यूँ तो जिस्म सूखा है ...पर रूह भीगी है आज तक....
अरसा बीत गया है ...... पर माजी की वो भीगी शाम ... आज भी खिंची चली आती है .... मेरे आज का सिरा पकड़ कर ..... मैं सिहर उठती हूँ आज भी तुम्हारी सिसकियों की ठंडी छुवन से ...... खामोश रहती हूँ मैं ..पूरे पहर ....
और ....मेरी शाम आज भी... गीली हो जाती है ......
अरसा बीत गया है ...... पर माजी की वो भीगी शाम ... आज भी खिंची चली आती है .... मेरे आज का सिरा पकड़ कर ..... मैं सिहर उठती हूँ आज भी तुम्हारी सिसकियों की ठंडी छुवन से ...... खामोश रहती हूँ मैं ..पूरे पहर ....
और ....मेरी शाम आज भी... गीली हो जाती है ......
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