Ruby Arun

Monday 18 June 2012

नरेगाःसफलता कम, शोर ज़्यादा.........रूबी अरुण


नरेगाःसफलता कम, शोर ज़्यादा


भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक ने उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के बारे में जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें साफ तौर नरेगा के कार्यान्वयन में कमी की बात कही गई है. उत्तर प्रदेश विधानसभा में 2008—09 के लिए प्रस्तुत प्रतिवेदन में महालेखा परीक्षक ने मस्टर रोल में हेरफेर, ग़लत भुगतान, एक ही मज़दूर को कई अलग—अलग जगहों से भुगतान, साथ ही मज़दूरी भुगतान में तीन से 286 दिनों तक के विलंब सहित अनेक गड़बड़ियों की तऱफ इशारा किया गया है
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी इन दिनों बेहद उत्साह में हैं. वह नरेगा को नए अवतार में पेश करने को लेकर ज़ोर-शोर से जुट गए हैं. इसकी ख़ातिर नरेगा के क़ानून में भी फेरबदल किया गया है. वह भी केंद्रीय ग्रामीण रोज़गार परिषद में चर्चा कराए बग़ैर. पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को आशंका है कि इससे नरेगा का मूल स्वरूप ही बिगड़ जाएगा. इसके अलावा उन्हें नरेगा के नए रूप में अवतरित होने से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच टकराव होने का भी संशय है. क्योंकि अब नरेगा में मज़दूरों से सीमांत और लघु किसानों के खेतों में भी काम कराया जा सकता है. ऐसे में न्यूनतम मज़दूरी को लेकर राज्य सरकारें केंद्र सरकार के सिर पर ठीकरा फोड़ेंगी. मशीनों का उपयोग बढ़ेगा और ठेकेदार दखलंदाज़ी करेंगे. ज़ाहिर है, टकराव बढ़ेगा. ग़ौरतलब है कि नरेगा को रघुवंश प्रसाद ने ही 2006 में अपने मंत्रीत्वकाल में लागू कराया था.
लेकिन सीपी जोशी को इन बातों की परवाह नहीं है. वह बेहद उत्साहित हैं. वह कहते हैं कि उनकी और सरकार की मंशा बस इतनी है कि नरेगा से ज़्यादा से ज़्यादा ग़रीब फायदा उठा सकें. इरादा तो नेक है, पर क्या यह सचमुच इतना कामयाब या फायदेमंद साबित हुआ है, जितनी उम्मीद की जा रही है या फिर जिसका ढिंढोरा पीटा जा रहा है? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से यह घोषणा भी कर दी कि अब तक इससे चार करोड़ परिवारों को फायदा हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं सुधरी हैं. लिहाज़ा ग़रीबों के लिए रोज़गार के इस कार्यक्रम में और अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाई जाएगी. पर क्या सचमुच तस्वीर ऐसी ही गुलाबी—गुलाबी सी है? नरेगा की केंद्रीय समिति के सदस्य प्रो. ज्यां द्रेज इस कार्यक्रम की सफलता के बारे में पूछने पर टिप्पणी से इंकार कर देते हैं. पर वह यह ज़रूर कहते हैं कि जो ख़ुशनुमा तस्वीर दिखाई जा रही है, उसका कोई ठोस आधार नहीं है. आज भी यह योजना क़दम दर क़दम संघर्ष कर रही है. इसके सफल होने की संभावना तो ज़रूर है, पर यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि इसने सफलता के मानकों को पार कर लिया हैङ्क्ष. जो सरकारी आंकड़े पेश किए जा रहे हैं वे यक़ीन के लायक नहीं हैं. ज्यां द्रेज बताते हैं कि राजस्थान और दक्षिणी राज्यों में स्थिति ज़रूर बेहतर है. लेकिन बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे राज्यों में इस योजना पर स्वार्थी तत्वों का क़ब्ज़ा है. ख़ास कर झारखंड में हालत बेहद खराब है. नौकरशाहों ने नरेगा को एक ऐसी बेबस और लाचार योजना में बदल दिया है, जिसकी चाभी उनके हाथों में है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण केंद्रीय नियोजन गारंटी परिषद का लकवाग्रस्त हो जाना है. केंद्र और राज्य सरकारों ने धारा-30 का भी उल्लंघन किया है, जिसके तहत  प्रावधान है कि अगर मज़दूरी भुगतान में देरी होती है तो मज़दूरों को मुआवज़ा दिया जाए. धारा 19 को भी नज़रअंदाज़ किया गया, जिसके तहत शिकायत निवारण नियम बनाए जाने थे. मतलब साफ है कि यूपीए सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना भी लालफीताशाही से नहीं बच सकी. इसके बावज़ूद, सरकार अपनी कामयाबी के ढोल पीट रही है.
भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक ने उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के बारे में जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें साफ तौर नरेगा के कार्यान्वयन में कमी की बात कही गई है. उत्तर प्रदेश विधानसभा में 2008—09 के लिए प्रस्तुत प्रतिवेदन में महालेखा परीक्षक ने मस्टर रोल में हेरफेर, ग़लत भुगतान, एक ही मज़दूर को कई अलग—अलग जगहों से भुगतान, साथ ही मज़दूरी भुगतान में तीन से 286 दिनों तक के विलंब सहित अनेक गड़बड़ियों की तऱफ इशारा किया गया है. इसके अलावा राज्यों के हरेक पंचायत में एक रोज़गार सहायक की नियुक्ति की जानी थी, पर मौजूदा अभिलेखों से पता चला कि एक तिहाई ग्राम पंचायतों में इनकी नियुक्तियां हुई ही नहीं. कई मज़दूरों को एक ही दिन में दो—दो, तीन—तीन जगहों पर काम करते हुए दिखाया गया है. सबसे बड़ी बात यह कि नरेगा का जो मुख्य उद्देश्य है, कि कि ग़रीबों को घर के पास ही आजीविका उपलब्ध कराई जाए, वही पूरा नहीं हो पा रहा. व़क्त पर मज़दूरी न मिलने से यह मक़सद अधूरा रह जा रहा है. नरेगा की योजनाओं पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं. हर वर्ष दस हज़ार करोड़ रुपये नरेगा के विभिन्न कार्यक्रमों पर ख़र्च किए जा रहे हैं, पर इसका फायदा ज़रूरतमंदों को नहीं मिल पा रहा. ख़ुद कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी इस लूट—खसोट की बात स्वीकारते हैं. राहुल ने अक्सर अपने बयानों में इस बात को स्वीकारा है कि ऐसी योजनाओं की कुल राशि का महज़ दस पैसा ही ज़रूरतमंदों तक पहुंच पाता है. भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि राहुल का यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है. यह देश की ग़रीब जनता के साथ छलावा है. सरकार उनकी है. मशीनरी उनकी है, फिर भी वह यह राग आलाप रहे हैं तो इससे दुखदायी कुछ नहीं हो सकता.
नरेगा के केंद्रीय समिति के सदस्य ज्यां द्रेज कहते हैं कि नरेगा ने यूपीए के पक्ष में थोड़ी गुडविल ज़रूर हासिल की. लेकिन इस योजना को अमली जामा पहनाने में इतनी गड़बड़ियां हैं जो लोगों की नाराज़गी के लिए का़फी हैं. नरेगा सही और निर्बाध तरीक़े से देश भर में लागू हो सके और इसमें कम से कम गड़बड़ियां हों, इसकी ख़ातिर सबसे अहम है कि सरकार एक मज़बूत और सशक्त शिकायत निवारण समिति का गठन करे. क़ानून में शामिल जवाबदेही संबंधी प्रावधानों पर कड़ाई से नज़र रखी जाए. नरेगा सरकार का फ्लैगशिप प्रोग्राम है. फिर भी उसके साथ मज़ाक किया जा रहा है.
पब्लिक इन्टरेस्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. विमल जालान ने नेशनल काउंसिल आफ एप्लायड इकॉनोमिक रिसर्च के सहयोग से नरेगा के क्रियान्वयन से जुड़े साक्ष्यों तथा अब तक की उपलब्धियों का ब्योरा जमा किया है. वह बताते हैं कि नरेगा तभी ग़रीबों के लिए लाभकारी साबित होगा, जब इसकी कार्यप्रणाली कुशल बनाई जाएगी. देश में ऐसी आसान ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना की ज़रूरत है जो जटिल औपचारिकताओं से मुक्त हो. तभी आम आदमी इसका लाभ उठा सकता है. फलहाल यह प्रक्रिया नौकरशाही की जकड़ में है, जिसके लिए बहुत सारी काग़ज़ी कार्रवाई करनी पड़ती है. रोज़गार कार्ड जारी करने के लिए निष्पक्ष और स्वतंत्र कार्यप्रणाली की भी ज़रूरत है.
नरेगा के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार किस हद तक पैठ बनाए हुए है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि जिस राजस्थान में कांग्रेस की सरकार नरेगा के दम पर आने का दावा करते नहीं अघा रही है, वहां से महज़ 90 दिनों में 700 शिकायतें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक पहुंची हैं. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने राजस्थान सरकार से इस बाबत जवाब तलब किया है. नरेगा के सहारे सत्ता में आने वाली गहलोत सरकार भी शिकायतों की संख्या से हैरान है. संभवतः राज्य में यह पहली ऐसी योजना है, जिसने शिकायतों का यह रिकार्ड बनाया है. हालत यह है कि अब नरेगा की योजनाएं सरकार के क़ाबू के बाहर हो गई हैं. राजस्थान में नरेगा में किस कदर महाघोटाला हो रहा है, वह आंकड़ों से ही ज़ाहिर है. राजस्थान में 2008 09 में नरेगा से संबंधित 11536 शिकायतें दर्ज़ की गई हैं. 2009 10 की शुरुआत में ही आठ हज़ार शिकायतें दर्ज़ हो चुकी हैं. इसके अलावा देश भर से नरेगा से संबंधित शिकायतों का भी अंबार लगा हुआ है. सरपंचों के स्तर से भी गड़बड़ियों की बहुतेरी शिकायतें आ रही हैं. सरपंच नियमों के विपरीत लोगों को लाभ दे रहे हैं. राजनीतिक निहितार्थ के तहत सारा खेल हो रहा है. लिहाज़ा, सरकारी अधिकारी भी राजनीतिक दबाव के आगे नतमस्तक हो जा रहे हैं. जॉब कार्ड किसी का और काम कर रहा है कोई और. जॉब कार्ड में फोटो बदल कर भी धोखाधड़ी की जा रही है. मज़दूरी के भुगतान में कमीशन लेना तो अब आम बात हो गई है. काग़ज़ी काम ज़्यादा है, लिहाज़ा ग़रीब और अनपढ़ महिलाओं को खाता खोलने में ख़ासी मशक्कत करनी पड़ती है. बिहार के गया और मुज़फ्फरपुर ज़िलों की दलित महिलाओं की शिकायत है कि काम वे करती हैं और उनकी मज़दूरी का पैसा सवर्णों में बांट दिया जाता है. यही नहीं, कार्यस्थल के निर्धारण में भी दलित और सवर्णों के आधार पर भेदभाव किया जाता है. उन्हें जातीय समूहों में बांट कर काम का निर्धारण किया जाता है. हज़ारों ऐसे मामले हैं, जिनमें यह बात सामने आई है कि जहां दलित परिवारों के  एक भी सदस्य को काम नहीं मिला है वहीं सवर्णों के एक एक परिवार के कई-कई सदस्यों को रोज़गार मुहैया कराया गया है.
यही हाल उत्तर प्रदेश में भी है. आज़मगढ सहित उत्तर प्रदेश के कई इलाक़ों के नरेगा से संबंधित रजिस्टर अगर चेक कर लिए जाएं, तो पता चलेगा कि हर साल एक ही तालाब में और एक ही सड़क पर मिट्‌टी डाल कर उसे भरा जाता है और फिर उसी तालाब की खुदाई दिखा दी जाती है, सड़क को जर्जर दिखा दिया जाता है. सैकड़ों गांवों में मज़दूरों की कमी है. मज़दूर किसान संगठन की अरुणा राय कहती हैं कि पुराने प्रावधानों में ही काफी अंधेरगर्दी मची थी. अब जबकि नरेगा में ग्रामीण मज़दूर सीमांत और लघु किसानों के खेतों पर भी काम करेंगे तो लूट और मचेगी. इसलिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चंद्र प्रकाश जोशी को चाहिए कि सबसे पहले वह भंग केंद्रीय रोज़गार गारंटी परिषद को तुरंत गठित करें, ताकि नरेगा के कार्यान्यवन में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके.

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