न तेरे पास वक़्त था ...न उसकी
मेहरबानियाँ तब....तेरे घर के दरीचे में.....अक्सर....मेरे सायों के निशाँ
होते थे ........मेरा हर लम्हा ...तुझ पे ही निसार था.......और हर ख्याल
....तुझसे ही बा-वास्ता......पर ...तेरी मसरूफियतों को ...मेरी बे-पनाह
मोहब्बत का गुमान न था .....अब ....तेरा हर पल ...मेरे ही तसव्वुर में
गुजरता है......पर....आज ये ना-मुराद वक़्त मेरे पास नहीं............
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