Ruby Arun

Monday 18 June 2012

राह भटक गया नक्सलवाद......रूबी अरुण


राह भटक गया नक्सलवाद


…….राह भटक गया नक्सलवाद
……नक्सली संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं का संगठन के पुरूष सदस्यों द्वारा बर्बर तरीके से शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है. यौन प्रताड़ना से कहीं वे गर्भवती न हो जाएं इसकी ख़ातिर जबरन उनकी नसबंदी करा दी जाती है. यही नहीं, गांव गांव में फैले उनके एजेंट लंबी-चौड़ी कद काठी की लड़कियों की तलाश कर उन्हें बहला फुसला कर या फिर जबरन संगठन में शामिल कर लेते हैं. यह दौर सालों से जारी है. अकेली ललिता ही इस भयानक यंत्रणा की शिकार नहीं है. उसके जैसी सैकड़ों ललिताएं हैं जिन्होंने भूख और ग़रीबी से लोहा लेने और बंदूक की ज़ोर पर शोषक दुनिया को बदलने का सपना लिए रक्त क्रांति की दुनिया में प्रवेश किया.
……अपनी लड़ाई को जनांदोलन का रूप देने के लिए नक्सलियों ने यह तय किया था कि संगठन में महिलाओं की 40 ़फीसदी भागीदारी रहेगी. इस पर अमल भी किया गया. जोशो—ख़रोश से महिलाएं शामिल भी हुईं. पर सामाजिक लड़ाई में सहभागी बनाने के बजाय उनकी इज़्ज़त से ही खेल शुरू हो गया. अब इस ख़ूनी आंदोलन में शरीक महिला नक्सली संगठन छा़ेड़ कर भाग रही हैं, या फिर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दे रही हैं. समाज को बदल देने का सपना अब उनकी आंखों में नहीं पलता.
नक्सलवादी संगठन की सदस्य रह चुकी 29 साल की गीता दिल्ली के जंतर—मंतर के पास की एक दुकान पर बरतन धोने का काम करती है. गीता को सिफलिस है. झारखंड के दुमका की रहने वाली गीता भी सामंतवादियों से बदला लेने का सपना संजोए इस क्रांति में शामिल हुई थी. वह बताती है कि संगठन में रहते हुए उसके सपने तो सच नहीं हुए, अलबत्ता संगठन के कमांडर सहित अन्य सदस्यों ने अपनी हवस पूरी करने की ख़ातिर उसका इतना यौन उत्पीड़न किया कि वह सिफलिस की शिकार बन गई. आखिरकार एक दिन वह छिपते—छुपाते अपने एक साथी की मदद से भाग कर दिल्ली आ गई. बंदूक के दम पर दुनिया को बदलने का सपना ग़ायब हो चुका है. बची है तो बस दो व़क्त की रोटी की ़िफक्र. राजनांदगांव की रहने वाली 17 साल की ललिता एड्‌स की शिकार है. रांची के एक सरकारी अस्पताल में पिछले चार महीने से वह आधी बेहोशी में विक्षिप्त सी पड़ी है. उसकी देखभाल करने के नाम पर उसकी मां गोदावरी तो है पर लाचारी,ग़रीबी और उपेक्षा ने उसे भी जर्जर बना दिया है. दरअसल, ललिता की यह दिल दहला देने वाली हालत रक्त क्रांति के सेक्स क्रांति में तब्दील हो जाने का नतीजा है. ललिता देवकी दलम नाम के नक्सली संगठन की सदस्य थी. छत्तीसगढ़ के नक्सल कमांडर बुधु बेतलू की विधवा सोनू गावड़े की ज़िंदगी भी नरक बन चुकी है. दलम कमांडर बुधु की मौत के बाद संगठन के सदस्यों ने 24 साल की सोनू गावड़े के साथ महीनों दुष्कर्म किया. आख़िरकार गावड़े ने ख़ुद को  पुलिस के हवाले कर दिया. गावड़े ने पुलिस को बताया कि नक्सली संगठन में एक—एक महिला के साथ पांच—छह पुरुष ज़बरदस्ती करते हैं. इंकार करने पर उनके साथ जानवरों सरीखा व्यवहार होता है. नक्सली संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं का संगठन के पुरुष सदस्यों द्वारा बर्बर तरीक़े से शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है. यौन प्रताड़ना से कहीं वे गर्भवती न हो जाएं इसकी ख़ातिर जबरन उनकी नसबंदी करा दी जाती है. यही नहीं, गांव गांव में फैले उनके एजेंट लंबी-चौड़ी कद काठी की लड़कियों की तलाश कर उन्हें बहला फुसला कर या फिर ज़बरन संगठन में शामिल कर लेते हैं. यह दौर सालों से जारी है. अकेली ललिता ही इस भयानक यंत्रणा की शिकार नहीं है. उसके जैसी सैकड़ों ललिताएं हैं जिन्होंने भूख और ग़रीबी से लोहा लेने और बंदूक की ज़ोर पर शोषक दुनिया को बदलने का सपना लिए रक्त क्रांति की दुनिया में प्रवेश किया. उन्हें लगा कि अपने विद्रोही तेवरों से वे दुनिया का रुख़ मोड़ देंगी. हालांकि, संगठन में शामिल होने के बाद उनकी ज़िंदगी का ही रुख़ बदल गया.
असुरक्षित और असामान्य सेक्स की वज़ह से नक्सलियों में एचआईवी वायरस तेज़ी से पैर पसार रहा है. इसकी वज़ह से कई नक्सलियों की मौतें भी हुई हैं. जंगलों में छुपने और भागते फिरने से नक्सलियों का इलाज भी नहीं हो पाता. फलतः वे इस भयावह बीमारी का प्रसार करने का ज़रिया बन जाते हैं. गढचिरौली के एसपी रह चुके राजेश प्रधान बताते हैं कि उनके सामने कई महिला गुरिल्लाओं ने इसीलिए आत्मसमर्पण कर दिया क्योंकि वे संगठन में अपने साथ हो रहे यौन उत्पीड़न से तंग आ चुकी थीं. संगठन में उनके साथ बंदूक की नोक पर बलात्कार किया जाता था.
चंपा, बबीता, आरती, शांति और संगीता पीडब्लूजी और एमसीसी की सदस्याएं हैं. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश—इन चार राज्यों की पुलिस इनके ख़ूनी कारनामों से भय खाती थी. पर इनके साथ भी संगठन में जिस कदर यौनाचार होता था, वह दिल को दहलाने वाला है. उत्तर प्रदेश, बिहार—झारखंड सब जोनल कमेटी में ़िफलहाल 750 से ज़्यादा महिला सदस्य हैं. लगभग, सबकी व्यथा एक जैसी ही है. इसी साल फरवरी में एक ख़बर अख़बार की सुर्ख़ियां बनी थी. जिसमें बबीता और चंपा नाम की महिला काडरों के नाम का ज़िक्र था.
चंपा ने जब अपने साथियों को इंकार करना शुरू किया तो उसकी बेरहमी से पिटाई की गई. जबकि बबीता ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस व़क्त वह गर्भवती थी. जेल में ही उसने बच्चे को जन्म दिया. नक्सलियों के कुकर्मों से वो इतनी आजिज़ आ चुकी थी कि उसने अपने नवजात बच्चे को जेल के शौचालय में मिट्टी के घड़े में बंद कर मार डाला.
नक्सलवादी आंदोलन के नाम पर हर नाजायज़ व ग़ैर-क़ानूनी काम कर रहे हैं. नक्सलवादी आंदोलन के जनक कानू सान्याल नक्सलियों के इस नैतिक पतन और हवस को क्रांति कतई नहीं मानते . वे साफ कहते हैं कि आंदोलन अपना रास्ता भटक चुका है. कानू सान्याल नक्सलियों के इस पतन से बेहद दुखी हैं. उन्होंने इस बाबत कुछ नक्सली नेताओं से बात भी की है. उसके बाद इस सिलसिले में कुछ नए क़ानून भी बनाए गए हैं. ताकि महिला नक्सलियों का शोषण न हो सके. इस कड़ाई के बावज़ूद महिला नक्सलियों पर अपने ही साथियों का क़हर जारी है.
संगठन में शोषित, सरकार के लिए मुसीबत
शोषित और प्रताड़ित होने के बावज़ूद ये महिला नक्सली देश और सरकार के लिए खतरा बनी हुई हैं. नक्सली हमला हो या पुलिस से मुठभेड़. ये पुरूषों के मुक़ाबले ज़्यादा उग्रता और तीव्रता से टूट पड़ती हैं. नक्सली संगठन भी इनका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. महिला नक्सलियों को आतंकवादियों की तर्ज़ पर ट्रेनिंग दी जा रही है. रॉ से मिली जानकारी के मुताबिक देश भर से सैन्य कद-काठी की चुनिंदा आदिवासी युवतियों को आंध्र प्रदेश के जंगलों में अत्याधुनिक हथियार चलाने और पुलिस से मुक़ाबला करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इन्हें छापामार युद्ध प्रणाली में भी पारंगत किया जा रहा है. उड़ीसा के दक्षिण—पश्चिम क्षेत्र के डीआईजी संजीव पांडा ने बताया कि प्रशिक्षण पाने वाली महिला नक्सलियों को दो समूहों में बांटा गया है. पहला समूह ख़ु़िफया जानकारी जुटाता है जबकि दूसरा हमले करता है.  ट्रेनिंग पाने वाली महिला माओवादी अपने पुरूष समकक्षों से ज़्यादा ख़तरनाक और कुशल हैं. मुश्किल तो यह है कि इन महिला माआवादियों की शिनाख्त में भी परेशानी होती है. पुरूषों की तुलना में ये संगठन के प्रति ज़्यादा व़फादार होती हैं. इसके अलावा ये पुरुषों की तुलना में लोगों से ज़्यादा आसानी से घुलमिल जाती हैं. सूचनाएं निकाल लेती हैं. हथियारों और अन्य आपत्तिजनक वस्तुओं के साथ धड़ल्ले से एक जगह से दूसरी जगह आ-जा सकती हैं. लिहाज़ा नक्सलवादी संगठन नक्सली हमलों में भी इनका ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. पिछले दिनों झारखंड, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों में जितनी भी नक्सली वारदातें हुई हैं, उनमें महिला नक्सलियों ने बढ़-चढ़ कर भागीदारी की है. छत्तीसगढ़ में नक्सल मामलों के डीआईजी पवन देव ने बताया कि पुरूष नक्सलियों की अपेक्षा महिला नक्सलियों से जूझना पुलिस बलों के लिए के लिए ज़्यादा चुनौती भरा है, क्योंकि ये बेहद आसानी से भीड़ में घुलमिल जाती हैं. बस्तर, दंतेवाड़ा, रायगढ़ ज़िले में इनका ज़्यादा बोलबाला है.  पुलिस से बचने और सुरक्षित ठिकाने की गरज़ से उड़ीसा और आंध्र प्रदेश की सीमा पर स्थित जंगलों में इनका बड़ा ठिकाना है.
महिला बटालियन करेगी महिला
नक्सलियों का सफाया
महिला नक्सलियों के ख़ात्मे के लिए महिला बटालियन और एटीएस यानी आतंकनिरोधी दस्ता मिल कर काम करेंगे. नक्सल ऑपरेशन में इनका काम अचूक हो, इसकी ख़ातिर इन्हें अम्लेश्वर महादेव घाट के कमांडो ट्रेनिंग और जंगल वार में प्रशिक्षित किया जाएगा. बुलेटप्रूफ जैकेट और सैटेलाइट फोन के साथ इन्हें हाईटेक किया जा रहा है. ऊंची जगहों पर सुरक्षा बलों का आपसी संपर्क टूट जाता है. जिसकी वजह से वे ज़रूरत के व़क्त अपने अन्य साथियों को मदद के लिए नहीं बुला पाते और नक्सलियों के हाथों अपनी जान गंवा बैठते हैं. सैटेलाइट फोन से उन्हें अपने साथियों के संपर्क में लगातार रहने में मदद मिलेगी. मुठभेड़ के दौरान घने जंगलों और ऊंची पहाड़ियों पर नक्सलियों के आक्रमण से वे किस तरह ख़ुद को सुरक्षित रखें, इसकी विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है. नक्सली आमतौर पर सुरक्षाबलों को चारों ओर से घेर कर गोलीबारी शुरू कर देते हैं. इससे सुरक्षाबलों में भगदड़ मच जाती है.
छत्तीसगढ़ में महिला नक्सलियों की भारी संख्या  को देखते हुए महिला बटालियन को ख़ास तौर पर तैयार किया जा रहा है ताकि वे महिला नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दे सकें. जंगलों और पहाड़ियों पर सबसे ज़्यादा परेशानी सुरक्षा बलों को तब होती है जब वे मुठभेड़ के दौरान छुपने की सही पोजीशन नहीं बना पाते और नक्सलियों की गोलीबारी का शिकार हो जाते हैं. झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित इलाक़ों में इस तरह की दुश्वारियां नहीं आती पर छत्तीसगढ़ में जवानों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस बात को ध्यान में रख कर भी मुठभेड़ के गुर सिखाए जा रहे हैं.
महिला बटालियन को गुरिल्ला युद्ध के लिए भी प्रशिक्षित किया जा रहा है. ़िफलहाल इस ट्रेनिंग में चार सौ महिलाओं को शामिल किया गया है. आने वाले दिनों में इनकी संख्या में इजा़फा किया जाएगा. गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस योजना की रूप रेखा ख़ुद तैयार की है. वे लगातार इस मसले पर नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से विचार विमर्श कर रणनीति तैयार कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री
पी चिदंबरम का भी मानना है कि नक्सलवाद हमारे देश
में आतंकवाद से बड़ा मसला है. इसलिए इसका ख़ात्मा हर
हाल में  ज़रूरी है. इसमें अब सरकार कोई चूक नहीं करना चाहती.
मानव रहित विमान का इस्तेमाल करेगी सेना
नक्सलियों को नेस्तनाबूद करने के लिए केंद्र सरकार अब सेना के मानवरहित विमानों का इस्तेमाल करेगी. सैन्य कार्रवाई से नक्सलियों में हड़कंप मचा हुआ है. देश के भीतर हवाई ताक़त इस्तेमाल करने और नक्सलियों तथा उग्रवादियों की धर  पकड़ करने से पूरा परिदृश्य ही बदलने लगा है. नक्सलियों के ख़िला़फ केंद्र सरकार का यह आक्रामक अभियान पूरी तरह से सैन्य अभियान है.
यह अभियान बेहतर ख़ुफिया जानकारी पर आधारित है. जिसके लिए पहली बार सेना के मध्य कमान ने नक्सलियों की गतिविधियों का पूरी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया है. लोकसभा चुनावों के दरम्यान सेना ने मणिपुर में उग्रवादियों के एक शिविर पर मानवरहित विमान से हमला कर 11 उग्रवादियों को मार गिराया था. अब केंद्र सरकार ने यह तय किया है कि नक्सल प्रभावित आठ राज्यों में वह इसी तरीक़े का इस्तेमाल करेगी. ख़ासकर दुर्गम ऊंची पहाड़ियों और बेहद घने जंगलों में. बिहार, उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की गतिविधियों की टोह लेने के लिए भी हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है. लोकसभा चुनाव के दौरान भी वायु सेना के 27 हेलीकॉप्टरों की मदद ली गई थी, जिसकी वजह से मतदान सुरक्षित तरीक़े से हो सका था. पिछले साल उड़ीसा में हुए एक बड़े नक्सली हमले में भी वायुसेना ने दो हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया था.
अब सरकार उसी योजना को बड़ा रूप दे रही है, ताकि नक्सलियों का पूरी तरह सफाया हो सके और कम से कम सुरक्षाबल हताहत हों. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर ने भी माओवादियों और उग्रवादियों से निपटने में वायुसेना का सक्रिय सहयोग देने की बाबत नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पूरा सहयोग देने की बात कही है. जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर हिस्से के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से भी सरकार ऐसे ही निपटेगी. हालांकि भौगोलिक तौर पर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ की स्थिति अलग है. नई रणनीति के तहत कुल 9000 जवानों को चुना गया है. इसके अलावा पारा मिलिट्री फोर्स की 24 अतिरिक्त बटालियनों को भी अलग से रखा गया है. बिहार में इस काम में सैप के जवानों को भी लगाया गया है.
कैबिनेट सचिव इस समस्या पर 12 सचिवों के साथ एक कमेटी बना का इस पूरी योजना को अंतिम रूप देने में लगे हैं. नक्सलियों के ख़िला़फ यह पूरा अभियान राज्यों और सैन्य बलों के पूरे तालमेल के साथ चलाया जाएगा ताकि चूक की कोई गुंजाइश न रहे. इस पूरे अभियान का नेतृत्व नवगठित शीर्ष कोबरा बल यानी कमांडो बटालियन फार रिसाल्यूट एक्शन करेगा. हालांकि विनायक सेन सरीखे समाजसेवी सरकार द्वारा की जा रही सैन्य कार्रवाई को आदिवासी समाज के लिए हितकर नहीं मानते.वे इसका यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि इससे लाखों आदिवासियों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी लेकिन सरकार अब इस पर नरम रूख़ कतई अपनाना नहीं चाहती. …….राह भटक गया नक्सलवाद
……नक्सली संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं का संगठन के पुरूष सदस्यों द्वारा बर्बर तरीके से शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है. यौन प्रताड़ना से कहीं वे गर्भवती न हो जाएं इसकी ख़ातिर जबरन उनकी नसबंदी करा दी जाती है. यही नहीं, गांव गांव में फैले उनके एजेंट लंबी-चौड़ी कद काठी की लड़कियों की तलाश कर उन्हें बहला फुसला कर या फिर जबरन संगठन में शामिल कर लेते हैं. यह दौर सालों से जारी है. अकेली ललिता ही इस भयानक यंत्रणा की शिकार नहीं है. उसके जैसी सैकड़ों ललिताएं हैं जिन्होंने भूख और ग़रीबी से लोहा लेने और बंदूक की ज़ोर पर शोषक दुनिया को बदलने का सपना लिए रक्त क्रांति की दुनिया में प्रवेश किया.
……अपनी लड़ाई को जनांदोलन का रूप देने के लिए नक्सलियों ने यह तय किया था कि संगठन में महिलाओं की 40 ़फीसदी भागीदारी रहेगी. इस पर अमल भी किया गया. जोशो—ख़रोश से महिलाएं शामिल भी हुईं. पर सामाजिक लड़ाई में सहभागी बनाने के बजाय उनकी इज़्ज़त से ही खेल शुरू हो गया. अब इस ख़ूनी आंदोलन में शरीक महिला नक्सली संगठन छा़ेड़ कर भाग रही हैं, या फिर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दे रही हैं. समाज को बदल देने का सपना अब उनकी आंखों में नहीं पलता.
नक्सलवादी संगठन की सदस्य रह चुकी 29 साल की गीता दिल्ली के जंतर—मंतर के पास की एक दुकान पर बरतन धोने का काम करती है. गीता को सिफलिस है. झारखंड के दुमका की रहने वाली गीता भी सामंतवादियों से बदला लेने का सपना संजोए इस क्रांति में शामिल हुई थी. वह बताती है कि संगठन में रहते हुए उसके सपने तो सच नहीं हुए, अलबत्ता संगठन के कमांडर सहित अन्य सदस्यों ने अपनी हवस पूरी करने की ख़ातिर उसका इतना यौन उत्पीड़न किया कि वह सिफलिस की शिकार बन गई. आखिरकार एक दिन वह छिपते—छुपाते अपने एक साथी की मदद से भाग कर दिल्ली आ गई. बंदूक के दम पर दुनिया को बदलने का सपना ग़ायब हो चुका है. बची है तो बस दो व़क्त की रोटी की ़िफक्र. राजनांदगांव की रहने वाली 17 साल की ललिता एड्‌स की शिकार है. रांची के एक सरकारी अस्पताल में पिछले चार महीने से वह आधी बेहोशी में विक्षिप्त सी पड़ी है. उसकी देखभाल करने के नाम पर उसकी मां गोदावरी तो है पर लाचारी,ग़रीबी और उपेक्षा ने उसे भी जर्जर बना दिया है. दरअसल, ललिता की यह दिल दहला देने वाली हालत रक्त क्रांति के सेक्स क्रांति में तब्दील हो जाने का नतीजा है. ललिता देवकी दलम नाम के नक्सली संगठन की सदस्य थी. छत्तीसगढ़ के नक्सल कमांडर बुधु बेतलू की विधवा सोनू गावड़े की ज़िंदगी भी नरक बन चुकी है. दलम कमांडर बुधु की मौत के बाद संगठन के सदस्यों ने 24 साल की सोनू गावड़े के साथ महीनों दुष्कर्म किया. आख़िरकार गावड़े ने ख़ुद को  पुलिस के हवाले कर दिया. गावड़े ने पुलिस को बताया कि नक्सली संगठन में एक—एक महिला के साथ पांच—छह पुरुष ज़बरदस्ती करते हैं. इंकार करने पर उनके साथ जानवरों सरीखा व्यवहार होता है. नक्सली संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं का संगठन के पुरुष सदस्यों द्वारा बर्बर तरीक़े से शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है. यौन प्रताड़ना से कहीं वे गर्भवती न हो जाएं इसकी ख़ातिर जबरन उनकी नसबंदी करा दी जाती है. यही नहीं, गांव गांव में फैले उनके एजेंट लंबी-चौड़ी कद काठी की लड़कियों की तलाश कर उन्हें बहला फुसला कर या फिर ज़बरन संगठन में शामिल कर लेते हैं. यह दौर सालों से जारी है. अकेली ललिता ही इस भयानक यंत्रणा की शिकार नहीं है. उसके जैसी सैकड़ों ललिताएं हैं जिन्होंने भूख और ग़रीबी से लोहा लेने और बंदूक की ज़ोर पर शोषक दुनिया को बदलने का सपना लिए रक्त क्रांति की दुनिया में प्रवेश किया. उन्हें लगा कि अपने विद्रोही तेवरों से वे दुनिया का रुख़ मोड़ देंगी. हालांकि, संगठन में शामिल होने के बाद उनकी ज़िंदगी का ही रुख़ बदल गया.
असुरक्षित और असामान्य सेक्स की वज़ह से नक्सलियों में एचआईवी वायरस तेज़ी से पैर पसार रहा है. इसकी वज़ह से कई नक्सलियों की मौतें भी हुई हैं. जंगलों में छुपने और भागते फिरने से नक्सलियों का इलाज भी नहीं हो पाता. फलतः वे इस भयावह बीमारी का प्रसार करने का ज़रिया बन जाते हैं. गढचिरौली के एसपी रह चुके राजेश प्रधान बताते हैं कि उनके सामने कई महिला गुरिल्लाओं ने इसीलिए आत्मसमर्पण कर दिया क्योंकि वे संगठन में अपने साथ हो रहे यौन उत्पीड़न से तंग आ चुकी थीं. संगठन में उनके साथ बंदूक की नोक पर बलात्कार किया जाता था.
चंपा, बबीता, आरती, शांति और संगीता पीडब्लूजी और एमसीसी की सदस्याएं हैं. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश—इन चार राज्यों की पुलिस इनके ख़ूनी कारनामों से भय खाती थी. पर इनके साथ भी संगठन में जिस कदर यौनाचार होता था, वह दिल को दहलाने वाला है. उत्तर प्रदेश, बिहार—झारखंड सब जोनल कमेटी में ़िफलहाल 750 से ज़्यादा महिला सदस्य हैं. लगभग, सबकी व्यथा एक जैसी ही है. इसी साल फरवरी में एक ख़बर अख़बार की सुर्ख़ियां बनी थी. जिसमें बबीता और चंपा नाम की महिला काडरों के नाम का ज़िक्र था.
चंपा ने जब अपने साथियों को इंकार करना शुरू किया तो उसकी बेरहमी से पिटाई की गई. जबकि बबीता ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस व़क्त वह गर्भवती थी. जेल में ही उसने बच्चे को जन्म दिया. नक्सलियों के कुकर्मों से वो इतनी आजिज़ आ चुकी थी कि उसने अपने नवजात बच्चे को जेल के शौचालय में मिट्टी के घड़े में बंद कर मार डाला.
नक्सलवादी आंदोलन के नाम पर हर नाजायज़ व ग़ैर-क़ानूनी काम कर रहे हैं. नक्सलवादी आंदोलन के जनक कानू सान्याल नक्सलियों के इस नैतिक पतन और हवस को क्रांति कतई नहीं मानते . वे साफ कहते हैं कि आंदोलन अपना रास्ता भटक चुका है. कानू सान्याल नक्सलियों के इस पतन से बेहद दुखी हैं. उन्होंने इस बाबत कुछ नक्सली नेताओं से बात भी की है. उसके बाद इस सिलसिले में कुछ नए क़ानून भी बनाए गए हैं. ताकि महिला नक्सलियों का शोषण न हो सके. इस कड़ाई के बावज़ूद महिला नक्सलियों पर अपने ही साथियों का क़हर जारी है.
संगठन में शोषित, सरकार के लिए मुसीबत
शोषित और प्रताड़ित होने के बावज़ूद ये महिला नक्सली देश और सरकार के लिए खतरा बनी हुई हैं. नक्सली हमला हो या पुलिस से मुठभेड़. ये पुरूषों के मुक़ाबले ज़्यादा उग्रता और तीव्रता से टूट पड़ती हैं. नक्सली संगठन भी इनका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. महिला नक्सलियों को आतंकवादियों की तर्ज़ पर ट्रेनिंग दी जा रही है. रॉ से मिली जानकारी के मुताबिक देश भर से सैन्य कद-काठी की चुनिंदा आदिवासी युवतियों को आंध्र प्रदेश के जंगलों में अत्याधुनिक हथियार चलाने और पुलिस से मुक़ाबला करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इन्हें छापामार युद्ध प्रणाली में भी पारंगत किया जा रहा है. उड़ीसा के दक्षिण—पश्चिम क्षेत्र के डीआईजी संजीव पांडा ने बताया कि प्रशिक्षण पाने वाली महिला नक्सलियों को दो समूहों में बांटा गया है. पहला समूह ख़ु़िफया जानकारी जुटाता है जबकि दूसरा हमले करता है.  ट्रेनिंग पाने वाली महिला माओवादी अपने पुरूष समकक्षों से ज़्यादा ख़तरनाक और कुशल हैं. मुश्किल तो यह है कि इन महिला माआवादियों की शिनाख्त में भी परेशानी होती है. पुरूषों की तुलना में ये संगठन के प्रति ज़्यादा व़फादार होती हैं. इसके अलावा ये पुरुषों की तुलना में लोगों से ज़्यादा आसानी से घुलमिल जाती हैं. सूचनाएं निकाल लेती हैं. हथियारों और अन्य आपत्तिजनक वस्तुओं के साथ धड़ल्ले से एक जगह से दूसरी जगह आ-जा सकती हैं. लिहाज़ा नक्सलवादी संगठन नक्सली हमलों में भी इनका ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. पिछले दिनों झारखंड, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों में जितनी भी नक्सली वारदातें हुई हैं, उनमें महिला नक्सलियों ने बढ़-चढ़ कर भागीदारी की है. छत्तीसगढ़ में नक्सल मामलों के डीआईजी पवन देव ने बताया कि पुरूष नक्सलियों की अपेक्षा महिला नक्सलियों से जूझना पुलिस बलों के लिए के लिए ज़्यादा चुनौती भरा है, क्योंकि ये बेहद आसानी से भीड़ में घुलमिल जाती हैं. बस्तर, दंतेवाड़ा, रायगढ़ ज़िले में इनका ज़्यादा बोलबाला है.  पुलिस से बचने और सुरक्षित ठिकाने की गरज़ से उड़ीसा और आंध्र प्रदेश की सीमा पर स्थित जंगलों में इनका बड़ा ठिकाना है.
महिला बटालियन करेगी महिला
नक्सलियों का सफाया
महिला नक्सलियों के ख़ात्मे के लिए महिला बटालियन और एटीएस यानी आतंकनिरोधी दस्ता मिल कर काम करेंगे. नक्सल ऑपरेशन में इनका काम अचूक हो, इसकी ख़ातिर इन्हें अम्लेश्वर महादेव घाट के कमांडो ट्रेनिंग और जंगल वार में प्रशिक्षित किया जाएगा. बुलेटप्रूफ जैकेट और सैटेलाइट फोन के साथ इन्हें हाईटेक किया जा रहा है. ऊंची जगहों पर सुरक्षा बलों का आपसी संपर्क टूट जाता है. जिसकी वजह से वे ज़रूरत के व़क्त अपने अन्य साथियों को मदद के लिए नहीं बुला पाते और नक्सलियों के हाथों अपनी जान गंवा बैठते हैं. सैटेलाइट फोन से उन्हें अपने साथियों के संपर्क में लगातार रहने में मदद मिलेगी. मुठभेड़ के दौरान घने जंगलों और ऊंची पहाड़ियों पर नक्सलियों के आक्रमण से वे किस तरह ख़ुद को सुरक्षित रखें, इसकी विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है. नक्सली आमतौर पर सुरक्षाबलों को चारों ओर से घेर कर गोलीबारी शुरू कर देते हैं. इससे सुरक्षाबलों में भगदड़ मच जाती है.
छत्तीसगढ़ में महिला नक्सलियों की भारी संख्या  को देखते हुए महिला बटालियन को ख़ास तौर पर तैयार किया जा रहा है ताकि वे महिला नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दे सकें. जंगलों और पहाड़ियों पर सबसे ज़्यादा परेशानी सुरक्षा बलों को तब होती है जब वे मुठभेड़ के दौरान छुपने की सही पोजीशन नहीं बना पाते और नक्सलियों की गोलीबारी का शिकार हो जाते हैं. झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित इलाक़ों में इस तरह की दुश्वारियां नहीं आती पर छत्तीसगढ़ में जवानों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस बात को ध्यान में रख कर भी मुठभेड़ के गुर सिखाए जा रहे हैं.
महिला बटालियन को गुरिल्ला युद्ध के लिए भी प्रशिक्षित किया जा रहा है. ़िफलहाल इस ट्रेनिंग में चार सौ महिलाओं को शामिल किया गया है. आने वाले दिनों में इनकी संख्या में इजा़फा किया जाएगा. गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस योजना की रूप रेखा ख़ुद तैयार की है. वे लगातार इस मसले पर नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से विचार विमर्श कर रणनीति तैयार कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री
पी चिदंबरम का भी मानना है कि नक्सलवाद हमारे देश
में आतंकवाद से बड़ा मसला है. इसलिए इसका ख़ात्मा हर
हाल में  ज़रूरी है. इसमें अब सरकार कोई चूक नहीं करना चाहती.
मानव रहित विमान का इस्तेमाल करेगी सेना
नक्सलियों को नेस्तनाबूद करने के लिए केंद्र सरकार अब सेना के मानवरहित विमानों का इस्तेमाल करेगी. सैन्य कार्रवाई से नक्सलियों में हड़कंप मचा हुआ है. देश के भीतर हवाई ताक़त इस्तेमाल करने और नक्सलियों तथा उग्रवादियों की धर  पकड़ करने से पूरा परिदृश्य ही बदलने लगा है. नक्सलियों के ख़िला़फ केंद्र सरकार का यह आक्रामक अभियान पूरी तरह से सैन्य अभियान है.
यह अभियान बेहतर ख़ुफिया जानकारी पर आधारित है. जिसके लिए पहली बार सेना के मध्य कमान ने नक्सलियों की गतिविधियों का पूरी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया है. लोकसभा चुनावों के दरम्यान सेना ने मणिपुर में उग्रवादियों के एक शिविर पर मानवरहित विमान से हमला कर 11 उग्रवादियों को मार गिराया था. अब केंद्र सरकार ने यह तय किया है कि नक्सल प्रभावित आठ राज्यों में वह इसी तरीक़े का इस्तेमाल करेगी. ख़ासकर दुर्गम ऊंची पहाड़ियों और बेहद घने जंगलों में. बिहार, उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की गतिविधियों की टोह लेने के लिए भी हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है. लोकसभा चुनाव के दौरान भी वायु सेना के 27 हेलीकॉप्टरों की मदद ली गई थी, जिसकी वजह से मतदान सुरक्षित तरीक़े से हो सका था. पिछले साल उड़ीसा में हुए एक बड़े नक्सली हमले में भी वायुसेना ने दो हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया था.
अब सरकार उसी योजना को बड़ा रूप दे रही है, ताकि नक्सलियों का पूरी तरह सफाया हो सके और कम से कम सुरक्षाबल हताहत हों. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर ने भी माओवादियों और उग्रवादियों से निपटने में वायुसेना का सक्रिय सहयोग देने की बाबत नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पूरा सहयोग देने की बात कही है. जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर हिस्से के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से भी सरकार ऐसे ही निपटेगी. हालांकि भौगोलिक तौर पर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ की स्थिति अलग है. नई रणनीति के तहत कुल 9000 जवानों को चुना गया है. इसके अलावा पारा मिलिट्री फोर्स की 24 अतिरिक्त बटालियनों को भी अलग से रखा गया है. बिहार में इस काम में सैप के जवानों को भी लगाया गया है.
कैबिनेट सचिव इस समस्या पर 12 सचिवों के साथ एक कमेटी बना का इस पूरी योजना को अंतिम रूप देने में लगे हैं. नक्सलियों के ख़िला़फ यह पूरा अभियान राज्यों और सैन्य बलों के पूरे तालमेल के साथ चलाया जाएगा ताकि चूक की कोई गुंजाइश न रहे. इस पूरे अभियान का नेतृत्व नवगठित शीर्ष कोबरा बल यानी कमांडो बटालियन फार रिसाल्यूट एक्शन करेगा. हालांकि विनायक सेन सरीखे समाजसेवी सरकार द्वारा की जा रही सैन्य कार्रवाई को आदिवासी समाज के लिए हितकर नहीं मानते.वे इसका यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि इससे लाखों आदिवासियों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी लेकिन सरकार अब इस पर नरम रूख़ कतई अपनाना नहीं चाहती.
नक्सली संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं का संगठन के पुरूष सदस्यों द्वारा बर्बर तरीके से शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है. यौन प्रताड़ना से कहीं वे गर्भवती न हो जाएं इसकी ख़ातिर जबरन उनकी नसबंदी करा दी जाती है. यही नहीं, गांव गांव में फैले उनके एजेंट लंबी-चौड़ी कद काठी की लड़कियों की तलाश कर उन्हें बहला फुसला कर या फिर जबरन संगठन में शामिल कर लेते हैं. यह दौर सालों से जारी है. अकेली ललिता ही इस भयानक यंत्रणा की शिकार नहीं है. उसके जैसी सैकड़ों ललिताएं हैं जिन्होंने भूख और ग़रीबी से लोहा लेने और बंदूक की ज़ोर पर शोषक दुनिया को बदलने का सपना लिए रक्त क्रांति की दुनिया में प्रवेश किया.
अपनी लड़ाई को जनांदोलन का रूप देने के लिए नक्सलियों ने यह तय किया था कि संगठन में महिलाओं की 40 फीसदी भागीदारी रहेगी. इस पर अमल भी किया गया. जोशो—ख़रोश से महिलाएं शामिल भी हुईं. पर सामाजिक लड़ाई में सहभागी बनाने के बजाय उनकी इज़्ज़त से ही खेल शुरू हो गया. अब इस ख़ूनी आंदोलन में शरीक महिला नक्सली संगठन छोड़ कर भाग रही हैं, या फिर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दे रही हैं. समाज को बदल देने का सपना अब उनकी आंखों में नहीं पलता.
नक्सलवादी संगठन की सदस्य रह चुकी 29 साल की गीता दिल्ली के जंतर—मंतर के पास की एक दुकान पर बरतन धोने का काम करती है. गीता को सिफलिस है. झारखंड के दुमका की रहने वाली गीता भी सामंतवादियों से बदला लेने का सपना संजोए इस क्रांति में शामिल हुई थी. वह बताती है कि संगठन में रहते हुए उसके सपने तो सच नहीं हुए, अलबत्ता संगठन के कमांडर सहित अन्य सदस्यों ने अपनी हवस पूरी करने की ख़ातिर उसका इतना यौन उत्पीड़न किया कि वह सिफलिस की शिकार बन गई. आखिरकार एक दिन वह छिपते—छुपाते अपने एक साथी की मदद से भाग कर दिल्ली आ गई. बंदूक के दम पर दुनिया को बदलने का सपना ग़ायब हो चुका है. बची है तो बस दो व़क्त की रोटी की फिक्र. राजनांदगांव की रहने वाली 17 साल की ललिता एड्‌स की शिकार है. रांची के एक सरकारी अस्पताल में पिछले चार महीने से वह आधी बेहोशी में विक्षिप्त सी पड़ी है. उसकी देखभाल करने के नाम पर उसकी मां गोदावरी तो है पर लाचारी,ग़रीबी और उपेक्षा ने उसे भी जर्जर बना दिया है. दरअसल, ललिता की यह दिल दहला देने वाली हालत रक्त क्रांति के सेक्स क्रांति में तब्दील हो जाने का नतीजा है. ललिता देवकी दलम नाम के नक्सली संगठन की सदस्य थी. छत्तीसगढ़ के नक्सल कमांडर बुधु बेतलू की विधवा सोनू गावड़े की ज़िंदगी भी नरक बन चुकी है. दलम कमांडर बुधु की मौत के बाद संगठन के सदस्यों ने 24 साल की सोनू गावड़े के साथ महीनों दुष्कर्म किया. आख़िरकार गावड़े ने ख़ुद को  पुलिस के हवाले कर दिया. गावड़े ने पुलिस को बताया कि नक्सली संगठन में एक—एक महिला के साथ पांच—छह पुरुष ज़बरदस्ती करते हैं. इंकार करने पर उनके साथ जानवरों सरीखा व्यवहार होता है. नक्सली संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं का संगठन के पुरुष सदस्यों द्वारा बर्बर तरीक़े से शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है. यौन प्रताड़ना से कहीं वे गर्भवती न हो जाएं इसकी ख़ातिर जबरन उनकी नसबंदी करा दी जाती है. यही नहीं, गांव गांव में फैले उनके एजेंट लंबी-चौड़ी कद काठी की लड़कियों की तलाश कर उन्हें बहला फुसला कर या फिर ज़बरन संगठन में शामिल कर लेते हैं. यह दौर सालों से जारी है. अकेली ललिता ही इस भयानक यंत्रणा की शिकार नहीं है. उसके जैसी सैकड़ों ललिताएं हैं जिन्होंने भूख और ग़रीबी से लोहा लेने और बंदूक की ज़ोर पर शोषक दुनिया को बदलने का सपना लिए रक्त क्रांति की दुनिया में प्रवेश किया. उन्हें लगा कि अपने विद्रोही तेवरों से वे दुनिया का रुख़ मोड़ देंगी. हालांकि, संगठन में शामिल होने के बाद उनकी ज़िंदगी का ही रुख़ बदल गया.
असुरक्षित और असामान्य सेक्स की वज़ह से नक्सलियों में एचआईवी वायरस तेज़ी से पैर पसार रहा है. इसकी वज़ह से कई नक्सलियों की मौतें भी हुई हैं. जंगलों में छुपने और भागते फिरने से नक्सलियों का इलाज भी नहीं हो पाता. फलतः वे इस भयावह बीमारी का प्रसार करने का ज़रिया बन जाते हैं. गढचिरौली के एसपी रह चुके राजेश प्रधान बताते हैं कि उनके सामने कई महिला गुरिल्लाओं ने इसीलिए आत्मसमर्पण कर दिया क्योंकि वे संगठन में अपने साथ हो रहे यौन उत्पीड़न से तंग आ चुकी थीं. संगठन में उनके साथ बंदूक की नोक पर बलात्कार किया जाता था.
चंपा, बबीता, आरती, शांति और संगीता पीडब्लूजी और एमसीसी की सदस्याएं हैं. बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश—इन चार राज्यों की पुलिस इनके ख़ूनी कारनामों से भय खाती थी. पर इनके साथ भी संगठन में जिस कदर यौनाचार होता था, वह दिल को दहलाने वाला है. उत्तर प्रदेश, बिहार—झारखंड सब जोनल कमेटी में फिलहाल 750 से ज़्यादा महिला सदस्य हैं. लगभग, सबकी व्यथा एक जैसी ही है. इसी साल फरवरी में एक ख़बर अख़बार की सुर्ख़ियां बनी थी. जिसमें बबीता और चंपा नाम की महिला काडरों के नाम का ज़िक्र था.
चंपा ने जब अपने साथियों को इंकार करना शुरू किया तो उसकी बेरहमी से पिटाई की गई. जबकि बबीता ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस व़क्त वह गर्भवती थी. जेल में ही उसने बच्चे को जन्म दिया. नक्सलियों के कुकर्मों से वो इतनी आजिज़ आ चुकी थी कि उसने अपने नवजात बच्चे को जेल के शौचालय में मिट्टी के घड़े में बंद कर मार डाला.
नक्सलवादी आंदोलन के नाम पर हर नाजायज़ व ग़ैर-क़ानूनी काम कर रहे हैं. नक्सलवादी आंदोलन के जनक कानू सान्याल नक्सलियों के इस नैतिक पतन और हवस को क्रांति कतई नहीं मानते . वे साफ कहते हैं कि आंदोलन अपना रास्ता भटक चुका है. कानू सान्याल नक्सलियों के इस पतन से बेहद दुखी हैं. उन्होंने इस बाबत कुछ नक्सली नेताओं से बात भी की है. उसके बाद इस सिलसिले में कुछ नए क़ानून भी बनाए गए हैं. ताकि महिला नक्सलियों का शोषण न हो सके. इस कड़ाई के बावज़ूद महिला नक्सलियों पर अपने ही साथियों का क़हर जारी है.
संगठन में शोषित, सरकार के लिए मुसीबत
शोषित और प्रताड़ित होने के बावज़ूद ये महिला नक्सली देश और सरकार के लिए खतरा बनी हुई हैं. नक्सली हमला हो या पुलिस से मुठभेड़. ये पुरूषों के मुक़ाबले ज़्यादा उग्रता और तीव्रता से टूट पड़ती हैं. नक्सली संगठन भी इनका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. महिला नक्सलियों को आतंकवादियों की तर्ज़ पर ट्रेनिंग दी जा रही है. रॉ से मिली जानकारी के मुताबिक देश भर से सैन्य कद-काठी की चुनिंदा आदिवासी युवतियों को आंध्र प्रदेश के जंगलों में अत्याधुनिक हथियार चलाने और पुलिस से मुक़ाबला करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इन्हें छापामार युद्ध प्रणाली में भी पारंगत किया जा रहा है. उड़ीसा के दक्षिण—पश्चिम क्षेत्र के डीआईजी संजीव पांडा ने बताया कि प्रशिक्षण पाने वाली महिला नक्सलियों को दो समूहों में बांटा गया है. पहला समूह ख़ु़फिया जानकारी जुटाता है जबकि दूसरा हमले करता है.  ट्रेनिंग पाने वाली महिला माओवादी अपने पुरूष समकक्षों से ज़्यादा ख़तरनाक और कुशल हैं. मुश्किल तो यह है कि इन महिला माआवादियों की शिनाख्त में भी परेशानी होती है. पुरूषों की तुलना में ये संगठन के प्रति ज़्यादा व़फादार होती हैं. इसके अलावा ये पुरुषों की तुलना में लोगों से ज़्यादा आसानी से घुलमिल जाती हैं. सूचनाएं निकाल लेती हैं. हथियारों और अन्य आपत्तिजनक वस्तुओं के साथ धड़ल्ले से एक जगह से दूसरी जगह आ-जा सकती हैं. लिहाज़ा नक्सलवादी संगठन नक्सली हमलों में भी इनका ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. पिछले दिनों झारखंड, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों में जितनी भी नक्सली वारदातें हुई हैं, उनमें महिला नक्सलियों ने बढ़-चढ़ कर भागीदारी की है. छत्तीसगढ़ में नक्सल मामलों के डीआईजी पवन देव ने बताया कि पुरूष नक्सलियों की अपेक्षा महिला नक्सलियों से जूझना पुलिस बलों के लिए के लिए ज़्यादा चुनौती भरा है, क्योंकि ये बेहद आसानी से भीड़ में घुलमिल जाती हैं. बस्तर, दंतेवाड़ा, रायगढ़ ज़िले में इनका ज़्यादा बोलबाला है.  पुलिस से बचने और सुरक्षित ठिकाने की गरज़ से उड़ीसा और आंध्र प्रदेश की सीमा पर स्थित जंगलों में इनका बड़ा ठिकाना है.
महिला बटालियन करेगी महिला
नक्सलियों का सफाया
महिला नक्सलियों के ख़ात्मे के लिए महिला बटालियन और एटीएस यानी आतंकनिरोधी दस्ता मिल कर काम करेंगे. नक्सल ऑपरेशन में इनका काम अचूक हो, इसकी ख़ातिर इन्हें अम्लेश्वर महादेव घाट के कमांडो ट्रेनिंग और जंगल वार में प्रशिक्षित किया जाएगा. बुलेटप्रूफ जैकेट और सैटेलाइट फोन के साथ इन्हें हाईटेक किया जा रहा है. ऊंची जगहों पर सुरक्षा बलों का आपसी संपर्क टूट जाता है. जिसकी वजह से वे ज़रूरत के व़क्त अपने अन्य साथियों को मदद के लिए नहीं बुला पाते और नक्सलियों के हाथों अपनी जान गंवा बैठते हैं. सैटेलाइट फोन से उन्हें अपने साथियों के संपर्क में लगातार रहने में मदद मिलेगी. मुठभेड़ के दौरान घने जंगलों और ऊंची पहाड़ियों पर नक्सलियों के आक्रमण से वे किस तरह ख़ुद को सुरक्षित रखें, इसकी विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है. नक्सली आमतौर पर सुरक्षाबलों को चारों ओर से घेर कर गोलीबारी शुरू कर देते हैं. इससे सुरक्षाबलों में भगदड़ मच जाती है.
छत्तीसगढ़ में महिला नक्सलियों की भारी संख्या  को देखते हुए महिला बटालियन को ख़ास तौर पर तैयार किया जा रहा है ताकि वे महिला नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दे सकें. जंगलों और पहाड़ियों पर सबसे ज़्यादा परेशानी सुरक्षा बलों को तब होती है जब वे मुठभेड़ के दौरान छुपने की सही पोजीशन नहीं बना पाते और नक्सलियों की गोलीबारी का शिकार हो जाते हैं. झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित इलाक़ों में इस तरह की दुश्वारियां नहीं आती पर छत्तीसगढ़ में जवानों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस बात को ध्यान में रख कर भी मुठभेड़ के गुर सिखाए जा रहे हैं.

महिला बटालियन को गुरिल्ला युद्ध के लिए भी प्रशिक्षित किया जा रहा है. फिलहाल इस ट्रेनिंग में चार सौ महिलाओं को शामिल किया गया है. आने वाले दिनों में इनकी संख्या में इजा़फा किया जाएगा. गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस योजना की रूप रेखा ख़ुद तैयार की है. वे लगातार इस मसले पर नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से विचार विमर्श कर रणनीति तैयार कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री पी चिदंबरम का भी मानना है कि नक्सलवाद हमारे देश में आतंकवाद से बड़ा मसला है. इसलिए इसका ख़ात्मा हर हाल मेंज़रूरी है. इसमें अब सरकार कोई चूक नहीं करना चाहती.
मानव रहित विमान का इस्तेमाल करेगी सेना
नक्सलियों को नेस्तनाबूद करने के लिए केंद्र सरकार अब सेना के मानवरहित विमानों का इस्तेमाल करेगी. सैन्य कार्रवाई से नक्सलियों में हड़कंप मचा हुआ है. देश के भीतर हवाई ताक़त इस्तेमाल करने और नक्सलियों तथा उग्रवादियों की धरपकड़ करने से पूरा परिदृश्य ही बदलने लगा है. नक्सलियों के ख़िला़फ केंद्र सरकार का यह आक्रामक अभियान पूरी तरह से सैन्य अभियान है.
यह अभियान बेहतर ख़ुफिया जानकारी पर आधारित है. जिसके लिए पहली बार सेना के मध्य कमान ने नक्सलियों की गतिविधियों का पूरी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया है. लोकसभा चुनावों के दरम्यान सेना ने मणिपुर में उग्रवादियों के एक शिविर पर मानवरहित विमान से हमला कर 11 उग्रवादियों को मार गिराया था. अब केंद्र सरकार ने यह तय किया है कि नक्सल प्रभावित आठ राज्यों में वह इसी तरीक़े का इस्तेमाल करेगी. ख़ासकर दुर्गम ऊंची पहाड़ियों और बेहद घने जंगलों में. बिहारउड़ीसाझारखंड और छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की गतिविधियों की टोह लेने के लिए भी हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है. लोकसभा चुनाव के दौरान भी वायु सेना के 27 हेलीकॉप्टरों की मदद ली गई थीजिसकी वजह से मतदान सुरक्षित तरीक़े से हो सका था. पिछले साल उड़ीसा में हुए एक बड़े नक्सली हमले में भी वायुसेना ने दो हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया था.
अब सरकार उसी योजना को बड़ा रूप दे रही हैताकि नक्सलियों का पूरी तरह सफाया हो सके और कम से कम सुरक्षाबल हताहत हों. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल फली होमी मेजर ने भी माओवादियों और उग्रवादियों से निपटने में वायुसेना का सक्रिय सहयोग देने की बाबत नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पूरा सहयोग देने की बात कही है. जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर हिस्से के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से भी सरकार ऐसे ही निपटेगी. हालांकि भौगोलिक तौर पर बिहार,झारखंडपश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ की स्थिति अलग है. नई रणनीति के तहत कुल 9000 जवानों को चुना गया है. इसके अलावा पारा मिलिट्री फोर्स की 24 अतिरिक्त बटालियनों को भी अलग से रखा गया है. बिहार में इस काम में सैप के जवानों को भी लगाया गया है.
कैबिनेट सचिव इस समस्या पर 12 सचिवों के साथ एक कमेटी बना का इस पूरी योजना को अंतिम रूप देने में लगे हैं. नक्सलियों के ख़िला़फ यह पूरा अभियान राज्यों और सैन्य बलों के पूरे तालमेल के साथ चलाया जाएगा ताकि चूक की कोई गुंजाइश न रहे. इस पूरे अभियान का नेतृत्व नवगठित शीर्ष कोबरा बल यानी कमांडो बटालियन फार रिसाल्यूट एक्शन करेगा. हालांकि विनायक सेन सरीखे समाजसेवी सरकार द्वारा की जा रही सैन्य कार्रवाई को आदिवासी समाज के लिए हितकर नहीं मानते.वे इसका यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि इससे लाखों आदिवासियों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी लेकिन सरकार अब इस पर नरम रूख़ कतई अपनाना नहीं  चाहती..

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