सडक से सियासत |

फिर भी रामविलास जी, अपका कोई तो क़दम आपको राजनीतिक चूक लगता होगा जिसकी वजह से आज आपका क़द छोटा हुआ है?
कुर्सी पर पहलू बदलते हुए रामविलास पासवान इस बात को बिल्कुल ही दरकिनार कर देते हैं. कहते हैं कि ऐसा कतई नहीं है. कई क्षण बेहद दुविधा के होते हैं. जब आपके पास कोई और रास्ता नहीं होता. तब आपको अपनी राह ख़ुद बनानी होती है. लोकसभा चुनावों के समय मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उस समय यह मुग़ालता तक नहीं था कि कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ना पड़ सकता है. एनडीए में जाने का सवाल ही नहीं था. तो एक ही रास्ता था कि हम अलग होकर चुनाव लड़ें. हालांकि ये हमारा दुर्भाग्य था.
पर, रामविलास जी तसल्ली के लिए चाहे हम कोई भी तर्क दे दें. पर इससे तो इंकार नहीं ही कर सकते कि इस चुनाव में जनता के नकारने के बाद आप राष्ट्रीय नेता से क्षेत्रीय नेता बन गए?
बड़ी ही आत्मीय मुस्कान उभरती है रामविलास पासवान के चेहरे पर. बे़फिक़्री ज़ाहिर करते हुए फरमाते हैं कि हमारी कभी ये ख्वाहिश नहीं थी कि हम सांसद बनें, केंद्रीय मंत्री बनें या देश पर राज करें. ये तो बिहार की जनता का भरोसा था हममें. कारवां बनता गया. हार को सब कुछ ख़त्म हो जाने के नज़रिए से क्यों देखते हैं आप लोग? ये भी तो सोचिए कि अब मेरे पास व़क्त है उन तमाम मसलों पर काम करने का जिन पर मंत्री रहते मैं ग़ौर नहीं कर पाया था. अब माथे पर बोझ कम है तो मुद्दों की लड़ाई भी धारदार होगी. रही बात नुक़सान की, तो मैं नहीं समझता कि मुझे कोई नुक़सान हुआ है. फिर ठठा कर हंसते हुए कहते हैं कि बस फर्क़ ये पड़ा कि जो तनख्वाह 50,000 रुपए मिलती थी, अब वो पेंशन के रूप में 25,000 रूपये मिल रही है. पावर था तो वो भी ग़रीबों के लिए ही था. एक हथियार के तौर पर. हम नहीं मानते कि सामाजिक या राजनीतिक तौर पर हमारी स्थिति में कोई ज़्यादा बदलाव आया है. पहले संसद के ज़रिए लड़ते थे, अब सड़क से लड़ेंगे.
लेकिन,मौज़ूदा हालातों में राजद के साथ मिलकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ख़िला़फ आपकी लड़ाई क्या रंग लाएगी? बिहार की जनता कैसे भरोसा करे, आप दोनों के तालमेल पर?
तपाक से जवाब मिलता है रामविलास पासवान का— उप चुनाव के नतीजे बताते हैं कि जनता भरोसा करने लगी है. लोगों का यक़ीन वापस राजद और लोजपा में लौट चुका है. अगले विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद चौंकाने वाले होंगे. वो यक़ीनन हमारे हक़ में होंगे. लोकसभा चुनाव के समय हमारा अचानक तालमेल लोगों को परिपक्व नहीं लगा था. पर बीतते समय के साथ यह मिलन पुख्ता हो चुका है. इस उप चुनाव में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच बेहतरीन तालमेल देखने को मिला है. जीत ने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा दिया है. नीतीश कुमार के विकास पुरुष होने की कलई भी अब खुल चुकी है. जनता के तेवर उनके ख़िला़फ आक्रामक हो रहे हैं. अपने तात्कालिक लाभ के लिए नीतीश कुमार जिस तरह अलग-अलग आयोग बना कर समाज को बांट रहे हैं. इससे सभी जात—जमात में उनके ख़िला़फ रोष फैल रहा है. यहां तक की उनकी अपनी पार्टी जद यू में दरार पड़ रही है. उनकी सरकार में सहयोगी पार्टी भाजपा के नेता भी उनके रवैए से बेहद ख़फा हैं. मुख्यमंत्री का जनता से संपर्क टूट चुका है. राज्य में अ़फसरशाही पूरी तरह से हावी है. जनप्रतिनिधियों की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है. नीतीश कुमार का जनता दरबार का ढकोसला भी असरहीन हो चुका है. सुशासन बाबू कहे जाने वाले नीतीश कुमार पर धारा 302 का मुक़दमा दर्ज़ होता है. सरेआम औरत को नंगा कर घुमाया जाता है. ज़ाहिर है ऐसे मुख्यमंत्री पर बिहार की जनता दोबारा भरोसा किसी हाल में नहीं करेगी.
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