Ruby Arun

Monday 18 June 2012

बच्‍चों की आड़ में लूटखसोट बच्‍चे, जमीन घोटाला और वसुंधरा....रूबी अरुण .


बच्‍चों की आड़ में लूटखसोट बच्‍चे, जमीन घोटाला और वसुंधरा


आखिरकार यह माज़रा क्या है? राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार कर क्या रही है? एक तऱफ तो वह सर्व शिक्षा अभियान के तहत चलने वाले मिड डे मील कार्यक्रम को राज्य में संचालित करने की खातिर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है तो दूसरी तऱफ इसी योजना के नाम पर वह देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा पोषित स्वयंसेवी संगठनों से करोड़ों रुपये वसूल भी रही है. ये नज़राने दान के नाम पर स्वीकार किए जा रहे हैं. हालांकि यह काम उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार ही हो रहा है. लिहाज़ा इसे क़ानूनी जामा पहनाने की गरज़ से राजस्थान सरकार ने एक ट्रस्ट का गठन भी कर दिया है. एमडीएम ट्रस्ट यानी मिड डे मील ट्रस्ट. अब इन बड़े घरानों का भी कमाल देखिए. सरकारी स्कूलों के बच्चों को मध्यान्ह भोजन उपलब्ध कराने के नाम पर अगर वे दोनों हाथों से धनराशियां लुटा रहे हैं तो उसकी एवज़ में राजस्थान सरकार से अनुदान भी ले रहे हैं. और, यही बात कुछ हज़म नहीं हो रही. मिड डे मील के नाम पर राज्य सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं की इस कारगुज़ारी का मक़सद क्या है? मिड डे मील के नाम पर क्या खिचड़ी पक रही है राजस्थान सरकार और नामचीन औद्योगिक घरानों के बीच? समाजसेवा के नाम पर जो कुछ दिख रहा है, क्या वही सच है या पर्दे के पीछे का खेल कुछ और है. यह जो लेन-देन का खेल है, वह स़िर्फ धर्मार्थ के तहत है या इसकी आड़ में कुछ और गुल खिल रहे हैं? क्योंकि जो कुछ हो रहा है, वह महज़ समाजसेवा तो हो ही नहीं सकता. चौथी दुनिया ने जब तहक़ीक़ात की तो जो सच सामने आया, वह वाकई चौंकाने वाला है. भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार के समय शुरू हुई इस योजना की आड़ में बेशक़ीमती सरकारी ज़मीनों का वारा-न्यारा हो रहा है. ये घराने स्वयंसेवी संस्थाओं के ज़रिए समाजसेवा का स्वांग रचते हैं. धर्म और समाज के नाम पर कुछ करोड़ रुपयों का दान कर सैकड़ों करोड़ की ज़मीन हथियाते हैं और टैक्स चुकाने से भी बच जाते हैं. समाज से पुण्यात्मा होने का तमगा अलग से मिल जाता है. वैसे, ऐसा भी नहीं है कि सभी की सभी स्वयंसेवी संस्थाएं इस खेल में शामिल हैं. इनमें से वाक़ई कुछ ऐसी हैं, जो समाज के हित का सोचती हैं और काम करती हैं. पर इनकी संख्या नगण्य ही है.
भारतीय संस्कृति में भोजन कराना पुण्य का काम समझा जाता है. लेकिन राजस्थान में पुण्य की आड़ में पाप का खेल हो रहा है. बच्चों का पेट भरने की आड़ में कुछ लोग चांदी काट रहे हैं. चूंकि वे नाम कद्दावर हैं, इसलिए हर बार बच निकलते हैं. लेकिन शेर की खाल में सियार वाली यह नीति ज़्यादा दिनों तक चलने वाली नहीं. शायद लोकसभा के बजट सत्र में सच से पर्दा उठ जाए.
उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद राजस्थान में शुरू की गई पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप योजना अपना खूब रंग दिखा रही है. पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के नाम पर राजस्थान में अक्षयपात्र फाउंडेशन, नांदी फाउंडेशन, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, ओआरजी फाउंडेशन, श्री सांवलिया जी मंदिर ट्रस्ट, इस्कॉन, टेंपल बोर्ड सिवाद, जेजी ह्यूमेनिटेरियन सोसायटी, अदम्य चेतना ट्रस्ट, डीसीएम श्रीराम ग्रुप, आदित्य बिरला ग्रुप, बोहरा कम्युनिटी, डुग्गर ट्रस्ट, महिंद्रा एंड महिंद्रा, नव प्रयास, आकृति और सेंटर फॉर नेशनल डेवलपमेंट इनिशिएटिव राज्य भर के सरकारी स्कूल के अस्सी लाख बच्चों को मिड डे मील मुहैय्या करा रहे हैं. और, अब तो इस्पात किंग लक्ष्मी मित्तल जैसे धनकुबेर भी इस काम में रुचि दिखा रहे हैं.
बड़े घरानों का भी कमाल देखिए. सरकारी स्कूलों के बच्चों को मध्यान्ह भोजन उपलब्ध कराने के नाम पर अगर वे दोनों हाथों से धनराशियां लुटा रहे हैं तो उसकीएवज़ में राजस्थान सरकार से अनुदान भी ले रहे हैं. और, यही बात कुछ हज़म नहीं हो रही. मिड डे मील के नाम पर राज्य सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं की इस कारगुज़ारी का मक़सद क्या है?
इन स्वयंसेवी संस्थाओं को उनके इस काम के बदले केंद्र और राज्य से पूरा अनुदान मिलता है. हालांकि तक़लीफ की बात यह है कि करोड़ों रुपये खर्च करने का आडंबर करके भी मिड डे मील के तहत बच्चों को सही खाना नहीं मिल पा रहा है. नागौर, झाडौल, बीकानेर और गंगानगर के ज़िलाधिकारियों के पास दर्ज़नों शिकायतें आई हैं कि जो स्वयंसेवी संस्थाएं हैं, उनके द्वारा परोसे जा रहे खाने में कीड़े-मकौड़े मिलते हैं, सड़ी-गली सब्जियां इस्तेमाल होती हैं, जिससे आएदिन बच्चे बीमार होते हैं. कई स्कूल तो ऐसे हैं, जहां बच्चों को खाना तक नहीं मिलता. क्या फायदा इन बड़े ट्रस्टों और स्वयंसेवी संस्थाओं का? सरकार भी करोड़ों रुपये का अनुदान देकरदिखावा करती है कि उसे बच्चों का कितना खयाल है. जबकि सच यह है कि इन बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है.
ये संस्थाएं सरकार से अनुदान तो लेती हैं, पर उस अनुदान की राशि से कहीं ज़्यादा धनराशि सरकार को मिड डे मील के दुरुस्त संचालन के नाम पर दान स्वरूप सौंप देती हैं. तो सवाल यह उठता है कि अगर मक़सद समाजसेवा है तो फिर इन स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा अनुदान लेने का औचित्य क्या है? लोक लेखा समिति की जल्दी ही पेश होने वाली रिपोर्ट में भी यह सवाल उठाया गया है और इस पर बेहद कड़ी टिप्पणी भी की गई है. लोक लेखा समिति की रिपोर्ट भी सरकारी ज़मीन के घोटाले पर ही टिकी है. हालांकि इन सबमें अशोक गहलोत सरकार की कोई खास भूमिका नहीं है. इस लेन-देन का शुभारंभ वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपने राज में ही कर दिया था.
शुरुआत करते हैं बैंगलोर इस्कान द्वारा संचालित अक्षयपात्र फाउंडेशन से. बैंगलोर में सरकारी ज़मीनों की ख़रीद—बिक्री में घोटाला करने के मामलों में यह पहले से ही बदनाम है. और, अब राजस्थान में भी इसका वही धंधा जारी है. यह फाउंडेशन राजस्थान के जयपुर, बारन और नाथद्वारा के सरकारी स्कूलों में एक लाख अस्सी हज़ार बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन का इंतज़ाम करता है. इसके लिए अक्षयपात्र को सरकारी अनुदान के अलावा अनाज भी मिलता है. पर यह सामान्य सरकारी प्रक्रिया है. चौंकाने वाली बात यह है कि अक्षयपात्र ने जयपुर और नाथद्वारा में चलने वाले इस सरकारी कार्यक्रम के लिए राजस्थान सरकार को कुल सात सौ अट्ठाइस करोड़ रुपये की धनराशि दान में दी है. संस्था जब इतनी बड़ी धनराशि दान में दे सकती है तो फिर सरकारी अनुदान लेने का दिखावा क्यों कर रही है? जो कहानी सामने आई है, उसके मुताबिक माजरा यह है कि अक्षयपात्र फाउंडेशन जयपुर में एक मेगा टाउनशिप का निर्माण करा रहा है, जिसके लिए औने-पौने दामों में ज़मीन वगैरह उपलब्ध कराने का काम राजस्थान सरकार ने किया है. हालांकि अक्षयपात्र को ज़मीन मुहैय्या कराने की प्रक्रिया भाजपा की वसुंधरा सरकार के व़क्त से ही शुरू हो चुकी थी. राजस्थान में अक्षयपात्र के क़दम भी वसुंधरा राजे की मेहरबानियों के कारण ही पड़े. भाजपा के दिग्गज नेता और अदम्य चेतना नाम की विशाल स्वयंसेवी संस्था के मालिक अनंत कुमार ने वसुंधरा और अक्षयपात्र के कर्ता-धर्ता पंडित मधु दास के बीच संपर्क बनाने का काम किया था. अनंत भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. वसुंधरा ने बेहद तामझाम के साथ जयपुर में इस संस्था का उद्घाटन किया और मिड डे मील का काम सौंप दिया. धीरे-धीरे अक्षयपात्र ने अपना विस्तार करना शुरू कर दिया. बैंगलोर की तर्ज़ पर यहां भी टाउनशिप बनाने का काम चालू कर दिया. दरअसल, अक्षयपात्र का काम ही यही है. पहले वह समाजसेवा के नाम पर पहल करता है. सरकार में अपनी पहुंच बनाता है. फिर बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के काम में घुस जाता है. पहले बैंगलोर, फिर जयपुर, उसके बाद वृंदावन और अब मथुरा. मतलब यह कि समाजसेवा की आड़ में अक्षयपात्र अपने दूसरे धंधों की बेलें फैला रहा है.
अब ज़िक़्र करेंगे नांदी फाउंडेशन का. इस संस्था को सरपरस्ती हासिल है मशहूर औद्योगिक घराने महिंद्रा एंड महिंद्रा की. महिंद्रा एंड महिंद्रा को जयपुर में सेज़ के तहत आने वाली तीन हज़ार एकड़ ज़मीन हासिल है, जिसमें वह वर्ल्ड सिटी नाम से एक वर्ल्ड क्लास कॉरपोरेट और बिज़नेस हाउसेज़ बना रहे हैं. 16 दिसंबर 2006 को राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने वर्ल्ड सिटी की नींव खुद अपने हाथों से रखी थी. वैसे कहने को इस मेगा प्रोजेक्ट में राजस्थान इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एंड इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड भी साझीदार है, पर मिली जानकारी के मुताबिक़ उसकी भूमिका हाशिए पर रहने जैसी है. सरकार की इस मेहरबानी के बदले महिंद्रा एंड महिंद्रा ने राजस्थान सरकार को जयपुर में मिड डे मील के संचालन के लिए एक करोड़ रुपये दान में दिए हैं. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने उदयपुर, भीलवाड़ा और गंगानगर के एक लाख स्कूली बच्चों को मिड डे मील उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी उठाई है. 3000 एकड़ सरकारी ज़मीन के मुक़ाबले यह सौदा फिर भी सस्ता है.
नांदी फाउंडेशन के इस काम में और भी बड़े-बड़े कॉरपोरेट घराने शरीक हैं. जैसे अक्षयपात्र को इंफोसिस का साथ मिला है. वैसे ही नांदी फाउंडेशन के साथ रेड्डी लैब, सत्यम आदि की साझीदारी है. हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड भी इस पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का
हिस्सेदार है. हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड नांदी फाउंडेशन के साथ गंगानगर चित्तौड़ में 15000 बच्चों को दोपहर का खाना खिलाता है. कपासड़, नीमबहेड़ा और चित्तौड़गढ़ में 60000 बच्चों की ज़िम्मेदारी है. यानी कि कुल मिलाकर 75000 बच्चे और सरकार को दान में दी गई है एक करोड़ रुपये की राशि. बदले में सरकार ने उपकृत किया है 350 एकड़ ज़मीन देकर. जिस पर कंपनी बिजली का स्मॉल पावर प्लांट लगा रही है. इसके अलावा कंपनी मिनरल और माइनिंग के काम में भी हाथ आज़मा रही है. राजस्थान मिनरल रिच स्टेट में है, जहां लगभग 25 क़िस्म के मिनरल्स मिलते हैं. हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को जिंक के अलावा ग्रेनाइट, कैलसाइट, क्ले, कॉपर, फ्लोराइड और फास्फेट का भी लाइसेंस राज्य सरकार से मिल चुका है.
अब बात करें एवी बिरला ग्रुप की, जिन्होंने 25 लाख रुपये इस योजना को चलाने के लिए राजस्थान सरकार की झोली में डाले थे. इस ग्रुप ने चित्तौड़गढ़ में नांदी फाउंडेशन के साथ मिलकर दस हज़ार बच्चों का पेट भरने का ज़िम्मा उठाया है. यूं तो इस कंपनी के साथ ज़मीन के बड़े व्यवसायिक इस्तेमाल का मसला नहीं जुड़ा है, पर इसे शैक्षिक संस्थानों को खोलने के लिए ज़मीन के बड़े टुकड़ों की ज़रूरत पड़ती ही रहती है. लिहाज़ा राज्य सरकार की कृपा तो बनी ही रहनी चाहिए. और, इसकी खातिर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में शामिल होना ही पड़ेगा. ऊपर से सीमेंट का धंधा. यानी बिरला सीमेंट. सरकार को भेंट तो च़ढानी ही पड़ेगी, क्योंकि राजस्थान ही देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां 13 मिलियन टन सीमेंट का हर साल उत्पादन होता है.
मध्य प्रदेश का पाटनी ग्रुप भी इस पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में खुलकर योगदान दे रहा है. आर के मार्बल नाम की इसकी सहयोगी कंपनी नांदी फाउंडेशन के साथ मिलकर बीस हज़ार बच्चों के लिए भोजन तैयार कर रही है. बदले में सरकार ने इस कंपनी को उदयपुर में ज़मीन और संगमरमर की खदान से नवाज़ा है. यहां एक बात जो बेहद ग़ौर करने वाली है, वह यह है कि सभी योजनाएं और कंपनियों की भागीदारी 2007 में शुरू हुई थीं, जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री के सिंहासन पर महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया आसीन थीं. आर के मार्बल ने वसुंधरा की इस मेहरबानी के बदले पच्चीस लाख रुपये राज्य सरकार के दामन में डाले थे. हालांकि वादा तो कंपनी ने पैंतालिस लाख रुपये का किया था.
बात जब सीमेंट की हो रही हो, तो जे के सीमेंट को दरकिनार कैसे किया जा सकता है. जे के सीमेंट ने मिड डे मील के नाम पर चालीस लाख रुपये का दांव खेला है. यह कंपनी चित्तौड़ में अपना कार्यक्रम चला रही है. एवज़ में सरकार ने एसीसी सीमेंट कीखानों की संख्या में इज़ा़फा कर दिया है. यक़ीनन एसीसी फायदे में है.
और, अब बात आर एस एम एल ग्रुप की. यह गु्रप उदयपुर के सलंबर और झाडौल के बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन का इंतजाम करता है. इसके अलावा इसने चौरानवे लाख रुपये राजस्थान सरकार को दिए, ताकि वह अपनी योजना को स्वस्थ और समृद्ध तरीके से आगे ब़ढा सके. इनाम में मिली इसे भी ज़मीन, जिस पर यह एमबीए कॉलेज बनवा रहा है, ताकि छात्रों के प्रवेश और प़ढाई की फीस से रुपयों की बारिश में यह नहा सके.
बोहरा कम्युनिटी. वैसे तो यह एक धार्मिक संस्था है, जो धर्मार्थ का काम करती है. इन कामों के लिए इस कम्युनिटी को तमाम इमारतों की ज़रूरत पड़ती है, ताकि वह इस संप्रदाय में आस्था रखने वालों की बेहतरी के काम कर सके. ज़ाहिर है, इमारतों के लिए ज़मीन तो चाहिए ही. और वह भी ब़डे स्तर पर.
लिहाज़ा एक तीर से दो शिकार हो रहे हैं. एक करोड़ रुपये का दान कर यह संप्रदाय वाहवाही लूट रहा है. तो बदले में राज्य सरकार की खुली सहायता मिल रही है. यक़ीनन एक करोड़ रुपये का दान के नाम पर निवेश बुरा नहीं है. राजस्थान में सोलर प्लांट बिठाने वाले डुग्गर चैरिटेबल ट्रस्ट ने बीकानेर को अपना कर्मक्षेत्र चुना और राजस्थान सरकार को सौंपी 15 लाख रुपये की राशि. अब यह ट्रस्ट राजस्थान के विभिन्न जिलों में शैक्षिक संस्थानों की शुरुआत कर रहा है, जिसके लिए सरकार से उसे भरपूर सहायता भी मिल रही है.
यूआईटी जोधपुर यानी अरबन इंप्रूवमेंट ट्रस्ट. इसने राज्य की वसुंधरा सरकार से न्यू होटल पॉलिसी 2006 के तहत राज्य के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए होटलों को बनाने का ठेका लिया. तबसे अब तक इस ट्रस्ट ने बीकानेर, उदयपुर, अजमेर और जोधपुर में कई निर्माण किए. जो ज़मीन इस ट्रस्ट को मिली, वह बेहद न्यूनतम राशि पर इसे दी गई है. बदले में 25 लाख रुपये की सौगात तो कुछ भी नहीं. मिड डे मील के नाम पर इस ट्रस्ट ने वसुंधरा सरकार को पच्चीस लाख रुपये की राशि सौंपी. ऐसी संस्थाओं और कंपनियों की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने वसुंधरा सरकार को उपकृत किया. बदले में उन्हें भी भरपूर बख्शा गया. लेकिन यह कहानी भाजपा के गणमान्य नेता और वसुंधरा राजे के अज़ीज़ मित्र अनंत कुमार की संस्था अदम्य चेतना की चर्चा किए बिना पूरी नहीं होती. अनंत कुमार की यह संस्था  बैंगलोर में पैदा हुई, पनपी और इसने राजस्थान में भी अपना साम्राज्य कायम किया. यक़ीनन महारानी का हाथ अनंत कुमार की संस्था के सिर रहा. कई विवाद जुड़े रहे अदम्य चेतना के साथ. खाते में गड़बड़ियों को लेकर जांच कमिटी भी बनी, पर अनंत कुमार की अदम्य चेतना का कुछ नहीं बिगड़ा. अदम्य चेतना ने भी मिड डे मील के नाम पर दान स्वरूप नब्बे लाख रुपये वसुंधरा सरकार के खज़ाने में डाल दिए और बगैर सा़फ-स़फाई एवं बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखे, मिड डे मील का ठेका सरकार से हासिल करती रही. यानी कि पैसों और पहुंच के दम पर गड़बड़झाला चलता रहा, पर उनकी शिकायतें लोक लेखा समिति तक पहुंचती रहीं और उनकी जांच भी होती रही. अब लोक लेखा समिति की रिपोर्ट इस बजट सत्र में लोकसभा में पेश होने वाली है. लोक लेखा समिति के चेयरमैन जसवंत सिंह ने अपने पद से इस्ती़फा देने से पहले सभी जांच समितियों की रिपोर्ट के आधार पर फाइनल रिपोर्ट बनाकर लोक लेखा समिति के सुपुर्द कर दी है. उम्मीद की जा रही है कि इस रिपोर्ट के संसद में पेश होने के बाद कई सनसनीखेज खुलासे होंगे. कई नामचीन हस्तियों पर सवाल उठेंगे. राजनेताओं द्वारा सत्ता का दुरुपयोग और उद्योगपतियों के साथ उनके नेक्सस की एक बार फिर चर्चा होगी. तब संभवत: राजस्थान में मिड डे मील के नाम पर चल रही बेशक़ीमती सरकारी ज़मीन की बंदरबांट का पर्दा़फाश भी हो पाए.

No comments:

Post a Comment