Ruby Arun

Sunday, 16 October 2011

मैं किसकी हूँ .... माजी की ...या .....मुस्तकबिल की .....


तर्कों -तलब की रहगुज़र में ...दो चेहरे ..हर वक़्त नज़र में ...
दोनों एक दुसरे से नाखुश ....दोनों बाह्म दीगर खफा हैं ...
फिर भी इस दिलचस्प सफ़र में क़दम क़दम पर ...मोड़ एक ऐसा आ  जाता है ...की 
दोनों आपस में गडमड हो जाते हैं ..
पल दो पल को आड़ में एक दुसरे की जैसे खो जाते हैं ....
एक ऐसे ही मोड़ पर अब मैं रुकी खड़ी हूँ......
आड़ से एक दुसरे की निकल ...अपनी अपनी ..अलग अलग ..पहचान बनाकर ..
अब दोनों ही मुझसे पूछ रहे हैं ......की मैं उनमे से .......किसकी हूँ .........
मैं कशमकश के आलम में हूँ ........
एक से मेरा साथ पुराना .....और एक है मेरा ख्वाब सुहाना ......
एक से मेरे माजी का गहरा रिश्ता है ...एक मेरे मुस्तकबिल को अपना कहता है ...
मैं खुद अपने हाल पे हैरां-हैरां ....खुद से ही उलझी पड़ी हूँ ..........
मैं किसकी हूँ ...................
माजी की ......या .......मुस्तकबिल की ..........

1 comment:

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