सच तो ये है ...की जो मुझे ....झूठ की आदत होती ..... मुझको तुमसे ...ना तुमको मुझसे ....कोई शिकायत होती ....... अपनी मर्ज़ी के फ़साने हम सुनाते ...तुमको ...... कैसे जिंदा हैं हम अब तक .....तुम्हें हैरत होती ..... कुछ नहीं कहती हूँ ...तो कहते हो की..... मगरूर हूँ मैं ..... और जो कुछ कहती अगर ....तो तुम्हे कुछ और ही शिकायत होती ...... खुद परस्ती ..जो न इंसान की फितरत होती ...... सारी दुनिया में तो फिर .....मुहब्बत ही मुहब्बत होती ....... तुमने अच्छा किया .....जो ना दिया वफ़ा का बदला ....... हन्ह्ह्ह ... तुम भी ...जो मुझ से वफ़ा करते ....तो ये तिजारत होती ........ सच तो ये है ...की जो मुझे ....झूठ की आदत होती ..... मुझको तुमसे ...ना तुमको मुझसे ....कोई शिकायत होती ......
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