सुन री सखी ,
तुम्हारे पास बेहद हंसी हैं ,
एक अंजुरी भर दे दो !
पर , बदले में कुछ ना माँगना ,
मेरे पास सिर्फ उदासी है ...
मेरे पास सिर्फ उदासी है ..
ऐसा क्यूँ है ..... ?
न आकाश बताता है कुछ
और न ही सागर
और जब आता है बसंत ,
तो सूखे पत्ते उगने लगते है ,
मेरे भीतर --
पत्तों को हरा कर सकती है
तुम्हारी हंसी ....
सिर्फ तुम्हारी हंसी ...
तुम्हारे पास बेहद हंसी है ,
एक अंजुरी भर दे दो ..
पर बदले में कुछ ना मांगना ,
मेरे पास सिर्फ उदासी है .....
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