Ruby Arun

Monday 18 June 2012

नरेगा यानी मरेगा.....रूबी अरुण


नरेगा यानी मरेगा


जिस राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना यानी नरेगा ने कांग्रेस को देश की बागडोर लगातार दूसरी बार थमा दी, उसी नरेगा की असफलता ने झारखंड का सिंहासन कांग्रेस के हाथ से छीन लिया. झारखंड में मिली पटखनी से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी की पेशानी पर सलवटें पड़ चुकी हैं. इस असफल कार्यान्वयन और चुनावी हार के ज़िम्मेदार माने जा रहे हैं सी पी जोशी. यह इन्हीं का कमाल है कि देश भर में कांग्रेस का ब्रांड बनी नरेगा का झारखंड में कोई वज़ूद ही नहीं है.
सी पी जोशी के संसदीय क्षेत्र भीलवाड़ा में जब देश का पहला सोशल ऑडिट हुआ तो पता चला कि सरपंचों ने फर्ज़ी कंपनियां बनाकर अपने सगे-संबंधियों को करोड़ों के ठेके दे दिए हैं. धीरे-धीरे राज्य के दूसरे ज़िलों से भी ऐसी शिकायतें सामने आने लगीं. तब राजस्थान के सुदूर गांवों में रहने वाले हज़ारों मज़दूर और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जयपुर आकर धरना- प्रदर्शन किया, ताकि राहुल जी आपको यह पता चल सके कि आपके चहेते मंत्री सी पी जोशी की अनदेखी से उनके अपने ही प्रदेश में नरेगा मज़ाक बन कर रह गई है.
नरेगा मामले में सरकार के नाकारापन से नाराज़ झारखंड के ग्रामीणों ने नरेगा का नया नामकरण किया है. नरेगा यानी मरेगा. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और स्वानामधन्य मंत्री सी पी जोशी की घोर लापरवाही, राज्य सरकार की अनदेखी, सरकारी पदाधिकारियों, ठेकेदारों और बिचौलियों के गठजोड़ के कारण झारखंड में दर्ज़नों श्रमिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी. पूरे राज्य में हलचल मच गई, लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय सोता रहा. जिस नरेगा के ज़रिए कई राज्यों में मज़दूरों को दो व़क्तकी रोटी मिलने लगी, वही नरेगा झारखंड में लूट-खसोट का ज़रिया बन गई. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि इस अंधेरगर्दी की ़खबर विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सबको थी और है. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन ने भी टिप्पणी की थी कि नरेगा बिचौलियों के चंगुल में है. झारखंड के राज्यपाल के एस नारायणन ने भी नरेगा के संबंध में कई सवाल खड़े किए. ज़िला कलेक्टरों को फटकार भी लगाई. पर सब कुछ सरकारी नक्कारखानों में गुम हो गया. नतीजा झारखंड की जनता ने कांग्रेस को ही नकार दिया. इतने बड़े सबक के बाद भी मंत्री सी पी जोशी संभलने को तैयार नहीं. राहुल गांधी के दुलरुआ सी पी जोशी, राहुल के चहेते और सबसे महत्वाकांक्षी मंत्रालय केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायत के मंत्री हैं. मई 09 में जब यूपीए दोबारा सत्ता में क़ाबिज़ हुई तो कांग्रेस को नई दिशा और दशा देने की मुहिम में जुटे राहुल बाबा ने केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायत मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सी पी जोशी को सौंप दी. पहली बार कैबिनेट मंत्री बने सी पी जोशी को मिली इस बेहद महत्वपूर्ण भूमिका से हर कोई चौंक गया. पर चूंकि यह फैसला राहुल गांधी का था, इसीलिए पार्टी में किसी ने चूं-चपड़ नहीं की. पर अब झारखंड चुनाव में मिली शिक़स्त और बिहार विधानसभा चुनाव के सिर पर होने से सी पी जोशी पर उंगलियां उठने लगी हैं. सी पी जोशी की नायाब कार्यशैली के खिला़फ पार्टी के अंदर नाराज़ नेताओं की तादाद ब़ढ रही है. इन नेताओं को इस बात का डर है कि जोशी जी की कार्यकुशलता से कहीं बिहार विधानसभा चुनाव में भी हार का मुंह न देखना पड़े.
पर सवाल यह है कि पार्टी को आक्रामक अगुवाई देने की मशक्कत में लगे राहुल गांधी को यह बात समझ में क्यों नहीं आ रही. जबकि उनकी मां सोनिया गांधी ने भी ग्रामीण विकास से जुड़ी इस महत्वपूर्ण योजना के कार्यान्वयन की कमियों को अविलंब दूर करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की है. सोनिया चाहती हैं कि पार्टी कार्यकर्ता स्वैच्छिक संगठनों के साथ एकजुट होकर काम करें. पर सोनिया गांधी जी, आप भी जानती हैं कि चाहने से कुछ भी नहीं होता. करना पड़ता है. और सरकार की नीयत वाकई करने की होती तो देश के अन्य राज्यों की बात छोड़िए, आपके अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली और आपके सुपुत्र राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में तो कम से कम नरेगा का हाल बुरा नहीं होता. इन दोनों ही संसदीय क्षेत्रों में नरेगा के कामों में बड़े पैमाने पर धांधलियां हो रही हैं. यह बात नरेगा का गुणगान करते रहने वाले राहुल गांधी को भी ़खूब मालूम है. दोबारा सरकार में आने के बाद अमेठी में हुई एक कार्यशाला में जब राहुल गांधी अपने प्रिय मंत्री सी पी जोशी के साथ मौजूद थे तो कार्यकर्ताओं ने यह शिकायत की थी कि क्षेत्र में नरेगा भ्रष्टाचार का शिकार बन चुकी है. तो राहुल गांधी वहां आश्चर्यजनक रूप से चुप रहे. उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. अलबत्ता यहां उनके सखा सी पी जोशी ने कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए ज़ुबानी पैंतरा ज़रूर आज़माया. राहुल भैया की जय-जयकार करते हुए जोशी ने कहा कि राहुल गांधी स्वयं उनके मंत्रालय को दिशा और निर्देशन दे रहे हैं. इसलिए नरेगा को ग्रामीण भारत का कामयाब मॉडल बनने से कोई नहीं रोक सकता.
तो राहुल गांधी जी, बकौल सी पी जोशी क्या यह माना जाए कि आपके निर्देशन में ही कहीं कोई कमी है? राहुल जी, आप तो अपने नाना पंडित नेहरू के समाजवाद में यक़ीन करते हैं और अपने पिता राजीव गांधी की तरह इस बात के हिमायती हैं कि ग़रीबों के लिए आया पैसा पूरी तरह ग़रीबों तक पहुंचे, जिससे भारत और इंडिया के बीच का फासला खत्म हो जाए. इस काम के लिए आपने राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना को ज़रिया बनाया. आप देश के दूरदराज़ ग्रामीण इलाक़ों में गए और आपने ग्रामीणों को नरेगा के बारे में बताया-समझाया. पर आपके क़ाबिल दोस्त केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सी पी जोशी ने आपके ऩक्शे क़दम पर चलने की ज़हमत नहीं उठाई. हालांकि उन्होंने मंत्री पद ग्रहण करने के बाद इस बात के नगाड़े ज़रूर बजाए थे कि पूरे देश का सघन दौरा कर वह यह सुनिश्चित करेंगे कि नरेगा का सफल और सार्थक कार्यान्वयन हो. पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. हां, अपने गृह प्रदेश राजस्थान में उन्होंने ज़रूर कुछ बैठकें कीं. नरेगा मेला आयोजित कर अपने तथाकथित कामों का ढोल बजवाया-गुणगान करवाया. पर काम के नाम पर धेला भी नहीं हुआ. न गांवों की सूरत बदली. न ही मज़दूरों को काम मिला. और तो और, आदरणीय जोशी जी के संसदीय क्षेत्र में ही करोड़ों का घोटाला हो गया. सी पी जोशी के संसदीय क्षेत्र भीलवाड़ा में जब देश का पहला सोशल ऑडिट हुआ तो पता चला कि सरपंचों ने फर्ज़ी कंपनियां बनाकर अपने सगे-संबंधियों को करोड़ों के ठेके दे दिए हैं. धीरे-धीरे राज्य के दूसरे ज़िलों से भी ऐसी शिकायतें सामने आने लगीं. तब राजस्थान के सुदूर गांवों में रहने वाले हज़ारों मज़दूर और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जयपुर आकर धरना- प्रदर्शन किया, ताकि राहुल जी आपको यह पता चल सके कि आपके चहेते मंत्री सी पी जोशी की अनदेखी से उनके अपने ही प्रदेश में नरेगा मज़ाक बन कर रह गई है. पर उन बेबस मज़दूरों की आवाज़ शायद आपने नहीं सुनी.
कांग्रेस की प्रदेश और केंद्र सरकार को यह डर सताने लगा कि मौजूदा सरपंच और पंच इन चुनावों में कहीं कांग्रेस का विरोध न कर दें. और कांग्रेस हार न जाए. कड़ी मशक्कत से प्रदेश में अपनी सरकार बना सकी कांग्रेस किसी भी हाल में यह दांव अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहती.
अगर सुनी होती तो नरेगा की सोशल ऑडिट सरकार ने बंद नहीं की होती. सरकार ने भ्रष्ट सरपंचों और प्रधानों के दबाव में आकर भीलवाड़ा सहित 16 पंचायतों में चल रहे ऑडिट को बंद करा दिया.
दरअसल, राजस्थान में 20 व 29 जनवरी और 22 फरवरी को ज़िला परिषद एवं पंचायत चुनाव होने हैं. कांग्रेस की प्रदेश और केंद्र सरकार को यह डर सताने लगा कि मौजूदा सरपंच और पंच इन चुनावों में कहीं कांग्रेस का विरोध न कर दें. और कांग्रेस हार न जाए. कड़ी मशक्कत से प्रदेश में अपनी सरकार बना सकी कांग्रेस किसी भी हाल में यह दांव अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहती. भले ही कांग्रेस यह जीत ग़रीब की रोटी और ज़िंदगी की क़ीमत पर हासिल करे. ऐसे में राहुल बाबा आपसे यह सवाल तो बनता ही है कि आप खामोश क्यों हैं? ग़रीबों के हक़ों और समतामूलक समाज की बड़ी-बड़ी बातें कर आप भारतीय युवाओं के आदर्श नायक बन चुके हैं. पूरा देश आपको उम्मीद भरी निग़ाह से देख रहा है. तो इस अंधेरगर्दी से आपने अपनी नज़रें क्यों फिरा रखी हैं?
राहुल जी शायद आपको याद हो कि जब पिछले साल देश में आम चुनावों की घोषणा हुई थी तो आपने भोले भाले, निरीह ग्रामीणों के बीच घूम-घूमकर यह मुनादी की थी कि अगर वह कांग्रेस को जिताते हैं तो कांग्रेस अपनी जनहित की योजनाओं की बदौलत बेबस भूखे ग्रामीणों की तक़दीर और तस्वीर दोनों बदल देगी. उदाहरण और प्रमाण दोनों तौर पर आपने नरेगा को सामने रखा. आपने देश की ग्रामीण जनता को इस बात का बेहद भावनात्मक तरीक़े से भरोसा दिलाया कि अगर कांग्रेस सत्ता में फिर से आती है तो पंचायती राज और नरेगा और भी प्रभावी तरीक़े से काम करेगी. एक-एक व्यक्ति को इसका लाभ मिलेगा. केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के साथ इस तरह तालमेल और समन्वय करेगी कि योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता, सतर्कता, निगरानी और सावधानी सभी बरती जाएंगी. कार्यप्रणाली पर पैनी नज़र होगी, ताकि भविष्य में इस योजना को भ्रष्टाचारियों, नौकरशाही और दलालों के चंगुल से पूरी तरह मुक्त कराया जा सके.
संभवत: आपने इस सिलसिले में कार्यकुशल मंत्री सी पी जोशी को निर्देश भी दिए, जिसका उदघोष भी मंत्री जी हर जगह करते हैं. पर आपको भी पता है राहुल जी कि जोशी जी ने आपके निर्देशों का पालन नहीं किया. अगर जोशी जी ने ऐसा किया होता तो न तो झारखंड की ग़रीब जनता रोटी की लड़ाई में जान देती और न ही आपकी पार्टी की वहां हार होती. और सी पी जोशी जी, आप! पहले के अधूरे काम तो पूरे हुए नहीं और आपने यह निर्णय ले लिया कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना के तहत और भी कार्यों को शामिल किया जाएगा. स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद ली जाएगी. आपने यह जानते हुए भी कि आपके  मंत्रालय के इस क़दम से धांधलियां और होंगी. फिर भी, आपने यह फैसला ले लिया. जबकि नरेगा की स्थायी समिति के सदस्य और नरेगा की रूपरेखा तैयार करने वाले ज्यां द्रेज और अरूणा राय ने इस बात पर कड़ी आपत्ति दर्ज़ कराई. उन्होंने सा़फ कहा कि यह अवधारणा सही नहीं है. इससे कई समस्याएं पैदा होंगी. पर जोशी तो खुद ही विद्वान पुरुष हैं. उन्होंने ज्यां द्रेज और अरूणा राय की बात हाशिए पर डाल दी है. मज़दूरों-ग़रीबों का वह कल्याण तो कर नहीं सके. गर्चे नरेगा की राशि से वह राजस्थान क्रिकेट का कल्याण ज़रूर करना चाहते हैं.
जोशी जी आपकी बातें सुनकर अ़फसोस होता है. इस देश की विडंबना है कि आप पर जनहित से जुड़ी सबसे बड़ी योजना को कार्यान्वित करने की ज़िम्मेदारी है. आप नरेगा को ग़रीबों की ज़िंदगी और रोटी से नहीं जोड़ते हैं. बल्कि आप अपने मंत्रालय और क्रिकेट को एक दूसरे का पूरक मानते हैं.
राहुल जी क्या यह आपको पता नहीं कि सी पी जोशी की मंशा नरेगा की राशि से बुनियादी ढांचा खड़ा करने की बजाए राजस्थान के गांवों में खेल का मैदान-स्टेडियम बनाने की है. हां, जोशी जी यह ज़रूर फरमाते हैं कि इससे ग़रीबों को रोज़गार मिलेगा. ज्यां द्रेज और अरूणा राय कहते हैं कि इसमें ग़रीबों का नुक़सान है. नरेगा के तहत जो बुनियादी काम कराए जाते हैं, उनमें मज़दूरों की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत होती है. जबकि भवन निर्माण और स्टेडियम जैसे बड़े कामों में मज़दूरों की हिस्सेदारी स़िर्फ 20 प्रतिशत ही रह जाती है. ऐसे में अब आप ही बताएं राहुल जी कि कैसे होगा देश की भूखी-ग़रीब जमात का भला?
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के मुताबिक़, अभी तक किसी भी राज्य ने सभी पंजीकृत ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोज़गार नहीं दिया है. नरेगा क़ानून के तहत ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन का रोज़गार देना ही देना है. पर ऐसा आज तक नहीं हुआ.
फरवरी 2006 में 200 ज़िलों में लांच की गई नरेगा का 2007-08 में और 130 ज़िलों में विस्तार किया गया. अब यह कार्यक्रम लगभग 600 ज़िलों में लागू है. ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़, देश भर में नरेगा के तहत 2008-09 में क़रीब 4.49 करोड़ परिवारों को रोज़गार मिला. 2007-08 में पंजीकृत परिवारों में से स़िर्फ 10.62 फीसदी को ही 100 दिन का रोज़गार मिला. जबकि 2006-07 के दौरान पंजीकृत परिवारों में से 10.29 फीसदी को ही 100 दिन का रोज़गार मिला.
कमोबेश यही हाल देश भर का है. नरेगा के लांच होने के तीन साल के बाद भी राज्य सरकारों ने पूरी तरह इसे कार्यान्वित नहीं किया है. देश भर में कुल 9 ज़िले ही ऐसे हैं, जहां 100 दिन काम मिला है. पश्चिम बंगाल में 2006-07 के दौरान औसतन 14 दिन, 2007-08 के दौरान 25 दिन और 2008-09 के दौरान स़िर्फ 26 दिन ही काम उपलब्ध कराया जा सका है. जबकि उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, झारखंड और त्रिपुरा में ऐसे लोगों को बेरोज़गारी भत्ता मिला है. 2009-10 में अब तक महज़ एक लाख 11 हज़ार परिवारों को काम मिला है. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर पंचायती राज और नरेगा असरदायक तरीक़े से काम करें तो वास्तव में गरीब तबके का सूरत ए हाल बदल जाए. हर हाथ को रोज़गार मिल जाए.
नरेगा के तहत केंद्र सरकार बहुत बड़ी राशि खर्च ज़रूर कर रही है, पर ग्रामीणों को उसका फायदा नहीं मिल पा रहा है. कई जगहों पर काम तो नरेगा के तहत हो रहा है, पर वहां काम मज़दूरों की बजाए मशीनों से लिया जा रहा है. खासकर, झारखंड सरी़खे राज्य में. जहां नरेगा ठेकेदारों के मकड़जाल में उलझ कर दम तोड़ चुकी है. झारखंड में अभी तक पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं और पंचायतों के अभाव में ग्रामसभाएं भी ठेकेदारों के इशारों पर नाचती हैं. ऐसे में भला ग़रीब ग्रामीणों की क्या बिसात?  यहां न तो साप्ताहिक मज़दूरी के अधिकारों का कोई वजूद है, न ही जॉब कार्ड और मस्टर रोल की ही कोई अहमियत. सब कुछ ठेकेदारों के रहमों करम पर है.
राहुल गांधी जी, आपके बारे में कहा जाता है कि आप बहानों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते. आपके अनुसार नरेगा की असली ताक़त है श्रम के बाज़ार के आधार पर ग़रीबों के पैर के नीचे ज़मीन और सिर पर छत देना. आप इस बात के ज़बरदस्त हिमायती हैं कि भारत में मौजूद संभावनाओं को समझने और उन्हें विकसित करने की ज़रूरत है, ताकि इसका फायदा गांवों को मिल सके.
पर राहुल जी आप ही बताइए, क्या सचमुच ऐसा हो पा रहा है? क्या वाकई ग़रीबों का पैसा उन तक पहुंच पा रहा है? क्या इंडिया और भारत के बीच का फासला सचमुच कम हो रहा है? हमें लगता है कि नरेगा के कार्यान्वयन की हक़ीक़त और अपने प्यारे मंत्री सी पी जोशी की कार्यशैली पर आप संजीदगी से नज़र डालें तो आपका भी जवाब नहीं में होगा. तो फिर आपको किस परिवर्तन का पैरोकार माना जाए. जो योजना आपकी और आपकी पार्टी का दंभ है, वह तो टूट कर बिखर रही है. तो क्या आप भी महज उत्तराधिकार में मिली वंश परंपरा की राजनीति तक ही सीमित नहीं रह गए?
राहुल जी, बिहार विधानसभा चुनाव बस होने ही वाले हैं. आप वहां इस महीने के आखिर में अपना चुनावी अभियान भी शुरू करने वाले हैं. क्या कहेंगे आप वहां की जनता से राहुल जी, व़क्त अभी भी है. सी पी जोशी के पेश किए गए आंक़डों के भ्रमजाल से बाहर आइए और वास्तव में इंडिया और भारत के फर्क़ को मिटाइए.

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