Ruby Arun

Tuesday 22 October 2013

नरेन्द्र मोदी के विकास का रोड मैप आख़िरकार है क्या - Ruby Arun

ऐसे तमाम सवालात हैं जो नरेन्द्र मोदी के भाषणों की बिना पर पैदा होते हैं. इनमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि नरेन्द्र मोदी के विकास का रोड मैप आख़िरकार है क्या? आज देश बेरोज़गारी, भूख, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, महंगाई, सीमा पर घुसपैठ और घोटालों जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. अगर मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो आख़िरकार ऐसी कौन सी जादू की छ़डी घुमाएंगे, जिससे सभी मुश्किलें चुटकियों में हल हो जाएंगी? कांग्रेस की नीतियों से अलग, उनकी क्या रणनीति होगी? यह मोदी को अभी ही देश को बताना होगा. लेकिन मोदी ऐसा करते दिखाई नहीं दे रहे. वे स़िर्फ आलोचनाएं करते हैं. केंद्र सरकार के कामकाज का मखौल उड़ाते हैं. तोहमतें लगाते हैं. पर इन तमाम मर्जों का इलाज क्या है, मोदी ये नहीं बताते. - नरेन्द्र मोदी के भाषणों में कहीं भी आर्थिक, विदेश, रक्षा, खाद्य, उद्योग आदि उन नीतियों की चर्चा नहीं होती, जिनके बूते वे भारत को विश्‍व का अग्रणी देश बनाने का जतन करेंगे. देश के लोगों के सामने अपने आपको भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करते समय नरेन्द्र मोदी की भाव-भंगिमा आक्रामक और ऊर्जावान होती है, पर उनकी बातों में भारत के बेहतर भविष्य का कोई स्पष्ट खाका नहीं होता. दूरदृष्टि नहीं होती. देश की समस्याओं की फेहरिश्त तो होती है, पर किसी मसले का समाधान नहीं होता. ऐसे तमाम सवालात हैं जो नरेन्द्र मोदी के भाषणों की बिना पर पैदा होते हैं. इनमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि नरेन्द्र मोदी के विकास का रोड मैप आख़िरकार है क्या? आज देश बेरोज़गारी, भूख, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, महंगाई, सीमा पर घुसपैठ और घोटालों जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. अगर मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो आख़िरकार ऐसी कौन सी जादू की छ़डी घुमाएंगे, जिससे सभी मुश्किलें चुटकियों में हल हो जाएंगी? कांग्रेस की नीतियों से अलग, उनकी क्या रणनीति होगी? यह मोदी को अभी ही देश को बताना होगा. लेकिन मोदी ऐसा करते दिखाई नहीं दे रहे. वे स़िर्फ आलोचनाएं करते हैं. केंद्र सरकार के कामकाज का मखौल उड़ाते हैं. तोहमतें लगाते हैं. पर इन तमाम मर्जों का इलाज क्या है, मोदी ये नहीं बताते. मोदी ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में जोशीले और कुछ कर गुज़रने का सपना लिए बैठे नौजवान छात्रों के बीच यह कहा कि चुनाव आ गए हैं और अब देश का भविष्य तय होना है.  देश थम गया है और इसे गति देनी होगी, तब लगा था कि मोदी वहां मौजूद युवाओं के सामने कोई ऐसा खाका खींचेंगे जो भरोसा जगाएगा कि हां, इसी रास्ते पर चलकर हम अपने भविष्य को बेहतर और उज्ज्वल बना सकते हैं. लेकिन मोदी ने ऐसी कोई राह नहीं सुझाई. उन्होंने बस इतना कहा कि हर देशवासी एक सपना बुने तो उसके सच होने पर हमारा देश एक सौ पच्चीस क़दम आगे बढ़ जाएगा. पर कैसे और किस दिशा में, मोदी ने इसका कोई तरीका नहीं बताया. नरेन्द्र मोदी के भाषणों में कहीं भी आर्थिक, विदेश, रक्षा, खाद्य, उद्योग आदि उन नीतियों की चर्चा नहीं होती, जिनके बूते वे भारत को विश्‍व का अग्रणी देश बनाने का जतन करेंगे. देश के लोगों के सामने अपने आपको भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करते समय नरेन्द्र मोदी की भाव-भंगिमा आक्रामक और ऊर्जावान होती है, पर उनकी बातों में भारत के बेहतर भविष्य का कोई स्पष्ट खाका नहीं होता. दूरदृष्टि नहीं होती. देश की समस्याओं की फेहरिश्त तो होती है, पर किसी मसले का समाधान नहीं होता. बीजेपी कैम्पेन कमेटी के अध्यक्ष बनने के बाद मोदी ने पहली बार दक्षिण भारत में जनसभा को संबोधित किया. जहां वे देश की सीमाओं की रक्षा के मसले पर ख़ूब गरजे-बरसे. मोदी ने कहा कि सरहद पर हमारे सैनिकों को मारा जा रहा है, पर वोट बैंक की राजनीति में उलझी यूपीए सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए राष्ट्र की सुरक्षा और सैनिकों की ज़िन्दगी कोई मायने नहीं रखती. लेकिन मोदी यह नहीं बताते कि भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उनके पास कश्मीर मसले का क्या हल होगा और भारत-पाक सीमा पर फैले आतंकवाद तथा सीमा पर घुसपैठ की समस्या पर उनकी कार्रवाई क्या होगी. नरेन्द्र मोदी माओवाद और आतंकवाद की बात करते हैं. उससे होने वाले नुकसान को बताते हैं, पर वे ये नहीं बताते कि जब वे प्रधानमंत्री बनेंगे, तब नक्सली गतिविधियों को समाप्त करने की उनकी क्या रणनीति होगी. वे जल, जंगल और ज़मीन के मुद्दे पर लड़ते और पिसते आदिवासियों के विकास के लिए ऐसा क्या करेंगे कि वे नक्सलवाद की राह छोड़ दें. संविधान में अनुसूचित जनजातियों के लिए नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था तो है, पर उस नौकरी के लिए उनके पास जिस शैक्षिक आधार का होना ज़रूरी है, उसके लिए बतौर प्रधानमंत्री मोदी की क्या नीतियां होंगी. नरेन्द्र मोदी कारपोरेट घरानों के सबसे पसंदीदा नेताओं में शुमार किए जाते हैं. यही कारपोरेट घराने वन्य क्षेत्रों में जमीन और खनिज संपदाओं का दोहन करते हैं. इन्हीं घरानों के दम पर मोदी के गुजरात ने विकास पथ पर दौड़ लगाई है. तो क्या मोदी जब प्रधानमंत्री बन जाएंगे तब उन औद्योगिक घरानों की नकेल थाम सकेंगे जो आदिवासियों के जीवन और पर्यावरण के लिए घातक हैं? माओवादी आतंक और पूंजीवादी आतंक से दबे-सहमे आदिवासियों को वे विकास की मुख्यधारा में कैसे लेकर आएंगे? नरेन्द्र मोदी के भाषणों और आश्‍वासनों में इन बातों का कोई ज़िक्र नहीं होता. पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में अध्यापकों और छात्रों की भारी भीड़ से नरेन्द्र मोदी केंद्र सरकार पर आक्रामक होते हुए कहते हैं कि दिल्ली की सरकार में बैठे लोग खाद्य सुरक्षा बिल लेकर आए हैं और दावे तो ऐसे कर रहे हैं मानो आपकी थाली में खाना परोस दिया हो. महज़ क़ानून बनाने से आपकी थाली में खाना नहीं आने वाला. पर नरेन्द्र मोदी इस बात पर बिल्कुल रोशनी नहीं डालते कि ग़रीब की थाली में खाना आएगा तो कैसे आएगा. मोदी के ज़ेहन में कौन से ऐसे उपाय हैं, जिसके ज़रिये ग़रीब की थाली और पेट ख़ाली नहीं रहेंगे. मोदी ने यह भी नहीं बताया कि खाद्य सुरक्षा क़ानून देश के लिए ज़रूरी है या नहीं. अगर ज़रूरी है तो उसे प्रभावशाली तरी़के से लागू करने और और हर ग़रीब तक उसका लाभ पहुंचाने के लिए उस विधेयक में किन सुधारों की ज़रूरत है. नरेन्द्र मोदी खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के ख़िलाफ़ हैं. इससे जुड़े ऩफे-नुकसान की वजह से नहीं बल्कि उन्हें लगा कि भारत में एफडीआई लागू हो जाने से इतालवी व्यापारियों का फ़ायदा होगा. जब केंद्र सरकार ने इस बाबत फैसला लिया तो नरेन्द्र मोदी ने यही सवाल मनमोहन सिंह से किया. जबकि नरेन्द्र मोदी विदेशी निवेश के ख़िलाफ़ कई मज़बूत तर्क दे सकते थे. जो उनकी बुद्धिमता को ही ज़ाहिर करता. हैदराबाद में मोदी का भाषण सुनने के लिए लोगों ने पांच-पांच रुपये का टिकट ख़रीदा और बेहद उत्साह से उन्हें सुनने को एकत्रित हुए. मोदी ने केंद्र सरकार को भारतीय सीमा में चीनी सेना के घुसपैठ के मसले पर ख़ूब कोसा. मोदी ने कहा कि चीनी सैनिक भारतीय सीमा का अतिक्रमण करते हैं लेकिन भारत सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं, उसे तो बस अपने संबंधों की चिंता है. पर नरेन्द्र मोदी वहां उपस्थित भारी जनसमूह को यह बताना उचित नहीं समझते कि जब वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो उनकी सरकार की विदेश नीति इन मुद्दों पर क्या होगी. क्या वे इन समस्याओं को सुलझाने की ख़ातिर युद्ध का रास्ता अख्तियार करेंगे या फिर इन मसलों को वे कुटनीतिक बातचीत के ज़रिये सुलझाने का उपक्रम करेंगे. महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर मोदी अहमदाबाद की एक जनसभा में कहते हैं कि सीता और सावित्री के देश में माताओं और पुत्रियों की सुरक्षा भारतीय समाज में एक बड़ा सवाल है. इस बड़े सामाजिक व आपराधिक मसले पर मोदी और बताने की बजाय उल्टे सभा में उपस्थित पुरुषों की भीड़ से यह सवाल करते हैं कि हमारी मौजूदगी के बाद भी हमारी बहनें शांतिपूर्ण जीवन नहीं जी पा रही हैं तो हमें मर्द कहलाने का अधिकार है क्या. यहां भी मोदी सवाल करते हैं, कोई हल नहीं सुझाते. मार्च महीने में नरेन्द्र मोदी ने एक राष्ट्रीय पत्रिका के सालाना कार्यक्रम में कहा कि देश से बेरोजगारी दूर की जा सकती है. नए रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं. प्राकृतिक संपदाओं के बल पर देश समृद्धि की नई मिसाल पेश कर सकता है. जैसा उनके राज्य गुजरात में हुआ. जहां उन्होंने काम के प्रति समर्पित अधिकारियों की फौज तैयार की. उनके निर्देशन में सार्वजानिक कंपनियों के संचालन हेतु एक उच्च स्तरीय पेशेवर कार्य संस्कृति विकसित की है. अगर ऐसी ही कार्य संस्कृति पूरे देश में लागू कर दी जाए तो देश का कायाकल्प हो जाए. लेकिन मोदी ने इस तथाकथित उच्चस्तरीय कार्य संस्कृति की रूप रेखा नहीं बताई. कुछ ही दिनों के बाद गुजरात विधानसभा के पटल पर राज्य के पीएसयू पर आई कैग की रिपोर्ट ने मोदी के दावों को झुठला दिया. कैग की रिपोर्ट में कहा कि राज्य के ज़्यादातर पीएसयू की योजना और वित्तीय प्रबंधन में बड़ा दोष है. जिसकी वजह से वहां कुल 4052 करोड़ का घाटा हुआ है. अगर सरकार ने ध्यान दिया होता तो इस नुकसान से बचा जा सकता था. इसी जलसे में जावेद नाम के एक दर्शक-श्रोता ने नरेन्द्र मोदी से 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित प्रश्‍न पूछा तो नरेन्द्र मोदी ने जवाब देने से मना कर दिया. दोबारा पूछने पर मोदी ने बड़ी ही रुखाई से कहा कि इस मुद्दे पर मैं पहले जवाब दे चुका हूं, आप इंटरनेट पर देख लीजिए. इंटरनेट पर राईटर्स के संवाददाता रॉस कॉल्विन द्वारा लिया गया नरेन्द्र मोदी का एक इंटरव्यू है, जिसमें मोदी इस सवाल के जवाब में यह कहते नज़र आते हैं कि लोगों को आलोचना करने का अधिकार है. हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण होता है. यदि मैंने कुछ गलत किया हो, तो मैं स्वयं को अपराधी महसूस करूंगा. निराशा तब आती है, जब आपको ये लगता है कि मैं पकड़ा गया. मैं चोरी कर रहा था और मैं पकड़ा गया. मेरे मामले में ऐसा नहीं है. गौर कीजिए. नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट जवाब नहीं दिया है. उन्होंने जवाब के रूप में सिर्फ शाब्दिक जाल बुने हैं. बहरहाल, नरेन्द्र मोदी ने एसआरसीसी के मंच से कहा कि उन्होंने देश की पचास फीसदी जीडीपी को एक छत के नीचे लाने में कामयाबी हासिल की है, जिसकी वज़ह से गुजरातियों का जीवन स्तर बेहतर हो गया है. उनकी जीवन शैली, खान-पान, रहन-सहन का स्तर बहुत ऊंचा हो गया है. पर इसी महीने यानी की अक्टूबर महीने की शुरुआत में ही जब कैग की रिपोर्ट आई तो मोदी के दावे खोखले साबित हो गए. कैग को गुजरात की महिला एवम शिशु कल्याण मंत्री वसु बेन त्रिवेदी के विभाग की रिपोर्ट के आधार पर जो आंकड़े हासिल हुए, उसके मुताबिक गुजरात सरकार द्वारा साल 2007 से 2012 के बीच जितने बच्चों को पोषित आहार देने का लक्ष्य रखा गया था, उसे पूरा नहीं किया गया. जिसके फलस्वरूप, इस साल के अगस्त महीने तक गुजरात के 14 जिलों में लगभग सवा छह लाख बच्चे कुपोषित पाए गए. गुजरात की वाणिज्यिक राजधानी अहमदाबाद में कुपोषित बच्चों की संख्या 85 हज़ार से भी अधिक है. जबकि इस सिलसिले में गुजरात के 12 राज्यों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. इतना ही नहीं, गुजरात में मेहनत-मजदूरी कर अपनी ज़िन्दगी चलाने वालों की स्थिति भी दयनीय है. नरेन्द्र मोदी हर जगह, गुजरात के विकास की गाथा गाते नहीं अघाते, जबकि पर्यावरण, ग्रामीण स्वास्थ्य, पोषण, रोज़गार और शिक्षा जैसे सामाजिक और बुनियादी मानकों पर गुजरात कई राज्यों से पिछड़ा हुआ है.  राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के शहरी इलाकों में दिहाड़ी मजदूरी की दर महज़ 106 रुपये और ग्रामीण इलाकों में दिहाड़ी मजदूरी की दर मनरेगा से इतर स़िर्फ 83 रुपये है. जो देश में बारहवें स्थान पर है. जबकि केरल में शहरी मजदूरों की दिहाड़ी की दर 218 रुपये और पंजाब में ग्रामीण मजदूरों की दिहाड़ी की दर 152 रुपये है. लेकिन नरेन्द्र मोदी कभी भी अपने भाषणों में इन हकीक़तों का ज़िक्र नहीं करते. नरेन्द्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में कहते हैं कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तो वहां महज़ 11 विश्‍वविद्यालय हुआ करते थे. मगर आज कुल 42 विश्‍वविद्यालय हैं. उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में गुजरात में क्रांतिकारी काम किया है. पर जब हम यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट और यूनिसेफ के आंकड़ों पर नज़र डालते हैं तो पता चलता है कि गुजरात सरकार, सरकारी स्कूलों के शिक्षा स्तर को सुधारने की बजाय निजी स्कूलों पर ज़्यादा जोर दे रही है. मोदी के 42 विश्‍वविद्यालयों में से ज़्यादतर निजी हैं और प्रोफेशनल कोर्सेज़ पर ज़ोर देते हैं. यह पढ़ाई बेहद महंगी है और आम आदमी की पहुंच से बाहर है. यही वज़ह है कि गुजरात में स्कूली छात्रों में ड्राप आउट यानी बच्चों को स्कूल में रोक पाने की दर देश भर में 18वें स्थान पर है. दिल्ली की रैली में विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी हुंकार भरते हैं कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने दागी सांसदों के चुनाव लड़ने सम्बन्धी अध्यादेश को फाड़ कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पगड़ी उछाली है. पर यही मोदी उस वक़्त प्रधानमंत्री पद की गरिमा भूल गए जब उन्होंने नकली लाल किले पर चढ़कर प्रधानमंत्री को ललकारा था. बहरहाल, नरेन्द्र मोदी रोज़गार को लेकर भी बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. वे कहते हैं कि गुजरात में उन्होंने हर हाथ को काम मुहैया करवाया. मोदी यह भी कहते हैं कि अब वे गुजरात से विश्‍व भर में शिक्षक निर्यात करेंगे. ताकि भारत को फिर से विश्‍वगुरु का दर्ज़ा मिल सके. पर मोदी यह काम किस तरीके से अंजाम तक पहुंचाएंगे, इसका कोई जवाब उनके पास नहीं होता. पर अगर हम एनएसएसओ की रिपोर्ट को देखें तो मोदी की चमकीली बातों का अंधेरा पहलू नज़र आता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात में औद्योगीकरण की अंधी दौड़ ने पिछले दस सालों में गुजरात में बेरा़ेजगारों की फौज़ ख़डी कर दी है. इस दौरान गुजरात में रोजगार की दर शून्य के आसपास पहुंच चुकी है. छोटी-छोटी जोत वाले किसानों ने सेज और दूसरी औद्योगिक इकाइयों के लिए अपनी ज़मीनें छोड़ दीं और मोटी रकम लेकर बैठ गए. नतीजतन भूमिहीन और बेरोज़गार लोगों की एक बड़ी जमात गुजरात में इकट्ठा हो गई. नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड यह कहता है कि दुग्ध उत्पादन में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर आता है, जबकि गुजरात चौथे नंबर पर है. पर नरेन्द्र मोदी श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के छात्रों से ये कहते हैं कि गुजरात, सिंगापुर को दूध सप्लाई करता है और भिन्डी की सब्जी यूरोप को. पर हकीक़त यह है कि पूरे देश में भिन्डी का उत्पादन और निर्यात सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश से होता है. नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में कभी भी इस बात का उल्लेख नहीं करते कि एक प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी देश के लिए आर्थिक नीतियां क्या होंगी. विदेशी मामलों पर उनका रुख क्या हो होगा. देश की सुरक्षा और रक्षा सम्बन्धी मसलों पर जो त्रुटियां हैं, उन्हें वे कैसे दूर करेंगे. विश्‍व के अन्य देशों से भारत के मज़बूत व्यापारिक-आर्थिक संबंधों को बनाए रखने और आगे बढ़ाने के लिए उनकी दूरदृष्टि क्या होगी. मोदी जिस विकसित और शक्तिशाली भारत का सपना लोगों के सामने परोसते हैं, उसे साकार करने हेतु उनकी क्या योजनाएं हैं. क्या सिर्फ यह कह देने से कि देश भर में गुजरात मॉडल लागू किया जाएगा, क्या उससे भारत विश्‍व का अग्रणी देश बन जाएगा? क्या गुजरात की तरह ही देश भर में स़िर्फ अंबानी, अडानी और टाटा जैसे कारपोरेट के बूते नरेन्द्र मोदी देश भर में गुड गवर्नेंस लागू कर लेंगे? नरेन्द्र मोदी को इन सभी सवालों के जवाब देने होंगे. क्योंकि अब समय आ चुका है. नरेन्द्र मोदी ने आज तक स़िर्फ सवाल उछाले हैं, जवाब नहीं दिया है. प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने अपना राष्ट्रीय एजेंडा घोषित नहीं किया है. उग्र राष्ट्रवाद के हिमायती रहे मोदी ने अभी तक मुज़फ़्फ़रनगर के दंगो पर चुप्पी साध रखी है. जो व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बनना चाहता हो, उसकी निगाह में हर इंसान बराबर होना चाहिए. भले ही वह किसी भी सम्प्रदाय, नस्ल या जाति का हो. इसलिए भी मोदी को बोलना होगा. नरेन्द्र मोदी अब तक गुजरात में सीमित थे. देश का उनसे ज्यादा साबका नहीं प़डा था. लेकिन अब मोदी देश के भावी प्रधानमंत्री की तरह पेश आ रहे हैं. इसलिए अब देश के लोगों का नरेन्द्र मोदी को जांचने-परखने का नज़रिया भी अलग होगा. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी यक़ीनन इन चुनावों और इसके परिणामों पर भी असर डालेगी. इसलिए भी मोदी को हर मसले पर बोलना होगा और ख़ुद के उठाए गए सवालों के जवाब भी देश की समस्याओं के समाधान के तौर पर देने होंगे.

1 comment:

  1. देश की समस्याएं नीतियों के दुष्प्रयोग से उपजी हैं. इस दिशा में एक कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार और सशक्त नेतृत्व की जरूरत है, और ये तीनों ही चीज़े मोदी में परिलक्षित हो रही हैं.

    आलोचकों की मोदी से अति-अपेक्षा का स्वागत होना चाहिए, क्योंकि मोदी के बहाने ही सही, देश में नीतियों के चुनाव पूर्व ही उदघाटन की प्रथा तो शुरू हुयी. अन्यथा अबतक तो परिवार की गुलामी की ही प्रथा दिखी है.

    एक और बात, मोदी के विरोधी भी मानने लगे हैं की वह प्रधानमन्त्री बन रहे हैं. तभी उनसे इनकी अपेक्षाएं भी अधीर हो रही हैं.

    और हां! परमाणु विस्फोट मीडिया को बताकर नहीं किये जाते....!!!

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