Ruby Arun

Monday 18 June 2012

शेखावाटी में विकास के पंद्रह साल.....रूबी अरुण


शेखावाटी में विकास के पंद्रह साल


शेखावाटी यानी महाराज महाराव शेखा जी और उनके वंशजों की वीरभूमि. लक्ष्मी पुत्रों और सरस्वती के साधकों की स्थली. शेखावाटी का नाम लेते ही उसका गौरवशाली ऐतिहासिक अतीत साकार हो उठता है. कला, संस्कृति, शिक्षा एवं साहित्य का ओज शेखावाटी की रग-रग में भरा है. ख़ासकर यहां की शानदार हवेलियां और उनमें बने भित्ति चित्रों को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध सा हो जाता है. हालांकि वर्ष 1996 से पहले हालात इतने ख़ुशनुमा नहीं थे.
रोजी-रोटी और व्यवसाय के विस्तार के मक़सद से यहां के बड़े-बड़े धनपति मुंबई जैसे शहरों में जाकर बस चुके थे. लिहाज़ा उनकी हवेलियां वीरान सी हो गई थीं.
शेखावाटी उत्सव में ग्रामीण लोक कला और संस्कृति से जुड़ी तमाम गतिविधियां आयोजित की जाती हैं, जिससे इस इलाक़े में रहने वाले युवक-युवतियों की छुपी प्रतिभा निखर सके. आर्ट क्रॉफ्ट, ग्रामीण खेल जैसे मटका दौड़, रस्साकसी, हरदड़ा, राउंडर, बल्ला, कालबेलिया नृत्य, कवि सम्मेलन आतिशबाज़ी इत्यादि का आयोजन पूरे शेखावाटी इलाक़े में एक रोमांच सा भर देता है.
शहर तऱक्क़ी तो कर रहा था, पर उसके गली-कूचों में वह रौनक नहीं थी, जो आज नज़र आती है. मशहूर उद्योगपति एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल मोरारका शेखावाटी के ही नवलगढ़ क्षेत्र के रहने वाले हैं. इनकी पुश्तैनी हवेली मोरारका हवेली की दीवारों पर भी व़क्त की गर्द चढ़ने लगी थी. उद्योग-धंधों की वजह से इनकी रिहाइश भी मुंबई में ही थी, लेकिन अपने पैतृक स्थान से कमल मोरारका का ज़हनी लगाव इतना संजीदा था कि वहां कुछ बेहतर करने की छटपटाहट हमेशा इनके मन को बेचैन करती थी. लिहाज़ा कमल मोरारका ने अपने पिता एम आर मोरारका के नाम से एक स्वयंसेवी संस्था बनाई, मोरारका फाउंडेशन. वर्ष 1996 से मोरारका फाउंडेशन ने शेखावाटी में शेखावाटी उत्सव के नाम से वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव करना शुरू किया. इस उत्सव की सबसे बड़ी कोशिश यह रही कि इसके माध्यम से लोगों के बीच हवेलियों को संरक्षित किए जाने का संदेश दिया गया. शेखावाटी उत्सव में मोरारका फाउंडेशन ने उन तमाम संस्कृतियों-कलाओं की विधाओं को शामिल किया, जो इस इलाक़े में पर्यटन की संभावना बना और बढ़ा सकती थीं. जो बेशक़ीमती हवेलियां देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होती जा रही थीं, उनके मालिकों से फाउंडेशन ने सामंजस्य बनाना शुरू किया. और, फाउंडेशन ने इसका ज़रिया बनाया मोरारका हवेली को. हवेली की साज-संभाल और उसके अन्य भित्ति चित्रों का रंग-रोगन कर उसे नया रूप दिया गया. धीरे-धीरे मोरारका हवेली के अद्‌भुत भित्ति चित्रों की ख्याति बढ़ती गई और न स़िर्फ भारत, बल्कि विदेशों से भी पर्यटकों का तांता लगने लगा. मोरारका फाउंडेशन का यह प्रयास इतना प्रेरणादायक रहा कि दूसरे हवेली मालिकों ने भी अपनी विरासत को संभालना-सहेजना शुरू कर दिया. नतीज़तन आज से 15 वर्षों पहले तक नवलगढ़ की जिन तमाम हवेलियों में मकड़ी के जाले और ताले लटके पड़े थे, आज वे दर्शकों-पर्यटकों से गुलज़ार हैं. पर्यटकों के आने से शेखावाटी के लोगों को रोज़गार भी मिला. धीरे-धीरे आर्थिक संपन्नता बढ़ने लगी और समृद्धि की यह ख़ुशहाली अब यहां के लोगों के चेहरे पर सा़फ नज़र आती है. पर्यटन विकास की दर 11 फीसदी सालाना हो चुकी है. शेखावाटी उत्सव शुरू होने से आज तक 15 वर्षों के सफर में शेखावाटी के बीस क़स्बों की पांच हज़ार से अधिक हवेलियां पर्यटन के क्षेत्र में ओपन आर्ट गैलरी का रूप ले चुकी हैं. मोरारका फाउंडेशन के अध्यक्ष कमल मोरारका की हवेली राज्य की धरोहरों में अपना स्थान बना चुकी है. आज से 15 साल पहले शेखावाटी में गिने-चुने होटल थे, लेकिन शेखावाटी उत्सव की बदौलत मिलने वाली शोहरत से आज यहां के होटलों के कमरों की संख्या आठ हज़ार से ज़्यादा हो चुकी है.
शेखावाटी उत्सव में ग्रामीण लोक कला और संस्कृति से जुड़ी तमाम गतिविधियां आयोजित की जाती हैं, जिससे इस इलाक़े में रहने वाले युवक-युवतियों की छुपी प्रतिभा निखर सके. आर्ट क्रॉफ्ट, ग्रामीण खेल जैसे मटका दौड़, रस्साकसी, हरदड़ा, राउंडर, बल्ला, कालबेलिया नृत्य, कवि सम्मेलन आतिशबाज़ी इत्यादि का आयोजन पूरे शेखावाटी इलाक़े में एक रोमांच सा भर देता है. नवलगढ़, फतेहपुर, अलसीसर, भलसीसर, लक्ष्मणगढ़ एवं भंडावा आदि की हवेलियों और भित्ति चित्रों की प्रदर्शनी, मेहंदी प्रतियोगिता आदि में स्कूली छात्र-छात्राएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं तथा अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं. ये सारी गतिविधियां शेखावाटी क्षेत्र के विकास में अभिन्न योगदान दे रही हैं. शेखावाटी उत्सव के 15 सालों के सफर ने इस क्षेत्र को विदेशों में भी अभूतपूर्व पहचान दी है. विदेशी पर्यटकों के आने से यहां के व्यवसायियों की आमदनी में ख़ासा इज़ा़फा हुआ है. पहाड़ों में बना जीर्णमाता मंदिर, भाकंबरी देवी का मंदिर, खाटू में श्याम का मंदिर, सालासर में हनुमान जी का मंदिर वग़ैरह भी देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र बन चुके हैं. लेकिन तक़ली़फ की बात यह है कि राज्य सरकार या पर्यटन मंत्रालय की ओर से ऐसी कोई सार्थक पहल नहीं हो पा रही है, जिससे यह क्षेत्र राष्ट्रीय धरोहरों में शामिल हो सके. सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों एवं विभिन्न संस्कृतियों के मिलन, विकास और पतन की गौरव गाथाओं को अपने दामन में छुपाए शेखावाटी का इलाक़ा आज भी सरकारी प्रयासों की बाट जोह रहा है. हालांकि मोरारका फाउंडेशन द्वारा आयोजित शेखावाटी उत्सव में राज्य पर्यटन मंत्रालय अपना सहयोग ज़रूर देता है, पर वह बहुत कम होता है. सरकार को चाहिए कि वह भी मोरारका फाउंडेशन की तरह अथक और अनवरत प्रयास करे, ताकि शेखावाटी इलाक़े की पहचान विश्व पटल पर बन सके.

यूं तय हुआ तऱक्क़ी का रास्ता

शेखावाटी की तऱक्क़ी के लिए मोरारका फाउंडेशन ने और भी कई बेहद सराहनीय काम किए हैं. ग्रामीण ग़रीब महिलाओं की आर्थिक उन्नति के लिए स्वयं सहायता समूह बनाकर उन्हें बैंकों से क़र्ज़ दिलाने और रोज़गारोन्मुखी प्रशिक्षण देने आदि का महती काम फाउंडेशन ने किया है. कम्युनिटी किचन योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को गैस कनेक्शन दिए जा रहे हैं, ताकि उन्हें दमघोंटू धुएं से मुक्ति मिल सके. पिछले 15 वर्षों से मेधावी छात्र-छात्राओं को फीस एवं किताब आदि का सहयोग कर उनकी पढ़ाई में योगदान दिया जा रहा है. बिजली कटौती की समस्या से निपटने के लिए सोलर लालटेन योजना शुरू की गई है. अक्षय ऊर्जा के पैनल से दिन में सूर्य की रोशनी के मा़र्फत सौर ऊर्जा लालटेन को चार्ज किया जाता है. यह लालटेन पांच-छह घंटे तक रोशनी करने में सक्षम है.
शेखावाटी इलाक़े को गंदगी और प्रदूषण से मुक्त करने का भी अभिनव प्रयास फाउंडेशन ने किया है. फाउंडेशन शहर के कचरे को वर्मीकंपोस्ट विधि से रिसाइकल कर उसे दोबारा उपयोग के लायक़ बनाता है. फाउंडेशन ने वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्रमें एक क़दम आगे बढ़ते हुए वर्षा के जल को संग्रहित कर उसे फिर से प्रयोग में लाने लायक़ बनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. फाउंडेशन के बेहतरीन काम को देखते हुए उसे राजस्थान सरकार के शहरी विभाग ने कचरा प्रबंधन, दूषित जल को दोबारा इस्तेमाल करने और वर्षा के पानी को फिर से इस्तेमाल करने के लिए अधिकृत कर दिया है.

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