मजाक चल रहा #देश की #सुरक्षा के साथ..
ठेके पर भर्ती किए गए पूर्व #अग्निवीर
अब #BSF में भर्ती किए जाएंगे.
यही नहीं अग्निवीरो को ऊपरी आयु-सीमा मानदंडों में भी छूट देने का फैसला किया है.
#मोदी सरकार ने उनके लिए #बीएसएफ में 10 फीसदी #आरक्षण की घोषणा की है.
सोचिए की जो BSF देश की सरहदों पर #China #Pakistan और #Bangladesh के घुसपठियों से लड़ती है. गहन और कड़े प्रशिक्षण के बाद देश की रक्षा में तैनात होती है, #Anti_Naxal_Operation करती है,उनके बीच ये अग्नीवीर कौन सा जौहर दिखाएंगे?
विडंबना ये है की जिन जवानों के पराक्रम के गीत गा गा, उनकी दुहाई दे दे कर सरकार जनता से वोट मांगती है.
उन्ही केंद्रीय अर्धसैनिक बलों BSF, CRPF, ITBP, CISF और SSB के करीब 13000 वरिष्ठ अधिकारियों को न तो वरिय रैंको पर नियुक्ति दे रही है और न प्रमोशन के वित्तीय लाभ.
जबकि हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट और खुद भारत सरकार की कैबिनेट केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों को 2006 से NFFU और NFSG देने को कह चुकी है लेकिन उसके बावजूद पैरामिलिट्री फोर्स के कमांडर इसके लाभ से वंचित है
जबकि 31 जुलाई 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई को ये फैसला सुनाया कि दो महीने के भीतर यानि 30 सितंबर तक
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों को केंद्र ऑर्गनाइज्ड ग्रुप 'ए' सर्विसेज मानकर एनएफएफयू, यानी कि Non-Functional Financial अपग्रेडेशन का लाभ दिया जाए.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ये समय सीमा बीतने के बावजूद अभी तक सरकार हरकत में नहीं आई है. जबकि इसके लिए पिछले लगभग सात सालों से पैरामिलिट्री फोर्स के अधिकारी संघर्ष कर रहे हैं.
इन जवानों के परिजन अपने हक के लिए #जंतर_मंतर पर महीनों से धरना दे रहे हैं.
पर मोदी सरकार की दलील ये है की सरकार के पास पैसे नहीं हैं.
हमारे देश का #Border_Security_Force दुनिया का सबसे बड़ा #सीमा_सुरक्षा_बल है.
जो शांति के समय देश की सीमाओं की रक्षा करता है और अंतर्राष्ट्रीय अपराध को रोकता है.
लेकिन सरकार की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना रवैए की वजह से फोर्स में खलबली मची हुई है.2016 से 2020 के बीच, यानी 4 साल में बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स, यानी BSF के 20,249 जवानों ने वॉलेंटरी रिटायरमेंट ले लिया है और 1708 ने तो रिजाइन ही कर दिया है.
कल रात भी #BSF के एक जवान ने इंदौर में आत्महत्या कर ली है.
बिल्कुल यही स्थिति #CRPF की भी है.
सालों के इंतज़ार और दिल्ली हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में केस जीतने के बाद भी जवानों को अपने अधिकार नहीं मिल रहे.
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