Ruby Arun

Wednesday 30 October 2013

अखिलेश यादव ----एक बेचारे मुख्यमंत्री .........Ruby Arun

त्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इन दिनों महज़ नाम के मुख्यमंत्री हैं उत्तर प्रदेश को वे नहीं बल्कि प्रदेश के नौकरशाह चला रहे हैं . खासतौर पर यह ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री की सचिव अनीता सिंह और उनके कुछ फर्माबदार  नौकरशाहों ने संभाली हुयी है . इन अधिकारियों कि हनक ऐसी है कि इनकी मर्जी के आगे मुख्यमंत्री के आदेशों कि भी कोई अहमियत नहीं होती . ऐसे एक दो नहीं बल्कि दर्जनों उदाहरण हैं जो इस बात को साबित करते हैं कि अनीता सिंह और उनके हिमायती नौकरशाहों ने , करिश्माई नेतृत्व से उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को अभूतपूर्व जीत दिलाने वाले अखिलेश यादव को आज एक बेहद कमज़ोर और दिशाहीन मुख्यमंत्री बना दिया है .नौकरशाहों के बेलगाम होने के पीछे की वज़ह , अखिलेश यादव का अपना ही परिवार है . 

रूबी अरुण
अखिलेश यादव के परिवार का हर सदस्य अपने आप में मुख्यमंत्री है . सबके अपने अपने अधिकारीयों का गुट है और अपने अपने हिस्से की सत्ता है . और इन सभी सुपर मुख्यमंत्रियों के लिए अखिलेश बच्चे हैं . उनके टीपू . ( टीपू , अखिलेश के घर का नाम है )
इन तमाम स्व-घोषित मुख्यमंत्रियों में से कुछ का राज –काज दिल्ली से चलता है , कुछ का नोएडा से . कुछ लखनऊ में बैठ कर मनमाने फैसले करते-कराते हैं. बाकी बचे लोग सैफई में बसते हैं . राज्य में लोगों के बीच यह चर्चा आम है कि उत्तर प्रदेश में कुल साढ़े छह मुख्यमंत्री हैं . इनमे से छह , मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, राम गोपाल यादव, आज़म खान , मुलायम सिंह की पत्नी साधना गुप्ता और मुख्यमंत्री की सचिव अनीता सिंह हैं. बाकी जो आधा बचा , वो खुद अखिलेश यादव हैं . मज़े की बात ये है कि इन सबके अपने अपने , अलग अलग सचिवालय भी हैं और अपने अपने हिस्से के अधिकारी भी . ये ऐसे अधिकारी हैं जो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बात करना , उनसे निर्देश लेना भी ज़रूरी नहीं समझते .
राज्य में भ्रष्ट अधिकारीयों का एक मज़बूत तंत्र बन चूका है , जो अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में नाकारा साबित कर रहा है और ईमानदार अधिकारियों को जलील और शर्मसार कर रहा है . अनिल कुमार गुप्ता, जीवेश नंदन और प्रवीर कुमार ऐसे आईएएस अधिकारी हैं  ये नेता जी और अनीता सिंह के चहेते हैं . लिहाज़ा  इनके पास एक साथ छह –छह महत्वपूर्ण विभागों के प्रभार हुआ करते हैं . एक और अधिकारी हैं , राकेश बहादुर . मायावती सरकार में ये नोएडा के चेयरमैन होने के साथ-साथ यमुना एक्सप्रेस-वे इंडस्ट्रीयल डवलपमेंट अथॉरिटी के प्रमुख भी रहे. इन पर लैंड अलोटमेंट में तक़रीबन ४ हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटाले का आरोप है . मायावती ने उस वक़्त इन्हें सस्पेंड कर दिया था . लेकिन सपा सरकार में राकेश बहादुर का सिक्का खूब चलता है . पंधारी यादव , जो मुख्यमंत्री के विशेष सचिव हैं . इनके कार्यकाल में मनरेगा में करोड़ों का घोटाला हुआ था . आज ये मुख्यमंत्री सचिवालय में बैठकर सारे उलटे –सीधे काम करते हैं .
ऐसे तमाम अधिकारीयों की फेहरिश्त है जो मुख्यमंत्री के आदेशों और सलाह मशविरे से इतर अपने अपने आकाओं का हुक्म बजाते हैं . अगर बात सिर्फ लखनऊ की ही करें तो वहां जावेद उस्मानी- मुख्य सचिवअनीता सिंह- सचिव मुख्यमंत्रीशंभू सिंह- सचिव मुख्यमंत्रीएसी शर्मा – डीजीपी,सुभाष चंद्रा- आईजी लखनऊ रेंजनवनीत सिकेरा- डीआईजी लखनऊ रेंजअनुराग यादव- डीएम लखनऊएसएन यादव- सीएमओ लखनऊबासुदेव यादव- निदेशक माध्यमिक शिक्षा आदि अधिकारियों के लिए मुख्यमंत्री की कोई अहमियत नहीं , क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनके सरपरस्तों  के सामने अखिलेश यादव की बतौर मुख्यमंत्री कोई बिसात ही नहीं है . इनमे सबसे ज्यादा बोलबाला मुख्य सचिव अनीता सिंह  और उनके आईपीएस पति आईजी सुभाष चंद्रा का चलता है . अनीता सिंह यूँ तो मुख्यमंत्री की सचिव हैं , लेकिन सरकार में उनकी धमक , अखिलेश यादव से कहीं ज्यादा है . वज़ह है मुलायम सिंह यादव से उनके नजदीकी रिश्ते. अखिलेश अनीता सिंह को चाची कह कर संबोधित करते हैं . अनीता सिंह का राज , सपा सरकार में किस क़दर चलता है , इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि मुख्यमंत्री की सचिव होने के बावजूद अनीता सिंह, अखिलेश यादव के प्रेस मीट में , सार्वजानिक कार्यक्रमों में या अधिकारियों के साथ मीटिंग करते वक़्त मुख्यमंत्री के साथ मौजूद होना भी ज़रूरी नहीं समझतीं . किस अधिकारी का तबादला कहाँ होना है और किसे किस पद पर किस जिले में बिठाना है . यह सब कुछ अनीता सिंह ही तय करती हैं , बिना अखिलेश यादव से पूछे या बताये. इस बारे में अनीता सीधे सीधे मुलायम सिंह यादव से निर्देश लेती हैं और फिर उन्ही तक सूचनाये पहुंचाती हैं . अनीता सिंह न सिर्फ मुलायम सिंह की खास हैं बल्कि उनकी पत्नी साधना गुप्ता की भी भरोसेमंद हैं . साधना गुप्ता , अनीता सिंह और सचिवालय में विशेष सचिव रह चुके हीरालाल गुप्ता को सीधे आदेश देकर अपने काम कराती हैं . मुख्यमंत्री सचिवालय में बैठे पंधारी यादव , गंगाराम , जगजीवन से लेकर शम्भू यादव तक अखिलेश की बजाय ,मुलायम सिंह से आदेश लेते हैं . कई मामलों में तो काम हो भी जाता है और अखिलेश यादव को खबर तक नहीं होती .
मुज़फ्फरनगर दंगों के मामले में भी यही हुआ था . अफसरों ने मुख्यमंत्री को सही स्थिति नहीं बता कर गुमराह किया . जब मुज़फ्फरनगर में हिंसा की पहली वारदात हुयी , तभी मुख्यमंत्री ने वहां  तैनात अधिकारियों को सस्पेंड करने का मन बना लिया था, लेकिन अनीता सिंह ने इस बात  को अपनी इज्ज़त का सवाल बना लिया और किसी भी अधिकारी का तबादला तक नहीं होने दिया . दरअसल पश्चिमी उप्र के पूरे इलाके मे कमिश्नरडीएमआईजीडीआईजी से लेकर दरोगा तक की नियुक्तियां अनीता सिंह की मर्जी से होती हैं . ऐसे में वह अपने प्रिय और भरोसे केअधिकारियों को कैसे सज़ा देतीं .  अनीता सिंह की इस हेकड़ी की वज़ह से सैकड़ों जाने चली गयीं पर मुख्यमंत्री का वश नहीं चला . अखिलेश यादव ने अपनी पसंद के सिर्फ एक आईएएस अधिकारी संजय अग्रवाल की मुख्य सचिव के तौर पर नियुक्ति की थी . लेकिन अनीता सिंह को ये भी रास नहीं आई . उन्होंने अखिलेश यादव की मर्जी के खिलाफ जाकर महज़ बारह घंटों में उनका तबादला करवा दिया . अखिलेश ने अपनी नाराजगी भी दिखाई .पर इससे ज्यादा वो कुछ कर नहीं सके .

दरअसल , अखिलेश यादव ने जब मुख्यमंत्री पद कि शपथ ली थी तो उनके पिता मुलायम सिंह यादव को ये लगा कि उनका   बेटा अनुभवहीन है उसे कोई प्रशासनिक तजुर्बा नहीं है लिहाज़ा उन्होंने अपनी सबसे भरोसेमंद अधिकारी अनीता सिंह को अखिलेश का सचिव बना दिया . १६ मार्च २०१२ को अखिलेश ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और उसके २४ घंटे के अन्दर मायावती के कैबिनेट सेक्रेटरी शशांक शेखर सिंह को हटा कर उनके केबिन में अनीता सिंह को बिठा दिया गया . अनीता को मुलायम सिंह ने ये निर्देश दिए कि वो अखिलेश यादव को राज काज चलाने में मदद करें . ताकि अनुभवहीनता की स्थिति में वे कोई गलत फैसला ना ले लें . साथ ही अखिलेश यादव कि सारी गतिविधियों की भी उन्हें खबर देती रहें ताकि पार्टी के नेताओं –मंत्रियों और कार्यकर्ताओं में यही सन्देश जाए कि मुख्यमंत्री भले ही अखिलेश यादव हैं पर शासन मुलायम सिंह यादव का ही है . मुलायम सिंह की यही ख्वाहिश , अखिलेश के गले की फांस बन गयी है . प्रदेश के अधिकारी इसी स्थिति का मनमाना फायदा उठा रहे हैं .
अखिलेश को कागज़ी मुख्यमंत्री साबित करने में रही सही कसर मुलायम सिंह के छोटे भाई रामगोपाल यादव पूरी कर देते हैं . रामगोपाल यादव का मुख्यमंत्री सचिवालय में ही बाकायदा एक अपना निजी सचिवालय है . जिसमे रामगोपाल यादव के विश्वस्त अधिकारियों की तैनाती है . रामगोपाल यादव एक्ट भी मुख्यमंत्री की ही तरह करते हैं . हद तो तब हो गयी जब इसी साल की शुरुआत में सपा की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक के बाद १८ जनवरी को रामगोपाल ने मुख्यमंत्री सचिवालय की पांचवी मंजिल पर मुख्यमंत्री की जगह खुद बैठकर सभी सीनियर आईएएस अधिकारियों की बैठक तक ले ली . मुलायम सिंह के दुसरे भाई शिवपाल यादव चूँकि मुख्यमंत्री नहीं बन सके , तो वे अपनी खुन्नस भी कुछ इसी तरह की हरकतें करके निकलते हैं . उन्होंने भी इस साल जनवरी में एक सपा कार्यकर्त्ता सुरभि शुक्ला को प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा परिषद् का चेयरमैन बना दिया था . अखिलेश को यह जानकारी अगले दिन अखबारों में छपी खबर के ज़रिये मालूम पडी .उन्होंने अपने महज़ २६ साल के बेटे अंकुर यादव को दो हज़ार करोड़ रुपये के सालाना बज़ट वाले उत्तर प्रदेश प्रादेशिक कोऑपरेटिव फेडरेशन (यूपीपीसीएफ) का चेयरमैन नियुक्त करवा दिया है . जबकि अंकुर यादव की शिक्षा , योग्यता और उम्र इस पद के लायक कतई नहीं है. इन सबके बीच हैं करेले पर नीम चढ़ा सरीखे सपा के मुसलमान चेहरे की नुमाईंदगी करने वाले आज़म खान , जो गाहे –बगाहे अधिकारियों और प्रदेश की जनता पर रुआब गांठने के लिए सार्वजानिक सभाओं और बैठकों में अखिलेश यादव को बेटा और उनके घरेलु नाम टीपू से बुलाने लगते हैं . विधानसभा के उतरशती समारोह में भी आज़म खान ने यही हरक़त की , जो अखिलेश यादव को बेहद नागवार गुज़री. अखिलेश ने वहीँ आज़म खान को टोका भी . पर वे नहीं माने और मुख्यमंत्री की किरकिरी करते रहे .
२०१२ के चुनाव के समय अखिलेश यादव की छवि पढ़े लिखे और अपने फैसले खुद लेने वाले नेता की बनी थी वो अब बिलकुल ही धुल चुकी है . अखिलेश जिन आदर्शों और सिद्धांतों की बात करते थे. उनकी सरकार में उन बातों पर कहीं अमल नहीं होता .राजा भैया और विनोद सिंह जैसे अपराधी नेताओं को मंत्रिमंडल में इसलिए शामिल कर लिया जाता है ताकि उनका पारम्परिक वोट बैंक खिसक ना जाए .
सवाल यह उठता है कि अखिलेश यादव पढ़े –लिखे , सजग और बुद्धिजीवी व्यक्ति हैं फिर भी वे इन गलत बातों को बर्दाश्त क्यों कर रहे हैं ? अपनी फजीहत वे खुद क्यों करा रहे हैं ? वे इतने लाचार और बेबस भी नहीं . प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं . उनके साथ भरी जनसमर्थन है . फिर भी अखिलेश एक बेचारे मुख्यमंत्री का तमगा लगाए क्यों घूम रहे हैं 

अखिलेश यादव के एक बेहद करीबी सम्बन्धी इस बारे में बताते हैं कि अखिलेश जान बूझ कर ऐसा कर रहे हैं . वे नहीं चाहते कि उनके किसी भी एक काम की वज़ह से उनके पिता मुलायम सिंह यादव का प्रधानमंत्री बनने  का सपना साकार न हो सके . अखिलेश २०१४ के आम चुनावों तक सब कुछ ऐसे ही बनाए रखना चाहते हैं , जहाँ उनके चाचाओं , सगे –सम्बन्धियों का अहम् संतुष्ट होता रहे . भरोसेमंद अधिकारियों का साथ बना रहे . उनके कुनबे और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच कहीं भी बगावती सुर ना फूटे . जब लोकसभा चुनाव हो जायेंगे . स्थितियां स्पष्ट हो जायेंगी , तब अखिलेश पूरी तरह प्रदेश की बागडोर संभाल लेंगे और अपनी मर्जी के मुताबिक़ , बिना किसी दखलंदाजी के सरकार चलाएंगे .
हो सकता है कि ऐसा हो . पर इसके साथ डर इस बात का भी है कि जिस क़दर तेज़ी से प्रदेश में माहौल बिगड़ रहा है , उसमे अखिलेश के चेतते –चेतते कहीं हालात बेकाबू ना हो जाएँ और प्रदेश हाथ से फिसल ही ना जाए .

No comments:

Post a Comment