Ruby Arun

Thursday 21 January 2016

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 ,भाजपा, कांग्रेस चुनावी मैदान से बाहर


आज से छह महीने पूर्व बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी पार्टी के नेता 14 कोऑर्डिनेटर से उत्तर प्रदेश के 2017 के विधान सभा चुनाव से संबंधित एक सर्वे कराया था....  इन सभी कोऑर्डिनेटर ने पार्टी हाईकमान को अपनी जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें 10 कोऑर्डिनेटर ने बसपा की सीधी लड़ाई भाजपा के साथ बताई थी और 4 ने अपनी सीधी लड़ाई सपा के साथ.... छह महीने बाद बसपा ने फिर से एक सर्वे कराया और इस सर्वे के नतीजों से बसपा रणनीतिकार हैरत में हैं.....
इन सभी कोऑर्डिनेटर ने अपने-अपने संबंधित जोन की रिपोर्ट में एक स्वर में अपनी सीधी लड़ाई सपा से बतायी है....जबकि भाजपा और कांग्रेस को यह मुख्य लड़ाई में शामिल ही नहीं मान रहे....
 सवाल यह है कि क्या वाकई इन छह महीनों में .....यूपी में भाजपा का ग्राफ इतनी तेजी से गिरा है..... कि वह मुख्य चुनावी लड़ाई से ही बाहर होती जा रही है ??
क्योंकि बसपा की रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि भाजपा का जनाधार अब सिर्फ शहरों तक में ही सिमट कर रह गया है.... ग्रामीण मतदाताओं में इसका असर तेजी से घटा है.....
नतीजों से उत्साहित बसपा ने यूपी में एक नामचीन एजेंसी से भी बड़ा जनमत सर्वेक्षण करवाया ..... इस सर्वेक्षण नतीजों से भी बहिनजी के हौंसले बम-बम हैं, यह सर्वेक्षण 167 सीटों पर  बसपा को नंबर एक की पोजीशन पर दिखा रहा है, 70 से 90 सीटें ऐसी हैं जहां बसपा उम्मीदवार अपने निटकतम प्रतिद्वंदी सपा उम्मीदवारों से 5 फीसदी से भी कम अंतर पर मात खा रहे हैं और इनमें से भी 50 सीटें ऐसी हैं जो आरक्षित सीटें हैं..... यानी बसपा के दलित उम्मीदवार अपने कैडर वोटरों के अलावे अन्य वोटरों को लुभाने में उस कदर कामयाब नहीं हो पा रहे हैं, चुनांचे मायावती के नेतृत्व में बसपा की कोर कमेटी ने तय किया है कि ब्राह्मण, मुसलमान व अति पिछड़े वोटरों को लुभाने के लिए बसपा कार्यकर्त्ता गांव-गांव जाकर ऐसे समुदायों के बीच मित्र मंडली गठित करेंगे..... इसके अलावा बसपा की शीर्ष समिति ने एक और अहम फैसला लिया है कि आने वाले चुनाव में पहली दफा आर्थिक रूप से कमजोर उम्मीदवारों को पार्टी फंड करेगी और उन्हें चुनाव लड़ने के लिए पार्टी फंड से आर्थिक मदद दी जाएगी, ऐसे उम्मीदवारों की शिनाख्त का काम भी पूरा हो चुका है, इसमें से ज्यादातर दलित उम्मीदवार हैं.....
और सिर्फ भाजपा ही क्यों कांग्रेस जैसी सवा सौ साल पुरानी पार्टी का भी यूपी से बोरिया-बिस्तर सिमट रहा है... पिछले कुछ समय में राहुल गांधी के ऑफिस ने यूपी से कांग्रेस का सिरमौर बनाने के लिए कम से कम चार बड़े नेताओं से संपर्क साधा ......पर ये सभी नेता कोई न कोई बहाना कर यूपी में कांग्रेस की सरपरस्ती से कन्नी काट रहे हैं.....
 सबसे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री आर पी एन सिंह से संपर्क साधा गया पर उन्होंने प्रदेश की कमान संभालने में असमर्थता जता दी, पार्टी ने इसके बाद प्रदीप जैन आदित्य, जफर अली नकवी और रीता बहुगुणा जोशी से बात की...... पर इन तीनों की ओर से भी कोई उत्साहवर्द्धक संदेश नहीं आया...... ले देकर सिर्फ एक जितिन प्रसाद ही बचते थे जिन्होंने स्वयं राहुल से मिलकर यूपी की बागडोर थामने की इच्छा जताई थी, पर राहुल की ओर से उन्हें कोई उचित आश्वासन प्राप्त नहीं हुआ ..... दरअसल इसकी वजह ये है कि जब 14 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी गत हुई तो जितिन गुपचुप रूप से अमित शाह से मिलने जा पहुंचे..... और उनसे राज्यसभा की मांग कर डाली, जब वहां उनकी दाल नहीं गली तो वे एक बार सपा का आंगन भी झांक आए, और इस बात को राहुल अब भी पचा नहीं पा रहे हैं.....
बहरहाल,  बसपा कोऑर्डिनेटरों की रिपोर्ट एक और मायने में भी चौंकाने वाली है ....कि पिछले कुछ समय में अखिलेश सरकार का ग्राफ यूपी में कहीं बेहतर हुआ है.... मुस्लिम और यादव वोट सपा के साथ एकजुट दिखते हैं.....अति पिछड़ी जातियों में कई जातियां ऐसी है जिनका प्रदेश के यादवों के साथ सीधा तकरार रहा है, मसलन मौर्य, कुर्मी, कोयरी, लोध, सैनी जैसी जातियां जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में खुलकर मोदी का समर्थन किया था और इनके वोट थोकभाव में उन चुनावों में भाजपा को मिले थे, आज ये जातियां भाजपा से नाराज़ जान पड़ती हैं.... सपा के साथ इन्हें जाना नहीं है, कांग्रेस इनकी स्वभाविक च्वॉइस नहीं, चुनांचे बसपा के लिए ये जातियां आसान शिकार हो सकती हैं, लिहाजा ऐसी जातियों के प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं की मायावती दरबार में इन दिनों पूछ बढ़ गई है.....दरअसल अपने पक्ष में आए सर्वे नतीजों के बाद से मायावती रणनीतिक तौर पर कोई चूक नहीं करना चाहतीं....लिहाजा वे भाजपा और कांग्रेस को प्रदेश से समेटने की हरचंद कोशिशों मैं लग चुकी हैं....कांग्रेस और भाजपा के लिए ये हालात बेहद चिंताजनक हैं !!

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