Ruby Arun

Monday 18 June 2012

दाऊद की आड़ में दहशत फैलाने का खेल.....रूबी अरुण


दाऊद की आड़ में दहशत फैलाने का खेल


छह जून का अलसाया—मुरझाया सा दिन. उमस और पसीने से तर-ब-तर. हर कोई अपने रोज़ाना के काम में मशगूल. पर ख़बरनवीसों के लिए करने को कुछ ख़ास नहीं. नई सरकार का गठन हो चुका था. मंत्रिमंडल का विस्तार भी. कोई ऐसा स्कूप भी नहीं, जिसके ज़रिए सनसनी फैलाई जा सके. न्यूज़ चैनलों को एक अदद ऐसी ख़बर की तलाश थी जिससे वे रायता फैला सकें. सुबह से बासी—उबाऊ ख़बरों को टेरते नंबर वन न्यूज चैनल आज तक की भाव—भंगिमा अचानक कुछ ज़्यादा ही तेज़ नज़र आने लगती है. ब्रेकिंग न्यूज़ आता है-अंडरवर्ल्ड डान दाऊद इब्राहीम के भाई अनीस इब्राहीम को कराची में अल हबीब बैंक के एटीएम के सामने गोली मार दी गई. ख़बर पर नज़र पड़ते ही तमाम न्यूज़ चैनलों में अफरा—तफरी मच गई. शोर मच गया. ब्रेकिंग न्यूज़ चलाने की होड़ लग गई. अंडरवर्ल्ड की ख़बरों के मुद्दे पर ख़ुद को शहंशाह समझने वाले स्टार न्यूज़ ने भी इस ख़बर पर खेलना चालू कर दिया. इन दोनों चैनलों की देखा-देखी दूसरे न्यूज़ चैनलों ने भी धड़ाधड़ ब्रेकिंग चलाना शुरू कर दिया. कुछ ही पलों के अंतराल पर सभी चैनलों पर बस एक ही ख़बर.  दाऊद इब्राहीम, अनीस इब्राहीम और उनकी मौत के कारोबार की ख़बरें. लगभग पांच घंटे तक इस ख़बर के ज़रिए न्यूज़ चैनलों ने डर, दहशत और रोमांच फैलाने की कोशिश की. भेड़चाल में शामिल सभी चैनल अपने-अपने सूत्रों के हवाले से ख़बर को और भी रोचक बनाने की जुगत में तमाम दावे करते नज़र आए. आम लोगों को तो इस ख़बर से ज़्यादा मतलब नहीं था, पर उनमें यह जिज्ञासा ज़रूर बनी रही कि अनीस मरा या बच गया. पर बड़े उद्योग—धंधों से जुड़े व्यवसायियों—कारोबारियों ख़ासकर मुंबई के उद्योगपतियों के लिए तो यह ख़बर ज़िंदगी से जुड़ी हुई थी. पर शाम होते-होते इस ख़बर की हवा निकल गई. पता चला कि पूरी ख़बर ही ग़लत निकली. अचानक सभी चैनलों को सांप सूंघ गया. सब ने यू-टर्न लिया और बग़ैर इस ख़बर की चर्चा किए दूसरी ख़बरों का रुख़  कर लिया. पर इन सबके बीच जो आम दर्शक है, उसने ख़ुद को बेहद छला हुआ महसूस किया. उसकी समझ में यह बात नहीं आई कि आख़िर न्यूज़ चैनलों ने एक झूठी और बकवास ख़बर के ज़रिए उनके बेशक़ीमती व़क्त को क्यों बर्बाद कर दिया?  बग़ैर सच की छानबीन किए, तथ्यों की पड़ताल किए आपको रखे आगे और सबसे तेज़ का मुगालता लिए चैनलों ने दर्शकों को क्यों गुमराह किया? क्या न्यूज़ चैनलों की नज़र में दर्शक इतने बेवकूफ हैं कि उन्हें किसी भी मऩगढंत ख़बर से भरमा देने की हिमाकत वे कर देते हैं? उनकी भावनाओं से खेलने का दुस्साहस कर बैठते हैं? आखिर किसने दी उन्हें इस बात की इजाज़त? क्या माज़रा है इसके पीछे? मक़सद क्या है न्यूज़ चैनलों का? गाहे—बगाहे दाऊद और उसके आतंक की ख़बरें सनसनीख़ेज़ तरीक़े से दिखा कर न्यूज़ चैनलों को हासिल क्या होता है? ऐसे कई सवाल दर्शकों के मन को उद्वेलित कर देते हैं. दरअसल लोगों की राय तो यह बन गई है कि यह कोशिश होती है आतंक को विज्ञापित करने की. दाऊद के दहशत के साम्राज्य को पुष्पित और पल्लवित करने की. व़क्त—व़क्त पर दाऊद के किस्से दिखा कर, सुना कर उसके ख़ौफ के राज को बरकरार रखने की. ताकि उसकी बर्बरता के निशान लागों के जेहन से मिट न सकें और दाऊद का अवैध कारोबार मुसलसल चलता रहे. अंतरराष्ट्रीय अपराधी होने के कारण इनसे जुड़ी ख़बरों का खंडन या पुष्टि करने की जहमत ख़ु़िफया या जांच एजेंसियां भी नहीं उठातीं. इनसे जुड़ी ज़्यादातर ख़बरें ऐसी होती हैं, जिनमें इनकी रज़ामंदी होती है. जो दाऊद या उस जैसे माफियाओं के फैलाए भय के बाज़ार को गर्म रखने का काम करती हैं. आरोप तो यहां तक है कि ख़बरों की प्रकृति या उसका स्वरूप क्या हो, यह भी अमूमन मुंबई में रहने वाले दाऊद के गुर्गे ही तय करते हैं. मिल बैठ कर इन ख़बरों की मार्केटिंग की नीतियां बनती हैं. जो इस मार्केटिंग का ज़रिया बनते हैं उनकी शर्तें पूरी की जाती हैं और फिर शानदार पैकेजिंग के साथ सनसनाती—गरजती ख़बर छा जाती है. चंद घंटों के लिए दहशतग़र्दी का एक नया बवंडर खड़ा हो जाता है. जब तक ख़बर उतरती है तब तक कितने ही व्यवसायी बलि का बकरा बन चुके होते हैं. वसूली के कारोबार में लगे लोग करोड़ों वसूल चुके होते हैं. ख़ौ़फअपना निशान छोड़ चुका होता है. जो कुछ समय तक लोगों के दिलो-दिमाग़ पर हावी रहता है. जब इसका निशान कुछ धुंधलाने लगता है तो फिर एक नया शगूफा रच दिया जाता है. यानी कि नाटक एक तय अंतराल पर चालू रहता है. यानी दाऊद से जुड़ी ख़बरें, ख़बर नहीं होतीं एक खेल होता है. दहशत का, वसूली का, जमीर के बिकने का, ख़बरों को तमाशा बनाने का, दर्शकों को मूर्ख बनाने का. मकसद स़िर्फ- एक फायदा. दर्शकों का नहीं. उन्हें तो मोहरा बनाया जाता है. फायदा तो होता है दाऊद का और ख़बर की मार्केटिंग करने वालों का.

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