भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां लाकडाउन के बाद कोरोना फैला है।
क्योंकि यहां के प्रशासन ने बिना तैयारी के उन देशों की नकल करते हुए लाकडाउन लगा दिया, जिनके यहां हजारों में केस थे और रोजाना 500 से हजार नए मरीज मिल रहे थे।
जिस समय भारत मे लाकडाउन लगा तब इधर 500 + केस थे, लाकडाउन के 7 दिन के अंदर सरकारें अपनी अपनी पीठ ठोकने लग गई थी, कोई फ्यूचर प्लान नहीं था, हमने कोरोना कंट्रोल कर लिया, हमने मास स्प्रेड नहीं होने दिया, हमने गांवों तक नहीं पहुंचने दिया जैसे तारीफों के पुलिंदे बांधे जाने लगे।
लाकडाउन से पहले न सही कम से कम लाकडाउन के बाद सरकार एक बेहतर प्लान बना सकती थी।
25 मार्च को प्रवासी मजदूर एक बड़ी समस्या थे और 20 मई को भी प्रवासी मजदूर ही एक बड़ी समस्या रहे। उनके लिए 25 मार्च से 20 मई तक कुछ नहीं सोचा जा सका।
लाकडाउन के दौरान हफ्ते में एक बार मोदी जी टाईमपास वाला कार्यक्रम करवा रहे थे ताकि पब्लिक घर मे बोर न हो, और दूसरी तरफ कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी, कोई प्लान सरकार के पास नहीं था, न ही लाकडाउन आगे बढाने को लेकर, और न ही लाकडाउन खोलने को लेकर।
हमारी केंद्र सरकार हर एक लाकडाउन के बाद,राज्य सरकारों से पूछने का ढोंग करती कि बताओ क्या करना है, खोलें या न खोलें, एक मीटिंग होती, मुंह मे मास्क लगाए नेता बैठे दिखते, और अंत मे कोई प्लानिंग साझा नहीं करी जाती। क्या और कैसे करना है जैसी मूलभूत चीज पर तक कोई प्लान नहीं।
बस कुछ शब्द आयात कर लिए, लाकडाउन,क्वारन्टीन(जिन्हें हमारे हिंदी न्यूज चैनल क्वारनटाईन बोल रहे हैं), सोशल डिस्टेंसिंग और आईसोलेशन। इन शब्दों का बड़े स्तर पर प्रचार किया गया। मगर सरकारों ने अपनी तरफ से कोई प्लानिंग नहीं करी।
इस बीच पीएम ने दान मांगना शुरू कर दिया, जो शायद जरूरी लगा हो उन्हें, मगर क्या चीज कहाँ पर कैसे इस्तेमाल होनी है इसके लिए बस एक मास्टर प्लान था। अन्य पार्टियों की राज्य सरकारें केंद्र पर आरोप लगाए औऱ भजपा की राज्य सरकारें अपनी तारीफें करवाये।
सरकारों ने पुलिस से कह दिया डण्डे मारो जो बाहर निकले, तुम अपनी तरह से निपटो, स्वास्थ विभाग को कह दिया, जो टेस्ट करवाएगा, उसकी हिस्ट्री पूछो, जो पॉजिटिव निकले उसके सम्पर्क में आये सबको बुलाओ।
जगह जगह बुखार नापने के लिए बोल दिया गया, हो गई तैयारी, लग गया लाकडाउन।
आर्थिक मोर्चे पर क्या करना है? घर बैठी जनता को कैसे सैलरी मिल पाएगी, कम्पनियां कैसे सर्वाइव करेंगी। ऐसे सवालों ने जब सरकारों को मई महीने में परेशान करना शुरू किया तो 20 लाख करोड़ का पैकेज बता दिया, जिसे बाद में निर्मला सीतारमण बांटने लगी तो पता चला, झुनझुना मिलेगा हाथ मे। असल रकम तो कहां जाएगी मालूम नहीं।।
हां इस बीच एक लाख मरीज हो चुके हैं और धीरे धीरे बढ़ रहे है, 5000 - 5000 मरीज एक दिन में मिल रहे हैं, और जिस तरह बिना प्लानिंग के लाकडाउन लगाया था, वैसे ही हटाने भी जा रहे हैं।
फ़ारमल्टी के लिए हर राज्य सरकार ने एक गाइडलाइन जारी करी है ,पढ़कर हंसी आती है।
(कमल भास्करानंद पंत)
क्योंकि यहां के प्रशासन ने बिना तैयारी के उन देशों की नकल करते हुए लाकडाउन लगा दिया, जिनके यहां हजारों में केस थे और रोजाना 500 से हजार नए मरीज मिल रहे थे।
जिस समय भारत मे लाकडाउन लगा तब इधर 500 + केस थे, लाकडाउन के 7 दिन के अंदर सरकारें अपनी अपनी पीठ ठोकने लग गई थी, कोई फ्यूचर प्लान नहीं था, हमने कोरोना कंट्रोल कर लिया, हमने मास स्प्रेड नहीं होने दिया, हमने गांवों तक नहीं पहुंचने दिया जैसे तारीफों के पुलिंदे बांधे जाने लगे।
लाकडाउन से पहले न सही कम से कम लाकडाउन के बाद सरकार एक बेहतर प्लान बना सकती थी।
25 मार्च को प्रवासी मजदूर एक बड़ी समस्या थे और 20 मई को भी प्रवासी मजदूर ही एक बड़ी समस्या रहे। उनके लिए 25 मार्च से 20 मई तक कुछ नहीं सोचा जा सका।
लाकडाउन के दौरान हफ्ते में एक बार मोदी जी टाईमपास वाला कार्यक्रम करवा रहे थे ताकि पब्लिक घर मे बोर न हो, और दूसरी तरफ कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी, कोई प्लान सरकार के पास नहीं था, न ही लाकडाउन आगे बढाने को लेकर, और न ही लाकडाउन खोलने को लेकर।
हमारी केंद्र सरकार हर एक लाकडाउन के बाद,राज्य सरकारों से पूछने का ढोंग करती कि बताओ क्या करना है, खोलें या न खोलें, एक मीटिंग होती, मुंह मे मास्क लगाए नेता बैठे दिखते, और अंत मे कोई प्लानिंग साझा नहीं करी जाती। क्या और कैसे करना है जैसी मूलभूत चीज पर तक कोई प्लान नहीं।
बस कुछ शब्द आयात कर लिए, लाकडाउन,क्वारन्टीन(जिन्हें हमारे हिंदी न्यूज चैनल क्वारनटाईन बोल रहे हैं), सोशल डिस्टेंसिंग और आईसोलेशन। इन शब्दों का बड़े स्तर पर प्रचार किया गया। मगर सरकारों ने अपनी तरफ से कोई प्लानिंग नहीं करी।
इस बीच पीएम ने दान मांगना शुरू कर दिया, जो शायद जरूरी लगा हो उन्हें, मगर क्या चीज कहाँ पर कैसे इस्तेमाल होनी है इसके लिए बस एक मास्टर प्लान था। अन्य पार्टियों की राज्य सरकारें केंद्र पर आरोप लगाए औऱ भजपा की राज्य सरकारें अपनी तारीफें करवाये।
सरकारों ने पुलिस से कह दिया डण्डे मारो जो बाहर निकले, तुम अपनी तरह से निपटो, स्वास्थ विभाग को कह दिया, जो टेस्ट करवाएगा, उसकी हिस्ट्री पूछो, जो पॉजिटिव निकले उसके सम्पर्क में आये सबको बुलाओ।
जगह जगह बुखार नापने के लिए बोल दिया गया, हो गई तैयारी, लग गया लाकडाउन।
आर्थिक मोर्चे पर क्या करना है? घर बैठी जनता को कैसे सैलरी मिल पाएगी, कम्पनियां कैसे सर्वाइव करेंगी। ऐसे सवालों ने जब सरकारों को मई महीने में परेशान करना शुरू किया तो 20 लाख करोड़ का पैकेज बता दिया, जिसे बाद में निर्मला सीतारमण बांटने लगी तो पता चला, झुनझुना मिलेगा हाथ मे। असल रकम तो कहां जाएगी मालूम नहीं।।
हां इस बीच एक लाख मरीज हो चुके हैं और धीरे धीरे बढ़ रहे है, 5000 - 5000 मरीज एक दिन में मिल रहे हैं, और जिस तरह बिना प्लानिंग के लाकडाउन लगाया था, वैसे ही हटाने भी जा रहे हैं।
फ़ारमल्टी के लिए हर राज्य सरकार ने एक गाइडलाइन जारी करी है ,पढ़कर हंसी आती है।
(कमल भास्करानंद पंत)
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