Ruby Arun

Monday 18 June 2012

कोई नहीं रोक सकता हमें राजनीति करने से......रूबी अरुण


कोई नहीं रोक सकता हमें राजनीति करने से


मुसलमान औरतों का भला राजनीति में क्या काम? वे कैसे आ सकती हैं राजनीति में.अल्लाह ने औरतों को महज़ बच्चा पैदा करने के लिए ही ज़मीन पर भेजा है. उनका काम है कि वे घर बैठें और अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा करें. उन्हें डाक्टर और इंजीनियर बनाएं. अच्छे नेता पैदा करें. राजनीति से वे तो दूर ही रहें वही बेहतर है…..
अपने को इस्लाम का विद्बान मानने वाले कुछ धार्मिक नेताओं के इस तरह के बयान के बाद मुसलमान महिलाओं में घोर नाराज़गी है. वे ऐसे मौलानाओं के ख़िला़फ गोलबंद हो चुकी हैं.
गीतकार जावेद अख्तर कहते हैं कि इस तरह के ग़ैर-ज़िम्मेदाराना और ओछे बयानों से औरतों की गरिमा और उनके आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ होता है. ऐसे बयान न केवल महिला विरोधी, अन्यायपूर्ण और अमानवीय हैं, बल्कि भारतीय संविधान में निहित मूल भावना का उल्लंधन भी है. यहां तक कि यह ग़ैर-इस्लामी भी है. ऐसी सोच के पीछे बेहद ख़तरनाक इरादे हैं.मुसलमान औरतें समान नागरिक हैं और अपनी बात पूरी तरह से कहने में सक्षम भी हैं. हम्मद साहेब ने चौदह साल पहले मुसलमान औरतों को समाज में समान ओहदे का हक़ दे दिया था तो ये लोग कौन होते हैं ऐसी निन्दनीय बातें कर मुसलमान औरतों के वज़ूद को नकारने वाले.
उनमें से लगभग सभी चाहती हैं कि अपने को इस्लाम का प्रवक्ता समझने वालों को यह समझना चाहिए कि अब समय बदल गया है. अब मुसलमान महिलाएं भी पढ लिख रही हैं और देश के तमाम दूसरे कामों में हाथ बंटा रही हैं. ऐसे में वे राजनीति से अलग कैसे और क्यों रहें? आखिर राजनीति हमारे समाज का सबसे महत्वपूर्ण अंग है. भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की नाईश हसन बेहद नागवारी से कहती हैं कि हम ऐसे धार्मिक नेताओं को अपना प्रवक्ता मानने से भी इंकार करते हैं. आखिर ये नेता होते कौन हैं ये तय करने वाले कि हम औरतों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं. जंतर-मंतर पर मशहुर गीतकार जावेद अख़्तर के साथ धरने पर बैठी अल्पसंख्यक जमात की इन महिलाओं के चेहरे पर रोष सा़फ नज़र आ रहा है. इनका स्पष्ट कहना है कि जो धर्म निरपेक्ष मुस्लिम नागरिक और कार्यकर्ता हैं वे कभी भी महिला आरक्षण का विरोध नहीं करेंगे. क्योंकि यह महिलाओं की समानता और न्याय की दिशा में सबसे कारगर कदम है. अगर यह विधेयक पारित हो जाता है तो देश में ऐसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का आग़ाज़ होगा जिससे देश की मुस्लिम महिलाओं समेत सभी वहिष्कृत महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी.
गीतकार जावेद अख्तर कहते हैं कि इस तरह के ग़ैर-ज़िम्मेदाराना और ओछे बयानों से औरतों की गरिमा और उनके आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ होता है. ऐसे बयान न केवल महिला विरोधी, अन्यायपूर्ण और अमानवीय हैं, बल्कि भारतीय संविधान में निहित मूल भावना का उल्लंधन भी है. यहां तक कि यह ग़ैर-इस्लामी भी है. ऐसी सोच के पीछे बेहद ख़तरनाक इरादे हैं.मुसलमान औरतें समान नागरिक हैं और अपनी बात पूरी तरह से कहने में सक्षम भी हैं. हम्मद साहेब ने चौदह साल पहले मुसलमान औरतों को समाज में समान ओहदे का हक़ दे दिया था तो ये लोग कौन होते हैं ऐसी निन्दनीय बातें कर मुसलमान औरतों के वज़ूद को नकारने वाले. मुसलमान औरतों के हक़ के लिए लड़ने वाली,  नीसवान नाम की संस्था की शमीम शेख कहती हैं कि यह एक साज़िश है.
ऐसा वे ही कह सकते हैं जो मुसलमान औरतों को गुलाम और बेज़ुबान बना कर रखने के आदी हो चुके हैं. हम औरतें तो सियासत के ज़रिए समाज की सेवा करना चाहती हैं. ताकि अपने देश और परिवार को तरक्की के रास्ते पर ले जा सकें. पर ये चंद लोग ऐसी वाहियात बातें कर हमें रूसवा कर रहे हैं. अपनी नाराज़गी का इज़हार करने गुजरात से दिल्ली पहुंची, आएशा पठान कहती हैं कि ये धार्मिक नेता कौन होते हैं हम मुसलमान औरतों और अल्लाह ताला के बीच आने वाले ? ये हमारे और ख़ुदा के बीच का मसला है. ये हा़फिज़ क्यों बन रहे हैं? मुसलिम महिलाओं को इस बात से कोई एतराज़ नही है कि मौज़ूदा आरक्षण बिल में उनके लिए कोई प्रावधान नहीं है. हम मुसलमान औरतें तो बस ये चाहती हें कि पहले महिला आरक्षण बिल को हर सूरत में लागू किया जाए. बाकी मसले-मसाइल बाद में भी हल हो सकते हैं. क्योंकि इसी में देश की सभी महिलाओं का भला है. और मुल्क की तरक्की भी. रही बात सियासत में हमारी भागीदारी की तो वो तो हम ज़रूर करेंगे. किसी का भी विरोध हमें राजनीति में आने से नहीं रोक सकता.

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