एक तुम्हारी कमी-सी
ख़्वाब, आँसू, रोशनी और नमी-सीज़िंदगी में कहीं एक तुम्हारी कमी-सीजिस मोड़ से मुड़ गए थे तुम राह अपनीनिगाहें वहीं कहीं हैं अब तक जमी-सीसंगे-दहलीज़ पर मेरी लौटोगे कभी तुम
यही वहमो-गुमाँ हमें, यही खुशफहमी-सी
कोई अब्र को दे दो पता मेरी आँखों का
के बरसने के बाद ज़रा हैं ये सहमी-सी
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