Ruby Arun

Monday, 18 June 2012

दो डीजीपी की जंग में शहीद हो रहे जवान.....रूबी अरुण


दो डीजीपी की जंग में शहीद हो रहे जवान


नक्सलवाद को नेस्तनाबूद करने की ख़ातिर छत्तीसगढ़ में तैनात किए गए दो पुलिस महानिदेशक नक्सलियों को मटियामेट करने के बजाय आपस में ही धींगामुश्ती कर रहे हैं. नक्सलियों का सफाया करने की जगह उनमें इस बात की होड़ मची है कि नक्सलियों के ख़िला़फ चल रहे ऑपरेशन ग्रीन हंट की डोर किसके हाथ रहे और इसका सेहरा किसके सिर बंधे. छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन को यह कतई बर्दाश्त नहीं कि उनके महकमे में कोई और भी दख़ल दे. उनका महकमा बस उनके इशारों पर नाचे. वहीं नक्सलियों के वजूद को ख़त्म करने की ख़ातिर तैनात किए गए सीआरपीएफ के विशेष महानिदेशक विजय रमण चाहते हैं कि जब कभी सीआरपीएफ का विशेष अभियान हो, तब वहां के पुलिस अधिकारी उनके निर्देशों का पालन करें. इन दोनों के बीच चल रही अधिकारों की इस जंग का सीधा फायदा नक्सली उठा रहे हैं. यहां वर्दी ही वर्दी की मुख़ाल़फत कर रही है. ज़ाहिर तौर पर भले ही सरकार इस बात की मुनादी करे कि वह इस समस्या से पार पाने के लिए पूरी तरह चौकस और चुस्त है. संसद में गृहमंत्री पी चिदंबरम भाव भरे शब्दों में दिलासा और सफाई दे दें. जवानों पर रणनीतिक चूक करने का इल्ज़ाम मढ़ दें, पर सच तो यही है कि इन दोनों अधिकारियों में चल रही नूरा-कुश्ती का ही खामियाज़ा 76 जवानों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा. सुबह पांच बजे से चिंतलनार के जंगल में जवान नक्सलियों से जंग लड़ रहे थे और बार-बार यह सूचना पुलिस मुख्यालय में भिजवा रहे थे कि अतिरिक्त पुलिस बल भेजा जाए, लेकिन पुलिस बल दोपहर के बारह बजे पहुंचा. इतना ही नहीं, चिंतलनार पुलिस चेकपोस्ट पर नियम के मुताबिक़ पुलिस के 20 जवानों की ड्यूटी होनी चाहिए थी, लेकिन वहां महज़ 3 पुलिस वाले ही मौजूद थे. हैरानी तो इस बात की भी है कि जब इस बाबत विश्वरंजन से पूछा गया तो उन्होंने इस बारे में अनभिज्ञता ज़ाहिर की. उधर, सीआरपीएफ के विशेष निदेशक विजय रमण इस सिलसिले में कुछ कहना ही नहीं चाहते. पर गृहमंत्री पी चिदंबरम से मिलकर उन्होंने अपनी शिक़ायत दर्ज़ ज़रूर कराई है. विजय रमण ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के डीजीपी की मनमानी के कारण सीआरपीएफ वहां काम नहीं कर पा रही है. एक और हैरान कर देने वाला सच यह भी है कि सीआरपीएफ के पास अपना कोई इंटेलिजेंस सेल है ही नहीं. इतनी बड़ी लड़ाई वह राज्य पुलिस की मुखबिरी की बदौलत लड़ रही है, जिसका उसे अमूमन भारी नुक़सान उठाना पड़ता है. छह अप्रैल को जो कुछ भी हुआ, उसकी भनक राज्य पुलिस को पहले से ही थी. विश्वरंजन इस बात को स्वीकारते भी हैं कि राज्य पुलिस के एसबीआई को इस बात की पूरी ख़बर थी कि नक्सली चिंतलनार के जंगल में कुछ उपद्रव करने वाले हैं. इस संबंध में एक इंटेलिजेंस रिपोर्ट भी तैयार की गई थी. फिर भी इतनी बड़ी वारदात हो गई तो ज़ाहिर है कि राज्य पुलिस का सहयोग सीआरपीएफ को बिल्कुल ही नहीं मिल रहा.
76 जवानों की लाशों से पटी रायपुर की ज़मीन पर एक तऱफ तो पुलिसवाले राज्य की महिला बाल विकास मंत्री लता उसेंडी के साथ झूम-झूमकर ग़ज़ल का लुत्फ उठाते रहे और दूसरी तऱफ सीआरपीएफ के जवान नम आंखों और भरे मन के साथ अपने शहीद साथियों की लाशें उनके परिजनों तक पहुंचाने की जद्दोजहद करते रहे.
राज्य पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन तो 6 अप्रैल को नक्सलियों द्वारा की गई दिल दहला देने वाली वारदात से ही अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. वह सा़फ तौर पर कहते हैं कि उस दिन जो कुछ भी हुआ, वह सीआरपीएफ की ज़िम्मेदारी है, न कि राज्य पुलिस की. विश्वरंजन फरमाते हैं कि सीआरपीएफ जिस ऑपरेशन को अंजाम देने निकली थी, दरअसल उसकी योजना छत्तीसगढ़ पुलिस ने पहले ही बना रखी थी. अब सीआरपीएफ ने अचानक अपनी योजना पर अमल कर लिया तो भला वह क्या कर सकते हैं?
यानी कि अगर विश्वरंजन के बयान के मुतल्लिक देखा जाए तो गृहमंत्री पी चिदंबरम भी झूठे हैं, क्योंकि उन्होंने तो यही बयान दिया है कि 6 अप्रैल को सीआरपीएफ ने जो ऑपरेशन किया, उसकी पूरी जानकारी और ज़िम्मेदारी आईजी बस्तर लौंग कुमार, डीआईजी दंतेवाड़ा नलिन प्रभात एवं एसपी दंतेवाड़ा अमरेश मिश्रा की थी. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन का ऐसा कहना क्या दर्शाता है, यह आप ही तय करें.
उनका तो यह आलम है कि वह नक्सलियों के ख़िला़फ चल रहे इस पूरे अभियान का नेता ख़ुद को साबित करने की जुगत में हर जोड़-तोड़ में लगे रहते हैं. लिहाज़ा इस बाबत कुछ भी बयान देने से वह बाज नहीं आते. चौथी दुनिया से हुई बातचीत में वह सा़फ कहते हैं कि ऑपरेशन ग्रीन हंट राज्य पुलिस की रणनीति है और इसे जारी रखने के लिए राज्य पुलिस पूरी गंभीरता के साथ लगी है. पर यह कैसी गंभीरता है कि वारदात के चौथे दिन ही रायपुर में राग-रागिनी की मह़िफल सजाई गई, जश्न मनाया गया और इस जलसे में मौज़ूद रहे राज्य पुलिस एवं प्रशासन के कई आला अधिकारी. कल्पवृक्ष रिसोर्ट नामक एक व्यवसायिक संस्था ने 10 अप्रैल को ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह का कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें न स़िर्फ समूचा पुलिस महकमा निमंत्रित था, बल्कि मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल भी. 76 जवानों की लाशों से पटी रायपुर की ज़मीन पर एक तऱफ तो पुलिसवाले राज्य की महिला बाल विकास मंत्री लता उसेंडी के साथ झूम-झूमकर ग़ज़ल का लुत्फ उठाते रहे और दूसरी तऱफ सीआरपीएफ के जवान नम आंखों और भरे मन के साथ अपने शहीद साथियों की लाशें उनके परिजनों तक पहुंचाने की जद्दोजहद करते रहे. सीआरपीएफ के विशेष निदेशक विजय रमण इस बात से बेहद आहत हैं और इस बात का भी ज़िक्र उन्होंने गृहमंत्री से किया है.
ज़ाहिर है कि दोनों पुलिस महानिदेशकों के बीच जारी इस रस्साकशी के दरम्यान छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद से लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती. राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह को भी इस बात का पूरा इल्म है, पर उन्होंने चुप्पी साध रखी है. मंशा क्या है, यह तो रमन सिंह ही बता सकते हैं. पर इतना तय है कि दोनों पुलिस महानिदेशकों के बीच की इस खींचतान से कई और हादसे जन्म लेंगे.

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