Ruby Arun

Friday, 9 December 2011

विजय माल्या और सियासत का गठजोड़ : आसमान में घोटाला .......By Ruby Arun


विजय माल्या और सियासत का गठजोड़ : आसमान में घोटाला


यह भारतीय लोकतंत्र का बाज़ारू चेहरा है, जो कॉर्पोरेट्स के हितों के मुताबिक़ फैसले लेता है. जहां लोकतंत्र के पहरुवे, भूख से मरते किसानों के लिए रोटी का इंतज़ाम करने का अपना फ़र्ज़ पूरा नहीं करते, लेकिन उद्योग जगत के महारथियों के क़दमों में लाल क़ालीन बनकर बिछ जाना अपनी शान समझते हैं. इस लोकतंत्र के बाज़ारवाद का इससे बड़ा नंगा सच और क्या होगा कि जब देश में हर आठ घंटे पर एक किसान भुखमरी और महज़ पचास रुपये के क़र्ज़ का शिकार होकर ख़ुदकुशी कर रहा है, तब सरकार बाईस हज़ार करोड़ की संपत्ति के मालिक किंग फिशर एयर लाइंस के चेयरमैन विजय माल्या को और भी मालामाल करने की क़वायद में जुटी है. सवाल यह है कि सरकार विजय माल्या को हज़ारों करोड़ रुपये का सहारा देने की बजाय खस्ताहाल हो चुके एयर इंडिया के संचालन को लेकर इतनी सतर्क और चिंतित क्यों नहीं है? आ़खिर सरकार विजय माल्या के प्रति इतनी नरम क्यों है?
देश के लोगों का दुर्भाग्य देखिए, महाराष्ट्र के जिस विदर्भ क्षेत्र के किसान दाने-दाने को तरस रहे हैं, उसी प्रदेश का केंद्र में प्रतिनिधित्व करने वाले मराठा क्षत्रप शरद पवार, विजय माल्या के ऊपर इस तरह मेहरबान हैं कि वह विजय माल्या के साथ व्यापार में भी साझीदार हो गए. विजय माल्या की आईपीएल टीम में शरद पवार की 16 फीसदी की हिस्सेदारी भी रही है. शरद के अलावा जो बड़े सियासी कारिंदे विजय माल्या के पहलू में हैं, उनमें राजीव शुक्ला, प्रफुल्ल पटेल और मुरली देवड़ा का नाम सबसे ऊपर आता है.
दरअसल, मनमोहन सरकार की नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभाने वाले मंत्री और नेताओं के साथ-साथ भाजपा की गणमान्य हस्तियां भी विजय माल्या के सियासी प्यादों की भूमिका में हैं. कांग्रेस के राजीव शुक्ला, मुरली देवड़ा, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, व्यालार रवि, एसएम कृष्णा, राकांपा के शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और राम जेठमलानी सरीखे नेता पार्टी के दायरे से परे जाकर बड़ी निष्ठा से विजय माल्या के राजनीतिक और व्यापारिक मोहरों का किरदार निभा रहे हैं.
इन नेताओं को अरबपति विजय माल्या के ग्यारह सौ चौतीस करोड़ का सरकारी क़र्ज़ माफ़ कराने के लिए देश की जनता के हलक़ से निवाला छीनने तक से गुरेज़ नहीं है. लिहाज़ा किंग फिशर एयर लाइंस को सरकार बेल आउट पैकज देने की तिकड़म में लग चुकी है. हालांकि सरकार की, इस लाभ के निजीकरण और घाटे के राष्ट्रीयकरण की जनविरोधी कोशिश का विरोध राहुल बजाज जैसे सांसद-उद्योगपति कर रहे हैं. लेकिन सरकार और विपक्ष ने आशिक़ी और रंगीन-मिज़ाजी के लिए मशहूर विजय माल्या की अय्याशियों को और भी परवान देने के लिए कमर कस ली है. इन सबके बीच भी एक अहम कड़ी है सतीश ओहरी. सतीश ओहरी एक पत्रकार है, जो एक पत्रिका निकालते हैं, जिसका नाम है बिजनेस ऐट जीरो ऑवर. शिवालिक, पंचशील, गीतांजलि रोड, नई दिल्ली से निकलने वाली यह पत्रिका बाज़ार में नहीं मिलेगी. पर इस पत्रिका के संपादक, मुद्रक और प्रकाशक के तौर पर सतीश ओहरी पावर गैलरी में संपर्क बनाता और दलाली करता हुआ ज़रूर मिल जाएगा. दलाली भी ऐसी वैसी नहीं, बल्कि बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों की, जिसमें विजय माल्या जैसे उद्योगपतियों का नाम खास तौर पर शामिल है. टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में जब दलाल नीरा राडिया से सीबीआई पूछताछ कर रही थी, तब नीरा ने सतीश का नाम जांच अधिकारियों को बताया था. नीरा के मुताबिक़, सतीश ओहरी को घोटाला और उसकी जांच से संबंधित सभी प्रक्रियाओं की जानकारी पहले से ही होती थी. उसी सतीश ओहरी ने ज़मीन से आसमान तक सपनों को बेचने वाले विजय माल्या के  लिए भी कई मंत्रालयों और मंत्रियों के बीच बिचौलिये का काम किया है. सतीश ओहरी को पावर गैलरी में दा़खिला भी देश के दो बड़े पत्रकारों की बदौलत ही मिला था.
विजय माल्या को फायदा पहुंचाने के लिए प्रफुल्ल पटेल ने सरकारी इंडियन एयर लाइंस को तबाह करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. इंडियन एयर लाइंस की सभी उड़ानों को घाटे वाले रूट पर डाल दिया गया और उसकी सर्विस इतनी अनियमित कर दी गई कि यात्रियों ने इसकी उड़ानों का इस्तेमाल करना ही छोड़ दिया. प्रफुल्ल पटेल ने रही सही कसर 111 विमानों की एक साथ खरीद करके पूरी कर दी, वह भी क़र्ज़ लेकर. सीएजी की रिपोर्ट में भी प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल में एयर इंडिया में हुई विमानों की खरीद-फरोख्त पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं.
बहरहाल, हर साल खूबसूरत मॉडलों के नंगे कैलेंडर बनवाने में करो़डों रुपये उड़ाने और आलीशान पार्टियों पर पानी की तरह पैसा बहाने वाले इस शख्स ने, अपने संसाधनों और भौतिक सुविधाओं के मा़र्फत भारतीय राजनीति की आला हस्तियों और सरकार पर इस क़दर शिकंजा कस रखा है कि वह बड़े ग़ुरुर के साथ यह ऐलान करता है कि किंग फिशर एयर लाइंस को घाटे से उबारना और उसे मुना़फे का सौदा बनाना सरकार का काम है, उसका नहीं. और उसकी इस बात पर हमेशा मौन साधे रहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस संकट से रास्ता निकलने की बात कह रहे हैं. कमाल की बात तो यह है कि सरकार पर छोटी से छोटी बात पर धावा बोलने को तैयार बैठी विपक्षी पार्टियों ने भी बिलकुल ही चुप्पी साध रखी है. विजय माल्या के खिला़फ एक भी विरोध का स्वर मुखर नहीं है.
विमानन मंत्री व्यालार रवि, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से इस मसले पर गहन मंत्रणा करते देखे जा रहे हैं. मुरली देवड़ा और केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, सीधे प्रधानमंत्री के निर्देशन में सभी राष्ट्रीय बैंकों के साथ बैठकें  कर रहे हैं, ताकि विजय माल्या को इस तथाकथित संकट से उबारा जा सके.
थोड़े ही समय में इसके परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं. कंपनियों ने बिना बक़ाया वसूले तेल की सप्लाई शुरू कर दी है, जबकि तेल कंपनियों के लगभग नौ सौ करोड़ रुपये विजय माल्या पर बक़ाया हैं. सीधी सी बात है, यहां न स़िर्फ मनमोहन सरकार दोषी है, बल्कि देश की तमाम विपक्षी पार्टियां भी बराबर की गुनाहगार हैं. ये सभी मिलकर  जनता के पैसे को देश के धन-पशुओं में बांटकर देश चलाने का धंधा कर रही हैं. मीडिया और बैठकों के ज़रिये शगू़फा यह छो़डा जा रहा है कि अगर किंगफिशर बंद हो गया तो देश पर बेरोज़गारी का बोझ बढ़ेगा. मगर हक़ीक़त यह है कि यह बेरोज़गारी उस आंकड़े की महज़ एक फीसदी होगी, जो पिछले साढ़े सात सालों के मनमोहन राज में किसानो की भूख और क़र्ज़ के तले दबकर आत्महत्याओं की है.
देश के लोगों का दुर्भाग्य देखिए, महाराष्ट्र के जिस विदर्भ क्षेत्र के किसान दाने-दाने को तरस रहे हैं, उसी प्रदेश का केंद्र में प्रतिनिधित्व करने वाले मराठा क्षत्रप शरद पवार, विजय माल्या के ऊपर इस तरह मेहरबान हैं कि वह विजय माल्या के साथ व्यापार में भी साझीदार हो गए. विजय माल्या की आईपीएल टीम में शरद पवार की 16 फीसदी की हिस्सेदारी भी रही है. शरद के अलावा जो बड़े सियासी कारिंदे विजय माल्या के पहलू में हैं, उनमें राजीव शुक्ला, प्रफुल्ल पटेल और मुरली देवड़ा का नाम सबसे ऊपर आता है.
ज़रा ग़ौर कीजिए कि किस तरह इन लोगों ने विजय माल्या को बीयर के बादशाह से आसमान का भी शहंशाह बना दिया. 2003 में किंगफिशर वजूद में आया. 2006 में यह लिस्टेड हुआ. तभी से विजय माल्या ने उधारी का खेल खेलना शुरू कर दिया. 2008 में तेल कंपनियों ने पहली बार पैसा न चुकाने का सवाल उठाया, लेकिन तब तक तत्कालीन उड्डयन मंत्री और विजय माल्या के क़रीबी संबंधी प्रफुल्ल पटेल ने विजय माल्या को नागरिक उड्डयन मंत्रालय की स्थायी समिति का सदस्य नामित कर दिया था. मतलब यह, जिनकी प्राइवेट एयर लाइंस थी, उन्हें ही एयर लाइंस के धंधों पर नज़र रखने के  लिए नियुक्त कर दिया गया. ज़ाहिर है कि ऐसे में न तो तेल कंपनियों की हिम्मत हुई कि वे विजय माल्या से बक़ाया वसूलने की बात करें और न ही एयरपोर्ट अथॉरिटी ने फीस वसूलने का साहस दिखाया. ऊपर से बैंकों ने भी विजय माल्या को मुंहमांगा लोन देने में पूरी उदारता बरती. दरअसल, जब तक पटेल विमानन मंत्री रहे, तब तक उन्होंने विजय माल्या से खूब रिश्तेदारी निभाई. पटेल के निर्देश पर कमाई के अधिकतर रूट किंग फिशर को ही मिलते रहे. विजय माल्या को फायदा पहुंचाने के लिए पटेल ने सरकारी इंडियन एयर लाइंस को तबाह करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. इंडियन एयर लाइंस की सभी उड़ानों को घाटे वाले रूट पर डाल दिया गया और उसकी सर्विस इतनी अनियमित कर दी गई कि यात्रियों ने इसकी उड़ानों का इस्तेमाल करना ही छोड़ दिया. प्रफुल्ल पटेल ने रही सही कसर 111 विमानों की एक साथ खरीद करके पूरी कर दी, वह भी क़र्ज़ लेकर. सीएजी की रिपोर्ट में भी प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल में एयर इंडिया में हुई विमानों की खरीद-फरोख्त पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं. सीएजी ने साफ़ तौर पर कहा है कि क़र्ज़ लेकर की गई 111 विमानों की खरीद ही एयर इंडिया की तबाही के लिए ज़िम्मेदार है.
सीएजी के मुताबिक़, प्रफुल्ल पटेल के नागरिक उड्डयन मंत्री रहते तत्कालीन एयर इंडिया लिमिटेड ने 50 विमानों की खरीद-फरोख्त के लिए बोइंग और जनरल इलेक्ट्रिक के साथ समझौता किया था. सीएजी के अनुसार जो 111 विमान खरीदे गए, उससे एयर इंडिया पर 38,423 करोड़ रुपये का क़र्ज़ हो गया. यह खरीद-फरोख्त एयर इंडिया की ज़रूरत से नहीं, बल्कि मंत्रालय के फैसले से प्रभावित थी. वहीं दूसरी तऱफ पटेल ने विजय माल्या को बेहद फायदे का सौदा कराया. विजय माल्या ने प्रफुल्ल पटेल की मदद से उस वक़्त की सबसे सस्ती मानी जाने वाली फ्लाइट एयर डक्कन के 21 जहाज़ों के बेड़े को खरीदा और उसे किंगफिशर रेड के नाम से रनवे पर उतारा. उस समय भी विमान ईंधन के दाम और एयरपोर्ट सरचार्ज हमेशा 3000 करोड़ से ऊपर ही रहा, पर चूंकि पटेल मंत्री थे, इसलिए किसी की मजाल नहीं थी कि वह विजय माल्या की तऱफ उंगली भी उठा सके.
विजय माल्या, वैसे भी दोस्ती के ज़रिये सियासी गलियारों में अपनी धमक बनाने में माहिर हैं और किसे माध्यम बनाकर किसकी गर्दन तक पहुंचना है, यह भी उन्हें ब़खूबी आता है. वैसे तो विजय माल्या फैशन डिजाइनर रीना ढाका, भारत सुंदरी नेहा धूपिया, अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी, समीरा रेड्डी, बी ग्रेड हीरोइन पायल रोहतगी, क्लाउडिया सेस्सल, डिम्पल कपाडिया, एम टीवी वीजे सोफी चौधरी जैसी अनगिनत बिंदास बालाओं के खास दोस्तों में शुमार होते हैं. मगर इन सबसे इतर उनके बेहद नज़दीकी पारिवारिक संबंध रिलायंस समूह के मालिक मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी से भी हैं.
केंद्रीय मंत्री मुरली देवड़ा रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी के पिट्ठू माने जाते हैं. 2006 में जब मणिशंकर अय्यर को हटाकर मुरली देवड़ा को पेट्रोलियम मंत्री बनाया गया तो उनकी पीठ पर मुकेश अंबानी का ही हाथ था. इसलिए मुरली देव़डा बतौर मंत्री भी अक्सर यह कहते रहे कि उनके लिए मुकेश अंबानी कितने अहम हैं. और तो और 2008 में जब अमेरिका में गैस की क़ीमत 3.70 डॉलर थी, तब भी रिलायंस भारत में गैस की क़ीमत 4.20 डॉलर लगा रहा था और मुरली देव़डा न स़िर्फ राष्ट्रीय धरोहर को कौड़ियों के  मोल मुकेश अंबानी को बेच रहे थे, बल्कि उनके साथ आंध्र प्रदेश के त्रिमूला मंदिर में पूजा-अर्चना करने भी खुलेआम जा रहे थे.
लिहाज़ा मुकेश की पत्नी नीता अंबानी की स़िफारिश पर मुरली देवड़ा की भूमिका भी विजय माल्या के इस उधारी के खेल में ज़बरदस्त रही. देवड़ा के कहने पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने नियम-क़ानूनों को परे रखकर घाटे में चल रही विजय माल्या की कंपनी को 600 करोड़ रुपये का तेल उधार दे दिया, जिससे सरकार और निगम को हज़ारों करोड़ रुपये का नुक़सान पहुंचा. फिलहाल केंद्रीय सतर्कता आयोग इस मामले की जांच कर रहा है. कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला से विजय माल्या की दोस्ती की वजह भी मुकेश अंबानी और नीता अंबानी ही हैं.
विजय माल्या के हित में भाजपा के बड़े नेताओं का सौहार्द्र भी कमाल का है. माल्या की कंपनी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय अस्तित्व में आई. एनडीए सरकार का वरदहस्त पाकर माल्या भारतीय बाज़ार पर छा गए. जब येदुरप्पा की सरकार पर संकट आया तो विजय माल्या ने अपना फ़र्ज़ निभाया और नितिन गडकरी के कहने पर माल्या, सुषमा स्वराज के साथ कर्नाटक में धन-बल के साथ डटे रहे. झारखंड में भी उनकी भूमिका भाजपा के लिए तारणहार की रही. जब राम जेठमलानी की राज्यसभा सीट फंसी, तब विजय माल्या का पैसा सर चढ़कर बोला. माल्या और जेठमलानी दोनों ही जीते, पर माल्या की जीत के नतीजे चौंकाने वाले रहे. उन्हें सभी पार्टियों से वोट मिले थे. हालांकि विजय माल्या ने इस सौदेबाज़ी में देहरादून की अपनी उस कोठी को भी बचा लिया, जिस पर 27 करोड़ रुपये का टैक्स बक़ाया था. इसमें उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने उनकी मदद की. देहरादून के राजपुर रोड पर स्थित यह कोठी माल्या की मां लीला और उनकी दो बहनों के नाम थी.
वैसे तो विजय माल्या ने अपने पैसों और शानदार खातिरदारी की बदौलत सभी पार्टियों के दिग्गज नेताओं को अपना मुरीद बना रखा है, पर भाजपा पर वह कुछ ज़्यादा मेहरबान दिखते हैं. विजय माल्या के दोबारा राज्यसभा सदस्य बनने के पीछे भाजपा का निर्विवाद समर्थन रहा है. विजय माल्या ने भी इस वफ़ा का सिला वक़्त-वक़्त पर खूब दिया है. पिछले साल जब भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के बेटे निखिल गडकरी की नागपुर में शादी हुई तो खास मेहमानों को लाने-ले जाने के लिए 30 चार्टर्ड प्लेन का इंतज़ाम किया गया था, जिनमें किंग फिशर एयर लाइंस के नाइन सीटर बिजनेस प्लेन मेहमानों की खिदमत के लिए खास तौर पर मौजूद थे. मतलब यह कि विजय माल्या ने अपने इर्द-गिर्द सभी पार्टियों के नेताओं की ऐसी फौज ख़डी कर रखी है, जो उनकी दुश्वारियों को दूर करने के लिए स्वतः ही तत्पर है. ऐसे में लाज़िमी है कि विजय माल्या अपनी मुसीबतों का ठीकरा बड़ी ही बेफिक्री से सरकार के सर फोड़ेंगे और सरकार स्वतः स्फूर्त उनका समाधान तलाशेगी. हो भी यही रहा है.
मनमोहन सरकार के एक ताक़तवर मंत्री नाराज़गी के अंदाज़ में कहते हैं कि यह मुक्त अर्थ-व्यवस्था का दौर है, तो फिर ऐसे में निजी क्षेत्र की कंपनी के घाटे की भरपाई सरकार बेल आउट पैकेज देकर क्यों करे? दूसरी बात यह कि विजय माल्या कोई भूखे नंगे व्यापारी तो हैं नहीं. दुनिया के सबसे बड़े शराब व्यापारियों में उनकी गिनती होती है. वह देशी और विदेशी खिला़डियों की खरीद पर अरबों-खरबों रुपये लुटा सकते हैं. चीयर गर्ल्स के ऐशो-आराम और राजनेताओं के लिए नए साल की पार्टी कर गोवा में वह करोड़ों रुपये दिखावे में खर्च कर सकते हैं, तो फिर क्यों नहीं वह अपना घाटा अपनी दूसरी कंपनियों से पूरा करते हैं?
दरअसल, यह एक सोची-समझी योजना के तहत किया जा रहा है. जब तक विजय माल्या के सगे पटेल का राज था, तब तक माल्या ने खूब ऐश किए. लेकिन अब जबकि सीएजी के पास विमानन मंत्रालय से संबंधित अनियमितता के कई मामले जांच के लिए हैं, तब माल्या पर भी उधारी चुकाने का दबाव है. अब ईंधन के दाम और एयरपोर्ट सरचार्ज हर क़ीमत पर हर तिमाही में क्लीयर करने के फरमान का उन्हें पालन करना ही है. ऐसी स्थिति में उनके पास सबसे आसान रास्ता यही है कि वह खुद को दिवालिया घोषित करें और देनदारी से बच जाएं.

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