Ruby Arun

Monday 18 June 2012

सोनिया गांधी और गुजरात.....रूबी अरुण


सोनिया गांधी और गुजरात


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के ‍खिलाफ जंग की शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नया एजेंडा है. हालांकि नरेंद्र मोदी सोनिया के इस नए एजेंडे से वाक़ि़फ नहीं हैं, लेकिन राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को हथियार बनाकर मोदी के ‍खिलाफ जंग जीतने का एजेंडा गुजरात में सोनिया गांधी की राजनीतिक जिजीविषा की मुनादी है. इस महत्वाकांक्षी राजनीतिक युद्ध की कमान सोनिया गांधी ने अपने हाथों में रखी है. हथियार बनाया है राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को. सियासत की इस बिसात परस सोनिया के मोहरे हैं  गुजरात के पूर्व वरिष्ठ आईएएस अफसर हर्ष मंदर, सामाजिक कार्यकर्ता फराह नक़वी एवं मिराई चटर्जी. सोनिया गांधी के ये तीनों अहम प्यादे गुजरात में नरेंद्र मोदी के ‍खिलाफ सोनिया गांधी के जंग का आग़ाज़ करेंगे. सा़फ है कि दंगे और फर्ज़ी मुठभेड़ मामलों में विवादास्पद रूप से चर्चित नरेंद्र मोदी के ‍खिलाफ सोनिया गांधी ने अपनी सियासी धार तेज़ कर दी है, और उन्हें दबोच लेने का इरादा कर लिया है. सोनिया यह समझ चुकी हैं कि आने वाले समय में अगर कांग्रेस को देश पर बेरोक-टोक शासन करना है तो उन्हें गुजरात से नरेंद्र मोदी का सियासी शामियाना उखाड़ना होगा. इस तरह कांग्रेस अपनी प्रमुख विरोधी, भारतीय जनता पार्टी को भी औकात में ला सकती है. लिहाज़ा सोनिया एक तीर से कई शिकार करना चाहती हैं. पूर्व नौकरशाह हर्ष मंदर ने अभी तक दंगों से जुड़े 2000 से ज़्यादा मामलों को अदालत में दोबारा सुनवाई के लिए खुलवाया है. अब चूंकि, हर्ष मंदर ने अभी तक दंगों से जुड़े 2000 से ज़्यादा मामलों को कोर्ट में दोबारा सुनवाई के लिए खुलवाया है. अब गुजरात के अल्तसंख्यकों का दिल जीतने का यक़ीनन इससे बेहतर तरीका फिलहाल सोनिया गांधी को नहीं मिल सकता. वे जानती हैं कि, अगर वे इस दांव से गुजरात के मुसलमानों का भरोसा पाने में कामयाब हो जाती हैं तो फिर पूरे देश के मुसलमान कांग्रेस के मुरीद हो जाएंगे. और आने वाले दिनों में कांग्रेस के इस तिलिस्म को तोड़ना किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए निहायत चुनौतियों भरा होगा.
सोनिया गांधी के ‍खिलाफ ज़हर उगलते गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भनक भी नहीं लगी और कांग्रेस अध्यक्ष ने उनके चारों ओर बेहद ख़ामोशी से शिकंजा कस दिया. गुजरात में विधानसभा चुनाव होने में भले ही दो साल से ज़्यादा का व़क्त है, पर सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को पटखनी देने के लिए अपनी सियासत की बिसात बिछा दी है. नरेंद्र मोदी को चित करने के लिए सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में गुजरात की उन तीन खास शख्सियतों हर्ष मंदर, फराह नक़वी और मिराई चटर्जी को सदस्य के तौर पर शामिल किया है, जो पिछले कई सालों से गुजरात के दंगा पीड़ितों के हक़ की लड़ाई भी लड़ रहे हैं और नरेंद्र मोदी की नीतियों की खुली आलोचना भी कर रहे हैं. इन्हीं लोगों के ज़रिए सोनिया गांधी मुसलमानों का भरोसा जीतने का ख्वाब संजोए बैठी हैं.
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के ‍खिलाफ सोनिया गांधी की युद्ध रणनीति के चौथी दुनिया के पास पुख्ता सबूत हैं. नरेंद्र मोदी की खुली मुख़ाल़फत और सांप्रदायिकता विरोधी काम करने के लिए केंद्र सरकार ने इन तीनों द्वारा संचालित स्वयंसेवी संगठनों को 100 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है. हर्ष मंदर इंडियन मुस्लिम रिलीफ एंड चैरिटी नामक संगठन के लिए भी काम करते हैं और इस संगठन से कांग्रेस का गहरा अनुराग है. हर्ष मंदर इस संस्थान के लिए फंड जुटाने का काम करते हैं और इस खातिर वह अमेरिका स्थित मुस्लिम ज़िहादियों से भारत में अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर अरबों रुपये वसूलते हैं. दावा ये किया जाता है कि दान के नाम पर मिले इन पैसों का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों के हितों में ही किया जाता है.
पर, सोनिया गांधी महज़ इतना ही करके चुप बैठना नहीं चाहतीं. उनकी कोशिश है कि नरेन्द्र मोदी के पर साधा गशा उनका निशाना अचूक साबित हो. इसके लिए वे सांप्रदायिकता विरोधी क़ानून का भी पूरा इस्तेमाल करना चाहती हैं. उनकी कोशिश है कि सरकार जल्द से जल्द यह क़ानून बनाए ताकी इसका फंदा बनाकर वह नरेंद्र मोदी के गले में डाल सकें. अभी नरेन्द्र मोदी के ख़िला़फ तमाम मामले अदालत में हैं. इस दरम्यान सांप्रदायिकता विरोधी क़ानून बनाने में अगर सरकार सफल हो जाती है तो नरेन्द्र मोदी के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो सकता है.
सोनिया गांधी के प्यादे हर्ष मंदर ने गुजरात दंगों के विरोध में इस्ती़फा दे दिया था और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए अमन बिरादरी नामक संगठन बनाया था. सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक फराह नक़वी अनहद नामक स्वयंसेवी संगठन से जुड़ी हैं और मिराई चटर्जी यही काम स्वतंत्र तरीके से करती रही हैं. ये तीनों सार्वजनिक तौर पर नरेंद्र मोदी की सांप्रदायिक नीतियों की मुख़ाल़फत भी करते रहे हैं. फराह और मिराई पिछले लंबे अर्से से अल्पसंख्यकों के अधिकार, महिलाओं के सम्मान और उनकी शिक्षा के मुद्दे पर भी काम करती आ रही हैं. गुजरात के दूर-दराज़ के ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले अशिक्षित मुसलमानों के बीच इनकी पकड़ बन चुकी है. जिन दंगा-पीड़ित परिवारों की इन्होंने मदद की है, वे इनकी हर बात मानते हैं. ज़ाहिर है इन तीनों की मा़र्फत ये सभी कांग्रेस के वोट बैंक में तब्दील हो सकते हैं. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में इन तीनों को शामिल करने के पीछे ये बातें खास रही है.
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के ‍खिलाफ सोनिया गांधी की युद्ध रणनीति के चौथी दुनिया के पास पुख्ता सबूत हैं. नरेंद्र मोदी की खुली मुख़ाल़फत और सांप्रदायिकता विरोधी काम करने के लिए केंद्र सरकार ने इन तीनों द्वारा संचालित स्वयंसेवी संगठनों को 100 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है. हर्ष मंदर इंडियन मुस्लिम रिलीफ एंड चैरिटी नामक संगठन के लिए भी काम करते हैं और इस संगठन से कांग्रेस का गहरा अनुराग है.
एक और अहम बात यह भी है कि सोनिया गांधी, नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सियासी जंग तो जीतना चाहती हैं, लेकिन गुजरात में अपने किसी सियासी सिपहसालार पर भरोसा भी नहीं करतीं. इसका राजनीतिक संदेश यह भी जाता है कि सोनिया की नज़र में गुजरात प्रदेश कांग्रेस का कोई नेता इतना योग्य नहीं है, जो नरेंद्र मोदी के ख़िला़फ माहौल खड़ा करने का माद्दा रखता हो. पिछली बार जब गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए थे तो नरेंद्र मोदी के मुक़ाबले प्रदेश स्तर का कोई कांग्रेसी नेता नहीं था. नरेन्द्र मोदी ने भी सीधे-सीधे सोनिया गांधी को ही ललकारा था. ऐसे में मोदी के सामने सोनिया गांधी को ही सीधे मैदान में उतरना पड़ा. फिर भी कांग्रेस बुरी तरह हार गई. मौज़ूदा व़क्त में कांग्रेस की सबसे बड़ी ग़रज़ भी यही है कि सबसे पहले, गुजरात में नरेंद्र मोदी के ख़िला़फ जम कर माहौल तैयार किया जाए, ताकि अगले विधानसभा चुनावों में गुजरात के मतदाताओं का रु़ख कांग्रेस की तऱफ करने में मोड़ने में उसका इस्तेमाल किया जा सके. हर्ष मंदर, फराह नक़वी एवं मिराई चटर्जी ऐसा माहौल बनाने की भूमिका बख़ूबी तैयार कर सकते हैं, क्योंकि वे राजनीतिक शख़्सीयत नहीं हैं. इसलिए लोग-बाग उनकी बातों पर आसानी से भरोसा कर सकते हैं. पर, ऐसा भी नहीं है कि इतना भर कर देने से गुजरात में कांग्रेस की दुश्वारियां कम हो गई हों. जिन लोगों को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के मुलम्मे में लपेट कर सोनिया गांधी गुजरात में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाना चाहती हैं, खुद उनकी ही साख गुजरात में कुछ अच्छी नहीं है. सोनिया के इस फैसले से उनके कुछ बेहद अजीज़ लोग खुश नहीं हैं. इन लोगों का ताल्लुक भी गुजरात से है, जिनकी गुजरात से जुड़ी अपनी सियासी ख्वाहिशें हैं. हर्ष मंदर अमन बिरादरी नामक एक स्वयंसेवी संस्था चलाते हैं और अपने भाषणों में पाकिस्तान की खुली हिमायत करते हैं. वह एक्शन एड नामक अंतराष्ट्रीय संगठन के भारत में कंट्री हेड भी हैं. एक्शन एड पर यह आरोप है कि वह अमेरिका स्थित उन ज़िहादियों से आर्थिक मदद लेता है, जो कश्मीर में जिहाद कर रहे लोगों को मदद करते हैं. एक्शन एड गुजरात में जिस शैली से काम करता है, वह भी विवादास्पद रही है.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष आरसी फाल्दू कहते हैं कि एक्शन एड और हर्ष मंदर भारत में मुस्लिम अलगाववाद को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं. खुफिया एजेंसियों ने भारत सरकार को इस बारे में कई बार चेताया भी है, पर सरकार ने जानबूझ कर आंखें बंद कर रखी हैं. आरसी फाल्दू कहते हें कि सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी जैसे तू़फान का सामना करने के लिए जिस दरख्त का सहारा लिया है, उसकी जड़ों में भी भ्रष्टाचार के दीमक लगे हैं. हर्ष मंदर हों या फराह नक़वी, कोई दूध का धुला नहीं है. सवाल उठता है कि सोनिया गांधी ने भूखे ग़रीब बच्चों का पेट भरने और मुसलमानों के गरीब बच्चों को तालीम देने के लिए हर्ष मंदर को 100 करोड़ रुपये का अनुदान तो दे दिया, पर इस बात पर ग़ौर करने की ज़हमत क्यों नहीं उठाई कि वे जिसके बूते इतना बड़ा दांव खेल रही हैं उसकी फितरत कैसी है. वे काम कम करते हैं ढोल ज़्यादा पीटते हैं. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कहते हैं कि हर्ष मंदर ने सराय बस्ती इलाक़े में स्वयंसेवा के नाम पर जो गोरखधंधा फैला रखा है, उसका गवाह पूरा शहर है. हर्ष मंदर को एक्शन इंडिया से भी बेशुमार आर्थिक अनुदान मिलता है. दिल्ली सरकार से भी वह संस्था के नाम पर मोटी राशि वसूलते हैं. इसके अलावा हर्ष मंदर को जमायत-ए-उलेमा-ए-हिंद से भी भरपूर पैसा मिलता है.  अल्पसंख्यक और ग़रीब बच्चों की शिक्षा के नाम पर हर्ष ने जिस छात्रावास की स्थापना की है, वहां दो साल बीत जाने के बाद भी आज तक बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद, काउंसलिंग, ड्रग डी-एडिक्शन एवं रीक्रिएशन जैसी गतिविधियां शुरू नहीं की जा सकी हैं. बच्चों के बीमार पड़ने पर सही इलाज़ और दवा तक की व्यवस्था नहीं है. जब बच्चों की तबियत ज़्यादा ख़राब हो जाती है तो उन्हें बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है. न ही इन संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों को उचित मानदेय दिया जाता है. महज़ दो हज़ार से पांच हज़ार के मानदेय पर रखे गए कर्मचारियों से पंद्रह से लेकर बीस घंटे तक काम लिया जाता है. महीनों गुज़र जाते हैं और हर्ष मंदर अपने ही संस्थानों की ओर झांकते तक नहीं. ऐसा आदमी गुजरात में सोनिया गांधी की डूबी हुई नाव को भला क्या किनारे लगा पाएगा? सोनिया गांधी का राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का भरपूर इस्तेमाल का तो इरादा है पर किसी को उनके मंसूबों का अंदाज़ा हो, वे यह नहीं चाहती. इसलिए उनकी सरकार की यह कोशिश है एनएसी के ज़रिए कि वे अपने कामों में बदलेतेवर और कलेवरों का नमूना भी पेश कर सकें. लिहाज़ा सांप्रदायिकता विरोधी क़ानून के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा को भी सोनिया गांधी ने अपनी सूची में सबसे ऊपर जगह दी है. यहां यह ज़िक्र करना लाज़िमी है कि हर्ष मंदर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त खाद्य सुरक्षा आयुक्त भी हैं और वह भोजन के अधिकार क़ानून को लेकर भी गुजरात में काम कर रहे हैं. लिहाज़ा सांप्रदायिकता विरोधी क़ानून के साथ साथ खाद्य सुरक्षा को भी सोनिया ने अपनी सूची में सबसे उपर की जगह दी है. तो यहां यह ज़िक़्र करना भी बेहद लाज़िमी है कि हर्ष मंदर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त खाद्य सुरक्षा आयुक्त भी हैं. और वे भोजन के अधिकार के क़ानून को लेकर गुजरात में काम भी कर रहे हैं. उनका नारा रहा है-घर-घर चुल्हा ,घर-घर दाना. पर इस संबंध में लोक लेखा समिति की रिपोर्ट कुछ और कहती है. रिपोर्ट के मुताबिक़ हर्ष मंदर को अनुदान तो भरपूर मिला पर उनकी संस्था गुजरात के दंगा-पीड़ितों या भूखे लोंगों के घरों में भोजन का इंतज़ाम कराने में कामयाब नहीं रहे. फिर भी भारत सरकार से उन्हें 100 करोड़ रुपयों का अनुदान कैसे मिल गया. इसकी विवेचना की जा रही है.
गुजरात के खाद्य मंत्री नरोत्तमभाई त्रीकमदास पटेल कहते हैं कि हर्ष मंदर जब अधिकारी थे, तब भी काम करने की जगह ढोल ज़्यादा पीटते थे. अब समाजसेवा के नाम पर भी वही सारा प्रपंच फैला रहे हैं. नरोत्तमभाई कहते हैं कि सोनिया गांधी और कांग्रेस का मूल चरित्र ही कथनी और करनी का फर्क़ रहा है. इसलिए हर्ष मंदर से सोनिया गांधी की साठगांठ कोई आश्चर्य पैदा नहीं करती, पर इन सारी कवायदों के बावज़ूद कांग्रेस गुजरात में नरेंद्र भाई का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती. लेकिन पूर्व केंद्रीय कपड़ा मंत्री एवं गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता शंकर सिंह वाघेला कहते हैं कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में ऐसे समाजसेवकों और आम अवाम से जुड़े लोगों को शामिल करके आलाकमान ने कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ का संदेश दिया है. जिन हर्ष मंदर और फराह नक़वी पर तमाम आरोप लग रहे हैं, उन्होंने गुजरात के दंगा पीड़ितों के ज़ख्मों पर मलहम लगाने का काम किया है. यही वे लोग हैं जो दंगे का नासूर भोग रहे बेबस और मज़लूमों को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उतर आए आए हैं. इन्हीं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की कोशिशों का नतीज़ा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म ढाने से घबराती है. इसलिए सोनिया गांधी का यह क़दम यक़ीनन न स़िर्फ गुजराती मुसलमानों, बल्कि देश भर के अल्पसंख्यकों के हित में है.
लेकिन बड़ौदा के एक सामाजिक कार्यकर्ता युसुफ भाई कहते हैं कि दरअसल गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर गुजरात के हिंदुओं के मन में यह डर बैठा दिया था कि अगर वे नहीं होंगे तो गुजरात के हिंदुओं का जीना मुश्किल हो जाएगा. बिल्कुल उसी तर्ज़ पर सोनिया गांधी भी काम कर रही हैं. वह अपने तीनों दूतों के ज़रिए गुजरात और देश के दूसरे मुसलमानों को यह भरोसा दिलाना चाहती हैं कि देश में मुसलमानों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार अगर कोई दिलवा सकता है तो वह स़िर्फ कांग्रेस पार्टी ही है और भाजपा एवं भाजपाई मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी जान के सबसे बड़े दुश्मन हैं. कहने को सोनिया के इस एजेंडे में खाद्य सुरक्षा, शिक्षा और रोज़गार जैसे अहम मसले शामिल हैं, पर जिस तरीके से सोनिया राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के ज़रिए अपना पासा फेंक रही हैं, उससे यही बात ज़ाहिर हो रही है कि कांग्रेस का मक़सद देश में सांप्रदायिक सौहार्द क़ायम करना नहीं, बल्कि खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करना ज़्यादा है.

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