मेरे मीत ,
मैं संगीता तो नहीं ... जो जीवन संगीत सजा सकूँ ,
और मैं सुजाता भी नहीं ... जो तुम्हे
सिद्धार्थ से गौतम बना सकूँ ,
मैं वो अंजू भी नहीं ... जो अपनी लबरेज़ भावनाओं को
अंजलि में बांध सकूँ ,
मैं वो योजना भी नहीं ... जो जीवन को आधार दे सकूँ ,
मैं तो सिर्फ एक क्षण हूँ ,
जिसे चाहे जैसे जी लेना ,
मैं तो सिर्फ एक दुआ हूँ ,
उस इंसान के लिए जो स्मरणीय रहे…
हर पहलू से , हर क्षण से---
इसी तरह ...
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