह एक बार सच्चाई बता देंगे तो पूरे देश में अविश्वास का माहौल खत्म हो जाएगा. हर साज़िश की अ़फवाहों को लोग दरकिनार कर देंगे.
बहरहाल, एडमिरल रामदास, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तएन गोपालस्वामी और एमजी देवाशायम ने कुछ सेवानिवृत सैन्य अधिकारियों एवं वरिष्ठ नौकरशाह, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के साथ मिलकर लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह की सेना प्रमुख के तौर पर नियुक्तिका विरोध किया है. इस सिलसिले में इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दाखिल की है. इस जनहित याचिका में साफ़ तौर से इस तथ्य का उल्लेख है कि बिक्रम सिंह की नियुक्तिराजनीतिक और निजी हित से प्रभावित है और बिक्रम सिंह भारतीय सेना में निष्पक्ष एवं स्वतंत्र ढंग से काम करने में सक्षम अधिकारी नहीं हैं.
एमजी देवाशायम कहते हैं कि जनरल वीके सिंह के वकीलों ने जनरल का पक्ष सही तरीक़े से अदालत के सामने नहीं रखा. अगर जनरल के वकीलों ने स़िर्फ उनके दस्तावेज़ों को ही अदालत के समक्ष मज़बूती से रखा होता, तब भी जनरल अपना केस जीत जाते. पर यहां भी राजनीति हुई है. इसलिए हमने अपनी याचिका में जनरल के उम्र विवाद और जान बूझकर सरकार द्वारा उनके सामाजिक तौर पर अपमान का मसला भी उठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी है, पर अगर कोर्ट ने इस मामले को अगली तारी़खों तक बढ़ाया तो मुश्किल हो सकती है. क्योंकि फिर गर्मी की छुट्टियां शुरू हो जाएंगी और इसी दरम्यान जनरल वीके सिंह रिटायर हो चुके होंगे. यह सुप्रीम कोर्ट का भी इम्तिहान है कि वह इस ऐतिहासिक पीआईएल पर फैसला देता है या इसे मरने के लिए छो़ड देता है.

सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद

जिस तरह से लोगों का सरकारी संस्थानों से विश्वास उठ रहा है, उसमें फिलहाल उम्मीद स़िर्फचीफ जस्टिस एचएस कपाड़िया साहब से ही है. कुछ लोग उनको लेकर भी अ़फवाह उड़ा रहे हैं. जनरल वीके सिंह के जन्म तिथि विवाद में सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला न देने की भी राजनीतिक वजहें बताई जा रही हैं. दिल्ली के सियासी हलक़ों में इन दिनों गृहमंत्री पी चिदंबरम और एचआरडी मंत्री कपिल सिब्बल की कारगुज़ारियों के क़िस्से खूब चट़खारे लेकर सुनाए जा रहे हैं. जनरल वीके सिंह के केस से भी जु़डी एक कहानी खूब सुनी-सुनाई जा रही है और जिसके पात्र भी चिदंबरम और सिब्बल ही हैं. सेना के एक बड़े अधिकारी इस सनसनीखेज़ क़िस्से की पुष्टि भी करते हैं. वाक़िया 3 फरवरी और 10 फरवरी के बीच का है. 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई जनरल वीके सिंह के हक़ में हुई थी. यह कहा जाने लगा था कि सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने आयु गतिरोध पर पहले दौर की क़ानूनी लड़ाई जीत ली है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि जिस तरीक़े से वीके सिंह की वैधानिक शिकायत को खारिज किया गया है, वह दुर्भावना से ग्रस्त लगता है. सरकार, कोर्ट के इस रु़ख से घबरा चुकी थी. अदालत ने अगली सुनवाई की तारी़ख 10 फरवरी मुक़र्रर की. मनमोहन सरकार, रक्षा सौदों से जु़डी लॉबी और जनरल वीके सिंह से नाराज़ मंत्रियों को लगा कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जनरल के हक़ में हो गया तो यह उन सभी के लिए मुसीबत का सबब बन जाएगा, क्योंकि वीके सिंह भी कह चुके थे कि वह जल्द ही उस लॉबी का पर्दाफाश कर देंगे, जो भ्रष्टाचार से जुड़ी है. ये सैन्य अधिकारी कहते हैं कि चिदंबरम और सिब्बल, प्रधानमंत्री के दूत बनकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या से मिले और उनसे कहा कि अगर सरकार का स्टैंड ग़लत हो गया और जनरल वीके सिंह जीत गए तो देश में सरकार को लेकर बहुत ग़लत संदेश जाएगा और कांस्टीच्युशनल क्राइसिस पैदा हो जाएगा. जब 10 फरवरी को सुनवाई की प्रक्रिया पूरी हुई, तब सभी को लगा कि जनरल वीके सिंह जीत जाएंगे. मगर भारत के न्यायिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने की बजाय सलाहकार की भूमिका में आ गया. कोर्ट के इस रु़ख पर दलील यह दी गई कि इस विवादित मसले पर इससे अच्छा क़दम हो ही नहीं सकता था. एक तऱफ सरकार की ज़िद थी, तो दूसरी तऱफ सेना की शान का सवाल था, पर देश के नागरिकों की समझ में यह नहीं आया कि जब यही कोर्ट इसी मामले में सरकार को लताड़ लगा चुका है तो अचानक उसके रवैये में यह नरमी क्यों आई? फैसले की जगह सुप्रीम कोर्ट ने सलाह क्यों दी?
सच है कि सुप्रीम कोर्ट से कोई भी सवाल नहीं कर सकता, पर देश के लोगों की शंका को सुप्रीम कोर्ट के सामने रखने का कर्तव्य तो हमें पूरा करना ही प़डेगा

2 comments:

  1. We are proud of the journalists like you.
    Please keep sharing all your future news articles.

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  2. कमाल है । वाक़ई गंभीर बातें हैं । धन्यवाद ।

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