Ruby Arun

Monday 18 June 2012

नक्सलियों पर होंगे हवाई हमले.....रूबी अरुण


नक्सलियों पर होंगे हवाई हमले


कम से कम भारत में पहली बार भारत की सेना का गौरवशाली अंग भारत की वायुसेना एक ख़तरनाक काम करने जा रही है, वह काम है- अपने ही देश के लोगों पर गोलियों और बमों से आकाश द्वारा हमला. अगर यही काम सीमा पर युद्ध के दौरान होता तो हम गर्व से तालियां बजाते, पर जो होने जा रहा है वह शर्मनाक है. शर्मनाक इसलिए अगर पैसा और योजना ग़रीबी दूर करने, विकास के काम करने पर लगता तो एक तरह का माहौल बनता, पर यह सब ग़रीबों की समस्याओं को ख़त्म करने की जगह ग़रीबों को ही ख़त्म करने जा रहा है. जमीन पर कौन है नक्सलवादी, कैसे पता लगाएंगे आकाश पर उड़ने वाले हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर? बाज़ार जा रहे झुंड में लोग या फिर नरेगा के तहत काम कर रहे लोग या रात में जाड़े में नींद न आने के कारण नाचते गाते लोग कहीं इस अभियान का शिकार न बन जाएं. सवाल यह भी है कि नक्सलवादी विचारधारा के साथ जा रहे लोग हमारी व्यवस्था से निराश लोग हैं, पर अपने हैं. आपको बताते हैं कि सरकार का इस पर क्या सोचना है और उसकी योजना क्या है?
हमारी जानकारी के अनुसार सरकार  नक्सलवादी क्षेत्रों में मीडिया पर सेंसर लगाने की भी तैयारी कर चुकी है.
नक्सलियों का बचना अब नामुमकिन है, क्योंकि गृह मंत्रालय ने उन्हें खाक़ में मिलाने की तैयारी पूरी कर ली है. एक नवंबर से वायु सेना के विमान, हेलीकॉप्टर और अर्द्ध-सैनिक बलों के जवान नक्सलियों पर क़हर बनकर टूट पड़ेंगे. आसमान से ज़मीन तक घेराबंदी कर नक्सलियों को चुन-चुन कर मारा जाएगा और इस पूरे ऑपरेशन की मियाद होगी एक महीने. यानी कि नवंबर का पूरा महीना ऑपरेशन ग्रीन हंट की भेंट चढ़ेगा. नक्सल प्रभावित आठ राज्य ऑपरेशन ग्रीन हंट से महीने भर थर्राते रहेंगे. सरकार इस बार हर हाल में उनका शिकार करने का मन बना चुकी है. सुरक्षा संबंधी कैबिनेट की बैठक में जल्दी ही वायुसेना को इस बात के आदेश दे दिए जाएंगे कि ऑपरेशन के दरम्यान नक्सलियों को देखते ही वह गोली मार दें. यह भी मुमकिन है कि इसके पहले उन्हें देश का दुश्मन भी घोषित कर दिया जाए. शुरुआत होगी झारखंड के उन सीमावर्ती इलाक़ों से जहां से माओवादी छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते हैं. यहां अर्द्धसैनिक और केंद्रीय सुरक्षा बलों के हज़ारों जवानों को बख्तरबंद गाड़ियों में तैनात किया जाएगा. जिसकी रुप रेखा पूरी तरह तैयार की जा चुकी है. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक़ सेना के तीन अत्याधुनिक वाहन ध्रुव, द्रोण और वाइपर ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत करेंगे. इन वाहनों की दीवारें विस्फोटरोधी पदार्थ से बनाई गई हैं और इनका स्टील भयंकर विस्फोट में भी उच्च सुरक्षा प्रदान करता है. ये वाहन उबड़-खाबड़ और पथरीले इलाक़ों में भी तेज़ गति से एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाए जा सकते हैं और इन पर बारूदी सुरंगों का भी कोई असर नहीं पड़ता. लिहाज़ा इस बार की नक्सलियों के ख़िला़फ कार्रवाई बिल्कुल ही अलग अंदाज़ में होगी. ज़मीन पर अर्द्ध-सैनिक बलों और सेना की टुकड़ियां माओवादियों को अपनी गिरफ़्त में लेंगी तो आसमान से वायुसेना उन पर गोलियां और हथगोले बरसाएगी. उनके बचने का कोई रास्ता नहीं होगा. इसी योजना के तहत पश्चिम बंगाल के लालगढ़ में केंद्रीय बलों की 17 कंपनियां तैनात कर दी गई हैं. इन कंपनियों ने गृह मंत्रालय के निर्देश पर अभी से मोर्चाबंदी शुरू कर दी है. इस बाबत पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य लगातार गृहमंत्री पी चिदंबरम के संपर्क में हैं. हालांकि रेल मंत्री ममता बनर्जी सरकार की इस कार्रवाई से नाराज़ हैं और वे लालगढ़ से सुरक्षा बलों को हटाने के लिए सरकार पर दबाव भी बना रही हैं. इस ऑपरेशन में अहम भूमिका निभा रहे छत्तीसगढ़ पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि नक्सलियों के ख़िला़फ इस ऑपरेशन का व़क्त भले ही एक माह का तय किया गया हो, पर यह मुहिम तब तक जारी रहेगी, जब तक कि नक्सलियों को जड़ से ख़त्म नहीं कर दिया जाता या फिर नक्सली हिंसा का रास्ता पूरी तरह से छोड़ नहीं देते. गृह मंत्रालय ने वायुसेना अध्यक्ष पीवी नायक को झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के नक्सल प्रभावित ज़िलों में नक्सलियों के ठिकानों के ऩक्शे सौंप दिए गए हैं. जब वायुसेना के विमान और हेलीकॉप्टर नक्सलियों पर हमला करेंगे, उस व़क्त उन पर वायुसेना के विशेष कमांडो गरूड़ बल के जवान भी मौज़ूद रहेंगे ताकि वे हमले के जवाब में नक्सलियों के आक्रमण से वायुसेना के जवानों, उपकरणों और हेलीकॉप्टरों की रक्षा  कर सकें.  हालांकि सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन हंट  शुरू करने के पहले एक और सार्थक पहल की है. चूंकि झारखंड सबसे ज़्यादा नक्सल प्रभावित राज्य है, इसलिए इसकी शुरुआत भी यहीं से की गई है. सरकार चाहती है कि ऑपरेशन शुरू करने से पहले वह आदिवासियों का भरोसा जीते. इसके तहत आदिवासियों के ख़िला़फ दर्ज़ एक लाख से ज़्यादा मामले वापस लेने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है. आदिवासियों के ख़िला़फ ज़्यादातार मामले लकड़ी काटने, संरक्षित वन क्षेत्र में जानवर चराने, शिकार खेलने आदि के हैं. गृह मंत्रालय ने सुरक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनी लक्ष्मी डिफेंस आर्म को ऐसे जीवनदायी जैकेट बनाने का ऑर्डर दिया है जिन पर एके 47 की गोलीबारी का असर न हो. महाराष्ट्र, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के संपन्न हो जाने के बाद गृह मंत्रालय में बैठकों का दौर जारी है. गृहमंत्री के निर्देश पर आंतरिक सुरक्षा देख रहे सभी अधिकारी नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बातचीत कर तालमेल बनाने का काम कर रहे हैं ताकि महीने भर चलने वाले ऑपरेशन ग्रीन हंट के दरम्यान राज्य सरकारों के सर-फुटौव्वल का दुष्परिणाम इस पर न पड़े. और केंद्र सरकार नक्सली समस्या का अंत कर सके. हालांकि इस पूरे ऑपरेशन के दरम्यान केंद्र सरकार की सबसे बड़ी जो चिंता है वो यह कि देश की क़ानून-व्यवस्था न बिगड़े. अपने ही नागरिकों पर हवाई हमलों और सैन्य कार्रवाई करने से कहीं देश में आंतरिक युद्ध जैसे हालात न पैदा हो जाएं. आपात स्थिति का सामना न करना पड़े, इसलिए इस ऑपरेशन के दरम्यान सरकार हर संभव एहतियात और चौकसी बरतने की कोशिश करेगी. चूंकि फ़िलहाल चुनौतियां सीमा पार से भी हैं. सीमा पर हज़ारों आतंकवादी मौक़े की ताक़ में हैं कि कब भारतीय सुरक्षा बलों से चूक हो और वे भारत में कोहराम मचा सकें. लिहाज़ा नवंबर के महीने में जब ऑपरेशन ग्रीन हंट चल रहा होगा तब वह व़क्त भारतीय सुरक्षा ख़ु़फ़िया एजेंसियों और भारत की लोकतांत्रिक सरकार के लिए अग्निपरीक्षा का दौर होगा. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि नक्सलियों को मटियामेट करने के लिए की जा रही ये कार्रवाई बिल्कुल वैसी ही होगी, जैसी पाकिस्तान की तालिबान के ख़िला़फ. केंद्र सरकार और वायुसेना की इस कार्रवाई से माओवादी नेता बेहद गुस्से में हैं. वह बड़े आहत भी हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पोलित ब्यूरो के सदस्य कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी कहते हैं कि माओवादियों पर गोली चलाने की बात पर वायुसेना को फिर सोचना होगा. वे भारत देश के निवासियों पर ऐसा क़दम कैसे उठा सकते हैं? हम न तो किसी दूसरे देश के एजेंट हैं न ही बाहरी आक्रमणकारी या आतंकवादी, फिर भी सरकार हमारे दामन के लिए ऐसे नृशंस क़दम कैसे उठा सकती हैं. इसी के मद्देनज़र सी पी एम माओवादी ने बीते तीन अक्तूबर को देशव्यापी बंद का आह्वान भी किया था. उन्होंने माओवादियों के ख़िला़फ वायुसेना और थल सेना के इस्तेमाल पर रोक लगाने की अपील भी की थी. किशन जी के मुताबिक़ यह हमला माओवादियों पर नहीं बल्कि ग्रामीण जनता पर हैं. सरकार अगर यह सोचती है कि इस तरह के हमले कर वह माओवादियों को पस्त कर सकती हैं तो वह मुग़ालते में है. यह तो बिल्कुल वैसी ही कार्रवाई होगी जैसी श्रीलंकाई सेना ने लिट्टे को ख़त्म करने के लिए की थी. समाजसेविका और जानी मानी लेखिका अरुंधती राय कहती हैं कि सरकार तब तक ऐसी कार्रवाई नहीं कर सकती जब तक वह माओवादियों को देश का दुश्मन घोषित न कर दे. सवाल यह हैं कि क्या हम एक समस्या से निपटने के लिए ऐसे अराजक हालात पैदा कर दें कि हमें अपने ही देश के नागरिकों का नरसंहार करना पड़े? ऐसा तो किसी भी देश की सरकार नहीं करना चाहेगी. तो ज़ाहिर है हमें दूसरे उपाय तलाशने पड़ेंगे. हैरानी इस बात की है कि गृहमंत्री दूसरे तरीक़े क्यों नहीं अपनाते? पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने कोबाड गांधी जैसे प्रमुख नक्सली नेता को गिरफ़्तार किया तो सबको बड़ी हैरानी हुई कि पलामू के जंगलों से निकल नक्सली आज इस कदर पंख फैला चुके हैं कि देश की राजधानी में भी उनकी दबिश मज़बूती से महसूस की जा रही है. कोबाड ने पुलिस की पूछताछ में बताया कि वे आदिवासी जो छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा के जंगलों में रहते हैं. बदहाली का जीवन जीते हैं. नस्ली परायापन झेलते हैं और यही भेदभाव उनके ख़ून में ज़हर बन कर घुल जाती है. फिर वे अपने ही देश के तथाकथित अभिजात्य और अमीर लोगों के ख़िला़फ नक्सलवादियों की सेना के तौर पर काम करने लगते हैं. विकास के नाम पर उनका जो ख़ौ़फनाक दमन और शोषण होता है वही उन्हें हिंसक बना देता है. यक़ीनन कोबाड गांधी की ये बातें मन को झिंझोरती हैं. सोचने को मजबूर करती हैं कि शोषण से उपजा नक्सलवाद जब सेना के दमन से गुज़रेगा तब उसकी प्रतिक्रिया कितनी ख़ौ़फनाक होगी. हालांकि गृह मंत्रालय के इस फैसले पर कई सवाल भी उठ रहे हैं. पूर्व पुलिस महानिदेशक अरुण भगत कहते हैं कि सरकार के लिए नक्सलियों के ख़िला़फ हवाई कार्रवाई आसान नहीं होगी, क्योंकि जिन जंगलों और बस्तियों में यह कार्रवाई होनी हैं वहां आम लोगों और नक्सलियों के बीच फर्क़ करना असंभव होगा. ऐसे में इस कार्रवाई के नतीजे भीषण हो सकते हैं. गृहमंत्री लगातार इस बात को कह रहे हैं कि वे देश में नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकेगे. वे जिस तरीक़े से फैसले ले रहे हैं वो हैरत भी पैदा करते हैं. वे नक्सलप्रभावित राज्यों का दौरा कर रहे हैं. वहां की सरकारों को भरोसे में ले रहे हैं. पर गृहमंत्री ने जिस कदर कड़ा रुख़ अपनाया है वह कई संशय भी पैदा करता है. पंजाब में आतंकवाद के ख़िला़फ निर्णायक लड़ाई लड़ चुके पंजाब पुलिस के पूर्व पुलिस महानिदेशक सी पाल सिंह कहते हैं कि नक्सलवाद से सरकार अन्य दूसरे तरीक़ों से भी निपट सकती है. कम से कम नक्सलवाद की समस्या हमारे देश में उतनी भयंकर नहीं हुई है जितना पंजाब में आतंकवाद था. तब भी हवाई हमले की योजना नहीं बनी थी. हां, ये बात अलग है कि नक्सलवाद का क्षेत्र ज़्यादा विस्तृत हो गया है और इसलिए गृहमंत्री और प्रधानमंत्री इसे आतंकवाद से भी बड़ा मुद्दा बता रहे हैं. सरकार की इस मुहिम से नक्सलवादी भले ही मटियामेट हो जाए पर इस हवाई कार्रवाई का बड़ा ख़ामियाज़ा देश को उठाना होगा. इस लड़ाई से देश की आंतरिक सुरक्षा की स्थिति बिल्कुल ही चरमरा जाएगी क्योंकि इन हमलों में निर्दोष भी मारे जाएंगे.  आदिवासियों से जुड़े मसलों और द़िक्क़तों पर ज़मीनी तौर पर काम करने वाले ग्लैडसन डुंगडुंग कहते हैं कि अगर सरकार चाहती है कि वह किसी भी अराजक स्थिति से बचे तो उसे पहले ख़ुद के सिस्टम को दुरुस्त करना होगा. सरकार नक्सलियों के ख़िला़फ कार्रवाई करने तो निकली है पर वह विधि व्यवस्था के लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर रही हैं. डुंगडुंग बेहद नाराज़गी भरे स्वर में कहते हैं कि सरकार के हवाई हमले के बाद यह आंदोलन पहाड़ों जंगलों से निकल कर दिल्ली और मुंबई की सड़कों तक पहुंच जाएगा. दमन और शोषण से बचने की फिराक़ में नक्सली फिर शहरों का रुख़ करेंगे. डुंगडुंग कहते हैं कि गृहमंत्री पी चिदंबरम की इस मुहिम के पीछे उनकी क्या नीयत है, उस पर ग़ौर करना होगा. यह सोचना होगा कि आख़िर नक्सली क्यों उन्हीं इलाक़ों में हैं जो खनिज-लवण और प्राकृतिक संपदा से भरपूर हैं? सरकार ने पूंजीपतियों और उद्योगपतियों ने इन इलाक़ों का अंधाधुंध दोहन किया है. विकास के नाम पर आदिवासियों का शोषण किया है. जंगली इलाक़ों में अगर बांध बनाए जाते हैं. सड़कें बनती हैं. कल-कारखानें की स्थापना होती है तो विस्थापित आदिवासी होते हैं. उनकी संपदा, उनकी लकड़ियों पर पूंजीपति अपना पहरा बैठा देते हैं और जो वहां के मूल निवासी होते हैं वो दो व़क्त की रोटी के भी मोहताज़ हो जाते हैं. अगर कोई अपने हक़ की आवाज़ उठाता हैं तो उसे छत्तीसगढ़ के मज़दूर नेता शंकर गुहा नियोगी की तरह मार दिया जाता हैं. ऐसे में ख़ुद की ज़िंदगी बचाने के लिए ये बेबस ग़रीब बंदूक़ न उठाएं तो क्या करें?  इन हालातों में ज़रूरत है कि सरकार इनसे सहानुभूतिपूर्वक बात करें. इनकी समस्याओं को सुनें और उसे ईमानदारी से दूर करने का जतन करें. पर सरकारों ने यह कोशिश कभी नहीं की और आज भी वह नक्सलियों पर हवाई हमले कराने की योजना बनाकर एक और भयंकर भूल कर रही है. अरुंधति राय तो सा़फ तौर पर गृहमंत्री पी चिदंबरम की नीयत पर ही सवाल खड़ा करती हैं. कहती हैं कि यहां यह समझना ज़्यादा ज़रूरी है कि आख़िर गृहमंत्री ऐसा क़दम क्यों उठा रहे हैं? क्या वे पूंजीपतियों का साथ दे रहे हैं? क्या वे प्राकृतिक संसाधनों को उनके हवाले करना चाहते हैं? माओवादियों के दमन के नाम पर मल्टीनेशनल कंपनियों की मदद करना चाहते हैं? आख़िर क्या मक़सद है उनका? शिवराज पाटिल जब देश के गृहमंत्री थे तो गृह मंत्रालय से एक रिपोर्ट बाहर आ गई थी. उसमें नक्सलवाद को सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती माना गया था और उससे निपटने के सुझाव भी दिए गए थे. हैरानी की बात यह हैं कि उसमें यह ज़िक़्र था कि उन इलाक़ों में विकास की रफ़्तार धीमी कर दी जाए जो नक्सलवाद से ज़्यादा ग्रसित हैं. चिदंबरम आज जो नक्सलवाद के ख़िला़फ सीधा अभियान चला रहे हैं उसको समझना बेहद अहम है. गृहमंत्री भी मानते हैं कि विकास के लिए जो ज़बरदस्ती की जा रही है वह नक्सलवाद को बढ़ावा दे रही है. बावजूद इसके चिदंबरम ज़ोर-ज़बरदस्ती पर क्यों तुले हैं. ये बात समझ से परे हैं. हालांकि चिदंबरम ने गृहमंत्री के तौर पर एक सख्त प्रशासक की छवि बनाई है. पर उन्होंने ऐसा कड़ा क़दम पाकिस्तान और सीमापार आतंकवाद के ख़िला़फ तो नहीं उठाया. पहले लालगढ़ में राज्य प्रशासन को किनारे कर केंद्रीय सुरक्षा बलों को मैदान में उतारना और अब सीधे हवाई हमले की योजना बनाना. यह बात पी चिदंबरम के फैसले को कठघरे में ज़रूर खड़ा करती है. संदेह वाज़िब है. देश के 50 सबसे ज़्यादा खनिज लवणों से समृद्ध क्षेत्रों पर नक्सलियों का क़ब्ज़ा है और इस कारण वहां उद्योग-धंधे चला रही मल्टीनेशनल कंपनियां परेशानी में हैं. नक्सलियों के सफाए से सबसे अधिक फायदा इन्हीं कंपनी मालिकों को है और पी चिदंबरम उद्योगपतियों के पुराने हिमायती रहे हैं. लिहाज़ा उनके इस फैसले को व्यापक मायनों में देखने की ज़रूरत हैं. ज़ाहिर है इतने कड़े फैसलों का निहितार्थ महज़ वो नहीं हो सकता जो दिख रहा है. ख़ासकर तब जब फैसले गृहयुद्ध का असर पैदा करते हों. बहरहाल, सरकार और वायुसेना ऑपरेशन ग्रीन हंट के ज़रिए माओवादियों के सफाए के लिए बिल्कुल तैयार है.

1 comment:

  1. कुछ भी हो पर मार कर नक्सलियों को नहीं रोका जा सकता, यह बात सरकार जब समझेगी तभी समस्या का समाधान होगा
    बहुत ही गंभीर और तार्किक आलेख, जो कम ही पढ़ने को मिलते है
    आभार

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