Ruby Arun

Friday, 6 January 2012

तुम अपना रुख बदल देना


कभी जो वक़्त पड़ जाए.....तुम्हे मुझसे बिछड़ना हो ....
तुम्हे वादे से फिरना हो ....तो बे-शक देर मत करना ....
मुझे नाराज़ कर देना ...तुम अपना रुख बदल देना ...
तुम अपनी सिम्त चल देना ......
मगर जब लौट के आना ..तुम्हे मिटटी के टीले पर मैं शायद ना दिखाई दूँ ...
मगर हैरान मत होना ....वहीँ दो-चार क़दमों पर ...मज़ार ऐ बेकरन होगा ...
वहां इक शमा जला देना ...फिर अपना रुख बदल लेना ....
और अपनी सिम्त चल देना ........

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