Ruby Arun

Monday 18 June 2012

जसवंत से घबराएं अनंत.........रूबी अरुण


जसवंत से घबराएं अनंत


बीजेपी नेता अनंत कुमार ऐसा क्यों चाहते हैं कि बीजेपी से निकाले गए नेता जसवंत सिंह, पब्लिक अकाउंट कमेटी के चेयरमैन के  पद से इस्ती़फा दे दें? क्यों वे बीजेपी नेतृत्व पर इस बात का दबाव बना रहे हैं? आख़िर अनंत कुमार को किस बात का डर सता रहा है? कहीं उन्हें इस बात का अंदेशा तो नहीं कि जसवंत सिंह उनका कच्चा चिट्ठा सरेआम न कर दें. सर्वशिक्षा अभियान से जुड़ी भारत सरकार की बेहद अहम योजना मिड डे मील को देश के छह राज्यों में संचालित करने वाली अंतरराष्ट्रीय धार्मिक संस्था इस्कॉन के एनजीओ अक्षयपात्र से उनका क्या नाता है?
जसवंत सिंह पब्लिक अकाउंट कमेटी के चेयरमैन का पद छोड़ दें, इसकी ख़ातिर लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली सरीख़े नेता सारी ज़ोर आज़माइश कर चुके हैं.
इस्कॉन के बंगलुरु के प्रभारी मधु पंडित दास से अनंत कुमार के प्रगाढ़ रिश्तों की कहानी क्या है? अनंत कुमार की पत्नी तेजस्विनी द्वारा संचालित एनजीओ अदम्य चेतना के बेहद तेज़ी से प्रचार-प्रसार का राज़ क्या है? इसका ख़ुलासा न हो जाए? मिड डे मील के बहाने किस क़दर परिवार कल्याण किया जा रहा है, इस बाबत जनता को पता न चल जाए. यानी कि पहले इस्कॉन बंगलुरु की संस्था अक्षयपात्र और फिर पारिवारिक संस्था अदम्य चेतना के लिए अपने राजनीतिक रसूख़ का इस्तेमाल. दरअसल, सच यही है. अनंत कुमार इन दिनों इसी जद्दोज़ेहद में हैं कि बस किसी भी तरह जसवंत सिंह पब्लिक अकाउंट कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्ती़फा दे दें ताकि उनका रहस्य बरक़रार रह सके. पर जसवंत हैं कि इस्ती़फा देने का नाम नहीं ले रहे. वे अड़े हुए हैं. जसवंत के इस रुख़ ने न स़िर्फ अनंत कुमार बल्कि कई दिग्गज़ भाजपा नेताओं की नींद उड़ा रखी है.
जसवंत सिंह पब्लिक अकाउंट कमेटी के चेयरमैन का पद छोड़ दें, इस ख़ातिर लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरूण जेटली सरीख़े नेता सारी ज़ोर-आज़माइश कर चुके. पर  जसवंत सिंह वैधानिक तौर पर इस पद पर क़ाबिज़ हैं, लिहाज़ा उन पर कोई ज़ोर नहीं चल पा रहा. चूंकि जसवंत सिंह को ये सारे क़िस्से पता हैं तो उनसे घबराहट होना तो लाज़िमी है. लेकिन फिलहाल जसवंत सिंह अपना बड़प्पन दिखाने के मूड में हैं. उन्होंने इस मसले पर बिल्कुल चुप्पी साध रखी है. अपनी ज़ुबान खोलने के लिए शायद उन्हें सही व़क्त का इंतज़ार है. हालांकि, एक वो व़क्त भी था जब अनंत कुमार, जसवंत सिंह को बाइज़्ज़त ले गए थे अपनी संस्था का निरीक्षण कराने. जसवंत को संस्था के कामकाज़ में कुछ ख़ामियां भी नज़र आई थीं. उन्होंने अनंत कुमार और उनकी पत्नी को बेहतर कामकाज़ के कुछ सुझाव भी दिए थे. ज़ाहिर है, अनंत कुमार ने उस सलाह पर अमल करना मुनासिब नहीं समझा.
अगर जसवंत की सलाह उनके लिए अहमियत रखती तो अदम्य चेतना के जोधपुर स्थित किचेन में जानलेवा लापरवाही नहीं बरती जाती.
तो क्या भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार और मिड डे मिल घोटाले में भी कोई रिश्ता है? मिड डे मिल के तहत बच्चों को जो सड़ा-गला खाना मिल रहा है, क्या इसमें अनंत कुमार की भी भूमिका है? क्या अनंत कुमार देश के ग़रीब बच्चों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं? क्या भाजपा का एक राष्ट्रीय स्तर का नेता महज़ अपने फायदे के लिए समाजसेवा की आड़ में इतना बड़ा गुनाह कर सकता है?
अनंत कुमार देश की एक नामचीन स्वयंसेवी संस्था अदम्य चेतना के मुख्य संरक्षक हैं. उनकी पत्नी तेजस्विनी अनंत कुमार अदम्य चेतना की लाइफ टाइम ट्रस्टी हैं. अदम्य चेतना मिड डे मिल के तहत बेंगलुरु, हुबली, गुलबर्गा और जोधपुर के हज़ारों स्कूलों के लाखों बच्चों को दोपहर का खाना खिलाती है. संस्था का यह दावा है कि वह अपने आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित रसोई में बेहद साफ सफाई के साथ तैयार लजीज़ खाना स्कूली बच्चों को परोसती है. बच्चों को पौष्टिक खाना मिले इसके लिए हर दिन खाने का अलग मेन्यू तय किया गया है.
पर सच्चाई इससे कहीं अलग है. पिछले दिनों संस्था के जोधपुर स्थित सेंट्रल किचन के नागौर रोड के निजी गोदाम में जब ज़िला रसद अधिकारी विजय पाल सिंह और सीएमएचओ गोपाल चौधरी ने छापा मारा तो वे यह देख कर हैरान रह गए कि वहां तीन हज़ार चालीस प्लास्टिक के कट्टों के बीच रखे  २४० कट्टों में रखा गेहूं बिल्कुल ही सड़ा-गला था. कुछ कट्टों में सिर्फ धूल और मिट्टी भरे थे, तो कुछ में बदबूदार दलिया रखा हुआ था. स्वास्थ्य विभाग के फूड इंस्पेक्टर मूलचंद व्यास ने बताया कि अगर इस गेहूं से बने खाद्य पदार्थ स्कूली बच्चों को परोस दिए जाते तो किसी भी अनहोनी से इंकार नहीं किया जा सकता था.
अदम्य चेतना संस्था के प्रतिनिधियों के मुताबिक इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं हैं. यह राजस्थान फूड कॉरपोरेशन (आरएफसी) की ख़ामी है जो गेहूं की आपूर्ति करती है. पहले भी ऐसे गेहूं की आपूर्ति हुई है जिसे वे लोग लौटा चुके हैं. पर इतना कह देने से क्या अदम्य चेतना के प्रतिनिधि अपनी ज़िम्मेदारियों से बच जाएंगे? अगर पहले भी सड़े-गले गेहूं की सप्लाई हुई है तो उन्होंने संबंधित अधिकारियों को इस बात की ख़बर क्यों नहीं दी?
अगर उनकी नीयत सही थी तो उन्होंने अपनी शिकायत पहले ही दर्ज़ क्यों नहीं कराई? अगर संस्था वालों ने पहले ख़राब गेहूं को लौटा दिया था तो मिड-डे मिल के नाम पर स्कूलों में बच्चों के सामने क्या परोसा? सवाल बहुतेरे हैं. जाहिर है संस्था का कामकाज़ शक के दायरे में है. और उसका स्तरहीन कामकाज़ सीएजी (कैग) की निगाह में भी है. कैग ने इस बाबत अपनी आडिट रिपोर्ट में कड़ी टिप्पणी भी की है.
कर्नाटक के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शिव कुमार आरोप लगाते हैं कि अनंत कुमार की तथाकथित स्वयंसेवी संस्था अदम्य चेतना भी इस्कान की ही राह चल रही है. लोकसभा चुनावों के दरम्यान भी अनंत कुमार की समाज सेवा पर प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने कई सवाल उठाए थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि मिड डे मिल योजना है तो राज्य सरकार का कार्यक्रम, पर इसके ज़रिए बीजेपी स्टेट प्रेसीडेंट अनंत कुमार अपने राजनीतिक मक़सद को पूरा कर रहे हैं. वे अपना वोट बैंक बढा रहे हैं.
बहरहाल, इसके पीछे की जो कहानी सामने आई है वो ये कि सन्‌ 1998 में जब अनंत कुमार एनडीए सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री थे तब उन्होंने अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कर्नाटक में मिड डे मिल को राज्य में लागू कराने का काम अपनी स्वयंसेवी संस्था अदम्य चेतना को दिला दिया. अदम्य चेतना की स्थापना 1997 में की गई थी. इस संस्था के संरक्षक अनंत कुमार हैं. जबकि इसका संचालन उनकी पत्नी तेजस्विनी अनंत कुमार करती हैं. संस्था ने अपने कामकाज़ की शुरूआत बेंगलुरू से की, पर धीरे-धीरे इसने पूरे राज्य में अपना साम्राज्य फैला लिया. देश में उनकी सरकार थी और अनंत कुमार दिग्गज नेताओं में शुमार होते थे. फिर वे पर्यटन, खेल और युवा मामलों के मंत्री भी बने. जाहिर है सरकारी तंत्र पर उनकी ज़बरदस्त पकड़ थी, जिसका अनंत कुमार ने जमकर फायदा उठाया और अपनी स्वयंसेवी संस्था अदम्य चेतना का प्रसार अन्य राज्यों में भी कर लिया. राजस्थान में जब भाजपा की सरकार बनी और वसुंधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री बनीं तो जोधपुर में राजकीय समारोह की तरह अदम्य चेतना के कार्यक्रमों का शुभारंभ हुआ और स्वयं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने अनंत कुमार, उनकी पत्नी तेजस्विनी और उनकी संस्था का महिमा मंडन करते हुए इसका उद्‌घाटन किया. और इस क्षण के अज़ीम गवाह बने मान्यवर लालकृष्ण आडवाणी. वैसे लालकृष्ण आडवाणी की छत्रछाया अनंत कुमार की संस्था पर हमेशा से बनी रही है.
कर्नाटक में भाजपा की सरकार अदम्य चेतना को भरपूर सरकारी सहयोग उपलब्ध कराती है. राजस्थान की वसुंधरा सरकार  भी अदम्य चेतना के राजस्थान में फलने-फुलने में सहभागी रही. जब तक वसुंधरा राजे गद्दी पर रहीं, तब तक अदम्य चेतना का कामकाज़ धडल्ले से चलता रहा. अनंत कुमार की संस्था मिड डे मिल के नाम पर बच्चों को पौष्टिक खाना परोस रही है या कीड़े-मकोड़ों भरा भोजन. शिकायतें मिलने के बावज़ूद किसी ने ध्यान देने की ज़रूरत नहीं समझी. पर जब महारानी का शासन गया और कांग्रेस की सरकार बनी तब उन्हीं शिकायतों के आधार पर छापेमारी कर इस घोटाले का खुलासा किया गया. अगर जसवंत की सलाह उनके लिए अहमियत रखती तो अदम्य चेतना के जोधपुर स्थित किचन में जानलेवा लापरवाही नहीं बरती जाती.
तो क्या भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार और मिड डे मील घोटाले में भी कोई रिश्ता है? मिड डे मील के तहत बच्चों को जो सड़ा-गला खाना मिल रहा है, क्या इसमें अनंत कुमार की भी भूमिका है? क्या अनंत कुमार देश के ग़रीब बच्चों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं? क्या भाजपा का एक राष्ट्रीय स्तर का नेता महज़ अपने फायदे के लिए समाजसेवा की आड़ में इतना बड़ा ग़ुनाह कर सकता है? अनंत कुमार देश की एक नामचीन स्वयंसेवी संस्था अदम्य चेतना के मुख्य संरक्षक हैं. उनकी पत्नी तेजस्विनी अनंत कुमार अदम्य चेतना की लाइ़फटाइम ट्रस्टी हैं. अदम्य चेतना मिड डे मील के तहत बंगलुरु, हुबली, गुलबर्गा और जोधपुर के हज़ारों स्कूलों के लाखों बच्चों को दोपहर का खाना खिलाती है. संस्था का यह दावा है कि वह अपने आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित रसोई में बेहद सा़फ—स़फाई के साथ तैयार लजीज़ खाना स्कूली बच्चों को परोसती है. बच्चों को पौष्टिक खाना मिले इसके लिए हर दिन खाने का अलग मेन्यू तय किया गया है. पर सच्चाई इससे कहीं अलग है. पिछले दिनों संस्था के जोधपुर स्थित सेंट्रल किचन के नागौर रोड के निजी गोदाम में जब ज़िला रसद अधिकारी विजय पाल सिंह और सीएमएचओ गोपाल चौधरी ने छापा मारा तो वे यह देख कर हैरान रह गए कि वहां तीन हज़ार चालीस प्लास्टिक के कट्टों के बीच रखे 540 कट्टों में रखा गेहूं बिल्कुल ही सड़ा-गला था. कुछ कट्टों में स़िर्फ धूल और मिट्टी भरी थी, तो कुछ में बदबूदार दलिया रखा हुआ था. स्वास्थ्य विभाग के फूड इंस्पेक्टर मूलचंद व्यास ने बताया कि अगर इस गेहूं से बने खाद्य पदार्थ स्कूली बच्चों को परोस दिए जाते तो किसी भी अनहोनी से इंकार नहीं किया जा सकता था.
अदम्य चेतना संस्था के प्रतिनिधियों के मुताबिक़ इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं हैं. यह राजस्थान फूड कॉरपोरेशन (आरएफसी) की ख़ामी है, जो गेहूं की आपूर्ति करती है. पहले भी ऐसे गेहूं की आपूर्ति हुई है जिसे वे लोग लौटा चुके हैं. पर इतना कह देने से क्या अदम्य चेतना के प्रतिनिधि अपनी ज़िम्मेदारियों से बच जाएंगे? अगर पहले भी सड़े-गले गेहूं की सप्लाई हुई है तो उन्होंने संबंधित अधिकारियों को इस बात की ख़बर क्यों नहीं दी? अगर उनकी नीयत सही थी तो उन्होंने अपनी शिकायत पहले ही दर्ज़ क्यों नहीं कराई? अगर संस्था वालों ने पहले ख़राब गेहूं को लौटा दिया था तो मिड-डे मील के नाम पर स्कूलों में बच्चों के सामने क्या परोसा? सवाल बहुतेरे हैं. ज़ाहिर है, संस्था का कामकाज़ शक़ के दायरे में है. और उसका स्तरहीन कामकाज़ सीएजी (कैग) की निगाह में भी है. कैग ने इस बाबत अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कड़ी टिप्पणी भी की है. कर्नाटक के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शिव कुमार आरोप लगाते हैं कि अनंत कुमार की तथाकथित स्वयंसेवी संस्था अदम्य चेतना भी इस्कॉन की ही राह चल रही है.
लोकसभा चुनावों के दरम्यान भी अनंत कुमार की समाज सेवा पर प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने कई सवाल उठाए थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि मिड डे मील योजना है तो राज्य सरकार का कार्यक्रम, पर इसके ज़रिए बीजेपी स्टेट प्रेसीडेंट अनंत कुमार अपने राजनीतिक मक़सद को पूरा कर रहे हैं. वे अपना वोट बैंक बढ़ा रहे हैं.
बहरहाल, इसके पीछे की जो कहानी सामने आई है वो ये कि सन्‌ 1998 में जब अनंत कुमार एनडीए सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री थे तब उन्होंने अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कर्नाटक में मिड डे मील को राज्य में लागू कराने का काम अपनी स्वयंसेवी संस्था अदम्य चेतना को दिला दिया. अदम्य चेतना की स्थापना 1997 में की गई थी. इस संस्था के संरक्षक अनंत कुमार हैं. जबकि इसका संचालन उनकी पत्नी तेजस्विनी अनंत कुमार करती हैं. संस्था ने अपने कामकाज़ की शुरुआत बंगलुरु से की, पर धीरे-धीरे इसने पूरे राज्य में अपना साम्राज्य फैला लिया. देश में उनकी सरकार थी और अनंत कुमार दिग्गज नेताओं में शुमार होते थे. फिर वे पर्यटन, खेल और युवा मामलों के मंत्री भी बने. ज़ाहिर है, सरकारी तंत्र पर उनकी ज़बरदस्त पकड़ थी, जिसका अनंत कुमार ने जमकर फायदा उठाया और अपनी स्वयंसेवी संस्था अदम्य चेतना का प्रसार अन्य राज्यों में भी कर लिया.
राजस्थान में जब भाजपा की सरकार बनी और वसुंधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री बनीं तो जोधपुर में राजकीय समारोह की तरह अदम्य चेतना के कार्यक्रमों का शुभारंभ हुआ और स्वयं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने अनंत कुमार, उनकी पत्नी तेजस्विनी और उनकी संस्था का महिमा मंडन करते हुए इसका उद्‌घाटन किया और इस क्षण के अज़ीम गवाह बने मान्यवर लालकृष्ण आडवाणी. वैसे लालकृष्ण आडवाणी की छत्रछाया अनंत कुमार की संस्था पर हमेशा से बनी रही है. कर्नाटक में भाजपा की सरकार अदम्य चेतना को भरपूर सरकारी सहयोग उपलब्ध कराती है. राजस्थान की वसुंधरा सरकार भी अदम्य चेतना के राजस्थान में फलने-फूलने में सहभागी रही. जब तक वसुंधरा राजे गद्दी पर रहीं, तब तक अदम्य चेतना का कामकाज़ धड़ल्ले से चलता रहा.
अनंत कुमार की संस्था मिड डे मील के नाम पर बच्चों को पौष्टिक खाना परोस रही है या कीड़े-मकोड़ों भरा भोजन. शिकायतें मिलने के बावजूद किसी ने ध्यान देने की ज़रूरत नहीं समझी. पर जब महारानी का शासन गया और कांग्रेस की सरकार बनी तब उन्हीं शिकायतों के आधार पर छापेमारी कर इस घोटाले का ख़ुलासा किया गया.
मिड डे मील के बहाने इस्कॉन का घोटाला
मिड डे मील के नाम पर इस्कॉन विदेशों में व्यवसायिक प्रतिनिधियों की नियुक्तिकर ज़बरदस्त तरीक़ेसे चंदा उगाही कर रहा है. इसके लिए इस्कॉन भारत की ग़रीबी और भुखमरी को ज़रिया बना रहा है. इस्कॉन के प्रतिनिधि विश्व भर के लोगों को यह समझाने में जुटे हैं कि भारत में लोग भूख से मर रहे हैं. अनाज की कमी ने भारत में तबाही मचा रखी है. यहां की सरकार इतनी नाकारा है कि इन मुश्किलों से वह निबट ही नहीं सकती. अगर विश्व के अन्य देशों ने इस काम में इस्कॉन की मदद नहीं की तो हालात बेक़ाबू हो जाएंगे. कर्नाटक की भाजपा सरकार बंगलुरु के इस्कॉन मंदिर के इस कारनामे से भलीभांति वाक़ि़फ हैं. पर बजाय इस्कॉन पर कोई लगाम लगाने के कर्नाटक की भाजपा सरकार उसे खुलकर शह दे रही है. यही वजह है प्रदेश में विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस पार्टी ने इस्कॉन की इस हरकत के विरोध में ख़ूब धरना प्रदर्शन किया, विधानसभा में सवाल उठाए गए, जमकर हंगामा हुआ. पर कर्नाटक की भाजपा सरकार कान मे तेल डाले सोई रही. राज्य सरकार से निराश कांग्रेस अब इस्कॉन के इस घोटाले की सीबीआई जांच की मांग कर रही है.
कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार सा़फतौर पर आरोप लगाते हैं कि इस्कॉन बंगलुरु को भाजपा सरकार का वरदहस्त है. भाजपा के बड़े-बड़े नेता इस्कॉन बंगलुरु के अध्यक्ष मधु पंडित दास की सेवा में हाज़िर
रहते हैं. ये अनंत कुमार सरीख़े भाजपा के नेता ही हैं जिनकी बदौलत इस्कॉन देश के छह राज्यों में मिड डे मील योजना पर क़ब्ज़ा कर बैठा है और सरकार द्वारा मिड डे मील योजना मद में जारी सहायता राशि का पूरी तरह  बेजा इस्तेमाल कर रहा है. स़िर्फ इतना ही नहीं, बल्कि इस्कॉन अपनी झोली भरने के लिए ग़लत तरीक़े भी अख्तियार कर रहा है. वह विश्व भर में भारत की ग़रीबी और भुखमरी की नुमाईश कर रहा है. भारत के ग़रीब बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने के नाम पर दुनिया भर से चंदे के रूप में पैसे वसूल रहा है. बग़ैर इस बात का ज़िक्र किए कि मिड डे मील के लिए भारत सरकार भी पूरी सहायता राशि उपलब्ध करा रही है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में भी इन स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा की जा रही गड़बड़ियों का सा़फतौर पर ज़िक्र है.
शिवकुमार बताते हैं कि इस्कॉन विश्व भर से भारत में चल रही इस परियोजना के नाम पर 55 से 60 लाख रुपए की उगाही हर महीने कर रहा है. फिलहाल अक्षयपात्र लगभग दस लाख बच्चों को मिड डे मील के तहत भोजन उपलब्ध करा रहा है. इस्कॉन प्रति बच्चे के नाम पर छह रुपए बतौर डोनेशन वसूलता है. मतलब ये कि सालाना वसूली की कुल राशि 117 करोड़ रुपए के आसपास हो जाती है. शिव कुमार कहते हैं कि यह पूरी राशि बंगलुरु के इस्कॉन के अध्यक्ष मधु पंडित दास की जेब में जाती है. अक्षयपात्र की शुरुआत भी मधु पंडित ने अपने सहयोगी और बंगलुरु इस्कॉन के उपाध्यक्ष चुचलपथी दास के साथ की थी. ये दोनों अक्षयपात्र के आजीवन अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी बन गए. मिड डे मील के नाम पर भारत सरकार से जो अनाज अक्षयपात्र को मिलता है वह काले बाज़ार में बेच दिया जाता है. वेबसाइट, डोनेशन फॉर्म, प्रोमोशनल लिटरेचर के मा़र्फत फंड इकट्ठा किया जाता है. जिन देशों से वह भारत की ग़रीबी हटाने के नाम पर सहायता मांगता है, उनसे इस बात की चर्चा तक नहीं करता कि भारत सरकार इस परियोजना के लिए बड़े पैमाने पर अनुदान जारी करती है. इस क्षेत्र में काम करने वाली अन्य जितनी भी स्वयंसेवी संस्थाएं उनमें से किसी ने भी इस तरह चंदा उगाही करने की ख़ातिर अपने प्रतिनिधियों को नहीं रखा है. सरकार जो पैसा देती है वह मिड डे मील योजना के परिचालन के लिए पर्याप्त है. फिर क्यों हर जगह होर्डिंग और बैनर लगा कर इस्कॉन ग़रीब बच्चों की भूख मिटाने के लिए मदद की अपील करता है. सरकार इस मद में जितना अनाज आवंटित करती है उससे सैकड़ों टन ज़्यादा अनाज की मांग सरकार से क्यों करता है? जबकि इस काम में लगे दूसरे एनजीओ कहते हैं कि सरकार द्वारा दिया गया अनाज इतना ज़्यादा होता है कि उसका एक बड़ा हिस्सा बच जाता है. जिसे स्वयंसेवी संस्थाएं सरकार को वापस कर देती हैं. दिसंबर 2007 में बंगलुरु इस्कॉन मंदिर के गेट पर कालाबाज़ारी के लिए जा रहा ट्रक पकड़ा भी गया था. इस्कॉन की इस धांधली के ख़िला़फ प्रदेश कांग्रेस ने पिछले दिनों ज़ोरदार अभियान भी चलाया था, जिसके तहत राज्य व्यापी धरना—प्रदर्शन किया गया.  शिवकुमार बताते हैं कि बंगलुरु शहर का हर आदमी जानता है कि मधु पंडित मिड डे मील के नाम पर जमा की गई राशि को रियल एस्टेट के धंधे में निवेश करते हैं.
इस्कॉन बंगलुरु में 35 एकड़ निजी भूमि पर आवासीय और व्यवसायिक इमारतें बना रहा है. जबकि सरकार द्वारा आवंटित 28 एकड़ ज़मीन पर महत्वाकांक्षी कृष्ण लीला पार्क बना रहा है. हालांकि, मधु पंडित दास शिवकुमार पर उल्टा आरोप लगाते हैं कि उनकी निगाह निजी ज़मीन पर थी. जब उन्हें नहीं मिली तो उन्होंने इस्कॉन पर ग़लत इल्ज़ाम लगाने शुरू कर दिए. मधु पंडित दास कहते हैं कि उन्होंने ज़मीन की पूरी क़ीमत सरकार को दी है. निजी ज़मीन को एक करोड़ रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से ख़रीदा है. शिवकुमार इस बात को मानते हैं कि वे बिल्डर भी हैं . वे कहते हैं कि एक राजनीतिज्ञ का बिल्डर होना ग़लत नहीं है, पर एक धार्मिक संस्था के फायदे के लिए इमारत बना कर बेचना ग़ुनाह है.
बहरहाल, इस्कॉन भारतीय बच्चों का पेट भरने के नाम पर जो कुछ भी कर रहा है, उसकी जांच होनी निहायत ज़रूरी है. बंगलुरु इस्कॉन ग़ुनाह कर रहा है या नहीं पर वह अपनी जेब भरने के लिए विश्व भर में हमारे देश को शर्मिंदा ज़रूर कर रहा है.
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