Ruby Arun

Friday 18 October 2013

जब यों ही , तुम्हारी भीनी मुस्कराहट ने मुझ पगली को बहला दिया था .....

स्मृति... सुन री सखी , नेह का मेह तब ह्रदय में घुमड़ ही पड़ा था आँखों में उमड़ ही पडा था जब यों ही , तुमने होले से मेरे घावों को सहला दिया था ! मन दर्पण पर युग-युगांतर से जमा हुआ पंक तब धुलने लगा था जब यों ही , तेरी प्रेम अश्रुधारा ने मेरे तपते मन को नहला दिया था !! मन प्राणों की व्यथा ह्रदय की पीड़ा कहीं छिपने लगी थी कुछ मिटने लगी थी जब यों ही , तुम्हारी भीनी मुस्कराहट ने मुझ पगली को बहला दिया था ! दामन में खुशियाँ आँचल में मोती सब तुने ही तो दिए थे संचित है मेरी स्मृति-मंजुला में कुसुम-सा कोमल पहला प्यार जो तुने दिया था .....

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