Ruby Arun

Sunday, 18 November 2012

कुछ यूँ मरे हम क़ज़ा से पहले..

क्यूँ मिलती है सज़ा इश्क में ....हर जुर्मो खता से पहले ...........
अहह ....अब तो होठ भी जलते हैं .....मुहब्बत में दुआ से पहले .........
क्यूँ तुम्हे पाकर ..हम कुछ और गुम हो गए .......
ये तकल्लुफ तो ना था अहदे वफ़ा से पहले ...
करते थे खलवत में हम बहुत ...इश्के बेबाक के दावे .......
पर कुछ यूँ मरे हम क़ज़ा से पहले .. कि.....
खो दिया सारा भरम ......शर्मो हया से पहले ......

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