यूँ ही....
सुनो...
तुम्हें पुकारते -पुकारते
जब मैं खामोश हो जाऊँ
सदा के लिए...
और कभी मेरी कमी गर
महसूस हो तुम्हें...
तुम मुझे एक खत लिख देना.......
खत में जिक्र मेरी
तड़प का हो न हो...
उस तड़प से मिले
अपने दिल की तसल्लियों
को लिख देना...
मेरे कच्चे सवालात पर
अपने पक्के ज़वाबात लिख देना...
ये भी लिख देना
कितनी नासमझ थी मैं...
मेरी नादानियों को लिख देना...
मेरी याद गर एक पल भी
कभी आई हो...
उस पल का हिसाब लिख देना...
सबब लिखना ज़रूर
मुझसे दूर जाने का
मेरी सारी गुस्ताखियों को लिख देना...
लिख के गंगा में
बहा देना खत को
बस उस पर नाम मेरा लिख देना.
सुनो...
तुम्हें पुकारते -पुकारते
जब मैं खामोश हो जाऊँ
सदा के लिए...
और कभी मेरी कमी गर
महसूस हो तुम्हें...
तुम मुझे एक खत लिख देना.......
खत में जिक्र मेरी
तड़प का हो न हो...
उस तड़प से मिले
अपने दिल की तसल्लियों
को लिख देना...
मेरे कच्चे सवालात पर
अपने पक्के ज़वाबात लिख देना...
ये भी लिख देना
कितनी नासमझ थी मैं...
मेरी नादानियों को लिख देना...
मेरी याद गर एक पल भी
कभी आई हो...
उस पल का हिसाब लिख देना...
सबब लिखना ज़रूर
मुझसे दूर जाने का
मेरी सारी गुस्ताखियों को लिख देना...
लिख के गंगा में
बहा देना खत को
बस उस पर नाम मेरा लिख देना.
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