आप लिखते रहिए चीन के खिलाफ
आप चीखते रहिए चीन की घिनौनी हरकतों पर
पर यकीन जानिए कि इन सबसे चीन का हम
बाल बांका भी नहीं कर सकते इस सरकार में....
वो इसलिए क्योंकि इसी सरकार में चीन
भारतीय बाजार का बादशाह बना है.
ऐसा नहीं है कि सन 2014 से पहले चीन की
भारतीय बाज़ार में मौज़ूदगी नहीं थी,
चीन 2014 से भी पहले यहां मौजूद था, बल्कि
2008 तक चीन ने 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर
की परियोजनाओं का ठेका ले लिया था.
पर साल 2014 में नरेन्द्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री
बनते ही चीन ने भारत की कंपनियों में 51 मिलियन डॉलर निवेश किया था.
2019 में बढ़कर यह निवेश 1230 मिलियन डॉलर हो गया. यानी 2014 से 2019 के बीच चीन ने भारतीय स्टार्टअप्स में कुल 5.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया.
2017 में चीन ने भारत में सबसे ज्यादा
1666 मिलियन डॉलर का निवेश किया.
नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद 'मेक इन इंडिया' प्रोग्राम की शुरुआत तो ज़रूर की
लेकिन दवाओं, स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक प्रोडक्ट्स तक में चीन की कंपनियों ने भारत के बाज़ार पर
कब्जा कर लिया.
इतना ही नहीं ,इसके अलावा चीन की कंपनियों ने स्टार्टअप्स और छोटे उद्योगों में हजारों करोड़ रुपए का निवेश कर हिस्सेदारी भी खरीद ली. जिनमें सबसे प्रमुख
दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा, टेंशेट और टीआर कैपिटल सहित कई दिग्गज कंपनियां शामिल हैं...
मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक 'गेटवे हाउस' ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है. 60 फीसदी बड़े स्टार्टअप्स में चीन
की बड़ी हिस्सेदारी है. भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ा हिस्सा रखता है.
यूनिकॉर्न एक निजी स्टार्टअप कंपनी को कहते हैं
जिसकी क़ीमत एक अरब डॉलर है .
2014 के बाद चीन हमारे देश के रसोई घर में,
बेडरूम में एयर कंडीशनिंग मशीनों की शक्ल में, मोबाइल फ़ोन और डिजिटल वैलेट के रूप में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में मौजूद है.
जनता को बहलाने के लिए चाहे जितनी खबरें बनें
कि बीएसएनएल और एमटीएनएल को आदेश दे दिया गया है कि 4G/5G के लिए चीनी उपकरणों का इस्तेमाल रोका जाए,
पर ऐसा होना मुमकिन ही नहीं क्योंकि चीन ने भारत में
छह अरब डॉलर से भी ज़्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है .
भारत में तकनीकी क्षेत्र में विशाल निवेश की प्रकृति के कारण ही चीन ने भारत पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है.
भारत-चीन के बीच सिर्फ दवा का 39 अरब डॉलर का सालाना कारोबार है...
जब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं तो उनसे डोकलाम में चीन के दबदबे पर सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा
था कि ''2014 में चीन ने भारत में 116 बिलियन डॉलर का निवेश किया था जो आज की तारीख़ में 160 बिलियन डॉलर हो गया है. चीन ने इतना ज़्यादा निवेश
भारत में किया है. हमारी आर्थिक क्षमता बढ़ाने में चीन
ने बेहद मदद की है, और आप डोकलाम पर सवाल पूछ रहे हैं.
तो समझे
हार जाइए हिम्मत, बिसारिए देश का नाम
जाहि विधि रखें मोदी और चीन
ताही विधि रहिए......
आप चीखते रहिए चीन की घिनौनी हरकतों पर
पर यकीन जानिए कि इन सबसे चीन का हम
बाल बांका भी नहीं कर सकते इस सरकार में....
वो इसलिए क्योंकि इसी सरकार में चीन
भारतीय बाजार का बादशाह बना है.
ऐसा नहीं है कि सन 2014 से पहले चीन की
भारतीय बाज़ार में मौज़ूदगी नहीं थी,
चीन 2014 से भी पहले यहां मौजूद था, बल्कि
2008 तक चीन ने 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर
की परियोजनाओं का ठेका ले लिया था.
पर साल 2014 में नरेन्द्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री
बनते ही चीन ने भारत की कंपनियों में 51 मिलियन डॉलर निवेश किया था.
2019 में बढ़कर यह निवेश 1230 मिलियन डॉलर हो गया. यानी 2014 से 2019 के बीच चीन ने भारतीय स्टार्टअप्स में कुल 5.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया.
2017 में चीन ने भारत में सबसे ज्यादा
1666 मिलियन डॉलर का निवेश किया.
नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद 'मेक इन इंडिया' प्रोग्राम की शुरुआत तो ज़रूर की
लेकिन दवाओं, स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक प्रोडक्ट्स तक में चीन की कंपनियों ने भारत के बाज़ार पर
कब्जा कर लिया.
इतना ही नहीं ,इसके अलावा चीन की कंपनियों ने स्टार्टअप्स और छोटे उद्योगों में हजारों करोड़ रुपए का निवेश कर हिस्सेदारी भी खरीद ली. जिनमें सबसे प्रमुख
दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा, टेंशेट और टीआर कैपिटल सहित कई दिग्गज कंपनियां शामिल हैं...
मुंबई के विदेशी मामलों के थिंक टैंक 'गेटवे हाउस' ने भारत में ऐसी 75 कंपनियों की पहचान की है जो ई-कॉमर्स, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, एग्रीगेशन सर्विस और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाओं में हैं और उनमें चीन का निवेश है. 60 फीसदी बड़े स्टार्टअप्स में चीन
की बड़ी हिस्सेदारी है. भारत की 30 में से 18 यूनिकॉर्न में चीन की बड़ा हिस्सा रखता है.
यूनिकॉर्न एक निजी स्टार्टअप कंपनी को कहते हैं
जिसकी क़ीमत एक अरब डॉलर है .
2014 के बाद चीन हमारे देश के रसोई घर में,
बेडरूम में एयर कंडीशनिंग मशीनों की शक्ल में, मोबाइल फ़ोन और डिजिटल वैलेट के रूप में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में मौजूद है.
जनता को बहलाने के लिए चाहे जितनी खबरें बनें
कि बीएसएनएल और एमटीएनएल को आदेश दे दिया गया है कि 4G/5G के लिए चीनी उपकरणों का इस्तेमाल रोका जाए,
पर ऐसा होना मुमकिन ही नहीं क्योंकि चीन ने भारत में
छह अरब डॉलर से भी ज़्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कर रखा है .
भारत में तकनीकी क्षेत्र में विशाल निवेश की प्रकृति के कारण ही चीन ने भारत पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया है.
भारत-चीन के बीच सिर्फ दवा का 39 अरब डॉलर का सालाना कारोबार है...
जब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं तो उनसे डोकलाम में चीन के दबदबे पर सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा
था कि ''2014 में चीन ने भारत में 116 बिलियन डॉलर का निवेश किया था जो आज की तारीख़ में 160 बिलियन डॉलर हो गया है. चीन ने इतना ज़्यादा निवेश
भारत में किया है. हमारी आर्थिक क्षमता बढ़ाने में चीन
ने बेहद मदद की है, और आप डोकलाम पर सवाल पूछ रहे हैं.
तो समझे
हार जाइए हिम्मत, बिसारिए देश का नाम
जाहि विधि रखें मोदी और चीन
ताही विधि रहिए......
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