Ruby Arun

Monday 18 June 2012

खतरे में वायुसेना.........रूबी अरुण


खतरे में वायुसेना


नक्सलवादियों का अगला निशाना पश्चिम बंगाल स्थित वायुसेना का कलाईकुंडा एयरबेस हो सकता है. पांच हज़ार हथियारबंद नक्सलियों का मुक़ाबला एयरबेस की सुरक्षा में तैनात वायुसैनिक या अर्द्घसैनिक बल कर पाएंगे? यह सवाल है. क्या वे पूर्वी कमान के इस सबसे अहम और संवेदनशील एयरबेस की हिफाजत के लिए सक्षम हैं? शायद नहीं, क्योंकि न तो एयरबेस की सुरक्षा के माकूल एवं पुख्ता इंतज़ाम हैं, न ही एयरबेस को मह़फूज़ रखने के नाम पर उसकी निगरानी करने वाले अर्द्घसैनिक बलों और वायुसैनिकों के पास नक्सलियों की तुलना में गोला-बारूद या प्रशिक्षण ही है. ऐसे में नतीज़े की कल्पना भी दिल दहला देती है.
पश्चिम बंगाल के खड़गपुर से सटा है वायुसेना का कलाईकुंडा एयरबेस. यहां भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों का जमावड़ा है. ख़तरे की बात यह है कि एयरबेस नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र के बीचोबीच मौजूद है. लालगढ़ में जब पुलिस को रोकने के लिए पुल को उड़ाया गया था तो इस एयरबेस की दीवारों में दरारें आ गई थीं और हाल में जहां रेल पर हमला हुआ वह स्थान मात्र बीस किलोमीटर दूर है. इस खतरे के  बीच कलाईकुंडा एयरबेस की सुरक्षा व्यवस्था लचर है. अगर नक्सलियों ने इस एयरबेस को निशाने पर ले लिया तो देश के सामने एक गंभीर संकट पैदा हो सकता है.
गृह मंत्रालय को मिली ख़ु़फिया जानकारी के मुताबिक, माओवादियों का अगला निशाना भारतीय हवाई अड्डे और वायुसेना के एयरबेस हैं. माओवादियों की योजना है कि उनके ख़िला़फ सैन्य कार्रवाई की तैयारी कर रही सरकार के मंसूबे चकनाचूर कर दिए जाएं. और नक्सली ऐसा भारतीय वायुसेना के अड्डों पर हमला करके कर सकते हैं, क्योंकि भारतीय वायुसेना के एयरबेसों और हवाई अड्डों पर सुरक्षा संबंधी जो ख़ामियां और बदइंतज़ामात हैं, उनके दरम्यान नक्सली बेहद आसानी से अपने मक़सद में क़ामयाब हो सकते हैं. ख़ु़फिया अधिकारियों ने गृह मंत्रालय को नक्सलियों की इस ख़ौ़फनाक़ योजना के ठोस सबूत भी सौंपे हैं. पिछले दिनों लालगढ़ में माओवादियों के ख़िला़फ हुई कार्रवाई में नक्सली नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी का लैपटॉप अर्द्घसैनिक बलों के हाथ लगा था, जिसकी पड़ताल के बाद इस ख़तरनाक योजना का ख़ुलासा हुआ है. फिलहाल नक्सली सैन्य हमलों को लेकर सरकार का रुख़ स्पष्ट होने के इंतज़ार में हैं. नक्सलियों ने अभी तक पहल नहीं की है तो इसलिए, क्योंकि वे नहीं चाहते कि सरकार को उन्हें देशद्रोही घोषित करने का बहाना मिले और इस वज़ह से भारतीय सेनाएं नक्सलियों पर क़हर बन कर टूट पड़ें.
गृह मंत्रालय को मिली ख़ु़फिया जानकारी के मुताबिक, माओवादियों का अगला निशाना भारतीय हवाई अड्डे और वायुसेना के एयरबेस हैं. माओवादियों की योजना है कि उनके ख़िला़फ सैन्य कार्रवाई की तैयारी कर रही सरकार के मंसूबे चकनाचूर कर दिए जाएं.
मिली जानकारी के अनुसार, माओवादियों का पहला निशाना पश्चिम बंगाल के खड़गपुर के पास स्थित वायुसेना के पूर्वी कमान का सबसे महत्वपूर्ण एयरबेस कलाईकुंडा है. यह एयरबेस विदेशी वायु सेनाओं के साथ साझा युद्धाभ्यासों का भी महत्वपूर्ण केंद्र है. एयरबेस के इर्द-गिर्द ही माओवादियों का सबसे बड़ा ठिकाना लालगढ़ है. वायुसेना के लिए बड़ी चुनौती लालगढ़ के झिटका के जंगलों में मौज़ूद नक्सलियों के कैंप से भी है. एयरबेस से सटे बीनपुर, पिरकाटा, गोलटोर और साल्बोनी इलाकों पर नक्सलियों की सल्तनत चलती है. इस पूरे क्षेत्र में नक्सलियों ने बारूदी सुरंगें बिछा रखी हैं, जिससे आएदिन बड़ी संख्या में विस्फोट होते रहते हैं. कलाईकुंडा एयरबेस के चारों ओर के इलाके झारग्राम, दहिजुरी, धेरुआ, पिरकाटा, पीराकुली, कस्बा नारायणगढ़, निकुसिनी, बेलदा, गिदनपुर, गोपीबल्लभपुर जैसे इलाकों में भी बारूदी सुरंगों का जाल बिछा हुआ है. ऐसे हालात में एयरबेस पर खड़े सुखोई, मिग-29 एस, मिराज-2000 एस, मिग-21 और मिग-27 जैसे लड़ाकू विमानों के नष्ट होने का अंदेशा मंडरा रहा है. भूटान, म्यांमार, नेपाल, चीन और बांग्लादेश से मिल रही बेशुमार मदद की बदौलत नक्सलियों के पास अत्याधुनिक और दूर तक मार करने वाले हथियार मौज़ूद हैं. इसलिए वायुसेना को फिक़्र इस बात की भी है कि माओवादी, युद्घक विमानों की लैंडिंग और टेक ऑफ के समय दूर से उन पर मार कर सकते हैं. मिदनापुर रेंज के उपमहानिरीक्षक स्तर के एक अधिकारी बताते हैं कि लालगढ़ में चल रहे ऑपरेशन के समय नक्सलियों ने अर्द्धसैनिक बलों की आमद रोकने के लिए नदी का पुल उड़ाने के लिए जो विस्फोट किए थे, उसकी वज़ह से कलाईकुंडा एयरबेस के कैम्पस और सलुबा राडार स्टेशन की ज़मीनें तक दरक गई थीं, जिसका असर एयरबेस में खड़े लड़ाकू विमानों पर भी पड़ा था. 28 मई को माओवादियों ने ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पर जिस जगह हमला किया था, वह जगह कलाईकुंडा से महज़ 20 किलोमीटर की दूरी पर है. वायुसेना को इस बात का डर है कि माओवादी अब ट्रेनों के बजाय एयरबेस से उड़ान भरने वाले लड़ाकू जहाजों को अपना निशाना बना सकते हैं. वायुसेना नक्सली इलाकों में स्थित अपने सभी एयरबेसों की सुरक्षा के मद्देनज़र एहतियाती क़दम उठा रही है. छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में नक्सली यह करामात दिखा चुके हैं. जब उन्होंने चुनाव कार्य में लगे वायुसेना के एक विमान को मार गिराया था.
पूर्वी कमान में तैनात वायुसेना के अधिकारी बताते हैं कि नक्सली अब पहले से कहीं ज़्यादा संगठित होकर और बेहद मज़बूती के साथ वार कर रहे हैं. वे तकनीकी तौर पर बारीकी से प्रशिक्षित हो रहे हैं. बम, गोली, बारूद चलाने में माहिर नक्सली अब हेलीकॉप्टर और जहाज चलाने की भी ट्रेनिंग ले रहे हैं. लिहाज़ा उनसे ख़तरा पहले के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा बढ़ चुका है. इतना ही नहीं, नक्सलियों ने लालगढ़ के जंगलों में खुद का हवाई सिस्टम भी तैयार कर लिया है. नक्सलियों के पास मौज़ूद एयर रडार की रेंज वायुसेना के रडार से कहीं ज़्यादा है, जिससे वे वायुसेना के लड़ाकू या सामान्य विमानों की आमद-रफ्त की पूरी ख़बर रखने में क़ामयाब रहते हैं. रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि नक्सली इज़रायल में बने रडार का इस्तेमाल कर रहे हैं, यह एक टू डी लो लेबल लाइट वेट एस बैंड रडार है, जो कुछ ही मिनटों में कहीं भी फिट किया जा सकता है. यह रडार 30 मीटर की ऊंचाई से 70 किलोमीटर दूर से आ रहे 100 विमानों पर एक साथ नज़र रख सकता है. जबकि वायुसेना अपने पुराने और घिसे-पिटे उपकरणों के कारण नक्सली गतिविधियों पर नज़र रखने तक में लाचार है. संसद की लोक लेखा समिति ने अपनी रिपोर्ट में वायुसेना के डिफेंस सिस्टम की इस भयानक कमी का पर्दाफाश किया है.
लोक लेखा समिति द्वारा संसद में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय वायुसेना के रडार न सिर्फ बेहद पुराने हैं, बल्कि बार-बार ख़राब हो जाने वाले भी हैं.जो रडार हैं, वे निर्धारित काम के समय से कम काम कर रहे हैं, जिससे सुरक्षा में भारी चूक हो रही है. संसदीय पैनल ने यह खुलासा भी किया है कि 1971 के बाद से एयर डिफेंस ग्राउंड एनवायरमेंट सिस्टम द्वारा एक भी योजना नहीं बनाई गई है. हालांकि रडार की खरीद को लेकर कई सारी योजनाएं पास हुई हैं और कांट्रेक्ट भी साइन हुए हैं, पर ये अत्याधुनिक रडार वायुसेना को कब मिलेंगे, इसकी तारीख़ तय नहीं है. वैसे कहने को तो रक्षा मंत्रालय ने 2022 तक के लिए एक लंबी-चौड़ी योजना ज़रूर बनाई है, पर रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों को भी नहीं पता कि उनका पालन हो रहा है या नहीं. लोक लेखा समिति इस बात से भी ख़़फा है कि जब उसने रक्षा मंत्रालय और वायुसेना के अधिकारियों से यह जानना चाहा कि एयर डिफेंस सिस्टम में मौज़ूद ख़ामियां कब तक दूर होंगी और मीडियम पावर और लो लेवल ट्रांसपोर्टेबल रडारों की ख़रीद में कितना व़क्त लगेगा, तो किसी ने भी वाज़िब जवाब नहीं दिया. नक्सलियों और आतंकवादियों से जो ख़तरा वायुसेना को है, उसके मद्देऩजर रक्षा मंत्रालय के  टालमटोल वाले रुख़ से भी लोक लेखा समिति बेहद नाराज़ है. नक्सलियों को वायुसेना की इस कमज़ोरी की पूरी जानकारी है. यही कारण है कि नक्सलियों को बर्मा के रास्ते हथियारों का जो ज़ख़ीरा मुहैया कराया जा रहा है, उसकी खेप कलाईकुंडा एयरबेस के पास बंगाल की खाड़ी पर उतरती है और भारतीय वायुसेना को इस बात की भनक भी नहीं लग पाती.
यहां ग़ौर करने की बात यह भी है कि बंगाल की खाड़ी को रक्षा मंत्रालय ने नेवीगेशन के लिए प्रतिबंधित घोषित किया है. बावज़ूद इसके लालगढ़ के नक्सली अपने विदेशी आकाओं की सरपरस्ती में बेरोकटोक बंगाल की खाड़ी का इस्तेमाल कर रहे हैं. रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता शितांशु कर कहते हैं कि नक्सलवाद के मुद्दे पर रक्षा मंत्रालय बेहद गंभीर है और इस मसले पर रक्षा मंत्री ए के एंटनी वायु सेनाध्यक्ष सहित नेवी और आर्मी के प्रमुखों के साथ लगातार गहन विमर्श कर रहे हैं. माओवादियों के ख़िला़फ चल रहे सरकारी अभियान में उन्हें सबसे बड़ा खतरा वायुसेना से ही है, क्योंकि घने जंगलों में अपना अड्डा बनाए नक्सलियों को मार गिराने का सरकार का एकमात्र ज़रिया वायुसेना ही है. पिछले दिनों जब पश्चिम बंगाल के लालगढ़ में सरकार ने माओवादियों के विरुद्ध दो दिनों का अभियान चलाया था, तब कलाईकुंडा एयरबेस के हेलीकॉप्टरों के  ज़रिए ही सीआरपीएफ के जवानों ने ऑपरेशन पूरा किया था. इसके अलावा नक्सली यह कतई नहीं चाहते कि उनके एक और महत्वपूर्ण ठिकाने छत्तीसगढ़ में सरकार को एयरबेस बनाने में सफलता हासिल हो. केंद्र सरकार यहां बस्तर में वायुसेना के एयरबेस के अलावा अबूझमार के जंगलों में
थल सेना का कैंप भी बनाना चाहती है. इसके लिए राज्य सरकार ने जो ज़मीन दी है, उसके हवाई सर्वे का काम पूरा हो चुका है. लिहाज़ा नक्सली कुछ ऐसा करने की फिराक़ में हैं, जिससे सरकार यहां एयरबेस और थल सेना का कैंप बनाने की हिम्मत ही न जुटा सके. सरकार बार-बार इस बात की घोषणा करती रही है कि नक्सलियों के स़फाए के लिए सेना और विशेषकर वायुसेना का इस्तेमाल किया जा सकता है, पर मुश्किलें यहां भी कम नहीं हैं. वायुसेना के एक उच्च अधिकारी कहते हैं कि अगर नक्सलियों के स़फाए के अभियान में वायुसेना के विमानों को लगाया जाता है तो उनकी सुरक्षा के लिए अलग से वायुसेना के हेलीकॉप्टरों को भी लगाना पड़ेगा. ज़ाहिर है, जब यह अभियान चलेगा तो बीच में रुकेगा नहीं. पूरा ऑपरेशन खत्म करने के बाद ही इस पर विराम लगाया जाएगा. तब जो सबसे बड़ी समस्या सामने आएगी, वह होगी लड़ाकू विमानों में हवा में ही ईंधन भरने की, क्योंकि भारतीय वायुसेना के पास आसमान में ही ईंधन भरने वाले रिफ्यूलर विमान ज़रूरत के मुताबिक़ नहीं हैं. भारतीय वायुसेना फिलहाल यह ज़रूरत रूस से आयातित आईएल-78 परिवहन विमानों से पूरा करती है, जिनकी संख्या महज़ सात है. हालांकि पिछले दिनों ऐसे विमानों की ख़रीद की प्रक्रिया शुरू की गई थी, पर फिर रक्षा मंत्रालय ने उन विमानों का टेंडर रद्द कर दिया. इस पर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल पी वी नायक ने अपनी नाराज़गी रक्षा मंत्री ए के एंटनी के पास दर्ज़ कराई थी. वायुसेना ने ऐसे 8 विमानों की महती आवश्यकता बताते हुए रक्षा मंत्रालय से अविलंब उन्हें आयात करने का आग्रह किया था. रक्षा मंत्रालय वायुसेना की ज़रूरतों के हिसाब से एयरबस खरीदना चाह रहा था, पर वित्त मंत्रालय ने यह कहते हुए इस ख़रीद प्रक्रिया में अड़ंगा डाल दिया कि इन एयरबसों की कीमत बहुत अधिक है. इसलिए रक्षा मंत्रालय ऐसे विमानों की ख़रीद करे, जो न सिर्फ ज़रूरतें पूरी करें, बल्कि उनकी क़ीमतें भी कम हों. लिहाज़ा विमान नहीं ख़रीदे जा सके और टेंडर रद्द कर दिया गया. पूर्वी कमान के एक अधिकारी कहते हैं कि यह सब सरकार के चोंचले हैं. अगर वाकई सरकार को देश की सुरक्षा और संरक्षा की फिक़्र होती तो क़ीमतों का बहाना बनाकर टेंडर रद्द नहीं किया जाता. चिंता की वज़हें और भी हैं. सुरक्षा व्यवस्था की भारी कमी है. न स़िर्फ कलाईकुंडा, बल्कि देश के अन्य दूसरे जोनों में स्थित एयरबेसों की खुली चौहद्दी और उनका कमज़ोर निगरानी तंत्र मुसीबतों को खुला न्यौता देता है. सुरक्षाबलों के बीच आपसी खींचतान के कारण तालमेल की भारी कमी है. जिन अर्द्घसैनिक बलों को नक्सलियों का स़फाया करने की ज़िम्मेदारी दी गई है, उनके पास अपना कोई ख़ुफिया नेटवर्क नहीं है. इसी कमी की वज़ह से सीआरपीएफ के जवानों को पिछले दिनों अपनी जानें गंवानी पड़ीं. जबकि नक्सलियों का ख़ुफिया तंत्र आम आदमी से लेकर सरकार के बीच तक क़ायम है और बहुत ही सशक्त है. नतीज़तन उन्हें सरकारी योजनाओं से लेकर अर्द्घसैनिक बलों की गतिविधियों तक की जानकारी मिल जाती है. बहरहाल सरकार को मिली सूचना के मुताबिक़, कलाईकुंडा एयरबेस को मिट्टी में मिला देने की नक्सलियों की तैयारी पूरी है. अगर नक्सली इस एयरबेस पर हमला कर देते हैं तो यक़ीनन देश की सीमा और शक्ति दोनों ही टूटेंगी. पहले से ही घुसपैठ की घात लगाए बैठे चीन और पाकिस्तान के लिए यह एक सुनहरा मौक़ा होगा. नक्सलियों के इस हमले के बाद जो ज़वाबी कार्रवाई होगी, उसमें सरकार के पास भी लफ्फाज़ियां करने का विकल्प नहीं बचेगा. सरकार को हमले का जवाब ज़्यादा खतरनाक देना होगा. और तब, सरकार के पास स़िर्फ एक रास्ता बचेगा कि वह सेना और वायुसेना का इस्तेमाल करके नक्सलियों का जड़ से स़फाया कर दे. ज़ाहिर है, इस कार्रवाई में तमाम मासूम जानें भी जाएंगी. नक्सलियों ने जिस तरह से जंगलों और जनजातियों में अपनी गहरी पैठ बना ली है, उस लिहाज़ से आदिवासी इलाकों में भयंकर क़त्लेआम होगा. दुनिया भर में फैले मानवाधिकार कार्यकर्ता इसके खिला़फ गोलबंद होकर आवाज़ उठाएंगे. दूसरे देशों को भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने का मौका मिल जाएगा. भारत को तोड़ने की साज़िश करने वाली विदेशी एजेंसियां भी अपने नापाक मंसूबों को शक्ल देने में लग जाएंगी. तब, भारत की सरकार चौतऱफा घिर जाएगी. विश्वशक्ति बनने की तरफ अग्रसर भारत कमज़ोर, लाचार और विवश होगा. और वह दिन शायद भारतीय लोकतंत्र का सबसे बुरा दिन होगा.

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