Ruby Arun

Saturday 2 August 2014

काश कि तुम्हारे नाम में भी सीलन लग जाती

बारिश में भींगकर आज .....गीली हो गई हैं ...ये डायरी मेरी .....भीगी सी ये डायरी जाने क्यूँ.... अब हल्की हल्की सी लग रही हैं .... कुछ वज़नी अल्फ़ाज़ ....नमी के साथ बह गए हैं शायद ...मगर वो आखिरी पन्ना ....जिस पर लिखा हैं नाम तुम्हारा .....अब भी ख़ुश्क़ ही हैं......बीच बीच के कुछ पन्नें....आधे सूखे, आधे गीले ....जैसे कोई शैदाई.....महबूब को याद कर .....कभी हँसता है , कभी रोता है .....मैंने कुछ गर्म साँसे उड़ेल दी हैं , इस पर ....जैसे सर्दियों में तुम....मुंह से निकलते भाप को ....मेरे चेहरे पर उड़ा दिया करते थे ....हंह .....अब तो वे लम्हे ....ख़्वाब में भी नज़र नहीं आते ...
......इन नज्मों की तरह बह गए हैं वो भी शायद ......काश कि तुम्हारे नाम में भी सीलन लग जाती ............तुम्हारी फितरत की तरह ......और मैं खुरच देती उसे ....परत दर परत .......
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