मतलब ये की केंद्र सरकार ये बात गुप्त रखना चाहती है की, किस उद्योगपति ने उसकी पार्टी को कितना चंदा दिया है..
तभी, #मोदी_सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल #R_Venkatramani ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर ये बात कही किन––
" देश की जनता को चुनावी चंदा बॉन्ड सोर्स यानी #Electoral_Bond_Funding_Source के बारे में ना तो जनता को जानने का अधिकार है और न ही इसकी समीक्षा का #SupreamCourt को ही अधिकार है."
सरकार ने कोर्ट में कहा की
"यह सबके संज्ञान में है कि राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता और योगदान समेत सभी समर्थन मिले होते हैं. इस पर राजनीतिक बहस तो हो सकती है, पर इसका खुलासा नहीं किया जा सकता.
जो याचिकाएं, Electoral Bond Funding Source की पारदर्शिता के संबंध में Supream Court में दाखिल की गई हैं उनके मुताबिक –
कॉर्पोरेट संस्थाओं द्वारा राजनीतिक दलों को दिया जाने वाला बेहिसाब वित्तीय योगदान देश के लिए हानिकारक है.
क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस तरह का योगदान हमेशा ही देश के नीति निर्माण या अन्य कार्यकारी निर्णयों या कार्यों को प्रभावित करता है .
इन वित्तीय योगदान के जरिए सरकार, शासन और सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन पर एक नियंत्रण और मनमानी स्थापित की जाती है. जो जन हित और देश हित के विरुद्ध जाता है.
अब #CJI #DY_Chandrachud की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ,चुनावी बांड योजना को #अपारदर्शी और #अलोकतांत्रिक बताते हुए चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को सुन
वाई करेगी...
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