एटॉर्नी जनरल का असली चेहरा |
भारत के एटॉर्नी जनरल गुलाम ई वाहनवती सवालों के घेरे में हैं. उनकी क़ानूनी सलाहों को संदेह की नज़र से देखा जा रहा है. देश के शीर्ष क़ानूनी पद पर बैठे वाहनवती की संदिग्ध भूमिका से सरकार की प्रतिष्ठा और आमजनों के विश्वास को ठेस पहुंची है. सवाल यह है कि क्या भारत के एटॉर्नी जनरल गुलाम ई वाहनवती और गृह मंत्री पी चिदंबरम की टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में वाकई कोई भूमिका है? क्या इस मामले के मुख्य आरोपी पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और डी बी रियलिटी के पार्टनर शाहिद बलवा द्वारा इन दोनों पर लगाए गए आरोप सच हैं? क्या वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी अभी तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं गृह मंत्री पी चिदंबरम से नाराज़ हैं, क्योंकि उन्हें इस घोटाले की हक़ीक़त और सूत्रधारों की वास्तविकता मालूम है? हालांकि गुलाम ई वाहनवती और पी चिदंबरम अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर चुके हैं, लेकिन देश के शीर्ष क़ानून अधिकारी गुलाम ई वाहनवती और गृह मंत्री पी चिदंबरम से जुड़े जो पुख्ता तथ्य हमारे पास हैं, वे इन दोनों को संदेह के दायरे में खड़ा करते हैं. ये चंद वैसी सच्चाइयां हैं, जो पूरे देश की क़ानून व्यवस्था और प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़ा करती हैं.
एटॉर्नी जनरल सरकार का सबसे बड़ा क़ानूनी अधिकारी होता है, उसे महान्यायवादी कहा जाता है. वह सरकार की आंख, नाक और कान माना जाता है. उसका काम जनता के हित में सरकार को सलाह देना है, लेकिन वर्तमान एटॉर्नी जनरल गुलाम ई वाहनवती के कारनामों और उनकी पृष्ठभूमि से यह साबित होता है कि उन्होंने एटॉर्नी जनरल के पद की गरिमा का ख्याल नहीं रखा. सरकार ने इस संस्था का भी राजनीतिकरण कर दिया. मामला चाहे मुलायम सिंह के खिला़फ सीबीआई के मुकदमे का हो या फिर थलसेना अध्यक्ष वी के सिंह की जन्मतिथि के विवाद का या फिर 2-जी घोटाला, एटॉर्नी जनरल वही सलाह देते हैं, जो सरकार के कुछ लोगों का हित साधती हो. कई बार तो उन्होंने कोर्ट में ऐसी-ऐसी दलीलें दीं, जिन्हें सुनकर सुप्रीम कोर्ट के जजों का दिमाग़ चकरा गया. डर लगता है कि कहीं सरकार संवैधानिक संस्थाओं को चौपट करने पर आमादा तो नहीं है. एक तऱफ पीएसी और सीएजी पर सवाल खड़ा किया गया और अब देश के एटॉर्नी जनरल को सरकार की गलतियों को छुपाने वाला मोहरा बना दिया गया.
एटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया की भूमिका से उनके सहयोगी तक ख़फा हैं. महाधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम का इस्ती़फा भी इसी की एक कड़ी है. सुब्रह्मण्यम देश के दूसरे सबसे अहम क़ानून अधिकारी के पद पर थे. वह गुलाम ई वाहनवती के कामकाज के तौर तरीक़ों से ख़फा थे.लिहाज़ा गुलाम ई वाहनवती ने संचार मंत्री कपिल सिब्बल से कहकर सर्वोच्च न्यायालय में सरकार की पैरवी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता रोहिंगटन नरीमन की नियुक्ति करा ली. चूंकि कपिल सिब्बल पर भी यह आरोप है कि उन्होंने रिलायंस टेलीकॉम को फायदा पहुंचाया है. इसलिए उन्हें भी एक ऐसे क़ानूनी नुमाइंदे की ज़रूरत थी, जो उनका पक्ष उनके मुताबिक़ ही अदालत में रखे. ज़ाहिर है कि यह स्थिति भी गुलाम ई वाहनवती की छवि को दाग़दार करती है. टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआई ने चार्जशीट भी दाखिल कर दी है. पूछताछ की औपचारिक प्रक्रिया अभी भी जारी है. ए राजा, सिद्धार्थ बेहुरा और शाहिद बलवा ने भारत के महान्यायवादी गुलाम ई वाहनवती का नाम अपने बयान में बतौर आरोपी लिया, लेकिन सीबीआई ने उन्हें अपना गवाह नंबर 32 बना लिया. गृह मंत्री पी चिदंबरम से सवाल-जवाब करने की हिम्मत तो सीबीआई जुटा ही नहीं पाई. यह अलग बात है कि एक पत्र के लीक होने और प्रणव मुखर्जी के क्षुब्ध होने की वजह से तनाव पैदा हुआ और सरकार एक बारगी सकते में आ गई, पर फिर सब कुछ अपनी राह चल पड़ा. लेकिन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की पेशानी पर अभी भी बल पड़े हैं, क्योंकि उन्हें गृह मंत्री पी चिदंबरम और एटॉनी जनरल गुलाम ई वाहनवती की असली भूमिका की जानकारी है.
आइए हम बताते हैं कि क्या हैं वे राज, जो गृह मंत्री और एटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया को संदिग्ध बनाते हैं. गुलाम ई वाहनवती के बेटे हैं एस्साजी वाहनवती. यह भी अपने पिता की तरह वकालत के पेशे में हैं. एस्साजी वाहनवती उस वेदांता कंपनी के विधि सलाहकार हैं, जिसमें गृह मंत्री पी चिदंबरम बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में थे. एस्साजी वाहनवती मुंबई में स्थित एक लॉ फर्म एजेडबी में पार्टनर हैं, जिसमें उनके साथ हैं देश की नामचीन कमर्शियल टैक्स वकील जिया मोदी. जिया मोदी पूर्व एटॉनी जनरल सोली जहांगीर सोराब जी की इकलौती बेटी हैं. सोली जहांगीर सोराब जी और गुलाम ई वाहनवती दोनों ही लॉ फर्म एजेडबी के संस्थापक सदस्य हैं. एस्साजी वाहनवती और जिया मोदी के अलावा इस लॉ फर्म के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में बहराम वकील, अजय बहल, अरिहंत पटनी एवं अपूर्वा पटनी भी शामिल हैं. इस लॉ फर्म की ट्रस्टी हैं सोली जहांगीर सोराब जी की पत्नी और इसके मुख्य क्लाइंट्स हैं अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी, रतन टाटा, सुनील मित्तल, एमटीएन वेदांता, वोडाफोन, एस्सार जैसे लोग और कंपनियां. टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में इन सभी कंपनियों के नाम दर्ज हैं. डी बी रियलिटी के पार्टनर शाहिद बलवा और रिलायंस टेलीकॉम के मालिक अनिल अंबानी दोनों स्वान टेलीकॉम में शेयर होल्डर हैं. स्वान टेलीकॉम पर रिलायंस टेलीकॉम की फ्रंट कंपनी होने का आरोप है. स्वान टेलीकॉम के 9.9 फीसदी हिस्से को डेल्फी को बेचे जाने को लेकर अनिल अंबानी सहित कई लोगों की सीबीआई जांच चल रही है. हालांकि कोर्ट में पेश स्टेटस रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा है कि उसे ऐसा कोई मौखिक या लिखित सबूत नहीं मिला है, जिससे यह साबित हो कि अनिल अंबानी की इस घोटाले में कोई संदिग्ध भूमिका है. लेकिन इसी मामले में शाहिद उस्मान बलवा तिहाड़ जेल में है.
विवादों में घिरे वाहनवती
भारत के महान्यायवादी गुलाम ई वाहनवती ने न स़िर्फ टू जी स्पेक्ट्रम मामले में सरकार की किरकिरी कराई है, बल्कि वह पहले भी अपने फैसलों से सरकार को मुसीबत में डालते रहे हैं. ताज़ा विवाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव की आय से अधिक संपत्ति का सीबीआई में दर्ज मामला है. सुप्रीम कोर्ट के वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी ने दिल्ली के तिलक मार्ग थाने में एटार्नी जनरल ऑफ इंडिया के ख़िला़फ धारा 218 और 120 बी आईपीसी के तहत शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें कहा गया है कि गुलाम ई वाहनवती ने सीबीआई पर इस बात के लिए दबाव डाला था कि वह मुलायम सिंह के ख़िला़फ सुप्रीम कोर्ट में चल रहे आय से अधिक संपत्ति के मामले को रफा-दफा करे. विश्वनाथ चतुर्वेदी ने अपनी शिकायत में कहा है कि भारत के महान्यायवादी गुलाम ई वाहनवती अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं और सरकार को अवैध तरीक़े से फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.इसके अलावा वाहनवती ने भोपाल गैस त्रासदी के मसले पर भी सरकार की ऐसी तैसी कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आधारहीन और अधकचरे तथ्यों की बिना पर गुलाम ई वाहनवती ने सरकार को सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर करने की सलाह दे दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया. थलसेना अध्यक्ष के उम्र विवाद पर भी उनकी भूमिका ने उनके पद की गरिमा को धूमिल कर दिया है. देश के इस सर्वोच्च क़ानूनी अधिकारी पर यह आरोप भी है कि उन्होंने अपने बेटे एस्साजी वाहनवती को बेजा फायदा पहुंचाने की गरज से सरकारी निर्देशों की अवहेलना की. मामला वेदांता नामक कंपनी से जुड़ा है. गृह मंत्री पी चिदंबरम इस कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में थे. गुलाम ई वाहनवती के बेटे एस्साजी वाहनवती वेदांता के क़ानूनी सलाहकार हैं. अगस्त 2010 में वेदांता ने घोषणा की कि वह कैरन इंडिया लिमिटेड की 60 फीसदी हिस्सेदारी खरीदना चाहता है. यह फाइल तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल वाहनवती के पास सीधे पहुंच गई. मामला गैस और पेट्रोलियम का था. नियम यह है कि किसी भी राज्य में स्थित गैस पेट्रोलियम के भंडार पर पहले ओएनजीसी का स्वामित्व होता है, लेकिन यहां गुलाम ई वाहनवती के बेटे की वजह से वेेदांता की फाइल सीधी केंद्र तक पहुच गई. हालांकि इस मसले पर बाद में बेहद विवाद हुआ और वाहनवती एवं कानून मंत्रालय को इस बात पर सफाई भी देनी पड़ी.
इसके अलावा स्वान टेलीकॉम का नाम ख़ास तौर पर उद्धृत है. दूरसंचार मंत्रालय में सचिव स्तर के एक अधिकारी और भारत के रिटायर्ड वायरलेस एडवाइज़र आर पी अग्रवाल ने अदालत में दिए बयान में यह कहा है कि देश के तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल गुलाम ई वाहनवती ने टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट एपीलेट ट्रिब्यूनल यानी टीडी सेट को दिए हल़फनामे में स्वान टेलीकॉम को उच्च प्राथमिकता पर दिखाया था. देश के एक बड़े न्यायविद् कहते हैं कि जब यह बयान अदालत में दर्ज है तो फिर सीबीआई ने गुलाम ई वाहनवती की घोटाले में भूमिका की जांच क्यों नहीं की, उन्हें सीबीआई ने अपना गवाह कैसे बना लिया?
दूसरी बात यह कि जिस स्वान टेलीकॉम की एटॉर्नी जनरल ने पैरवी की, बाद में उसी के ख़िला़फ बयान दिया. स्वान का एमडी शाहिद उस्मान बलवा जेल में है, जिसके क़रीबी रिश्ते मराठा छत्रप शरद पवार की सांसद बेटी सुप्रिया सुले से हैं, जिसका सबूत हम पिछले अंक में छाप चुके हैं. गुलाम ई वाहनवती भी महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल रह चुके हैं. तो क्या उस समय वह कृषि मंत्री शरद पवार या सुप्रिया सुले के दबाव में थे या फिर चूंकि जब घोटाले की पृष्ठभूमि बन रही थी, तब कांग्रेस और राकांपा के बीच रिश्ते मधुर थे, इसलिए गुलाम ई वाहनवती ने ऐसा किया. और अब चूंकि कांग्रेस की अपनी सहयोगी पार्टी से खटास बढ़ रही है और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, इसलिए शाहिद बलवा को मोहरा बनाकर शरद पवार को तोड़ने की योजना है. सीबीआई को गुलाम ई वाहनवती की सहभागिता की जांच करते हुए इन सभी मुद्दों पर ग़ौर करना होगा. गुलाम ई वाहनवती ने देश के शीर्ष क़ानून अधिकारी के तौर पर दिसंबर 2010 में अदालत में दिए गए अपने हलफनामे में ए राजा की सभी कार्रवाइयों को जायज़ ठहराया है और अब वह इन सभी बातों से मुकर रहे हैं. इसके अलावा पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा द्वारा प्रधानमंत्री को 26 दिसंबर, 2007 को लिखे पत्र में इस बात का सा़फ तौर पर ज़िक्र है कि उन्होंने टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन पर सॉलिसिटर जनरल गुलाम ई वाहनवती और मंत्री समूह के अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी से गहन चर्चा की. एनडीए सरकार द्वारा 2001 में तय की गई नीति पहले आओ पहले पाओ पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई. गुलाम ई वाहनवती ने ही यह सलाह दी कि जो लोग शाम के साढ़े चार बजे तक लेटर ऑफ इंटेट पेश करेंगे, उन्हें लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा. तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल गुलाम ई वाहनवती ने कट ऑफ डेट और अन्य शर्तों को देखने के बाद ही अपनी मंजूरी दी थी.
प्रधानमंत्री ने इस सिलसिले में जब विस्तृत ब्योरा मांगा तो प्रणव मुखर्जी ने उन्हें पत्र तो लिखा, पर आश्चर्यजनक बात यह रही कि उन्होंने उस पत्र में ए राजा के साथ हुई अपनी बैठक का ज़िक्र तक नहीं किया. यह पत्र 26 दिसंबर, 2007 को लिखा गया, लेकिन प्रणव मुखर्जी को इसकी रिसीविंग 3 जनवरी, 2008 को मिली. 10 जनवरी, 2008 को 15 कंपनियों को 121 लाइसेंसों के लिए आशय पत्र जारी कर दिए गए और 15 जनवरी, 2008 को चिदंबरम ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा कि राजा ने जो किया, वह अध्याय बंद है. 30 जनवरी, 2008 को राजा ने चिदंबरम के साथ ऑपरेटरों की संख्या और स्पेक्ट्रम ट्रेडिंग को सुरक्षित करने की ज़रूरत के बारे में चर्चा की. 4 जुलाई, 2008 को प्रधानमंत्री, चिदंबरम और राजा ने स्पेक्ट्रम शुल्क और 6.2 मेगाहट्र्ज के परे क़ीमत पर चर्चा के लिए बैठक की. 23 सितंबर, 2008 को स्वान ने एतिसलात के साथ सौदा किया और एक महीने बाद ही यूनिटेक ने टेलीनॉर के साथ सौदा कर लिया. मतलब यह कि स्वान टेलीकॉम की यह बेधड़क सौदेबाज़ी गुलाम ई वाहनवती की सिफारिशों की वजह से ही मुमकिन हो सकी.
तारीखी पत्र बताते हैं कि टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले से जुड़ी सभी जानकारियां गुलाम ई वाहनवती, पी चिदंबरम और प्रधानमंत्री को थीं. प्रणव मुखर्जी को भी इन फैसलों से वाक़िफ कराया गया, फिर भी गड़बड़ियां होती रहीं. आख़िर वजह क्या रही? वजह रहे गुलाम ई वाहनवती. पहले तो उन्होंने पहले आओ पहले पाओ के मसौदे को मंजूरी दी. फिर जब राजा ट्राई एक्ट के सेक्शन 11 का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर रहे थे, तब भी देश के महान्यायवादी होने के नाते उन्होंने विधि मंत्रालय को सतर्क नहीं किया. अक्टूबर 2007 में राजा ने ट्राई के फैसले के ख़िला़फ जाकर स्वान, यूनिटेक और एस टेल को अपनी इक्विटी बेचने की इजाज़त दी, तब कंपनी अफेयर्स मिनिस्ट्री क्या कर रही थी? कंपनी अफेयर्स मिनिस्टर सलमान खुर्शीद ने आंखें क्यों बंद कर रखी थीं और आज क़ानून मंत्री के तौर पर वह फिर चुप हैं. गुलाम ई वाहनवती सभी फैसलों से वाक़िफ होते हुए भी ख़ामोश क्यों रहे?
अब बात करते हैं इस घोटाले की वजह से हुए सरकारी राजस्व के नुक़सान की. सीबीआई ने जो आरोप पत्र तैयार किया है, उसमें उसने एक ही आरोप पत्र में ए राजा, यूनिटेक के संजय चंद्रा और स्वान के शाहिद बलवा सहित 14 नाम रखे हैं. हैरानी की बात यह भी है कि संजय चंद्रा और शाहिद बलवा, जो बिल्डर होने के नाते व्यवसायिक प्रतिद्वंद्वी भी हैं, के बीच साठगांठ दिखाने की कोशिश की गई है, जिसके सबूत अभी तक नहीं मिले हैं. राजा पर इल्ज़ाम है कि उन्होंने 12 कंपनियों को औने-पौने दामों पर स्पेक्ट्रम जारी किया, पर अब स़िर्फ दो कंपनियों को ही सरकारी राजस्व के नुक़सान का ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है. यहां सरकारी राजस्व के नुक़सान के जो आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, उनमें भी भिन्नता है.
पिछले साल नवंबर में जब नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने इसका आकलन किया तो इसके लिए ट्राई को आधार बनाया. ट्राई ने कहा कि टू जी असल में 2.75 जी स्पेक्ट्रम या जो 3-जी स्पेक्ट्रम से बहुत अलग नहीं था और इसके लिए पिछले वर्ष की गई 3-जी नीलामी को आधार माना जाए तो नुक़सान 1,76,645 करोड़ रुपये तक का हो सकता है. अगर सत्यम, बोफोर्स और कॉमनवेल्थ खेल आदि घोटालों को आपस में जोड़ दिया जाए तो उस कुल रकम से भी यह रकम कई गुना ज़्यादा है, लेकिन पेंच इसमें भी है. 2008 में सीबीआई ने कहा था कि ए राजा की वजह से जो नुकसान हुआ, वह 20,000 करोड़ रुपये का ही था. जबकि इस साल की शुरुआत में सीबीआई ने जो आरोप पत्र दाख़िल किया, उसमें इसे बढ़ाकर 30,984.55 करोड़ रुपये कर दिया गया. जब प्रवर्तन निदेशालय ने अपना अनुमान पेश किया तो यह रकम बढ़कर 40,000 करोड़ रुपये हो गई. उस पर तुर्रा यह कि जब प्रधानमंत्री ने संसद में बयान दिया तो कहा कि टू जी स्पेक्ट्रम की बिक्री से सरकार को नुक़सान नहीं हुआ है. गृह मंत्री और स्पेक्ट्रम बिक्री के व़क्त वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम ने भी यही बात कही. संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने भी इसी बात को दोहराया.
देश की सर्वोच्च अदालत के एक न्यायविद् कहते हैं कि ए राजा को शुरू से ही पता था कि वह जो कर रहे हैं, वह पूरी तरह ग़लत है, पर वह निश्चिंत हैं, क्योंकि तमाम घटनाक्रमों पर नज़र डालें तो यह लगता है कि उनके पास इस बात के सबूत हैं कि भारत के महान्यायवादी की भूमिका भी उन्हीं की तरह है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि लापरवाहियां गुलाम ई वाहनवती से भी हुई हैं. यही वजह है कि राजा अदालत में अपना पक्ष खुद रखने की तैयारी में हैं, क्योंकि खुद राजा को देश की क़ानून व्यवस्था और अदालती प्रक्रिया पर यकीन नहीं है. उनका मानना है कि अगर कोई दूसरा वकील अदालत में उनका पक्ष रखेगा तो वह मामला बिगाड़ सकता है. सच सामने आने के लिए यह ज़रूरी भी है, क्योंकि देश के शीर्ष कानूनी पद पर बैठे व्यक्ति पर आरोप लगे हैं. यह न स़िर्फ कानूनी प्रक्रिया की अस्मिता, बल्कि देश के आम आदमी की क़ानून और न्यायिक व्यवस्था पर आस्था का भी सवाल है, जिसका जवाब मिलना ही चाहिए.
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