Ruby Arun

Friday 11 May 2012

कैसी बेखुदी है ये........

या खुदाया........
कैसी बेखुदी है ये......की खुद के साथ बैठ .......
हम...अपना ही इंतज़ार..करते हैं ....कई शाम.....
तमाम चेहरों में .....कौन सा चेहरा....हमारा अपना है.....
खुद से ये सवाल भी..... करते हैं कई शाम .....
दरअसल.....इतने हिस्सों में बंट चुके हैं हम ....कि...
खुद के साथ ...बैठ कर भी.........
खुद से मुलाक़ात नहीं हो पाती है कई शाम.......*..*)).

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