Ruby Arun

Monday 18 June 2012

क्या आज़ाद होगा डॉन .....रूबी अरुण


क्या आज़ाद होगा डॉन !


फ़र्ज़ कीजिए, अगर माफिया सरगना अबू सलेम भारत के बजाय अमेरिका का मुजरिम होता तो क्या पुर्तगाल सरकार या दुनिया की कोई अन्य सरकार उसका प्रत्यर्पण रद्द कर पाती? क्या तब पुर्तगाल सरकार प्रत्यर्पण संधि के नियमों के उल्लंघन का हवाला देकर उसे फांसी की सज़ा से बचाने की जुगत भी कर पाती? प्रत्यर्पण संधि के नियमों का उल्लंघन होने की सूरत में क्या इस मसले को कूटनयिक और राजनयिक स्तर पर सुलझा नहीं लिया गया होता? क्या सैकड़ों मासूम ज़िंदगियों को ख़त्म करने वाला गुनहगार सरकारी दामाद की तरह जेल के अंदर भी सभी सुविधाओं के बीच ज़िंदगी बसर करता? नहीं ना! पिछले छह सालों से अबू सलेम को अपनी गिरफ्त में रखने के बावजूद आज देश उस स्थिति में नहीं है कि वह उसे सज़ा दिला सके . ये हालात दु:खद होने के साथ शर्मनाक भी हैं कि अबू सलेम एक भारतीय नागरिक है और गुनहगार है, तो भी उसे भारतीय कानून के अनुसार सजा देने से कोई अन्य देश रोक लगा सकता है. चूंकि यह हिंदुस्तान है, जहां राजनयिक और कूटनयिक स्तर पर ग़लतियां करने की आदत है, इसलिए सरकारी बाबुओं की सेहत पर कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि इस मसले पर सरकार की कितनी फज़ीहत हो रही है या फिर देश की साख ही खतरे में है.
जब लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री थे, तब अबू सलेम को उसकी गर्लफ्रेंड मोनिका बेदी के साथ गिरफ्तार किया गया था. मोनिका बेदी के मामले में भी पुलिस की कार्रवाई बेहद शर्मनाक रही. कई गवाह पेश करने के बावजूद वह मोनिका के खिला़फ लगे आरोप साबित करने में नाकाम रही. मोनिका पर 2001 में ग़लत तरीके से पासपोर्ट बनवाने के आरोप थे. पुर्तगाल सरकार ने सलेम को भारत भेजने के आग्रह को यह कहकर ठुकरा दिया था कि फर्ज़ी दस्तावेजों के साथ पुर्तगाल में घुसे सलेम के खिला़फ पहले पुर्तगाली क़ानून के मुताबिक़ कार्रवाई की जाएगी. पुर्तगाल की अदालत ने उसे 3 साल की सजा सुनाई. सजा पूरी करने के बाद उसे सितंबर 2005 में प्रत्यर्पण के ज़रिए भारत लाया गया. सवाल यह भी है कि जब सलेम पुर्तगाल में सजा पूरी कर चुका था तो उसे डिपोर्टेशन के बजाय प्रत्यर्पण के ज़रिए भारत क्यों लाया गया? उस समय के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विकास सिंह कहते हैं कि सीबीआई और तत्कालीन एनडीए सरकार ने मिलकर इस केस का बंटाधार कर दिया. जो केस डिपोर्टेशन का था, उसे प्रत्यर्पण का बनाकर सलेम को फायदा पहुंचाया गया. सोचने वाली बात यह है कि सजा पूरी होने के बाद पुर्तगाल सरकार आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त एक शख्स को अपने देश में क्यों रखती है?
भारत ने पुर्तगाल को अबू सलेम के अपराधों की जो सूची सौंपी थी, उसके अनुसार 1993 के बम विस्फोटों सहित उस पर कुल आठ मामले चलाए जाने थे. सलेम पर फर्ज़ी पासपोर्ट, हत्या, बम विस्फोट और वसूली सहित कई मामले दर्ज थे. सलेम के प्रत्यर्पण के समय भारत सरकार ने पुर्तगाल को आश्वासन दिया था कि उसे उसके किसी भी जुर्म के बदले मौत की सजा नहीं दी जाएगी और न ऐसे क़ानून के तहत सुनवाई की जाएगी, जिसमें 25 साल से अधिक की सजा का प्रावधान हो. पुर्तगाल ने मोनिका बेदी और सलेम, दोनों को भारत को प्रत्यर्पित कर दिया था. यह आश्वासन तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दिया था.
जब लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री थे, तब अबू सलेम को उसकी गर्लफ्रेंड मोनिका बेदी के साथ गिरफ्तार किया गया था. मोनिका बेदी के मामले में भी पुलिस की कार्रवाई बेहद शर्मनाक रही. कई गवाह पेश करने के बावजूद वह मोनिका के खिला़फ लगे आरोप साबित करने में नाकाम रही. मोनिका पर 2001 में ग़लत तरीके से पासपोर्ट बनवाने के आरोप थे. पुर्तगाल सरकार ने सलेम को भारत भेजने के आग्रह को यह कहकर ठुकरा दिया था कि फर्जी दस्तावेजों के साथ पुर्तगाल में घुसे सलेम के खिला़फ पहले पुर्तगाली क़ानून के मुताबिक़ कार्रवाई की जाएगी. पुर्तगाल की अदालत ने उसे 3 साल की सज़ा सुनाई.
पुर्तगाल के साथ हुई प्रत्यर्पण संधि के अनुसार, सलेम पर मकोका के तहत भी मामला नहीं बनाया जा सकता था, लेकिन बाद में दिल्ली पुलिस ने यह कहते हुए अबू सलेम पर मकोका का मामला बना दिया कि वह संगठित अपराध चला रहा था. इसी को लेकर अबू सलेम के वकील एम एस खान ने 2009 और फिर 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके अबू सलेम पर से मकोका हटाने की मांग की थी. बीते दो सालों से पुलिस इस पर गंभीर नहीं हुई, लेकिन अब उसे एहसास हुआ कि बचाव पक्ष की दलील ठीक है और यह भी समझ में आ गया कि वाकई इससे अबू सलेम का प्रत्यर्पण खत्म हो जाएगा. प्रत्यर्पण की शर्तों के मुताबिक़, सलेम के खिला़फ दर्ज 9 में से सिर्फ 3 मुकदमे ही चल सकते हैं.
यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब बतौर गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और गृहमंत्रालय के आला अधिकारियों को अबू सलेम के खौफनाक जुर्मों की जानकारी थी, सीबीआई में उसके खिला़फ मामले दर्ज थे, देश की ख़ुफ़िया एजेंसियां उसके पीछे लगी थीं और रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया जा चुका था, फिर भी पुर्तगाल सरकार को अबू सलेम के गुनाहों की जो सूची सौंपी गई, उसमें इस बात का ज़िक्र क्यों नहीं था कि अबू सलेम का आपराधिक नेटवर्क देश भर में फैला हुआ है और वह सांगठनिक अपराध करता है, इसलिए उस पर मकोका क़ानून भी लगाया जा सकता है. जिस समय लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री थे, तभी 2002 में अबू सलेम ने दिल्ली के व्यवसायी अशोक गुप्ता को धमकी देकर पांच करोड़ रुपये मांगे थे, लेकिन यह घोर लापरवाही बरती गई. देश के वजूद के लिए खतरा बने अपराधी के खिलाफ एक्शन लेते समय भी हुक्मरानों ने गंभीरता नहीं बरती. यह जानते हुए भी कि अबू सलेम के रिश्ते दाऊद इब्राहिम और आईएसआई से भी हैं.
भारत ने पुर्तगाल को अबू सलेम के अपराधों की जो सूची सौंपी थी, उसके अनुसार 1993 के बम विस्फोटों सहित उस पर कुल आठ मामले चलाए जाने थे. सलेम पर फर्ज़ी पासपोर्ट, हत्या, बम विस्फोट और वसूली सहित कई मामले दर्ज थे. सलेम के प्रत्यर्पण के समय भारत सरकार ने पुर्तगाल को आश्वासन दिया था कि उसे उसके किसी भी जुर्म के बदले मौत की सजा नहीं दी जाएगी और न ऐसे क़ानून के तहत सुनवाई की जाएगी, जिसमें 25 साल से अधिक की सजा का प्रावधान हो. पुर्तगाल ने मोनिका बेदी और सलेम, दोनों को भारत को प्रत्यर्पित कर दिया था.
देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ का तमाशा यहीं नहीं थमता. मई 2009 में सीबीआई ने अदालत में अर्जी देकर यह गुहार लगाई थी कि अबू सलेम के प्रत्यर्पण की शर्तों के हिसाब से उस पर मकोका नहीं लगाया जा सकता. इससे पुर्तगाल सरकार प्रत्यर्पण निरस्त कर सकती है, इसलिए यह केस वापस लिया जाए, लेकिन फिर भी गृह मंत्रालय की नींद नहीं खुली. बाबुओं की ग़लती की वज़ह से भारत सरकार की किरकिरी करते हुए पुर्तगाल के उच्च न्यायालय ने माफिया सरगना अबू सलेम के प्रत्यर्पण आदेश को ही रद्द कर दिया. तब आनन-फानन में दिल्ली पुलिस ने भी हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर सलेम पर लगाए गए मकोका के मामले को वापस लेने की मांग कर दी. हाईकोर्ट ने इसे बेहद गंभीरता से लेते हुए दिल्ली पुलिस को न केवल फटकार लगाई,  बल्कि निचली अदालत में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी. सरकार ने इस मसले पर इतना ढीला रवैया अपनाया कि न सिर्फ सलेम पर मामला बनाया गया, बल्कि आरोप भी तय कर दिए गए.
हैरानी की बात यह भी है कि सीबीआई आज तक अबू सलेम के मामले में ऐसे ठोस सबूत पेश नहीं कर सकी, जिनकी बिना पर भारत दावे के साथ पुर्तगाल के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे सके. हालांकि सीबीआई प्रत्यर्पण आदेश रद्द करने के फैसले के खिला़फ अपील करने पुर्तगाल के सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है. सीबीआई के अधिकारियों का कहना है कि अबू सलेम के गुनाहों के हिसाब से उसके खिला़फ लगाई गई धाराओं में उसे बेहद कम सजा मिली है. सीबीआई की कोशिश होगी कि वह पुर्तगाल के सुप्रीम कोर्ट को यह तथ्य समझा सके. सीबीआई इससे संबंधित रणनीति भी तैयार कर चुकी है. अगर पुर्तगाल के सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की अपील ठुकरा दी तो वैसी सूरत में सीबीआई अंतरराष्ट्रीय अदालत में अपील करेगी. सीबीआई के एक आला अधिकारी का कहना है कि भले ही सलेम के खिला़फ लगाई गई नई धाराओं को वापस लेना पड़े, लेकिन बेहद मुश्किल से शिकंजे में आए अबू सलेम को किसी भी सूरत में छोड़ने को जांच एजेंसियां तैयार नहीं हैं.
पर यहां भी वही सवाल खड़ा है कि क्या सीबीआई पुर्तगाल के सुप्रीम कोर्ट या अंतरराष्ट्रीय अदालत को ऐसे सबूत सौंप पाएगी, जिनके आधार पर अबू सलेम पर मकोका के तहत मुकदमा चलाने या सज़ा देने का अख्तियार भारत को मिल सके . अगर सीबीआई इसमें विफल रहती है तो यकीनन माफिया सरगना एक बार फिर भारत में दहशत फैलाने के लिए आज़ाद होगा और एनडीए एवं यूपीए सरकार की गलतियों का खामियाजा भारत की बेगुनाह जनता अपनी और अपनों की ज़िंदगियां गंवाकर चुकाने के लिए मजबूर होगी.
सवाल यह भी है कि जब सलेम पुर्तगाल में सजा पूरी कर चुका था तो उसे डिपोर्टेशन के बजाय प्रत्यर्पण के जरिए भारत क्यों लाया गया? उस समय के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विकास सिंह कहते हैं कि सीबीआई और तत्कालीन एनडीए सरकार ने मिलकर इस केस का बंटाधार कर दिया. जो केस डिपोर्टेशन का था, उसे प्रत्यर्पण का बनाकर सलेम को फायदा पहुंचाया गया.

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