टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला : बेल का खेल ऑल इज नॉट वेल |
टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में मनमोहन, चिदंबरम एवं सोनिया गांधी ने चुप्पी साध रखी है और देश के क़ानून मंत्री सलमान खुर्शीद चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान चस्पां किए देश की अवाम को भरमाने की खातिर कहते फिर रहे हैं, ऑल इज वेल. पर इस हक़ीक़त से वह और सरकार में शामिल उनके सहयोगी भी ख़ूब वाबस्ता हैं कि ऑल इज नॉट वेल. इस घोटाले की प्रक्रिया और उसके बाद जांच की औपचारिकता के बीच ऐसे कई क़ानूनी पेंच हैं, जिनमें सरकार फंसती नज़र आ रही है. खास तौर पर, सरकार के शीर्ष विधि अधिकारियों ने ख़ूब गुल खिलाए हैं. देश के महान्यायवादी ग़ुलाम ई वाहनवती की कारगुज़ारियों पर देश का सर्वोच्च न्यायालय तक सवाल कर चुका है. स्पेक्ट्रम घोटाले में उनकी महती भूमिका भी किसी से छुपी हुई नहीं है. पर अब बारी एक और बड़े विधि अधिकारी की है, जिनका नाम है अब्दुल अज़ीज़. यह साहब सीबीआई के डायरेक्टर प्रोज़िक्यूसन हैं. कहने को यह पद सीबीआई से जुड़ा है, पर असल में सीबीआई का डायरेक्टर प्रोज़िक्यूसन पद तकनीकी तौर पर सीधे विधि मंत्रालय के तहत होता है. बहरहाल, इस घोटाले की जांच के सिलसिले में सीबीआई ने अब्दुल अज़ीज़ से विभिन्न बिंदुओं पर सलाह मांगी, जिनमें से एक यह भी था कि एस्सार और उसकी फ्रंट कंपनी लूप टेलीकॉम की इस घोटाले में आपराधिक सहभागिता पर उनकी क्या राय है. चूंकि इस मसले पर जांच अधिकारियों के बीच मतभिन्नता थी, लिहाज़ा माक़ूल क़ानूनी सलाह की दरकार थी.
टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले का क्लाइमेक्स अब शुरू होने वाला है. विधि अधिकारियों की ग़लतियों, सीबीआई की लापरवाहियों और सियासी वजहों से हुए घोटाले और बेल के खेल का तमाशा दुनिया देखने वाली है. घोटाले के हीरो पूर्व मंत्री ए राजा मनमोहन सरकार के सभी दिग्गज मंत्रियों को अदालत में लेफ्ट-राइट कराने वाले हैं. अपने सभी आरोपी साथियों के बाहर आ जाने के बाद राजा अपनी ज़मानत की अर्ज़ी अदालत में देने की तैयारी में हैं, वह इसकी पैरवी भी ख़ुद करेंगे. मामले की सुनवाई कर रहे जज ओ पी सैनी को अगर ज़रा भी लगा कि राजा की दलीलों और पेश सबूतों में दम है तो इसमें कोई शुबहा नहीं कि घोटाले के गवाह के तौर पर प्रणब मुखर्जी, हंसराज भारद्वाज, मोंटेक सिंह अहलूवालिया और खास तौर पर गृहमंत्री पी चिदंबरम अदालत के कठघरे में खड़े नज़र आएंगे. हालांकि राजा इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी बख्शने के मूड में नहीं दिखते.
अब्दुल अज़ीज़ ने जांच अधिकारियों की सारी मेहनत पर पानी फेरते हुए अपनी टिप्पणी में यह लिख डाला कि एस्सार-लूप ने दूरसंचार के सेक्सन 8 का उल्लंघन नहीं किया है, इसलिए इन दोनों कंपनियों पर कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है. जब इस घोटाले की जांच कर रहे सीबीआई अधिकारियों के पास यह ख़बर पहुंची तो वे हैरान रह गए कि आख़िरकार यह हुआ कैसे और भला क्यों? तब कुछ लोगों ने इस बात की भी छानबीन शुरू कर दी. पता चला कि अब्दुल अज़ीज़ ने तो पुत्र मोह में आकर उल्टी गंगा बहा दी है. दरअसल, उनका बेटा अदनान अज़ीज़ 2009 के अक्टूबर महीने से एस्सार-लूप में बतौर अधिकारी काम कर रहा था. अब्दुल अज़ीज़ यह सोचकर घबरा गए कि कंपनी बंद हो जाएगी तो उनका बेटा बेरोज़गार हो जाएगा, इसलिए उन्होंने बग़ैर यह सोचे कि उनकी ग़लत राय से मामले की तफ्तीश पर कितना ग़लत असर पड़ेगा, भरमाने वाली सलाह दे डाली. जब यह बात सीबीआई निदेशक ए पी सिंह तक पहुंची तो उन्होंने अब्दुल अज़ीज़ को तलब किया. सच्चाई मालूम होते ही बतौर सीबीआई निदेशक ए पी सिंह ने अब्दुल अज़ीज़ की टिप्पणी को ओवररूल्ड कर दिया. इस गड़बड़झाले की ख़बर बाहर न जाए और जगहंसाई के साथ-साथ बेईमानी का इल्ज़ाम न लगे, इसके लिए मामले को दबाकर दोबारा से इसी मसले पर क़ानूनी राय हासिल करने के लिए पहले से ही घोटाले में शरीक होने की तोहमत झेल रहे एटॉनी जनरल ग़ुलाम ई वाहनवती के पास फाइल भेज दी गई. अब वाहनवती का करिश्मा देखिए कि 24 अक्टूबर को उनके पास सीबीआई ने फाइल भेजी. मामले और घोटाले की सामाजिक-राजनीतिक गंभीरता को देखते हुए महान्यायवादी को इस पर अपनी त्वरित राय दे देनी चाहिए थी, पर उन्होंने तब तक फाइल दबाए रखी, जब तक शाहिद बलवा और कनिमोझी ज़मानत पर छूटने को नहीं हो गए. लगभग महीने भर बाद वाहनवती की क़लम चली और उन्होंने लिखा कि दोनों कंपनियां कंपनी एक्ट के मुताबिक़ दोषी पाई गई हैं. सीबीआई के एक बड़े अधिकारी बताते हैं कि आरोपियों की ज़मानत होने के मसले पर भले ही यह बहानेबाज़ी की जा रही है कि उन पर ज़मानती धाराएं लगी थीं, लेकिन हक़ीक़त यही है कि सीबीआई और सरकार ने इस डर से कि कहीं उनकी खामियां उजागर न हो जाएं, आरोपियों की ज़मानत याचिका का विरोध नहीं किया. घोटाले की विशालता और गंभीरता को देखते हुए सीबीआई की इस हरकत पर कोर्ट भी संशय में है. यही कारण है कि कोर्ट ने आरोपियों को ज़मानत देने से पहले कई बार यह सवाल किया कि सीबीआई उनकी ज़मानत याचिका का विरोध क्यों नहीं कर रही है?
ए राजा लगभग ऐलान की मुद्रा में कहते हैं कि आई एम द कैप्टन ऑफ़ द शिप. एंड आई विल वेट फॉर एवरी वन एल्स कम आउट. बिफोर आई मेक सिमिलर अटेम्प्टस. निश्चित तौर पर राजा का यह बयान सरकार और खासकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं गृहमंत्री पी चिदंबरम को हिलाकर रख देने वाला है.
अब ज़रा इस घोटाले के हीरो एवं मुख्य अभियुक्त और पूर्व टेलीकॉम मिनिस्टर ए राजा की चौथी दुनिया से हुई ताज़ातरीन बातचीत पर ग़ौर करते हैं. सांसद कनिमोझी की ज़मानत के बाद बड़ी ही गर्वीली मुस्कराहट के साथ ए राजा लगभग ऐलान की मुद्रा में कहते हैं कि आई एम द कैप्टन ऑफ़ द शिप. एंड आई विल वेट फॉर एवरी वन एल्स कम आउट. बिफोर आई मेक सिमिलर अटेम्प्टस. निश्चित तौर पर राजा का यह बयान सरकार और खासकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं गृहमंत्री पी चिदंबरम को हिलाकर रख देने वाला है. दीगर है कि घोटाले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार सभी मुख्य आरोपी बारी-बारी से ज़मानत पर बाहर आ चुके हैं. हालांकि ए राजा सहित तीन लोग अभी भी सला़खों के पीछे हैं, पर राजा को इस बात का कोई मलाल नहीं, क्योंकि उन्हें इस बात का पूरा यक़ीन है कि वह अब ज़्यादा दिनों तक तिहाड़ की रोटियां नहीं तोड़ने वाले. तभी तो सीबीआई की विशेष अदालत में पेशी के लिए आए राजा बड़े ही यक़ीन के साथ कहते हैं कि जब भी वह अपनी ज़मानत अर्ज़ी लगाएंगे, उन्हें बेल मिलेगी ही मिलेगी. ज़मानत अर्ज़ी खारिज होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता, क्योंकि उनके पास ख़ुद को जेल की चाहरदीवारी के बाहर निकालने के लिए तर्क भी हैं और सबूत भी. राजा लगातार अपने क़ानूनी सलाहकारों के संपर्क में हैं और अपने बचाव की ख़ुद ही तैयारियां भी कर रहे हैं. राजा कहते हैं कि सीबीआई ने ज़्यादातर जांच आनन-फानन में की है, जिसे कोर्ट में साबित करना उसके लिए मुश्किल होगा. उनके ऊपर आईपीसी की धारा 120 बी के तहत आपराधिक षड्यंत्र का मामला दर्ज है और इसकी छानबीन नीरा राडिया के बिना अधूरी है. राजा के वकील सुशील कुमार कहते हैं कि राजा पर लगे आरोपों के मुताबिक़ लाइसेंस और राजा के बीच स्पष्ट तौर पर नीरा राडिया ही हैं और नीरा राडिया को सीबीआई ने अपना गवाह बना रखा है. इसके अलावा जो बवंडर होने वाला है, वह यह कि ए राजा जब कोर्ट में अपना बचाव करेंगे तो वह कोर्ट से बतौर गवाह मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम को बुलाने की मांग करेंगे. इसकी खातिर राजा 11 जनवरी, 2008 और 15 जनवरी, 2008 को स्पेक्ट्रम आवंटन संबंधी फाइल पर प्रधानमंत्री द्वारा की गई नोटिंग का हवाला देंगे तो स्पेक्ट्रम आवंटन में हो रही गड़बड़ियों पर तत्कालीन वित्त सचिव डी सुब्बाराव की आपत्ति पर उस समय वित्त मंत्री एवं स्पेक्ट्रम आवंटन पर मंत्रियों के समूह के सदस्य रहे चिदंबरम की चुप्पी को भी हथियार बनाएंगे.
टेलीकॉम कंपनी एयरसेल को लाइसेंस देने के मामले में पहले से ही फंसे पूर्व केंद्रीय मंत्री मारन के खिला़फ ईडी को मनी लाउंड्रिंग के सबूत मिले हैं. प्रवर्तन निदेशालय जल्द ही मनी लाउंड्रिंग का केस दर्ज कर मारन से पूछताछ करने वाला है. जांच एजेंसियों को सबूत मिल चुके हैं कि दयानिधि मारन के परिवार के मालिकाना हक़ वाली कंपनी सन डायरेक्ट टीवी प्राइवेट लिमिटेड में जो पैसा निवेश किया गया, वह दरअसल मॉरीशस से आया था.
राजा के वकील कहते हैं कि जब ए राजा की ज़मानत अर्ज़ी पर सुनवाई होगी तो किसी को नहीं बख्शा जाएगा. कोर्ट में प्रणब मुखर्जी को भी आना पड़ सकता है, क्योंकि जिस वक़्त स्पेक्ट्रम की क़ीमतों में हेराफेरी हो रही थी, तब स्पेक्ट्रम पर बने मंत्री समूह के अध्यक्ष के तौर पर राजा के साथ आख़िरी बैठक प्रणब मुखर्जी ने ही की थी. राजा की दलील से बरी तो तत्कालीन क़ानून मंत्री हंसराज भारद्वाज और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी नहीं हो पाएंगे. जब घोटाला सामने आया था तो सबसे पहले मोंटेक सिंह ने ही स्पेक्ट्रम सब्सिडी को खाद्यान्न सब्सिडी की तरह बताकर राजा का बचाव किया था, वहीं हंसराज भारद्वाज ने 575 आवेदनों की प्रोसेसिंग प्रक्रिया को नज़रअंदाज़ कर दिया था. कुल मिलाकर यह कि घोटाले की सुनवाई कर रहे जज ओ पी सैनी को अगर ज़रा भी ऐसा लगा कि राजा के तर्क और उनके पास मौजूद सबूतों में दम है तो हैरानी की बात नहीं होगी कि इन सभी महानुभावों को गवाह के तौर पर अदालत में पेश होने के लिए बुलावा भेज दिया जाएगा.
उधर सीबीआई सरकार के निर्देशों के मुताबिक़ वर्ष 2003 से इस घोटाले से जुड़े हुए पहलुओं की जांच कर रही है. लिहाज़ा वह भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन और दिग्गज नेता अरुण शौरी के नाम की फेहरिस्त अलग से बनाए बैठी है. सबसे बड़ी मुसीबत तो पूर्व कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन पर टूटने वाली है. नाम तो उनका पहले से ही घोटालेबाज़ों में दर्ज है, पर अब वह हवाला के अभियुक्त भी बनने वाले हैं. टेलीकॉम कंपनी एयरसेल को लाइसेंस देने के मामले में पहले से ही फंसे पूर्व केंद्रीय मंत्री मारन के खिला़फ ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय को मनी लाउंड्रिंग के सबूत मिले हैं. प्रवर्तन निदेशालय जल्द ही मनी लाउंड्रिंग का केस दर्ज कर मारन से पूछताछ करने वाला है. जांच एजेंसियों को इस बात के पुख्ता सबूत मिल चुके हैं कि दयानिधि मारन के परिवार के मालिकाना हक़ वाली कंपनी सन डायरेक्ट टीवी प्राइवेट लिमिटेड में जो पैसा निवेश किया गया, वह दरअसल मॉरीशस से आया था. मलेशियाई कंपनी मैक्सिस कम्युनिकेशंस की सहयोगी एस्ट्रो ऑल एशिया नेटवर्क ने यह पैसा सन डायरेक्ट टीवी में निवेश किया था. दयानिधि मारन के ख़िला़फ दर्ज की गई सीबीआई की इस एफआईआर में दिल्ली, चेन्नई और मलेशिया के साथ मॉरीशस का नाम भी घटना की जगह के तौर पर दर्ज है. यह निवेश तक़रीबन 629 करोड़ रुपये का है. यह पूरा निवेश फरवरी 2005 से सितंबर 2008 के बीच टुकड़ों-टुकड़ों में किया गया है. निवेश किया गया यह पैसा पहले मॉरीशस से मलेशिया भेजा गया और फिर मलेशिया से सन टीवी में निवेश किया गया. सन टीवी दयानिधि मारन के भाई कलानिधि और उनकी पत्नी कावेरी मारन चलाती हैं. जांच एजेंसियों को पैसों की हेराफेरी के सबूत मिले हैं. इस सवाल का जवाब भी तलाशा जा रहा है कि आख़िरकार सन टीवी में इन पैसों के निवेश का उद्देश्य क्या था. ज़ाहिर है कि जांच एजेंसियां इस सवाल का जवाब दयानिधि मारन से ही लेंगी.
जेपीसी को सौंपी गई फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट में भी इस बात का साफ़ तौर पर ज़िक्र है कि टेलीकॉम घोटाले के तार 75 से भी ज़्यादा देशों से जुड़े हुए हैं. देश की फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट ने टेलीकॉम घोटाले की तह तक पहुंचने के लिए दुनिया भर के इन 75 देशों से संपर्क भी साधा है. दरअसल, फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट ने ईडी और सीबीआई से मिली जानकारी के आधार पर टेलीकॉम घोटाले में शामिल 21 लोगों और 33 कंपनियों की एक सूची तैयार की थी. बाद में सीबीआई द्वारा पेश सबूतों के आधार पर अलग से अन्य 20 लोगों एवं 8 कंपनियों की एक और सूची तैयार की गई. फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट ने तफ्तीश के दरम्यान शक के दायरे में आए छह ट्रांजेक्शन की रिपोर्ट और 79 बैंक एकाउंट्स की जानकारी भी सीबीआई और ईडी को सौंपी. इनमें से 32 वैसे एकाउंट हैं, जिनमें एक करोड़ से ज़्यादा का ट्रांजेक्शन हुआ था. पर मुश्किल यह है कि इन देशों पर फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट को शक भी है और कमोबेश सबूत भी हैं, लेकिन वह अपनी रिपोर्ट में उनके नामों का खुलासा नहीं कर सकती, क्योंकि इन देशों के साथ भारत संधि की शर्तों से बंधा हुआ है.
सन टीवी दयानिधि मारन के भाई कलानिधि और उनकी पत्नी कावेरी मारन चलाती हैं. जांच एजेंसियों को पैसों की हेराफेरी के सबूत मिले हैं. इस सवाल का जवाब भी तलाशा जा रहा है कि आख़िरकार सन टीवी में इन पैसों के निवेश का उद्देश्य क्या था. ज़ाहिर है कि जांच एजेंसियां इस सवाल का जवाब दयानिधि मारन से ही लेंगी.
अब कांग्रेस की लाचारी देखिए. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वह जिस सीबीआई और देश के शीर्ष विधि अधिकारियों को हथियार बनाकर ख़ुद को पाक-साफ़ साबित करना चाहती थी, आरोपों से घिरे गृहमंत्री चिदंबरम की गर्दन बचाना चाहती थी, किसी भी तरह दक्षिण के राज्यों में अपनी पैठ बनाना चाहती थी, उसके इन सभी मंसूबों पर अब पानी फिर चुका है. रोज़ हो रहे नए खुलासे उसकी शर्मिंदगी बढ़ा रहे हैं सो अलग. बावजूद इसके कांग्रेस के हौसले टूटे नहीं हैं. तू नहीं और सही की तर्ज़ पर घोटाले का ठीकरा एक के बाद एक करके दूसरे के सिर पर फोड़ा जा रहा है. तसल्ली यही है कि ये सभी कहीं न कहीं दोषियों की जमात में शामिल हैं. पर आख़िर में घूम-फिर कर बात वहीं पहुंच रही है कि बस किसी तरह गृहमंत्री चिदंबरम का दामन फंसने से बच जाए और सरकार भी पाक-साफ़ साबित हो सके. पर ऐसा होता भी नहीं दिख रहा है, क्योंकि इस घोटाले के हीरो और पूर्व टेलीकॉम मिनिस्टर ए राजा ने कांग्रेस व सरकार के ख़िला़फ कमर कस ली है और अपने सबूत के तौर पर, वार करने के लिए अपने सभी काग़ज़ी-दस्तावेज़ी हथियार पैने कर लिए हैं. अब बेल का खेल क्या सियासी रंग दिखाएगा, यह देखना दिलचस्प तो होगा ही, पर यक़ीनन देश के लिए बेहद शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण भी होगा.
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