दुश्मनी हमने भी की है मगर....... सलीके से.....
हमारे लहजे में ........तुमसा ज़हर नहीं आया.......
तुम एहतराम से करते हो ...खून भरोसे का......
हमें अब तक भी मगर.......ये हुनर नहीं आया..........
लगा दे आग हर महफ़िल में.....नमूं होते ही....
मेरी तहरीर में तुझसा..... शरर नहीं आया....
हमारे लहजे में ........तुमसा ज़हर नहीं आया.......
तुम एहतराम से करते हो ...खून भरोसे का......
हमें अब तक भी मगर.......ये हुनर नहीं आया..........
लगा दे आग हर महफ़िल में.....नमूं होते ही....
मेरी तहरीर में तुझसा..... शरर नहीं आया....
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