Ruby Arun

Tuesday 2 July 2013

स्मृति...


सुन री सखी ,
नेह का मेह
तब
ह्रदय में घुमड़ ही पड़ा था 
आँखों में उमड़ ही पडा था
जब यों ही ,
तुमने होले से
मेरे घावों को सहला दिया था !
मन दर्पण पर
युग-युगांतर से
जमा हुआ पंक
तब धुलने लगा था
जब यों ही ,
तेरी प्रेम अश्रुधारा ने
मेरे तपते मन को नहला दिया था !!
मन प्राणों की व्यथा
ह्रदय की पीड़ा
कहीं छिपने लगी थी
कुछ मिटने लगी थी
जब यों ही ,
तुम्हारी भीनी मुस्कराहट ने
मुझ पगली को बहला दिया था !
दामन में खुशियाँ
आँचल में मोती
सब तुने ही तो दिए थे
संचित है मेरी स्मृति-मंजुला में
कुसुम-सा कोमल
पहला प्यार
जो तुने दिया था .....

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