Ruby Arun

Thursday 11 October 2012

तह-ए-चश्म में छुपे ख़्वाब

मेरे जुनूँ से पूछो .....क्यों बे-अस्बाब हुए........
इब्तेदा-ए-ज़ब्त हुई..... तो हम कामयाब हुए.......
सारे आलम में न थी.... हमारी हस्ती.....
वो जो हुए हमारे .....तो हम नायाब हुए ..........
तह-ए-चश्म में छुपे ख़्वाब .........कब तक रहते..........
कुछ हासिल हुए ...तो कुछ सुपुर्द-ए-आब हुए...

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