Ruby Arun

Friday 1 August 2014

तुम्हें भूलने कि जिद में .....खुद को भूल गई हूँ...

कहना तो है तुमसे, डर है- तुम्हें खो न दूँ.....
साथ हो तो हँसी है.... फिर कहीं रो न दूँ......
यकीं मानो मेरा- कुछ तो नहीं ....मेरे पास देने को....
वरना कुछ हो मेरे पास... और तुम्हें वो न दूँ.....
ज़िंदगी की ताख पर बेतरतीब से पड़े हैं ...कुछ ख्वाब....
ग़म फुर्सत दे तो...करीने-से इनको सँजो न दूँ......
जज्ब तू मुझमें है कि ....मैं तुझमें हूँ- कैसे कहूँ.....
बेखबर हूँ खुद से.... खुद को कहीं तुझमें समो न दूँ....
तुम्हें भूलने कि जिद में .....खुद को भूल गई हूँ.....
कहाँ मुमकिन...........तू याद आये और मैं रो न दूँ ..

No comments:

Post a Comment