Ruby Arun

Monday 18 June 2012

राहुल जी, सी पी जोशी पर ध्‍यान दीजिए.....रूबी अरुण




राहुल जी, सी पी जोशी पर ध्‍यान दीजिए

ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री सी पी जोशी पर यूपीए सरकार की सबसे मज़बूत योजना   नरेगा यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना की ज़िम्मेदारी है. यही वह योजना है, जिसकी मार्केटिंग करके कांग्रेस दोबारा सत्ता हासिल कर सकी. ज़ाहिर है इस योजना में कोई भी कमी या शिकायत न केवल यूपीए सरकार के कामकाज के रिपोर्ट कार्ड को खराब करती है, बल्कि सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की छवि को भी धूमिल करती है. कहने की ज़रूरत नहीं कि ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्रालय और इसके मंत्री दोनों सरकार के लिए खास मायने रखते हैं. पर जोशी की सुस्ती की वजह से इस मंत्रालय पर संदेह की उंगलियां उठ रही हैं. सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरेगा भ्रष्टाचार का अड्डा बनकर रह गई है. एक तऱफ कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी सामाजिक विकास के आदर्श नायक की भूमिका निभाने के प्रयत्न में अरसे से यह आलाप कर रहे हैं कि भ्रष्टाचार की वजह से सरकार का दिया पैसा आम आदमी तक एक रुपये में महज़ 15 पैसा ही पहुंचता है. तो दूसरी तऱफ सी पी जोशी अपने कामकाज से साबित कर यह दिखा भी रहे हैं कि ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री बनने के बाद से अभी तक वह ऐसी सशक्त और प्रभावी व्यवस्था क़ायम करने में नाकाम रहे हैं, जिससे मज़दूरों तक उनका पूरा पारिश्रमिक सुरक्षित तरीक़े से पहुंच सके. पूरी व्यवस्था में पारदर्शिता का घोर अभाव है. जोशी के कार्यभार संभालने के बाद से देश के लगभग उन सभी राज्यों से जहां नरेगा प्रभावी है, शिकायतों का अंबार लगा है. पंचायत स्तर पर भरपूर लूटखसोट मची है. बिहार जैसे राज्य से मज़दूरों का पलायन फिर ज़ोर पकड़ चुका है. पिछले दिनों हालात कुछ सुधरे थे. काम और रोटी मिलने से मज़दूरों के पलायन दर में कमी आई थी, पर ग्रामीण विकास मंत्रालय की अक्षमता से न अब काम के अवसर मिल रहे हैं और न ही उचित मज़दूरी.
संप्रग सरकार ग्रामीणों को रोज़गार उपलब्ध कराने की कई योजनाएं चला रही है, इस योजना का सारा दारोमदार ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय पर है. इस मंत्रालय पर बहुत बड़ी  ज़िम्मेवारी है. सीपी जोशी इस मंत्रालय के मंत्री हैं. सरकारी योजनाओं के ज़रिए पंचायतों का विकास और संप्रग सरकार की नरेगा जैसी पायलट प्रोजेक्ट में भारी संख्या में अनियमितताओं की खबर आ रही है. सीपी जोशी यह दावा करते हैं कि वह सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बहुत क़रीबी हैं. शायद इसकी दुहाई देकर ही वह मंत्रालय के कामकाज पर कम ध्यान देते हैं. सेलिब्रिटी राजनेता बनने की चाहत रखने वाले सीपी जोशी की दिलचस्पी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की राजनीति में  ज़्यादा है!  उन्होंने हाल ही में राजस्थान क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता है. उनके पास ग्रामीण विकास और सरकारी योजनाओं के लिए  ज़्यादा व़क्त नहीं बच पाता है. इन योजनाओं का रिश्ता देश के ग़रीब, मज़दूर और गांव में रहने वाली भोलीभाली जनता से है. इसलिए देश की अति महत्वपूर्ण योजनाओं के प्रति उनकी उदासीनता चिंता की बात है. क्या राहुल गांधी जी का ऐसे मंत्री पर ध्यान नहीं जाता?
यह दु:खद हालात तब हैं, जबकि नरेगा का अपरोक्ष नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे हैं. सी पी जोशी को भी उनका संरक्षण प्राप्त है. राहुल गांधी के खिदमतगारों में जोशी खास जगह रखते हैं. केंद्रीय मंत्री बनने से पहले जोशी अपने गृह प्रदेश राजस्थान में ग्रामीण विकास और शिक्षा मंत्री रहे हैं. कहते हैं कि वह तब तक कार्यकुशल मंत्री माने जाते थे, पर केंद्रीय मंत्री बनने के बाद जोशी की कार्यकुशलता का आलम यह है कि वह न स़िर्फ राहुल गांधी की महत्वाकांक्षी योजना को पलीता लगा रहे हैं, बल्कि कांग्रेसजनों के उस सपने के पूरा होने में भी रोड़ा बन रहे हैं, जिसमें राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है.
डॉ. सी पी जोशी बुद्धिजीवी माने जाते हैं. एक विद्वान नेता. पर उनकी सबसे बड़ी खामी यह है कि वह सोचते बहुत हैं. उन्हें नज़दीक से जानने वाले तो यह भी कहते हैं कि वह स़िर्फ सोचते ही हैं. लिहाज़ा सामाजिक विकास की योजनाएं ज़मीन पर उतर ही नहीं पातीं. वे जोशी की सोच में ही दम तोड़ देती हैं. योजना आयोग के आंकड़े इसकी गवाही भी देते हैं. 2007-08 में नरेगा की राशि का 82 फीसदी हिस्सा राज्यों में खर्च हुआ, जबकि 2008-09 में स़िर्फ 72 फीसदी ही खर्च हुआ. जबकि नरेगा कोष की राशि में पूरे 19 फीसदी की ब़ढोतरी कर दी गई थी. यूपीए के लिए नरेगा कितनी महत्वपूर्ण योजना है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरी राशि खर्च न होने के बावजूद 2009-10 का नरेगा का बजट 39,100 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
लेकिन जोशी को इस बात की फिक्र नहीं है कि वह नरेगा की समूची व्यवस्था और प्रणाली को किस तरह दुरुस्त करते, ताकि यूपीए शासनकाल में आम आदमी को उसका पूरा फायदा मिल सके. जोशी तो राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में धूनी रमाए बैठे हैं. हालांकि ज़ुबानी तौर पर सी पी जोशी मानते हैं कि नरेगा के तहत वह श्रमिकों का नियमित भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. इसकी वजह वह ग्रामीण डाकघरों की व्यवस्थागत खामियां बताते हैं. कहते हैं कि उनके पास पैसा वितरण करने की उचित प्रणाली नहीं है. ग्रामीण डाकघर साधनविहीन हैं, पर अपने कार्यकाल में नरेगा के असफल होने और इसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला होने का ठीकरा वह राज्य सरकारों के माथे फोड़ते हैं. बकौल जोशी, प्रदेश सरकारें नरेगा को लेकर गंभीर नहीं हैं. नरेगा के कार्यान्वयन में जितनी भी कमियां हैं, वे प्रदेश सरकार की काहिली की वजह से हैं. हां राजस्थान पर ज़रूर सी पी जोशी की कृपा है. बावजूद उसके वहां भी नरेगा का हाल बुरा है. राजस्थान के लगभग सभी ज़िलों से नरेगा श्रमिकों के एक साल के बकाया भुगतान और निर्माण कार्य में गड़बड़ियों की शिकायतें खूब आई हैं. कुछ मामलों में जांच की जा रही है. बाक़ी मामले सी पी जोशी के ठंडे बस्ते में पड़े हैं. सरकारी पैसे के दुरुपयोग की बात तो बेहद आम है.
हालांकि सी पी जोशी को इस बात का बड़ा गुमान है कि उनके मंत्रालय को खुद राहुल गांधी दिशा दे रहे हैं, पर महामना डॉ. सी पी जोशी आप क्या कर रहे हैं? देश के दूसरे राज्यों में नरेगा की जो दुर्दशा हो रही है उसे छोड़िए, आपके प्रदेश में ही नरेगा की ऐसी-तैसी करने में अधिकारी लगे हैं. उदाहरण के तौर पर आप मिठौरा विकासखंड के ग्राम भागाटार को ही ले लीजिए. जहां के निवासियों ने बड़ी मशक्कत से आप तक यह शिकायत पहुंचाई कि संबंधित अधिकारी और ग्राम प्रधान मज़दूरों का शोषण कर रहे हैं. उनकी मज़दूरी से अपनी जेब भर रहे हैं. पिछले दो सालों से वहां के मज़दूरों को चार से छह दिन ही काम मिला है. आपने क्या कर लिया? वहां हालात आज भी वैसे ही हैं. पीड़ित और शोषित.
वैसे ज़ुबानी जमा खर्च के तौर पर आपने भरोसा ज़रूर दिया था कि पारिश्रमिक भुगतान में पारदर्शिता के लिए आप नए विकल्प आज़मा रहे हैं. तो जोशी जी! क्या हुआ उन विकल्पों का? आपके संसदीय क्षेत्र भीलवाड़ा के दलित मज़दूर दलित अधिकार मोर्चा बनाकर अपने अधिकारों की जंग लड़ रहे हैं. पर उन्हें आपका मंत्रालय सहयोग करना तो दूर, उनकी पीड़ा पर कान तक नहीं दे रहा है. अब ऐसी दु:खद स्थिति में कांगे्रस महासचिव राहुल गांधी करते रहें दलितों के घरों का आधी रात में दौरा. बिताएं उनकी टूटी- झूलती खाटों पर रात. आपकी बला से. आप तो बस इससे ही खुश हैं कि आप राहुल बाबा के नज़दीकी हैं. आपका कोई क्या बिगाड़ लेगा. पर जोशी जी, आप अपने इन नायाब कारनामों से राहुल गांधी का भविष्य ज़रूर बिगाड़ देंगे. उनकी मां सोनिया गांधी का सपना भी तोड़ देंगे और उदारवादी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आम आदमी की नज़र में झूठा यक़ीनन साबित कर देंगे.
यूपीए सरकार के तुरुप के पत्ते नरेगा में हो रही धांधली और हेराफेरी से ग्रामीणों की नाराज़गी इतनी ब़ढ चुकी है कि सरकार से मायूस ग्रामीण अब खुद ही ग़बन और धांधलियों की सीडी बनाकर ज़िला कलेक्टर को सौंप रहे हैं. कल्याणपुर के ज़िला कलेक्टर रवि जैन ने ग्रामीण विकास मंत्रालय में ग्रामीणों द्वारा भेजी गई ऐसी ही सीडी शिकायतों के साथ जमा कराई गई है. ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि शासन की व्यवस्था कुछ होती है और धरातल की कुछ. 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी की बात ज़रूर की जाती है, पर हक़ीक़त में यह 25-30 दिनों में ही सिमट जाती है.
राज्यसभा के शीत सत्र में प्रश्नकाल के दौरान पूरक प्रश्नों का उत्तर देते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. सी पी जोशी ने भी यही जानकारी दी कि वर्ष 2008-09 में नरेगा के तहत 15 करोड़ लोग काम करने के हक़दार थे, पर काम महज़ 14 प्रतिशत लोगों ने ही किया. वजह यह बताई कि चूंकि अभी नरेगा के तहत शारीरिक श्रम के काम ही हो रहे हैं. इसलिए ज़्यादातर लोग इससे जुड़ना नहीं चाहते. न्यूनतम दिहाड़ी की राशि का कम होना भी एक बड़ा कारण है. लिहाज़ा सरकार ने दिहाड़ी 100 रुपये प्रतिदिन करने का निर्णय लिया है.
पर यहां मूल सवाल फिर अपनी जगह क़ायम है. जब तक नरेगा को कार्यान्वित करने वाली पूरी प्रणाली सुदृढ़ और पारदर्शी नहीं बनेगी. नरेगा आम आदमी के किसी काम की नहीं, बल्कि दिहाड़ी की रक़म ब़ढने से घोटालों की तादाद ब़ढने का संशय ज़रूर है. सी पी जोशी इस सवाल पर फिर अपना रटा-रटाया जुमला आश्वासन का जामा पहनाकर दोहरा देते हैं, हम पूरी प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी बनाएंगे. ज़्यादा पुख्ता विकल्पों को आज़माएंगे. चलिए जोशी जी, हम एकबारगी फिर आपकी बातों का यक़ीन कर लेते हैं, पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को आप पर भरोसा नहीं है, क्योंकि वह इस वास्तविकता से भलीभांति वाक़ि़फ हैं कि नरेगा की कलई खुलना यानी कि यूपीए सरकार का पतन होना. और, इसीलिए मनमोहन सिंह ने बेहद सख्ती के साथ आपके मंत्रालय का रिपोर्ट कार्ड आपसे मांगा है. साथ में आपकी भविष्य की उन योजनाओं का लेखाजोखा भी मांगा है, जिनके बूते नरेगा यूपीए के आम आदमी के लिए वाकई कल्याणकारी हो सके. राहुल गांधी जिस तरह नरेगा का गुणगान करते हैं और उसकी सफलता के किस्से सुनाकर विरोधियों को चित करने का पासा फेंकते हैं, वह वार राहुल गांधी के गले की ही फांस न बन जाए

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