Ruby Arun

Monday 18 June 2012

श्री कृष्ण के नाम पर धोखाधडी.......रूबी अरुण ..


श्री कृष्ण के नाम पर धोखाधडी


इस्कॉन बेंगलुरू के अध्यक्ष मधु पंडित दास को किसका संरक्षण प्राप्त है? आख़िर कौन-सी वो राजनीतिक हस्तियां हैं जिनकी शह पर मधु पंडित दास का साम्राज्य न स़िर्फ कर्नाटक और देश के दूसरे हिस्सों में बल्कि विदेशों में भी फल—फूल रहा है. ख़ासकर उन प्रदेशों में जहां भारतीय जनता पार्टी का शासन था, या है. भाजपा के कद्दावर नेता अनंत कुमार से उनके मधुर रिश्ते तो जगज़ाहिर हैं ही, पर उनके अलावा विश्व के सामने भारत की भूखी नंगी तस्वीर पेश कर अपनी जेब भरने के लिए चंदा जुटाया जा रहा है. के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा, मधु पंडित दास पर इतने मेहरबान क्यों हैं? क्यों कर्नाटक की सरकार विपक्षी कांग्रेस के विरोध और आरोप—प्रत्यारोप के बावजूद बेशक़ीमती सरकारी  ज़मीन इस्कॉन बेंगलुरू को औने—पौने दामों में दे देती है, वह भी व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए? इस्कॉन बेंगलुरू के तमाम संशयात्मक कामों के बाद भी मुख्यमंत्री येदियुरप्पा क्यों नहीं करा रहे हैं उस पर लगे इल्ज़ामों की छानबीन? मधु पंडित दास पर राष्ट्र की गरिमा से खिलवाड़ करने के गंभीर आरोप हैं फिर भी प्रदेश की भाजपा सरकार इस्कॉन बेंगलुरू के कारनामों से नज़र फिराए बैठी है. जबकि भाजपा हमेशा राष्ट्रीयता का ही राग आलापती है. भाजपा सरकार की यह कैसी देशभक्तिहै कि भूख और ग़रीबी के नाम पर व्यापार करने वाली संस्था की ग़ैर-वाजिब हरकतों को तो नज़रअंदाज़ कर ही दिया जाता है, बल्कि उसके धार्मिक समारोहों में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा अपनी पूरी कैबिनेट के साथ बड़ी शान के साथ शामिल होते हैं. मुख्य अतिथि के पद को सुशोभित करते हैं और संस्था का मान बढ़ाते हैं. वैसे दलील ये भी दी जा सकती है कि शायद मुख्यमंत्री ने यह काम उड़िया समाज के
मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए किया हो. पर तथ्य यह नहीं है. बेंगलुरू की कुल आबादी का महज़ 2 प्रतिशत अंश ही उड़िया समाज के ज़िम्मे जाता है. तो ज़ाहिर है मुख्यमंत्री की ये शिरकत मतदाताओं को लुभाने की बजाय आपसी घनिष्ठ संबंधों के लिहाज़ से ही थी. पिछले साल जब मुख्यमंत्री येदियुरप्पा बेंगलुरू में मधु पंडित दास द्वारा आयोजित जगन्नाथ रथ यात्रा में अपने दल—बल के साथ शामिल हुए थे, तब मधु पंडित दास ने एक प्रेस नोट जारी कर इस बात की मुनादी की थी कि उनके मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज़ नेताओं से बेहद सौहार्दपूर्ण रिश्ते हैं और इसी कारण मुख्यमंत्री की उन पर कृपा है.
सोचिए ज़रा. देश में फैली ग़रीबी के नाम पर इस्कॉन ने कितना शर्मनाक जाल विदेशों में फैला रखा है. विश्व के सभी विकसित देशों, ख़ासकर अमेरिका में इस्कॉन बेंगलुरू ने अपनी संस्था अक्षय पात्र की ओर से बड़े— बड़े होर्डिंग और बैनर लगा रखे हैं, जिन पर भारतीय बच्चों की बेहद फटेहाल और भूख से बेहाल तस्वीरें लगाई गईं हैं. तस्वीर में बच्चों के गंदे शरीर पर मक्खियां भिनभिना रही हैं. वे नंगे हैं. रो रहे हैं. गंदगी और कूड़े के बीच बैठे हैं. कुल मिला कर ये तस्वीरें देखने वालों के मन पर बड़ा ही मार्मिक असर छोड़ती हैं. विदेशी इन तस्वीरों को देखते हैं और भारतीयों की ज़लालत भरी ज़िंदगी पर लानतें भेजते हैं, तरस खाते हैं. नतीज़ा होता है कि अक्षय पात्र के एजेंट बड़ी आसानी से इन तस्वीरों के ज़रिए विदेशियों की जेब से भारी—भरकम रक़म निकलवाने में कामयाब हो जाते हैं. सबसे बड़ी बात ये कि संस्था के प्रतिनिधि इस बात का ज़िक्र तक नहीं करते कि भारत सरकार इन बच्चों का पेट भरने के नाम पर कितना कुछ कर रही है. मिड डे मील के नाम पर कितनी बड़ी सरकारी मदद दी जाती है. संस्था को भी इस काम के लिए भारी—भरकम अनुदान दिया जाता है. और ज़ाहिर ये किया जाता है कि सरकार निकम्मी और लाचार है जो कुछ कर ही नहीं सकती. प्रदेश सरकार को विपक्षी पार्टियों ने इन सभी बातों का प्रमाण तक सौंप रखा है. उसे सारी बातों की ख़बर है. पर सरकार चुप है. ऐसे शर्मनाक कामों के बाद भी राज्य सरकार ने अक्षय पात्र को मिड डे मील के नाम पर दिया जाने वाला सरकारी अनुदान रोका नहीं है. उसे जारी रखा है. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डी के शिव कुमार कहते हैं कि प्रदेश भाजपा सरकार की नीयत में ही खोट है. वह चाहती ही नहीं कि मधु पंडित दास के कारनामों का ख़ुलासा हो. चूंकि भाजपा की राजनीति धर्म की ठेकेदारी पर ही टिकी है. इसलिए वह इस्कॉन के ख़िला़फ कोई भी कार्रवाई कर ही नहीं सकती. क्योंकि उसे अपने वोट बैंक के खिसकने का डर है. यही वजह है कि प्रदेश भाजपा नेताओं के साथ—साथ भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के संबंध भी मधु पंडित दास के साथ इतने ही प्रगाढ़ हैं. लिहाज़ा भगवान कृष्ण के नाम पर धड़ल्ले से मुना़फाखोरी और धोखाधड़ी जारी है.
पर सवाल यह भी है कि इतने गंभीर मसले पर अगर राज्य कुछ नहीं कर रही तो केंद्र सरकार ने चुप्पी क्यों लगा रखी है? ज़िम्मेदारी तो भारत सरकार की भी बनती है? क्योंकि इस्कॉन से कांग्रेस के बड़े—बड़े नेताओं के ख़ास रिश्ते हैं. इस्कॉन का हमेशा से ये दावा रहा है कि कांग्रेस से जुड़े पूंजीपतियों का उसे हमेशा साथ मिला है.
वैसे इस मामले में प्रदेश कांग्रेस ने कर्नाटक विधान सभा में ख़ूब बावेला ज़रूर मचाया. तब कर्नाटक के क़ानून मंत्री एस सुरेश कुमार ने यह आश्वासन दिया कि इस्कॉन बेंगलुरू द्वारा विदेशों में भारत का ग़रीब राष्ट्र के रूप में चित्रण कर भोजन योजना के नाम पर चंदा एकत्र करने के आरोपों की सरकार जांच करेगी. और पारदर्शिता क़ायम रहे इसकी ख़ातिर इस जांच रिपोर्ट को सदन के पटल पर भी रखा जाएगा. पर यहां भी प्रदेश सरकार का विरोधाभासी रवैया सामने आ रहा है. एक तऱफ क़ानून मंत्री जांच का भरोसा देते हैं तो दूसरी तऱफ राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री विशेश्वर हेगड़े संस्था के पक्ष में दलील देते ज़रा भी नहीं हिचकते. वे सा़फ तौर पर कहते हैं कि मिड डे मील को संचालित करने वाली इस्कॉन की संस्था अक्षय पात्र प्रभावी तरीक़े से अपना काम कर रही है. अब किसकी बात पर यक़ीन किया जाए?
हालांकि इस्कॉन बेंगलुरू के प्रतिनिधियों के अपने अलग ही तर्क हैं. मधु पंडित दास कहते हैं कि सभी आरोप बेबुनियाद हैं. वे ऐसा कोई काम नहीं कर रहे जिसे अनैतिक करार दिया जा सके. विदेशों से जो चंदा आता है वह धर्माथ गतिविधियों में इस्तेमाल होता है. अमेरिका जैसे देशों में उनकी संस्था को क़ानूनी मान्यता भी मिली हुई है. जिससे अगर कोई उन्हें दान देता है तो वह करमुक्त होता है. उनकी संस्था सभी काम वैधानिक तरीक़े से करती है. पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डी के शिव कुमार का दावा है कि उनके पास इस्कॉन के घोटाले के पक्के प्रमाण हैं. जिसे उन्होंने सदन के पटल पर भी रखा है. इनकी  ज़ुबान पर भले ही हरे रामा—हरे कृष्णा का नाम है पर इनका काम धर्म—नैतिकता से परे है. देश के ग़रीब और भूखे बच्चों का पेट भरने के नाम पर इस्कॉन देश के सम्मान के साथ खिलवाड़ कर रहा है. समाजसेवा के नाम पर इस्कॉन विदेशों में भारत की अस्मिता बेच रहा है. देश की सरकार और यहां के लोकतंत्र पर शर्मनाक धब्बा लगा रहा है. क्यों इस्कॉन बेंगलुरू विदेशों में ख़ुद को चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में पेश करता है? जब भारत सरकार पूरी सहायता राशि और अनाज़ मुहैया करा रही है फिर भी भोजन योजना के नाम पर सहायता राशि की अपील क्यों की जा रही है? क्यों संस्था सरकार से और अनाज़ की मांग करती है? यह कहते हुए कि सरकार द्वारा दी जा रही सहायता राशि अपर्याप्त है. जबकि मिड डे मील के नाम पर मिल रहे सरकारी अनाज़ को यही संस्था काले बाज़ार में बेच देती है. ऐसा करते हुए संस्था के ट्रक को रंगे हाथ पकड़ा भी जा चुका है.
सचमुच यह बात हैरान कर देने वाली है कि इस्कॉन बेंगलुरू, भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना सर्वशिक्षा अभियान से जुड़ी योजना मिड डे मील के नाम पर इस्कॉन विश्व के बाज़ार में भारत की ग़रीबी और भूख का इश्तहार लगा कर मदद के नाम पर चंदा वसूली कर रहा है. एक आम आदमी से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तक से भारतीय बच्चों की भूख मिटाने के नाम पर वसूली कर चुकी है ये संस्था. विदेशों में इस संस्था ने बाक़ायदा व्यवसायिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति कर रखी है. प्रोफेशनल वेबसाइट के ज़रिए भी दान मांगने का काम चालू है. फिर भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. क्या एक संस्था, संस्था का अध्यक्ष या फिर उसके राजनीतिक संबंध इतने अहम हैं कि वह राष्ट्र हित से ऊपर हो जाते हैं? ख़ासकर एक ऐसा व्यक्ति जो पहले से ही विवादित रहा हो. जिसके ऊपर अदालत में फर्ज़ीवाड़े का मुक़दमा चल रहा हो.
मज़ेदार तथ्य यह भी है कि बेंगलुरू इस्कॉन और मुंबई इस्कॉन के बीच ख़ुद को असल इस्कॉन साबित करने की होड़ लगी है और यह मसला अदालत तक पहुंच गया है. सन 2001 से यह मामला अदालत में है. इस विवाद में एक जज का नाम भी घसीटा जा चुका है. मुंबई इस्कॉन का आरोप है कि बेंगलुरू इस्कॉन के चीफ मधु पंडित दास एक षड्यंत्रकारी किस्म के व्यक्तिरहे हैं. उनकी बेजा हरकतों के मद्देनज़र ही उन्हें मुख्य इस्कॉन से 2001 में ही निकाला जा चुका है. उसके बाद मधु पंडित दास ने फर्ज़ीवाड़ा करते हुए बेंगलुरू में नक़ली इस्कॉन और हरे कृष्ण आंदोलन की स्थापना की. इतना ही नहीं, मधु पंडित दास ने कर्नाटक सरकार से 200 करोड़ रुपये की ज़मीन भी हथिया ली. साथ ही मिड डे मील के नाम पर देश और विदेशों में मधु पंडित दास ने कई चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना कर डॉलर के रूप में चंदा इकठ्ठा करना शुरू कर दिया. प्रदेश कांग्रेस के नेता बताते हैं कि भोजन योजना के रूप में एकत्रित राशि को मधु पंडित दास अपने परिवार के रियल स्टेट बिज़नेस में लगाते हैं न कि भारत के ग़रीब बच्चों की भूख मिटाते हैं. यही वजह है कि कुछ ही सालों में मधु पंडित दास और उनके परिवार के लोग अचानक ही बेंगलुरू के सबसे बड़े रियल स्टेट परियोजना डेवलपर्स में से एक हो गए हैं. इस बात की जांच होनी चाहिए कि एक ऐसा शख्स जिसे धोखाधड़ी के मामले में उसकी पुरानी संस्था निकाल देती है वह आख़िरकार कैसे इतनी बड़ी हस्ती बन जाता है. प्रदेश कांग्रेस तो अब यह मांग करने लगी है कि मधु पंडित दास के संपर्कों और उनके धन के स्त्रोतों की सीबीआई जांच होनी चाहिए.
चौथी दुनिया के पास जो तथ्य मौजूद हैं उनसे यह बात सा़फ है कि बेंगलुरू इस्कॉन धर्म के नाम पर, भगवान कृष्ण के नाम पर या समाजसेवा के नाम पर जो कुछ भी कर रहा है वह बेदाग़ नहीं हैं. प्रमाण इस बात के भी हैं कि मधु पंडित दास को जो ज़मीन राज्य सरकार ने धर्माथ मुहैया कराई है उसके पीछे किन दिग्गज़ों के हाथ हैं. क्योंकि कनकपुरा रोड पर जो  650 फ्लैट और दुकानें बनाई और बेची जा रही हैं उनमें राजनीतिक हस्तियों के रिश्तेदारों की भी हिस्सेदारी है. इसके अलावा एक विशाल फाइव स्टार होटल, इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर, शॉपिंग मॉल भी निर्माणाधीन है. देवेनाहाली हवाई अड्डे के पास एक लक्ज़री टाउनशिप पर भी काम चल रहा है. अपने ऊंचे राजनीतिक संपर्कों की बदौलत मधु पंडित दास और उनके दो सगे भाई जयपुर, वृंदावन और मथुरा में भी टाउनशिप परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं. त्रिवेंद्रम में कोवलम तट पर स्वास्थ्य रिसॉर्ट बनाया जा रहा है. एक साधु जो आज से साढ़े आठ साल पहले ख़ाली हाथ था, आज वह एक हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति का मालिक बन बैठा है. यह बात हर किसी के लिए अचरज भरी है. संपत्ति के जो भी आंकड़े हैं वे पूरी तरह प्रमाणिक हैं, क्योंकि इसे मधु पंडित दास द्वारा ही कर्नाटक विधान सभा की पटल पर तब रखा गया, जब विपक्षियों के हमले से घबरा कर कर्नाटक सरकार ने मधु पंडित से 13 अप्रैल को जवाब तलब किया. पर उसके बाद महीनों बीत गए. कर्नाटक सरकार ने फिर चुप्पी साध रखी है. मुंबई इस्कॉन के प्रतिनिधि का आरोप है कि मधु पंडित दास हमारे नाम पर भी धोखाधड़ी कर रहे हैं. मुंबई इस्कॉन ने इस बाबत कर्नाटक के मुख्यमंत्री से मिल कर अपनी शिकायत भी दर्ज़ कराई पर उस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. हम अपना मसला कोर्ट की मा़र्फत ही सुलझाएंगे.
वैसे देखा जाए तो इस्कॉन की ये पुरानी रवायत है. इस्कॉन पहले भी संदेह के दायरे में रहा है. उस पर अमेरिकी ख़ु़फिया एजेंसी सीआईए का एजेंट होने का आरोप भी लग चुका है. यह अलग बात है कि यह संदेह कभी साबित नहीं हो सका. धर्म की आड़ में अपनी जेब भरने की ख़ातिर यहां ख़ूब तथाकथित हरकतें की जाती हैं. कुछ व़क्त-व़क्त पर सामने भी आई हैं, पर बहुतेरी भगवा चादर तले दबा दी जाती हैं. मुंबई इस्कॉन भी कोई दूध का धुला नहीं है.
पर इस्कॉन बेंगलुरू अभी जो कुछ भी कर रहा है वह राष्ट्रविरोधी ज़रूर है. और इस काम में उसके संरक्षक बने लोग भी देश हित के ख़िला़फ काम कर रहे हैं.
कितनी तक़ली़फ की बात है जब भारत एक आर्थिक महाशक्तिके रूप में उभर रहा है और दुनिया भी भारत की बढ़ती हैसियत को खुले मन से स्वीकार कर रही है. ऐसे में विश्व के सामने भारत की भूखी नंगी तस्वीर पेश कर अपनी जेब भरने के लिए चंदा जुटाया जा रहा है. शर्मसार कर देने वाली ऐसी नापाक़ हरकत पर राज्य सरकार के साथ—साथ भारत सरकार भी अंधी—बहरी बनी बैठी ही है. क्या वाक़ई सभी राजनीतिक दल एक ही थैली के चट्टे—बट्टे हैं? क्या महज़ लफ् फाज़ियां करने और एक—दूसरे पर कीचड़ उछालने भर से ही इनका राष्ट्र के प्रति कर्तव्य पूरा हो जाता है? क्या मौजूदा प्रकरण तो यही तस्वीर पेश नहीं करता? तो क्या ये समझा जाए कि देश के सम्मान और स्वाभिमान की चिंता किसी भी राजनीतिक दल को नहीं? अगर फिक्र होती तो मधु पंडित दास सरीख़े तथाकथित धर्म के ठेकेदारों की इतनी ज़ुर्रत नहीं होती कि वो भारत के वजूद को विश्व भर में ज़लील करने की सोच भी पाते.

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