अकेलेपन से अब.....जब भी जी घबराता है.....
तब ...मैं बिखेर देती हूँ ज़मीं पर तुम्हारी उन्ही आहटों को..
जिन्हें.......तुम्हारे जाते-जाते......
समेट लिया था मैंने अपने आगोश में .....
तुम्हारे अपने इर्द-गिर्द होने का एहसास.....
खुशरंग कर जाता है मुझे....
फिर...अकेलापन.. मुझे डरा नहीं पाता.......!!
No comments:
Post a Comment