Ruby Arun

Monday 18 June 2012

माया और राहुल कि तू-तू मै-मै........रूबी अरुण


माया और राहुल कि तू-तू मै-मै


बुंदेलखंड के मसले पर माया और राहुल के बीच सीधी रार ठन चुकी है. दोनों में ख़ुद को बुंदेलखंड की जनता का शुभेच्छु साबित करने की होड़ लगी है… दोनों के बीच मची तू-तू मैं-मैं  ने दलगत वैमनस्यता भी मिटा दी है. संसद में जब बुंदेलखंड का मसला उठा तो केंद्र सरकार के ख़िला़फ बसपा, भाजपा और मुलायम सिंह की पार्टी सपा ने एक सुर में बोलना शुरू कर दिया.
सियासत है ही ऐसी बला, जो कहीं चैन नहीं लेने देती. दिल्ली की गर्मी से परेशान राहुल गांधी छुट्टियां मनाने लेह गए, पर वहां भी वह अपने दोस्तों के साथ बुंदेलखंड का ज़िक्र करने में ही मशगूल रहे. लेह की बर्फीली वादियों में भी बुंदेलखंड के मसले पर गर्म हुई राजनीति उबलती रही. सुकून के उन पलों में भी राहुल के दिमाग़ पर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ही हावी रहीं.  हालांकि राहुल के साथ उनका जाना-पहचाना अमला मौजूद नहीं था, पर उनके साथ थे एक बेहद क़रीबी दोस्त-राजीव. कुल्लू के भुंतल एयरपोर्ट से मनाली और फिर राजीव के निजी कार से लाहौल होते हुए लेह तक के स़फर में राहुल लगातार सलाहकारों को फोन से निर्देश देते रहे कि उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के मसले पर अब क्या क़दम उठाए जाने चाहिए. उधर, लखनऊ में मायावती भी इसी बात पर बल खा रही हैं. वह आरोप लगा रही हैं कि केंद्र सरकार बुंदेलखंड के लोगों को मोहरा बना कर राजनीति कर रही है. मायावती का कहना है कि बुंदेलखंड के लिए किसी प्राधिकरण की नहीं, बल्कि आर्थिक सहायता की ज़रूरत है. प्रस्तावित प्राधिकरण के ज़रिए कांग्रेस प्रदेश में अपरोक्ष रूप से केंद्रीय  शासन थोप रही है.
मतलब यह कि बुंदेलखंड के मसले पर माया और राहुल के बीच सीधी रार ठन चुकी है. तलवारें खिंच चुकी हैं और दोनों ही नेता एक-दूसरे को शिकस्त देने के लिए हर पैंतरे की आज़माइश कर रहे हैं. दोनों में ख़ुद को बुंदेलखंड की जनता का शुभेच्छु साबित करने की होड़ लगी है. उनके बीच मची दंगल में अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कूद पड़े हैं. केंद्र सरकार के ख़िला़फ उन्होंने मायावती से हाथ मिला लिया है. चौहान भी बुंदेलखंड के सिलसिले में चल रही केंद्र सरकार की कोशिशों को संघीय ढांचे के ख़िला़फ बता रहे हैं. चूंकि बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के  सात और मध्य प्रदेश के पांच जिले आते हैं, लिहाज़ा दोनों ही नेताओं का निहितार्थ इससे जुड़ा है. बुंदेलखंड पर मची इस तू-तू मैं—मैं ने दलगत वैमनस्यता भी मिटा दी है. संसद में जब बुंदेलखंड का मसला उठा तो केंद्र सरकार के ख़िला़फ बसपा, भाजपा और मुलायम सिंह की सपा ने एक सुर में बोलना शुरू कर दिया. एक-दूसरे की धुर विरोधी इन पार्टियों की यह अनोखी एकजुटता कहने को तो केंद्र-राज्य संबंधों पर पड़ते दुष्प्रभावों को लेकर थी, लेकिन सच्चाई यह है कि ये पार्टियां उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के मज़बूत होते क़दमों को रोकना चाहती हैं. पर अहम सवाल है कि क्या इस राजनीतिक खींच—तान में उपेक्षित पड़े बुंदेलखंड के दिन बहुर सकेंगे? बुंदेलखंड का लगभग पूरा इलाक़ा ही विषम परिस्थितियों वाला है. पिछले छह सालों से बुंदेलखंड सूखे और तंगहाली की भीषण मार झेल रहा है. न तो मायावती और न ही पिछली यूपीए सरकार को इस इलाक़े की कोई सुध आई.
अलबत्ता कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने ज़रूर दरियादिली दिखाते हुए इस इलाक़ेके सूखाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया.  इससे भूखे—प्यासे किसानों के मन में एक आस जगी, पर उसका फौरी तौर पर कोई नतीजा नहीं निकला. अब, जबकि उत्तर प्रदेश पर क़ब्ज़ा करने की मंशा पर राहुल ने अमल करना शुरू किया तो उन्हें बुंदेलखंड की भरपूर याद आई. अब भला मायावती को यह बर्दाश्त कैसे हो? लिहाज़ा वह भी लगे हाथ हिमायती बनने की ज़ोर—आज़माइश में लग गई हैं. यूं तो पहले भी राहुल और माया ने एक—दूसरे पर ज़ुबानी हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, पर इस मुद्दे पर तो दोनों बिल्कुल आमने—सामने खड़े हैं. उनका तू—तू, मैं—मैं शबाब पर है. राहुल गांधी ने 27 जुलाई को प्रधानमंत्री को ज्ञापन देकर बुंदेलखंड के लिए केंद्रीय प्राधिकरण बनाने की मांग की तो लगे हाथों मायावती ने इस पर अपनी नाराज़गी दर्ज़ कराते हुए प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिख कर चेतावनी दे डाली कि केंद्रीय प्राधिकरण के गठन से केंद्र और राज्य के संबंधों और संवैधानिक प्रावधानों की बुनियाद पर असर पड़ेगा. राहुल चाहते हैं कि प्राधिकार के गठन के साथ-साथ बुंदेलखंड के हर जिले में केंद्रीय विद्यालय, सैनिक स्कूल और मेगा पावर प्रोजेक्ट लगाया जाएं. पर मायावती ऐसा नहीं चाहतीं, क्योंकि वह जानती हैं कि अगर केंद्र की कांग्रेस सरकार ने राहुल की मांग पर अमल कर लिया तो वह बुंदेलखंड में अपना जनाधार बनाने का मौक़ा हमेशा के लिए चूक जाएंगी. वहीं कांग्रेस हर हाल में इस इलाक़े के लोगों पर अपनी छाप छोड़ना चाहती है. राहुल गांधी की नज़र 2012 के विधानसभा चुनाव पर है. लिहाज़ा बुंदेलखंड के साथ-साथ राहुल की नज़र पूर्वांचल पर भी है, जो समूचे उत्तर प्रदेश का आधा हिस्सा है. बुंदेलखंड की बदहाली दिल दहला देने वाली है. इस इलाक़े के 13 जिलों में से लगभग आधी आबादी पलायन कर चुकी है. किसानों की बदहाली, पिछड़ापन, सूखा इन सबने बुंदेलखंड की तस्वीर भयावह बना दी है. चित्रकूट, महोबा, छतरपुर, टीकमगढ़, बांदा, हमीरपुर और सागरपुर जिलों से सबसे ज़्यादा पलायन हुआ है. पलायन के जो आंकड़े मौज़ूद हैं, वे हैरान कर देने वाले हैं. महोबा की कुल आबादी 7 लाख 8 हज़ार है, जिनमें से 2 लाख 97 हज़ार लोग अपना शहर छोड़ चुके हैं. छतरपुर की आबादी 14 लाख 74 हज़ार 633 है, जिनमें से 7 लाख 66 हज़ार 809 लोग पलायन कर चुके हैं. यानी कि कुल पचास फीसदी आबादी अपना घर—बार छोड़ कर जा चुकी है. चित्रकूट की 7.5 लाख की आबादी में से 3.5 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. टीकमगढ़ की 12 लाख की आबादी में से लगभग 6 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं. बांदा की 15 लाख की आबादी में से 7.5 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. दतिया में 32 फीसदी, दमोह में 25 ़फीसदी, पन्ना में 30 फीसदी, सागर में 20 लाख की आबादी में से 8 लाख, ललितपुर में 9 लाख 77 हज़ार में से 3 लाख 81 हज़ार की आबादी, और झांसी की 17 लाख 44 हज़ार में से 5 लाख 58 हज़ार लोग पलायन कर चुके हैं. दो हज़ार से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली है. एक हज़ार से ज़्यादा बुनकरों के लिए रोज़ी—रोटी का संकट खड़ा हो गया है. उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को पिछले दो सालों से यह पलायन नज़र नहीं आ रहा था. न ही किसानों की आत्महत्या की ख़बरें उन्हें विचलित कर रही थीं. पर जैसे ही राहुल ने इस मुद्दे पर अपनी सक्रियता दिखाई, मायावती बेचैन हो उठीं. उनकी समझ में यह बात आ गई कि अगर राहुल गांधी की कोशिशों से बुंदेलखंड प्राधिकरण बन गया तो मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के 13 जिलों के विकास कार्यों में केंद्र का सीधा दखल हो जाएगा, जिसका लाभ कांग्रे्रेस को ही मिलेगा. अब शिवराज सिंह चौहान हों या मायावती, उनके गले भला यह कैसे उतरेगा? सो विरोध और टकराव की राजनीति जारी है.
चौथी दुनिया के

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